एटीएम से कैश एक बार फिर गायब है. नोटबंदी की तरह ही एटीएम पर लाइनें हैं और कही- कहीं लोग एक एटीएम से दूसरे पर चक्कर लगाने को मजबूर हैं. जिन लोगों के पास अपने वाहन नहीं हैं उनके लिए हालात और भी मुश्किल हैं. लेकिन आपके दिमाग में बार-बार आ रहा होगा कि एटीएम में नोटों की किल्लत अचानक आ कैसे हो गई. क्या ये सचमुच कांग्रेस की साजिश है जैसा शिवराज सिंह कह रहे हैं या कोई और वजह है.
हालांकि हालात नोटबंदी की तरह बुरे नही हैं क्योंकि अचानक बाज़ार में चल रही नकदी कागज़ घोषित नहीं की गई है. लेकिन सरकार का कदम उतना ही अफलातूनी है. नोटबंदी के सदमे से देश किसी तरह उबरा था. तीन साल में किसी तरह कैश आना शुरू हुआ था. बाज़ार में पैसा वापस आया था और अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौट आई थी. हालात ये थे कि विश्व बैंक ने भी घोषणा कर दी थी कि अब देश नोटबंदी और जीएसटी के झटके से उबर आया है. कुछ कुछ अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन आने को ही थे कि अचानक एक और फरमान वित्त मंत्रालय ने आरबीआई को भेज दिया.
सरकार का फरमान था कि एटीएम से अब एक साथ ज्यादा रकम निकालने पर रोक लगा दी जाए. लोगों को दोबारा कैशलेस की तरफ धकेला जाए. दोबारा पेटीएम युग आए. रिलायंस के पेमेन्ट बैंक का कारोबार बढ़े. लेकिन चुनावी साल था तो सरकार ने एटीएम से पैसे निकालने पर रोक लगाने का रिस्क नहीं लिया लेकिन इससे बड़ी मुसीबत मोल ले ली. सरकार ने तय किया कि एटीएम में छोटे नोट डाले जाएं. जाहिर बात है कि एटीएम एक दिन में 40 से ज्यादा नोट नहीं देगा तो लोग खुद ही ज्यादा पैसे नहीं निकाल पाएंगे. अगर 1000 रुपये के नोट हुए तो अधिकतम 4 हज़ार रुपये और 200 के नोट हुए तो अधिकतम 8000 रुपये. कहां एक दिन में चालीस हज़ार निकालने की छूट और कहां 4000 रुपये की. नतीजा ये हुआ कि छोटे नोट होने के कारण एटीएम में एक...
एटीएम से कैश एक बार फिर गायब है. नोटबंदी की तरह ही एटीएम पर लाइनें हैं और कही- कहीं लोग एक एटीएम से दूसरे पर चक्कर लगाने को मजबूर हैं. जिन लोगों के पास अपने वाहन नहीं हैं उनके लिए हालात और भी मुश्किल हैं. लेकिन आपके दिमाग में बार-बार आ रहा होगा कि एटीएम में नोटों की किल्लत अचानक आ कैसे हो गई. क्या ये सचमुच कांग्रेस की साजिश है जैसा शिवराज सिंह कह रहे हैं या कोई और वजह है.
हालांकि हालात नोटबंदी की तरह बुरे नही हैं क्योंकि अचानक बाज़ार में चल रही नकदी कागज़ घोषित नहीं की गई है. लेकिन सरकार का कदम उतना ही अफलातूनी है. नोटबंदी के सदमे से देश किसी तरह उबरा था. तीन साल में किसी तरह कैश आना शुरू हुआ था. बाज़ार में पैसा वापस आया था और अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौट आई थी. हालात ये थे कि विश्व बैंक ने भी घोषणा कर दी थी कि अब देश नोटबंदी और जीएसटी के झटके से उबर आया है. कुछ कुछ अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन आने को ही थे कि अचानक एक और फरमान वित्त मंत्रालय ने आरबीआई को भेज दिया.
सरकार का फरमान था कि एटीएम से अब एक साथ ज्यादा रकम निकालने पर रोक लगा दी जाए. लोगों को दोबारा कैशलेस की तरफ धकेला जाए. दोबारा पेटीएम युग आए. रिलायंस के पेमेन्ट बैंक का कारोबार बढ़े. लेकिन चुनावी साल था तो सरकार ने एटीएम से पैसे निकालने पर रोक लगाने का रिस्क नहीं लिया लेकिन इससे बड़ी मुसीबत मोल ले ली. सरकार ने तय किया कि एटीएम में छोटे नोट डाले जाएं. जाहिर बात है कि एटीएम एक दिन में 40 से ज्यादा नोट नहीं देगा तो लोग खुद ही ज्यादा पैसे नहीं निकाल पाएंगे. अगर 1000 रुपये के नोट हुए तो अधिकतम 4 हज़ार रुपये और 200 के नोट हुए तो अधिकतम 8000 रुपये. कहां एक दिन में चालीस हज़ार निकालने की छूट और कहां 4000 रुपये की. नतीजा ये हुआ कि छोटे नोट होने के कारण एटीएम में एक बार लोड किया गया कैश जल्द खत्म होने लगा. जिस एटीएम में एक बार भरा गया कैश चार दिन चलता था उसमें चार घंटे बाद ही मामला ठनठन गोपाल हो गया.
एटीएम में नोट भरना आसान तो होता नहीं है. कैश ब्रांच से गाड़ियों में पैसा लोड होता है फिर वो पैसा अलग-अलग एटीएम पर जाता है वहां पैसा भरा जाता है. एक बार की जगह दस बार कैश भरना पड़ेगा तो लोग कहां से आएंगे. गाड़ियां कहां से आएंगी जाहिर बात है किल्लत खड़ी हो गई.
समस्या तब और बड़ी हो गई जब सरकार ने आरबीआई को चिट्ठी लिखी कि एटीएम में पैसे का फ्लो बरकरार रखा जाए. इस बारे में मीडिया को भी खबर दी गई. जिन लोगों का ध्यान नहीं था मीडिया में खबर आने के कारण उन्होंने भी कैश की किल्लत के खतरे को सूंघ लिया. फिर क्या था हालात नोटबंदी जैसे हो गए हैं. जिसे दिखता है कि एटीएम में कैश है वो कुछ एक्स्ट्रा पैसे अपने पास रख लेना चाहता है. इससे जमाखोरी शुरू हो गई. जमाखोरी ने किल्लत और बढ़ा दी.
कम शब्दों में कहा जाए तो एक छोटी से गलत फैसले ने बाज़ार में नोटों की किल्लत खड़ी कर दी. छोटे नोट रखने की अदूरदर्शी सोच का नुकसान अर्थव्यवस्था को तो उठाना ही पड़ रहा है, चुनाव से ऐन पहले खुद बीजेपी मुसीबत में फंस गई है. नोट तो आ भी जाएंगे लेकिन जमाखोरी की समस्या का हल मुश्किल है. सरकार अगर ज्यादा नोट छापती है तो रुपये का अवमूल्यन होने लगेगा जिससे महंगाई भी बढ़ेगी. यानी सरकार हर तरफ से घिर गई है. अब हालात संभालने का वक्त भी नहीं बचा है.
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