अब ट्रेन में खाना ऑर्डर करने से पहले आप ये देख सकते हैं किचन में क्या पक रहा है और कैसे पक रहा है? रेलवे ने ये सुविधा देने के लिए सभी बेस किचन में सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला किया है. इन कैमरों की मदद से किचन में खाना पकाने से लेकर उन्हें पैक करने तक की सारी गतिविधियां लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए वेबसाइट पर दिखाई जाएंगी. जल्द ही रेलवे इसके लिए एक ऐप भी लॉन्च करने वाला है, जिसके जरिए लोग लाइव स्ट्रीमिंग को कहीं से भी देख सकेंगे. यानी अगर आपको किचन में कुछ गड़बड़ी दिखे तो आप इसकी शिकायत भी कर सकेंगे. लेकिन सवाल यहां ये है कि बेस किचन के कैमरों से खाने की गुणवत्ता कैसे सुधरेगी?
खाने की गुणवत्ता का क्या?
खाने की गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य से रेल मंत्री पीयूष गोयल ने जो कदम उठाया है वो सराहनीय तो है, लेकिन पर्याप्त नहीं. यानी इसे सिर्फ एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है. अगर सभी बेस किचन में सीसीटीवी कैमरे लगा भी दिए गए तो भी क्या गारंटी है कि खाने की क्वालिटी सुधरेगी. कैमरे में सिर्फ किचन की साफ सफाई ही देखी जा सकती है. कैमरा न तो बासी खाने को ट्रैक कर सकेगा, ना ही खाने का स्वाद पता कर सकेगा. यानी कुछ हद तक सुधार आना तो लाजमी है, लेकिन खाने की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए सिर्फ सीसीटीवी कैमरा लगाना भर काफी नहीं है.
कैमरे की ये खासियत है सवालों के घेरे में
बताया जा रहा है कि ये सीसीटीवी कैमरे आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस पर काम करेंगे. यानी अगर किचन में कुछ ऐसा होता है, जो संदेह जनक है तो सीसीटीवी कैमरे का आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस खुद ही रेलवे के अधिकारियों को एक ईमेल भेज देगा और गड़बड़ी करने वाले पर कार्रवाई हो सकेगी. लेकिन कई सवाल हैं जिनके जवाब नहीं मिल पा रहे-
- क्या ये आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस...
अब ट्रेन में खाना ऑर्डर करने से पहले आप ये देख सकते हैं किचन में क्या पक रहा है और कैसे पक रहा है? रेलवे ने ये सुविधा देने के लिए सभी बेस किचन में सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला किया है. इन कैमरों की मदद से किचन में खाना पकाने से लेकर उन्हें पैक करने तक की सारी गतिविधियां लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए वेबसाइट पर दिखाई जाएंगी. जल्द ही रेलवे इसके लिए एक ऐप भी लॉन्च करने वाला है, जिसके जरिए लोग लाइव स्ट्रीमिंग को कहीं से भी देख सकेंगे. यानी अगर आपको किचन में कुछ गड़बड़ी दिखे तो आप इसकी शिकायत भी कर सकेंगे. लेकिन सवाल यहां ये है कि बेस किचन के कैमरों से खाने की गुणवत्ता कैसे सुधरेगी?
खाने की गुणवत्ता का क्या?
खाने की गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य से रेल मंत्री पीयूष गोयल ने जो कदम उठाया है वो सराहनीय तो है, लेकिन पर्याप्त नहीं. यानी इसे सिर्फ एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है. अगर सभी बेस किचन में सीसीटीवी कैमरे लगा भी दिए गए तो भी क्या गारंटी है कि खाने की क्वालिटी सुधरेगी. कैमरे में सिर्फ किचन की साफ सफाई ही देखी जा सकती है. कैमरा न तो बासी खाने को ट्रैक कर सकेगा, ना ही खाने का स्वाद पता कर सकेगा. यानी कुछ हद तक सुधार आना तो लाजमी है, लेकिन खाने की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए सिर्फ सीसीटीवी कैमरा लगाना भर काफी नहीं है.
कैमरे की ये खासियत है सवालों के घेरे में
बताया जा रहा है कि ये सीसीटीवी कैमरे आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस पर काम करेंगे. यानी अगर किचन में कुछ ऐसा होता है, जो संदेह जनक है तो सीसीटीवी कैमरे का आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस खुद ही रेलवे के अधिकारियों को एक ईमेल भेज देगा और गड़बड़ी करने वाले पर कार्रवाई हो सकेगी. लेकिन कई सवाल हैं जिनके जवाब नहीं मिल पा रहे-
- क्या ये आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस बासी खाने को ट्रैक कर सकेगा?
- अगर कोई एक बार मांस छू ले और फिर उसी हाथ से शाकाहार को छुए तो क्या आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस इसे पकड़ सकेगा?
- खाना पकाने में जो पानी इस्तेमाल किया जा रहा है, वह साफ है या नहीं, इसका पता कैसे चलेगा?
- खाना बनाने वाले शख्स ने हाथ साफ से धोए हैं या नहीं, क्या इसे भी आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस से ट्रैक किया जा सकेगा?
ये कैमरे सिर्फ बेस किचन में लगेंगे
अब सबसे बड़ी बात जो समझने की है वो ये कि ये कैमरे सिर्फ बेस किचन में लगेंगे. यहां आपको बता दें कि रेलवे के करीब 200 बेस किचन हैं, जो खाना सप्लाई करते हैं. अभी इनमें से सिर्फ 16 में कैमरे लगे हैं और जल्द ही बाकी बेस किचन में भी कैमरे लगेंगे. इन किचन से खाना ट्रेनों में भेजा जाता है और फिर उसे यात्रियों को दिया जाता है. यूं तो ये खाना बेस किचन से पैक होकर ही जाता है, लेकिन अगर उस पैक खाने को भी अधिक देर तक परोसा नहीं गया तो वह खराब हो जाएगा. हर प्लेट खाने की जवाबदेही के चलते ऐसा मुमकिन है कि आज का बचा पैक्ड खाना कल के दिन किसी को परोसा जाए. बासी खाना यात्रियों की सीट तक पहुंच जाना रेलवे में कोई बड़ी बात नहीं है. यहां तो खाने के साथ कॉकरोच और चूहे तक पहुंच जाते हैं.
टॉयलेट के पानी वाली चाय का क्या?
बेस स्टेशन के सीसीटीवी कैमरे किचन की हर तस्वीर लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए लोगों तक पहुंचाएंगे, लेकिन उन चायवालों पर रेलवे कैसे लगाम लगाएगी, जो टॉयलेट तक का पानी चाय में डाल देते हैं. रेलवे में ऐसा हो चुका है और उसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. खैर, ये तो वो घटना है जो पकड़ में आ गई. जो घटनाएं किसी की पकड़ में नहीं आती हैं, उनका तो पता ही नहीं चल पाता है. एक बार आप भी टॉयलेट के पानी वाली चाय परोसने का ये वीडियो देख लीजिए, रेलवे की चाय से यकीन उठ जाएगा.
ये तो थी चाय की बात. कुछ समय पहले ही एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें छाछ के कंटेनर में बहुत सारे कीड़े रेंगते दिखे थे. अब आप सोचेंगे कि कैमरे से छाछ रखने के कंटेनर की साफ-सफाई की निगरानी की जा सकेगी. यहां आपको बता दें कि छाछ का ये कंटेनर प्राइवेट वेंडर का था. यानी हर स्टेशन पर और यहां तक कि ट्रेनों में प्राइवेट वेंडर्स भी खाना या बेवरेज परोसते हैं. इन पर लगाम लगाने के लिए सख्ती और नियमित निगरानी की जरूरत है. सिर्फ सीसीटीवी कैमरा लगाने भर से तो बेस किचन की तस्वीर साफ होगी. बाकी सब पर नजर रखना भी रेलवे की ही जिम्मेदारी है.
कैग की रिपोर्ट को हल्के में क्यों लेता है रेलवे?
कैग ने जुलाई 2017 में ट्रेन की पैंट्रीकार की हकीकत बयां करने वाली एक रिपोर्ट जारी की थी. उसके बाद रेलवे हरकत में आई थी और सुधार के वादे भी किए थे. कैग ने कहा था कि यात्रियों को बासी भोजन परोसा जाता है, टॉयलेट में सब्जी रखी जाती है, टॉयलेट के पानी से खाना पकाया जाता है, खाने की क्वालिटी बेहद घटिया होती है, खाने की चीजों पर मक्खियां और कीड़े घूमते रहते हैं, खाने को ढकने की सही व्यवस्था नहीं है, गाड़ियों में चूहे और कॉकरोच खुलेआम घूमते रहते हैं. पीयूष गोयल को एक बार ये भी जनता को बताना चाहिए कि जब पेंट्रीकार को लेकर साल भर पहले ही इतने सवाल उठ चुके हैं तो उनमें सीसीटीवी कैमरे लगाने में इतनी देर क्यों हो रही है.
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