पंजाब में जारी सियासी गुटबाजी को दूर करने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से गठित की गई समिति जल्द ही सोनिया गांधी को अपनी रिपोर्ट सौंप देगी. कयास लगाए जा रहे हैं कि दिल्ली में हुई इस बैठक में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू समेत विरोधी खेमे के नेताओं के बीच जारी जंग को खत्म करने का फॉर्मूला निकाल लिया गया है. कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की ही तरह पंजाब में भी दो उपमुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं. नवजोत सिंह सिद्धू के साथ एक दलित चेहरे को उपमुख्यमंत्री का पद दिया जा सकता है. लेकिन, ये सब अभी तक कयास ही हैं.
हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मल्लिकार्जुन खडगे के नेतृत्व वाली समिति के सामने पेश होने के बाद इसे पार्टी की अंदरूनी बैठक बताते हुए कहा था कि छह महीने के बाद चुनाव होने हैं, उन्हीं मुद्दों पर बातचीत हुई. दिल्ली में तीन घंटे चली इस मैराथन बैठक के बाद अमरिंदर सिंह का ये बयान एक तरह से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को स्पष्ट संदेश था कि उन्हें झुका पाना आसान नहीं है. दिल्ली में बैठक से पहले AAP के तीन बागी विधायकों को कांग्रेस में लाकर कैप्टन ने अपनी ताकत का अंदाजा करवा दिया है.
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के बाद अमरिंदर सिंह ने एक बार फिर से कांग्रेस नेतृत्व को संदेश देने की कोशिश की. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत सभी पार्टी नेता वैक्सीन पर नरेंद्र मोदी को घेर रहे थे, लेकिन, पंजाब के मुख्यमंत्री ने पार्टी लाइन से अलग रुख अपनाते हुए वैक्सीनेशन अभियान के लिए पीएम मोदी को 'थैंक यू' कहा. साथ ही ये भी कहा कि आने वाले दो हफ्तों में केंद्र और राज्य सरकार नए दिशा निर्देशों के अनुसार काम करेंगे. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसे बयानों से शीर्ष नेतृत्व को क्या संदेश देना चाहते हैं?
कांग्रेस के विधायकों और सांसदों की कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ गुटबाजी कांग्रेस की ही देन है.
बाजवा और सिद्धू की नाराजगी को कांग्रेस ने दी शह
कांग्रेस के विधायकों और सांसदों की कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ गुटबाजी कांग्रेस की ही देन है. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने प्रताप सिंह बाजवा से अमरिंदर सिंह के लिए जगह छोड़ने को कहा था. कैप्टन ने भी उस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव बता दिया था. लेकिन, वह एक बार फिर से चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं. इस स्थिति में राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते प्रताप सिंह बाजवा ने पार्टी में कैप्टन विरोधी खेमे को बढ़ावा दिया. कांग्रेस में शामिल होने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू भी कैप्टन की उपेक्षा के शिकार हो गए. सिद्धू के मुखर होने की सबसे बड़ी वजह यही है. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद तो कैप्टन सरकार में सिद्धू को हाशिये पर डाल दिया गया.
कांग्रेस के 'यस मैन' नहीं है कैप्टन
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने से लेकर राम मंदिर मुद्दे तक कई मामलों पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की लीक से हटकर अपना अलग स्टैंड रखा है. देश से जुड़े मामलों पर अमरिंदर सिंह की राय हमेशा से ही निजी रही है. वो हर मामले पर कांग्रेस के 'यस मैन' नहीं कहे जा सकते हैं. किसान आंदोलन के दौरान भी कैप्टन ने पाकिस्तान द्वारा माहौल बिगाड़ने के लिए हथियारों की खेप भेजे जाने जैसी बातें कही थीं. यह पहली बार नहीं जब कैप्टन ने बगावती सुर अपनाए हों. 1984 में 'स्वर्ण मंदिर' पर हुई सैन्य कार्रवाई से क्षुब्ध होकर अमरिंदर सिंह ने लोकसभा से इस्तीफा तक दे दिया था. जिसके बाद वो शिरोमणी अकाली दल (शिअद) में शामिल हो गए थे. अकाली सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं.
विरोधियों को लेकर अमरिंदर सिंह नरम रहेंगे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के सारे फैसलों को आंख मूंदकर नहीं मानेंगे.
गुटबाजी पर अमरिंदर सिंह भारी
अमरिंदर सिंह से नाराज चल रहे विधायकों और सांसदों को लेकर कैप्टन की ओर रुख साफ कर दिया गया है कि वह सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करेंगे. लेकिन, वह ऐसे किसी भी फॉर्मूले या सोशल इंजीनियरिंग के पक्ष में नहीं हैं, जो 2022 में उनकी मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी को कमजोर करता हो. विरोधियों को लेकर अमरिंदर सिंह नरम रहेंगे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के सारे फैसलों को आंख मूंदकर नहीं मानेंगे. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की ओर से अमरिंदर सिंह पर दबाव बढ़ाया जाता है, तो वह एक बार फिर से अलग रास्ता अख्तियार कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है, तो कांग्रेस को सीधा नुकसान झेलना पड़ सकता है. पंजाब में अमरिंदर सिंह के आगे नवजोत सिंह सिद्धू अभी भी कमजोर चेहरा ही हैं.
बिगाड़ सकते हैं कांग्रेस का खेल
अगर कांग्रेस आलाकमान की ओर से कोई ऐसा फॉर्मूला दिया जाता है, जो अमरिंदर सिंह की सियासी गणित में फिट न बैठे, तो कैप्टन की बगावत तय मानी जा सकती है. 1992 में अपनी अकाली दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले कैप्टन को उस समय अकेले दम पर पार्टी चलाने से कोई खास फायदा नहीं हुआ था. लेकिन, अब इस बात को करीब तीन दशक बीतने को हैं. 20 विधायकों के बागी तेवर अपनाने से कैप्टन की सेहत पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता है. अमरिंदर सिंह के पक्ष में अभी भी 57 विधायक हैं. हाल ही में AAP के बागियों को कांग्रेस में लाकर कैप्टन ने अपनी ताकत का अंदाजा करवा दिया है. अगर अमरिंदर सिंह बगावत करते हैं, तो कांग्रेस के लिए स्थितियां अचानक से प्रतिकूल हो जाएंगी. आम आदमी पार्टी राज्य में पूरा जोर लगा रही है, लेकिन उसके पास अमरिंदर सिंह के खिलाफ कोई चेहरा नहीं है. हो सकता है कि आम आदमी पार्टी के विधायक टूटकर अमरिंदर सिंह की झोली में आ गिरें. इस स्थिति में सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस को अमरिंदर सिंह के आगे झुकना ही होगा.
अमरिंदर सिंह का मजबूत जनाधार
पंजाब के पटियाला राजघराने से ताल्लुक रखने वाले अमरिंदर सिंह एक मजबूत जनाधार वाला और कद्दावर नेता माना जाता है. दिल्ली में कांग्रेस की समिति के साथ अपनी बैठक के दौरान पंजाब में AAP के तीन बागी विधायकों को पार्टी में शामिल कराकर उन्होंने यह साबित कर दिया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद उन्होंने अमृतसर में अरुण जेटली को हराया था. 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित न किए जाने पर अमरिंदर सिंह बगावत के मूड में आ गए थे. हालांकि, सीएम उम्मीदवार घोषित होने पर यह बगावत शांत हो गई थी. कांग्रेस के साथ समस्या ये है कि कैप्टन के विरोध में चाहे जितने नेता और विधायक हों, लेकिन पंजाब में अमरिंदर सिंह की टक्कर का अन्य कोई नेता नहीं है.
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