कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) के लिए 2022 के पंजाब चुनाव में जीत के मायने बदल चुके हैं. कैप्टन के लिए चुनावी जीत का मतलब कांग्रेस की बुरी हार है. कैप्टन का एक ही मकसद रह गया है - नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को फेल साबित करना, जो सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के लिए सबक हो.
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) ने बीजेपी ज्वाइन नहीं किया, कहा भी ऐसा ही था. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नयी पार्टी भी बना ली है, कहा भी ऐसा ही था - पंजाब लोक कांग्रेस. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि वो बीजेपी के साथ सीटों का तालमेल कर सकते हैं, पहले भी ऐसा ही कहा था - लेकिन उसमें सबसे बड़ा पेंच है किसानों और कृषि कानूनों को लेकर दोनों पक्षों का अलग अलग स्टैंड.
माना जा रहा है कि पंजाब लोक कांग्रेस सूबे की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. हो सकता है ये भी बीजेपी के साथ तालमेल के तहत होने वाला हो. कई बार राजनीतिक दल फ्रेंडली मैच में खुद को आजमाते भी हैं और कई बार दिखावे भर के लिए नामांकन कराने की रणनीति हो. चुनावों में ये सब चलता है. हर जगह चलता है.
लेकिन क्या वाकई ये सब हो भी पाएगा, जैसा कैप्टन अमरिंदर सिंह दावा कर रहे हैं?
दिल्ली कांग्रेस के सीनियर नेता संदीप दीक्षित कहते हैं, 'अमरिंदर से नई पार्टी बनाने से पंजाब की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा... कांग्रेस के साथ अमरिंदर सिंह का कॅरिअर काफी अच्छा रहा.' संदीप दीक्षित, दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं और कांग्रेस में बगावती खेमे के साथ ही अक्सर देखे जाते हैं. जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाये जाने से पहले खुल कर कहा करते रहे कि सोनिया गांधी को ही नेतृत्व संभालना चाहिये, संदीप दीक्षित भी उनमें शामिल थे और ये वो मुद्दा रहा जिस पर वो और कैप्टन अमरिंदर सिंह एक राय हुआ करते थे.
लेकिन अब संदीप दीक्षित का नजरिया बदल गया लगता है, 'अमरिंदर सिंह ने अलग पार्टी बनाने का फैसला क्यों किया इसके बारे में तो मुझे नहीं पता, लेकिन इतना साफ है कि नई पार्टी के साथ ही अमरिंदर सिंह की राजनीति का दुखद अंत होगा.'
संदीप दीक्षित का बयान ज्यादा कुछ न सही, लेकिन ये तो बता ही रहा है कि जरूरी नहीं कि कांग्रेस में नेतृत्व को...
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) ने बीजेपी ज्वाइन नहीं किया, कहा भी ऐसा ही था. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नयी पार्टी भी बना ली है, कहा भी ऐसा ही था - पंजाब लोक कांग्रेस. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि वो बीजेपी के साथ सीटों का तालमेल कर सकते हैं, पहले भी ऐसा ही कहा था - लेकिन उसमें सबसे बड़ा पेंच है किसानों और कृषि कानूनों को लेकर दोनों पक्षों का अलग अलग स्टैंड.
माना जा रहा है कि पंजाब लोक कांग्रेस सूबे की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. हो सकता है ये भी बीजेपी के साथ तालमेल के तहत होने वाला हो. कई बार राजनीतिक दल फ्रेंडली मैच में खुद को आजमाते भी हैं और कई बार दिखावे भर के लिए नामांकन कराने की रणनीति हो. चुनावों में ये सब चलता है. हर जगह चलता है.
लेकिन क्या वाकई ये सब हो भी पाएगा, जैसा कैप्टन अमरिंदर सिंह दावा कर रहे हैं?
दिल्ली कांग्रेस के सीनियर नेता संदीप दीक्षित कहते हैं, 'अमरिंदर से नई पार्टी बनाने से पंजाब की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा... कांग्रेस के साथ अमरिंदर सिंह का कॅरिअर काफी अच्छा रहा.' संदीप दीक्षित, दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं और कांग्रेस में बगावती खेमे के साथ ही अक्सर देखे जाते हैं. जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाये जाने से पहले खुल कर कहा करते रहे कि सोनिया गांधी को ही नेतृत्व संभालना चाहिये, संदीप दीक्षित भी उनमें शामिल थे और ये वो मुद्दा रहा जिस पर वो और कैप्टन अमरिंदर सिंह एक राय हुआ करते थे.
लेकिन अब संदीप दीक्षित का नजरिया बदल गया लगता है, 'अमरिंदर सिंह ने अलग पार्टी बनाने का फैसला क्यों किया इसके बारे में तो मुझे नहीं पता, लेकिन इतना साफ है कि नई पार्टी के साथ ही अमरिंदर सिंह की राजनीति का दुखद अंत होगा.'
संदीप दीक्षित का बयान ज्यादा कुछ न सही, लेकिन ये तो बता ही रहा है कि जरूरी नहीं कि कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर अलग राय रखने वाले नेता 2022 के पंजाब चुनाव में भी उनका साथ देने ही वाले हैं. पंजाब कांग्रेस के भी कुछ नेता ऐसे हैं जिनको कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी के तौर पर देखा जाता रहा है वे भी कहने लगे हैं समय आने पर फैसला लिया जाएगा. हो सकता है ऐसे नेता किसी डर की वजह से खुल कर नहीं बोल पा रहे हों, ये भी हो सकता है कि वे ये समझने लगे हों कि डूबती नव पर सवार होने से क्या फायदा.
एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता हरीश रावत से पूछा जाता है - क्या अमरिंदर सिंह को हटाकर कांग्रेस ने गलती कर दी है? हरीश रावत कहते हैं, 'अमरिंदर सिंह को हटाने वाले और उनको अकाली दल की बी टीम कहने वाले सभी विधायक कांग्रेस के थे... सभी का मानना था कि कैप्टन अकाली दल की तरफ झुकाव रखते हैं... अफसर भी अकाली दल की ही सुनते हैं... कैप्टन चुनाव के वक्त उस तरह काम नहीं कर रहे थे जो एक मुख्यमंत्री को बतौर लीडर करना चाहिये - वो तो विपक्ष की भूमिका निभा रहे थे.'
हरीश रावत कांग्रेस नेतृत्व के नुमाइंदे को तौर पर अपनी राय रखते हैं और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन के खिलाफ वैसे ही आक्रामक नजर आते हैं, जैसे पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu).
कैप्टन अमरिंदर सिंह असली दुश्मनी तो नवजोत सिंह सिद्धू से है, लेकिन अब उनके निशाने पर सोनिया गांधी सहित पूरा गांधी परिवार है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की पूरी कोशिश यही है कि कैसे नवजोत सिंह सिद्धू को असफल साबित करें ताकि उन पर करीब करीब आंख मूंद कर भरोसा करने वाली सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को भी सही सबक मिले.
पहले तो कैप्टन को 'सॉरी' का मतलब समझना होगा!
कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर राहुल गांधी के मन में एक बड़ा सवाल हुआ करता था - 'कितने विधायक कैप्टन के साथ हो सकते हैं?' कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ये सवाल उन दिनों पूछा करते थे जब पंजाब संकट को लेकर मल्लिकार्जुन खड़्गे के नेतृत्व में तीन सदस्यों वाला कांग्रेस का पैनल बनाया गया था.
पंजाब पैनल के लोग कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के साथ अलग अलग बात तो करते ही थे, दोनों गुटों के समर्थकों और विरोधियों से भी अलग से बात किया करते थे. राहुल गांधी भी उसी बीच कुछ विधायकों से अलग अलग फोन पर बात करते और ये समझने की कोशिश करते कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ एक्शन लिया गया तो उसका क्या असर हो सकता है - और हां, किस हद तक ऐसे कड़े कदमों का प्रभाव देखने को मिल सकता है?
सोनिया गांधी के लिए नयी मुश्किल ये समझना है कि सबसे खतरनाक कौन साबित होने वाला है - कैप्टन अमरिंदर सिंह या नवजोत सिंह सिद्धू?
जब राहुल गांधी को पक्का यकीन हो गया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ भी ठीक-ठाक लामबंदी हो चुकी है - और कैप्टन को हटाये जाने के बाद भी कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला तब कांग्रेस नेतृत्व के स्तर पर करीबी सलाहकारों से बातचीत के बाद तय हुआ कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को किनारे लगाया जा सकता है. और फिर एक दिन ठीक वैसा ही कर भी दिया गया. 'सॉरी अमरिंदर,' कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुताबिक, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनसे फोन पर बातचीत में यही बोला था.
ऐसे मौकों पर 'सॉरी' बोले जाने के भी कई मतलब होते हैं - और बातचीत जब अंग्रेजी में हो रही हो, फिर तो सॉरी के अर्थ भी कई बार 'वेल' और 'यू-नो' के करीब लगते हैं. सोनिया गांधी से हुई बातचीत में से सॉरी का जिक्र कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरफ से ऐसे किया गया जैसे वो बेबस होकर बोल रही हों. बेबस इस अर्थ में कि फैसला बच्चों का है, खुद सोनिया गांधी का कोई रोल नहीं है. तब चर्चाएं भी ऐसी ही हुआ करती थीं - और ऐसी चर्चाओं के चलते ही सोनिया गांधी को कांग्रेस कार्यकारिणी बुलाकर समझाना पड़ा, अगर आप सब अनुमति दें तो मैं कहना चाहूंगी कि मैं ही कांग्रेस की पूर्णकालिक अध्यक्ष हूं. मैं ही सारे फैसले लेती हूं. पंजाब का फैसला भी मेरा ही लिया हुआ समझा जाये. चूंकि कांग्रेस के G-23 नेता कपिल सिब्बल ने ये पूछ कर खलबली मचा दी थी कि जब कांग्रेस के पास कोई स्थायी अध्यक्ष है ही नहीं तो फैसले कौन लेता है?
अंग्रेजी में बातचीत के मिजाज को समझें तो सॉरी तब भी बोला जाता है, जब कोई किसी की हरकत से दुखी और निराश हुआ हो. सॉरी तब भी बोला जाता है जब बोलने वाला पक्ष सुनने वाले से किसी खास एक्ट की अपेक्षा नहीं होने पर बोलता है, जब उसे लगता है कि उसने धोखा दिया है - सोनिया गांधी के सॉरी बोलने का मतलब ये भी हो सकता है जैसे वो ये कहने की कोशिश कर रही हों कि उनसे वैसी अपेक्षा तो कतई नहीं थी.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा देने के कुछ दिन बाद ही बोल दिया कि वो बीजेपी में तो नहीं ही जाने वाले, लेकिन कांग्रेस में नहीं रहेंगे. पहले तो सबने हल्के में ही लिया लेकिन बाद में सुनने में आया कि सोनिया से लेकर सिद्धू तक नये सिरे से नफे नुकसान का आकलन करने लगे और पाये कि कांग्रेस छोड़ने के बाद कैप्टन के असर के बारे में सोचा जाने लगा. सिद्धू के साथ साथ हरीश रावत जैसे नेता जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर लगातार आक्रामक बने रहे, वहीं अशोक गहलोत जैसे नेता भी रहे जो गुस्से में कोई गलत कदम नहीं उठाने की सलाह देने लगे थे जिससे उसी कांग्रेस पार्टी का नुकसान हो जिसने उनको 'कैप्टन' बनाया. अभी मीडिया में कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस न छोड़ने के लिए मनाये जाने की खबरें आ ही रही थीं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साफ तौर पर ऐलान कर दिया कि अब कुछ भी नहीं होने वाला - अब तो सवाल ही पैदा नहीं होता.
अब तो कैप्टन ने अपनी नयी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस भी बना ली है - और बीजेपी के साथ सीटों को लेकर तालमेल पर विचार किये जाने की बात बतायी गयी है. ऐसा लगता है कांग्रेस को अब कैप्टन का सबसे खतरनाक रूप देखने को मिल सकता है क्योंकि अब वो पूरी तरह बेकाबू हो चुके हैं. घायल शेर जैसा हाल हो रखा है, कुछ ऐसा समझ सकते हैं - और उनको कोई और फायदा नहीं चाहिये क्योंकि सबसे बड़ा फायदा तो उनके लिए गांधी परिवार से बदला लेना ही समझ में आ रहा होगा.
सोनिया-सिद्धू के लिए कैप्टन कितने खतरनाक?
इशारे तो ऐसे ही किये जा रहे हैं जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सोनिया गांधी को उनके ही अंदाज में 'सॉरी' का प्लान कर रखा हो. चुनावी मैदान में उतरने से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बार फिर से सोनिया गांधी को लंबा-चौड़ा पत्र लिखा है. ये बात अलग है कि कैप्टन अमरिंदर की चिट्ठी को लेकर भी फैक्ट-चेक होने लगा है. कई फैक्ट ऐसे भी बताये जा रहे हैं जो कैप्टन अमरिंदर सिंह के दावे से मैच नहीं कर रहे हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह का ये दूसरा पत्र है जो चर्चा में है. पहले भी कैप्टन अमरिंदर सिंह सोनिया गांधी कुछ ऐसे अंदाज में पत्र लिख चुके हैं - 'आप कांग्रेस और पंजाब के मामलों में दखल दे रही हैं.' नये पत्र के जरिये कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी को फिर से समझाने की कोशिश की है कि करीब पांच दशक के उनके लंबे राजनीतिक जीवन में न तो उनके व्यक्तित्व को समझा गया और न ही उनके चरित्र को समझने की कोशिश की गयी.
कैप्टन अमरिंदर सिंह जताना चाहते हैं कि वो सोनिया गांधी के साथ साथ उनके बच्चों के व्यवहार से व्यथित महसूस कर रहे हैं. हालांकि, ये भी कहा है कि वो अब भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को उतना ही प्यार करते हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह पुराने दिनों की याद दिलाते हुए बता रहे हैं कि उनके पास पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से जुड़ी 67 साल पुरानी यादें आज भी बिलकुल तरोताजा हैं, तभी से जब वे 1954 में स्कूली छात्र हुआ करते थे. कैप्टन अमरिंदर सिंह की सबसे बड़ी शिकायत है कि जैसा अपमान उनका हुआ है, अब तक कोई भी सीनियर कांग्रेस नेता ऐसे अपमान का शिकार नहीं हुआ.
शुरू में तो ऐसा लगता था जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू पर के खिलाफ तो आक्रामक रुख अख्तियार किये रहते रहे, लेकिन पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री होने की वजह चरणजीत सिंह चन्नी को लेकर कुछ बोलने से परहेज करते रहे, लेकिन ऐसा कब तक कर सकते हैं. कैप्टन कहा करते थे कि सिद्धू तो कांग्रेस और पंजाब दोनों को बर्बाद करेंगे, लेकिन कैबिनेट साथी रहे चन्नी के काम की तारीफ किया करते थे. सिद्धू भी कैप्टन के कैबिनेट साथी रह चुके हैं और उनके बारे में कह चुके हैं कि जो एक विभाग नहीं संभाल सकता वो पूरा सूबा कैसे संभालेगा?
लेकिन अब चन्नी को लेकर भी कैप्टन का लहजा बदल चुका है - कहने लगे हैं, 'मैं उन अनुभवहीन नेताओं को लेकर काफी चिंतित हूं, जिन्हें आपने मेरा राज्य सौंप दिया है... मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ये अनुभवहीन लोग संवेदनशील राज्य की सुरक्षा की स्थिति को कैसे संभालेंगे... यहां विस्फोटक और नशीले पदार्थों की भारी आमद हो रही है - और अब इस स्थिति से बाहर निकलने की जरूरत है.'
और एक बार फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह दोहराते हैं - न तो मैं टायर्ड हूं, न ही रिटायर्ड. और दावा करते हैं, 'मुझे लगता है कि पंजाब को देने के लिए मेरे पास अब भी बहुत कुछ है... मैं एक सैनिक की तरह आगे बढ़ना चाहता हूं - मैं पीछे नहीं हट सकता.'
कैप्टन के दावे पर ये सवाल तो उठता ही है कि वो पंजाब को क्या दे सकते हैं? आखिर चुनावों के बाद वो किस भूमिका में होने की बात सोच रहे हैं जिसमें उनके पास पंजाब को देने के लिए बहुत कुछ हो सकता है. कैप्टन के नजरिये से समझना चाहें तो भी पंजाब को लेकर जिन चुनौतियों की तरफ वो इशारे कर रहे हैं, भला उनके हाथ में क्या होने वाला है जिससे पंजाब के लोगों को फायदा हो सकता है?
ये तो समझ में आ रहा है कि वो कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं, लेकिन पंजाब के लोगों के लिए फायदेमंद होंगे ही ये समझना काफी मुश्किल हो रहा है. बीजेपी के साथ सशर्त ही सही, चुनावी तालमेल की बात तो समझ में आती है, लेकिन कांग्रेस को वो तोड़ भी पाएंगे अभी तक ऐसा कोई संकेत तो नहीं मिला है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह का दावा है कि पंजाब कांग्रेस के कई चेहरे हैं जिनका सपोर्ट उनको हासिल है. कहने का मतलब तो यही हुआ कि वे कांग्रेस छोड़ कर उनकी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं और चुनाव में हिस्सा भी ले सकते हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसा पहले भी कर चुके हैं, लेकिन अभी वो अपनी जिंदगी के अस्सीवें साल में पहुंचने वाले हैं. हो सकता है वो अब भी खुद को चालीस साल का महसूस कर रहे हों, ये भी उनका ही दावा है.
जिन बड़े चेहरों की तरफ कैप्टन अमरिंदर सिंह इशारा कर रहे हैं, फरीदकोट से कांग्रेस सांसद मोहम्मद सदीक भी उनके करीबी समझे जाते हैं, लेकिन उनकी बातों से तो ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस टूट कर बुरी तरह बिखरने वाली है. मोहम्मद सदीक अभी तो यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि समय आने पर देखा जाएगा. हो सकता है मोहम्मद सदीक जैसे नेता अंदर ही अंदर किसी और भी रणनीति पर काम कर रहे हों, लेकिन मन की बात करने के लिए अभी सही वक्त न लग रहा हो.
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि करीब आधा दर्जन विधायक कैप्टन अमरिंदर सिंह के संपर्क में हैं और दो दर्जन विधायक कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे तक इंतजार करने की सोच रहे हैं. स्वाभाविक भी है जो अभी से कांग्रेस के टिकट को लेकर निराश होंगे वे कैप्टन के साथ संपर्क में रहते हुए नयी संभावनाएं तलाश रहे होंगे और बाकी ऐसे विधायक होंगे जो टिकट कट जाने पर कांग्रेस छोड़ने के बारे में सोचेंगे - लेकिन ये तो कैप्टन के प्रभाव वाली कोई स्थिति हुई नहीं. ये तो ऐसे ही है जैसे किसी भी चुनाव में टिकट न मिलने पर नेता या तो किसी और राजनीतिक पार्टी का रुख कर लेते हैं या खुद को सक्षम समझते हैं तो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतर जाते हैं.
फिर तो ये भी जरूरी नहीं कि कांग्रेस में टिकट कट जाने के बाद वे नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के ही साथ आना चाहें - ऐसे नेताओं को अगर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में बात बन गयी या बीजेपी ने झटक लिया तो कैप्टन तो बस मुंह ही देखते रह जाएंगे. वैसे भी कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस छोड़ने वाले नेता के लिए तीसरी ही च्वायस होंगे.
कांग्रेस के नजरिये से देखें तो कैप्टन जिस स्थिति में हैं, ऐसे लोगों को छुट्टा सांड़ जैसी संज्ञा दी जाती है - जिसे कोई रोकने वाला नहीं हो. वो जो चाहेगा वही करेगा. जो मन करेगा वही करेगा - जब तक नेतृत्व का लिहाज रहा, तभी तक पार्टीलाइन लक्ष्मण रेखा बनी हुई थी - अब तो ऐसी हदें ही खत्म हो चुकी हैं.
अपने लिए फायदा हासिल करना काफी मुश्किल होता है, लेकिन दूसरे को नुकसान पहुंचाना बहुत आसान होता है. फायदा हासिल करने की सूरत में हर जोखिम को तराजू पर तौल कर आगे बढ़ना होता है और किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए हर संभव जोखिम को बस आजमाते रहना होता है - कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने फिलहाल यही टास्क है जिसमें अपने लिए कोई रिस्क जोन है ही नहीं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे बिहार में चिराग पासवान खुद कुछ करने की स्थिति में न होकर भी विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को तो बुरी तरह डैमेज कर ही डाले.
कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के डर को ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब पंजाब चुनाव में प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने पर भी विचार किया जा रहा है. ये बात भी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के जरिये ही मीडिया में आयी है. वैसे भी प्रशांत किशोर की ऐसी ख्याति तो है ही कि जिसे एक बार वो चुनाव जिता देते हैं, दोबारा मौका मिलने पर हराने में भी सफल होते हैं - कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए चुनाव प्रचार से इनकार कर चुके प्रशांत किशोर को नया टास्क मिले तो जरूरी नहीं कि वही हो जो कांग्रेस नेतृत्व सोच रहा है, कांग्रेस के लिए 2017 के यूपी चुनाव में भी प्रशांत किशोर कैंपेन की निगरानी कर चुके हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.