पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीते दिनों नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. हालांकि एक दिन पहले अमरिंदर सिंह ने इस मुलाकात की संभावना को खारिज कर दिया था वहीं कांग्रेस में कैप्टन के खेमे ने उनकी दिल्ली यात्रा को 'व्यक्तिगत' बताया. अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात कर कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने स्पष्ट किया है कि वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ संबंध बनाने के विचार पर काम कर रहे हैं, जो पंजाब में विस्तार के विकल्प की तलाश कर रही है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की अमित शाह के साथ बैठक से पंजाब विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के बीच सहयोग के दो विकल्प सामने आए हैं. पहला ये कि अमरिंदर सिंह एक नयी पार्टी का निर्माण कर सकते हैं और पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के साथ गठजोड़ कर सकते हैं.
दूसरा विकल्प भाजपा में शामिल होना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कांग्रेस अगले साल पंजाब में सत्ता से बाहर रहे. दोनों प्रस्ताव भाजपा के लिए कारगर साबित होंगे.
राष्ट्रवादी साख
अमरिंदर सिंह की सैन्य पृष्ठभूमि और राजनीति में कट्टर राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के कारण भाजपा का कैप्टन के प्रति एक 'सॉफ्ट कॉर्नर' रहा है. अमरिंदर सिंह उन कुछ कांग्रेसी नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट हवाई हमले के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन किया था और उनका स्टैंड भी बिलकुल भाजपा के समान था, ये सब उस वक़्त हुआ जब उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और...
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीते दिनों नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. हालांकि एक दिन पहले अमरिंदर सिंह ने इस मुलाकात की संभावना को खारिज कर दिया था वहीं कांग्रेस में कैप्टन के खेमे ने उनकी दिल्ली यात्रा को 'व्यक्तिगत' बताया. अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात कर कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने स्पष्ट किया है कि वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ संबंध बनाने के विचार पर काम कर रहे हैं, जो पंजाब में विस्तार के विकल्प की तलाश कर रही है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की अमित शाह के साथ बैठक से पंजाब विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के बीच सहयोग के दो विकल्प सामने आए हैं. पहला ये कि अमरिंदर सिंह एक नयी पार्टी का निर्माण कर सकते हैं और पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के साथ गठजोड़ कर सकते हैं.
दूसरा विकल्प भाजपा में शामिल होना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कांग्रेस अगले साल पंजाब में सत्ता से बाहर रहे. दोनों प्रस्ताव भाजपा के लिए कारगर साबित होंगे.
राष्ट्रवादी साख
अमरिंदर सिंह की सैन्य पृष्ठभूमि और राजनीति में कट्टर राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के कारण भाजपा का कैप्टन के प्रति एक 'सॉफ्ट कॉर्नर' रहा है. अमरिंदर सिंह उन कुछ कांग्रेसी नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट हवाई हमले के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन किया था और उनका स्टैंड भी बिलकुल भाजपा के समान था, ये सब उस वक़्त हुआ जब उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को गले लगाया था जिसके बाद नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर खूब बवाल हुआ था.
पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद, अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिद्धू पर तीखा हमला किया, जिसमें कांग्रेस आलाकमान द्वारा क्रिकेटर से राजनेता बने सिद्धू के मुख्यमंत्री के रूप में पदोन्नत होने की कोई संभावना नहीं थी. अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिद्धू पर पाकिस्तान सरकार और उसकी सेना के साथ साथ भारत विरोधी ताकतों के साथ घनिष्ठ संबंध रखने का आरोप लगाया था.
किसानों का प्रोटेस्ट
कृषि कानून और किसानों के विरोध का मुद्दा भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए पेचीदा है. भाजपा इस बात पर अडिग रही है कि किसानों की स्थिति में सुधार के लिए कृषि कानून बहुत जरूरी कदम हैं. अमरिंदर सिंह ने मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन में किसानों का साथ देते हुए कानूनों का विरोध किया है.
हालांकि, अगर दोनों हाथ मिलाते हैं, तो बीजेपी को पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले अमरिंदर सिंह के रूप में एक बड़ा फायदा मिल सकता है.
एक थ्योरी चल रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास मोदी सरकार के लिए किसानों का आंदोलन खत्म करने का 'प्रस्ताव' है. इससे तीनों पक्षों- भाजपा, अमरिंदर सिंह और किसानों को बचने का रास्ता मिल सकता है. हालांकि, प्रस्ताव के विवरण का खुलासा अभी तक नहीं हुआ है.
अब भी सबसे बड़े पंजाब के नेता
नवजोत सिंह सिद्धू ने भले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया हो, लेकिन 79 वर्षीय कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं. उन्होंने 2017 में कांग्रेस के लिए अकेले दम पर राज्य जीतकर अपनी राजनीतिक क्षमता साबित की थी.
कहा जाता है कि अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी में 'अलोकप्रिय' हैं, लेकिन पंजाब के लोगों के बीच नहीं. इससे इस बात का भी अंदाजा लग जाता है कि क्यों, अपने इस्तीफे के दिन, अमरिंदर सिंह ने अपने मीडिया इंटरैक्शन के दौरान जोर देकर कहा कि उनमें 'बहुत सारी राजनीति बाकी है'.
यदि कैप्टन भाजपा से हाथ मिलाते हैं तो पंजाब विधानसभा चुनाव में अमरिंदर सिंह के कद का फायदा भाजपा को हो सकता है. भाजपा पंजाब विधानसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन में लड़ रही थी, लेकिन पिछले साल ही वो गठबंधन टूट चुका है.
भाजपा का वोट शेयर भी पंजाब चुनावों में घट रहा है. जो 2007 में 8.21 प्रतिशत. 2012 में 7.13 प्रतिशत और 2017 में 23 सीटों में से 3 पर जीत दर्ज करने के बाद 5.4 प्रतयिशत हुआ. भाजपा उम्मीद कर सकती है कि अमरिंदर सिंह पंजाब में पार्टी की स्थिति बदलने की क्षमता रखते हैं.
यह संभावना विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि भाजपा ने 2017 में कांग्रेस से जिन 20 सीटों पर हार का सामना किया था, वह 2019 के लोकसभा चुनाव में 11 पर आगे थी. नौ अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में, भाजपा अंतर को कम कर सकती है. कहना गलत नहीं है कि अमरिंदर सिंह की राजनीतिक ताकत और पंजाबी मतदाताओं की समझ भाजपा को चुनाव में बढ़त दिला सकती है.
अमरिंदर सिंह का कांग्रेस छोड़ना कोई नया नहीं है
अमरिंदर सिंह का कांग्रेस से निराश होकर पार्टी छोड़ना कोई नई बात नहीं है. पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी के साथ अपनी दोस्ती के कारण कांग्रेस में शामिल हुए अमरिंदर सिंह 1980 में पटियाला से लोकसभा सांसद बने. हालांकि, उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू करने के इंदिरा गांधी सरकार के फैसले का विरोध करते हुए 1984 में इस्तीफा दे दिया.
वह शिरोमणि अकाली दल में शामिल हुए और 1985 में पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा. अमरिंदर सिंह सुरजीत सिंह बरनाला के नेतृत्व वाली अकाली सरकार में मंत्री बने. लेकिन उनका शिरोमणि अकाली दल से मोहभंग हो गया और 1992 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अपना खुद का संगठन शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) बना लिया.
हालांकि, अमरिंदर सिंह की पार्टी 1997 के पंजाब विधानसभा चुनावों में एक भी सीट हासिल करने में नाकाम रही और उन्हें अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. दिलचस्प ये कि अमरिंदर सिंह खुद चुनाव हार गए.
अगले वर्ष, उन्होंने शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) का कांग्रेस में विलय कर दिया, जो अब तक सोनिया गांधी के नेतृत्व में है. तेईस साल बाद, अमरिंदर सिंह खुद को एक और चौराहे पर पाते हैं, कारण बस इतना है कि अगली पीढ़ी के गांधी के साथ उनके रिश्ते तनावपूर्ण हैं, और उनके शब्दों में, पंजाब में वो 'अपमानित' हुए हैं.
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