कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) धीरे धीरे अपने पत्ते खोल रहे हैं. काफी चीजें बता भी चुके हैं. कुछ साफ साफ और कुछ संकेतों के जरिये. बस प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर औपचारिक जानकारी भर देना बाकी है.
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था - राजनीति नहीं छोड़ी है... आखिर तक लड़ेंगे. कैप्टन के दिल्ली दौरे का कार्यक्रम भी इसी मुहिम को लेकर बना होगा. अब तो लगता है मंजूरी भी मिल चुकी है. टारगेट भी पंजाब की कांग्रेस (Punjab Congress) है और टास्क भी कांग्रेस मुक्त बनाने जैसा ही है.
बीती मुलाकातों की तरह ही कैप्टन अमरिंदर सिंह की अमित शाह (Amit Shah) के साथ मीटिंग की पहले से ही काफी चर्चा रही, लेकिन वो अपने दौरे को गैर राजनीतिक बताते रहे. बातों में दम लाने के लिए ये भी बता डाला कि कपूरथला हाउस खाली कर सामान लेने के लिए वो दिल्ली का कार्यक्रम बनाये हैं.
जब अमित शाह से मुलाकात हो गयी उसके बाद ट्विटर पर बताया कि मुलाकात किसानों के मुद्दे पर हुई. कृषि कानून और एमएसपी पर. 24 घंटे बाद फिर से ट्वीट कर कैप्टन ने बताया कि वो बीजेपी में नहीं जा रहे हैं. लगे हाथ ये भी बता दिया कि वो कांग्रेस में भी नहीं रहेंगे. अपने ट्विटर प्रोफाइल में भी तब्दीली कर डाली - 'पुराना फौजी, पूर्व मुख्यमंत्री, पंजाब और सूबे की सेवा करता रहूंगा.'
भला अब और क्या बताया जाना और जानना बाकी है. सब कुछ तो साफ साफ नजर आ रहा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने जो एजेंडा या बीजेपी नेतृत्व से मिला टास्क है उसे पूरा करने के लिए भगवा धारण करना जरूरी भी तो नहीं है - फिर बीजेपी में जायें न जायें क्या फर्क पड़ता है?
राष्ट्रवादी एजेंडे के साथ कांग्रेस छोड़ेंगे कैप्टन
कांग्रेस में रहते हुए भी कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी की राष्ट्रवादी विचारधारा से पूरा इत्तेफाक रखते देखे गये हैं. हरीश रावत की तरफ कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू की पाकिस्तान परस्ती का कभी बचाव नहीं किया, बल्कि डंके की चोट पर हमेशा ही विरोध किया - और ऐसा करने की वजह सिर्फ सिद्धू से उनका राजनीतिक विरोध ही नहीं है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हमेशा ही खुद को एक फौजी की तरह समझा है और अब भी उसी अंदाज में अपने सियासी दुश्मनों से लड़ रहे हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का न्योता सिद्धू को तो पुराने क्रिकेटर होने के नाते भेजा था, लेकिन द्विपक्षीय संबंधों के तहत विदेश मंत्री और पंजाब के मुख्यमंत्री को भी बुलाया था. तब भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री रहते वही स्टैंड लिया जो तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का रहा.
जब कभी पाकिस्तान के मुद्दे पर कैप्टन ने कोई बयान भी दिया तो अंदाज वैसा ही तल्ख रहा है. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी कैप्टन अमरिंदर ने सिद्धू को लेकर कहा था कि अगर वो पंजाब के मुख्यमंत्री बने तो देश के लिए खतरनाक होगा. कैप्टन ने तभी पंजाब के सीमावर्ती राज्य होने की भी याद दिलायी. पंजाब की सीमा पाकिस्तान से सटी हुई है.
किसान आंदोलन के दौरान भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी के मतभेद सामने आये ही थे, जलियांवाला बाग के पुनरुद्धार पर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी आमने सामने नजर आये थे.
तब राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा था, 'जलियांवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता... मैं एक शहीद का बेटा हूं... शहीदों का अपमान किसी कीमत पर सहन नहीं करूंगा. हम इस अभद्र क्रूरता के खिलाफ हैं.'
लेकिन जब कैप्टन अमरिंदर सिंह से मीडिया ने रिएक्शन मांगा तो बोले, 'मैं उद्धाटन कार्यक्रम में था और मेरे हिसाब से जलियांवाला बाग रेनोवेशन बहुत बढ़िया है... वहां जो बदलाव किए गये हैं वो बढ़िया हैं... वक्त के साथ जो इमारतें कमजोर हो गई थीं उनको भी दुरुस्त करना जरूरी था.'
अमित शाह से मुलाकात के बारे में कैप्टन अमरिंदर से पहले बस इतना ही कहा था कि किसानों के मुद्दे पर बात हुई है, लेकिन उसके आगे कह रहे हैं कि वो कांग्रेस छोड़ देंगे और उसकी वजह भी याद दिलाना नहीं भूलते, 'अभी तक मैं कांग्रेस में ही हूं, लेकिन आगे कांग्रेस में नहीं रहूंगा... मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिये था.'
बस इतना बताना भी तो काफी नहीं, लिहाजा अपने बयान के बाद जो कयास लगाये जा सकते हैं, कोशिश होती है पहले ही खारिज कर देने की - 'बीजेपी में शामिल नहीं होने जा रहा, लेकिन कांग्रेस में भी नहीं रहूंगा.'
जो बातें कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बतायी वो तो आप जान और समझ ही चुके हैं, लेकिन कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जो कही नहीं जातीं. शायद कही नहीं जा सकतीं. ऐसी बातों को ध्यान देकर समझना पड़ता है - और ये समझने के लिए अमित शाह और कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुलाकात की तस्वीर पर आपको गौर करना होगा.
जरा गौर से देखिये - सब कुछ समझ में आ जाएगा!
ये तस्वीर तो यही बता रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह जो चाह रहे थे, पूरा न सही लेकिन काफी हद तक उस पर सहमति तो बन ही चुकी है - और अपने हाव-भाव से वो आभार व्यक्त कर रहे हैं.
जब भी दो लोग एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं तो क्या ऐसे ही भाव देखने को मिलते हैं? जब एक व्यक्ति हाथ बढ़ाता है और दूसरा मिलाना नहीं चाहता तो वो हाथ जोड़ लेता है. वैसे कोरोना काल में तो दोनों ही पक्ष ऐसा करते रहे.
तस्वीर में दोनों ही एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए हैं, लेकिन अमित शाह मुस्कुरा रहे हैं और कैप्टन अमरिंदर सिंह खामोश नजर आते हैं. अमित शाह की निगाह कैप्टन अमरिंदर के चेहरे पर है, लेकिन उनकी लगता है जैसे झुकी हुई हो. लगता नहीं कि इससे ज्यादा तस्वीर पर टिप्पणी की कोई जरूरत है - बार बार देखिये स्थिति और ज्यादा स्पष्ट होती जाएगी.
पहले इस्तेमाल, फिर विश्वास करेंगे!
ये तो साफ हो चुका है कि कैप्टन अपने बूते ही मैदान में डटे रहेंगे. हो सकता है बैनर की जरूरत होने पर कोई मोर्चा या अपनी कोई पार्टी भी बना लें, ताकि मिशन को अंजाम देने के लिए एक सिस्टम बनाया जा सके.
एक संभावना ये भी हो सकती है कि कैप्टन के नये फोरम के साथ कांग्रेस में उनके समर्थक विधायक सपोर्ट करें. हालांकि, ऐसे वे ही करेंगे जिनके टिकट काट दिये जाएंगे क्योंकि जिनको टिकट मिलेगा वो भला कोई और जोखिम क्यों उठाना चाहेंगे. विधायकों के साथ कुछ सांसदों के भी कैप्टन के सपोर्ट में खड़े होने की संभावना जतायी जा रही है - और कांग्रेस के बागी गुट G-23 नेताओं के भी.
कैप्टन की अमित शाह से मुलाकात और G-23 नेता कपिल सिब्बल के बयान पर जिस तरीके से कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने जिस तरीके से रिएक्ट किया है, ऐसा लग रहा है जैसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी सहित बाकी कांग्रेस नेताओं के मन में भी ऐसी ही आशंका हो.
कैप्टन अमरिंदर सिंह भले ही चालीस और अस्सी का फर्क समझाते फिरें, लेकिन बीजेपी को भी मालूम है उम्र जब हावी होने लगता है तो क्या होता है - और कैप्टन के केस में भी वो बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं लगती. ऐसी चीजें समझ आने के आधार भी हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की अमित शाह से मुलाकात होती है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की अजीत डोभाल से भी मुलाकात हो जाती है, लेकिन बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ कोई चर्चा भी नहीं होती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो बात और न ही मुलाकात की खबर आयी है. ये मैसेज तो सबको समझ में आना ही चाहिये.
भला राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से एक पूर्व मुख्यमंत्री के मिलने का क्या मतलब हो सकता है? वो भी केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात के बाद? क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह बार बार जो पंजाब के बॉर्डर स्टेट होने का मुद्दा उठा रहे हैं वही है? ट्विटर पर तो ये सवाल भी उठा हुआ है कि उत्तराखंड भी तो बॉर्डर स्टेट ही है - फिर दोनों में क्या फर्क है?
सारी कवायद का लब्बोलुआब यही है कि बीजेपी नेतृत्व जैसे भी संभव हो कैप्टन अमरिंदर सिंह का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहता है, लेकिन बगैर कोई जिम्मा उठाये. क्योंकि एसएम कृष्णा और रीता बहुगुणा जोशी की तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कोई ज्योतिरादित्य सिंधिया या हिमंता बिस्वा सरमा नहीं हैं. मुकुल रॉय को बीजेपी ने पार्टी में कैसे रखा सबको मालूम ही है - और शुभेंदु अधिकारी के आने जाने के बाद क्या हाल किया ये भी किसी से छिपा नहीं है - ऐसे में कैप्टन अमरिंदर सिंह के भी बहुत सीमित लेकिन महत्वपूर्ण इस्तेमाल हो सकते हैं -
1. कांग्रेस मुक्त पंजाब बनाने में: फौजी रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के कंधे पर बंदूक रख कर बीजेपी नेतृत्व जहां तक संभव हो सके कांग्रेस को पंजाब में डैमेज करने की कोशिश करेगी. डैमेज भी इस हद तक कि पंजाब कांग्रेस मुक्त हो जाये.
2. किसान आंदोलन से मुक्ति दिलाने में: किसान आंदोलन बीजेपी के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन चुका है. ज्यादा मुश्किल इसलिए भी क्योंकि सिर पर चुनाव आ चुके हैं. पंजाब का तो चल भी जाएगा, लेकिन पश्चिम यूपी में ये भारी पड़ रहा है. पंचायत चुनाव के नतीजे पहले ही फीडबैक दे चुके हैं. अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह की मध्यस्थता थोड़ी भी सहायक होती है तो बहुत मददगार साबित हो सकती है.
3. सत्ता की राह के रोड़े हटाने में: अगर अपनी पार्टी बनाकर कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस अपनी कुछ सीटें ला दें और बीजेपी के लिए खेल करने भर का मौका दिला दें तो भी चलेगा. अगर ज्यादा कुछ न हो पाये तो जैसे बिहार में चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए नीतीश कुमार के खिलाफ वोटकटवा की भूमिका निभायी थी, कैप्टन अमरिंदर सिंह भी वैसा कोई करिश्मा दिखा दें - जानें!
आसान भाषा में समझने की कोशिश करें तो एक विज्ञापन की लाइन है, 'पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें' - बीजेपी नेतृत्व कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी उसी कसौटी पर कसने का प्रयास कर रहा है.
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