जब केंद्र की सरकार ने 16 मई को संघर्ष विराम का ऐलान किया था तब उसकी ओर से कहा गया था कि रमजान के महीने में वो अपनी तरफ से कोई कार्रवाई नहीं करेगी लेकिन अगर कोई हमला होता है तो सुरक्षा बल अपनी या बेगुनाह नागरिकों की जान बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. इसके पीछे सरकार की मंशा रमजान के महीने में जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल करने तथा आम कश्मीरियों में यह संदेश पहुंचाने की थी कि सुरक्षा बलों की लड़ाई उनके मजहब के विरुद्ध नहीं है. लेकिन इस दौरान वहां की वारदातों के आंकड़े साफ तौर पर दर्शाते हैं कि वहां आतंकवादियों ने इसका पुरज़ोर फायदा उठाया. यही नहीं हाल के समय में पत्थरबाजों में भी खासी उग्रता देखी गई है जो आतंकवादियों को सहयोग करते हैं.
इसका ताज़ा उदाहरण गुरुवार को देखने को मिला जब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने सेना के एक जवान का उस वक़्त अपहरण कर हत्या की जब वो ईद मनाने के लिए अपने घर जा रहा था. यही नहीं उससे एक दिन पहले ही आतंकवादियों ने एक स्थानीय नागरिक और पुलिसकर्मी को भी अगवा कर लिया, जिनका अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है.
वहीं कश्मीर के एक प्रतिष्ठित पत्रकार सैय्यद शुजात बुखारी की भी गुरुवार को श्रीनगर में उनके दफ्तर के बाहर बाइक सवार तीन आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
अब बात कुछ आंकड़ों की जो ये दिखते हैं कि संघर्ष...
जब केंद्र की सरकार ने 16 मई को संघर्ष विराम का ऐलान किया था तब उसकी ओर से कहा गया था कि रमजान के महीने में वो अपनी तरफ से कोई कार्रवाई नहीं करेगी लेकिन अगर कोई हमला होता है तो सुरक्षा बल अपनी या बेगुनाह नागरिकों की जान बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. इसके पीछे सरकार की मंशा रमजान के महीने में जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल करने तथा आम कश्मीरियों में यह संदेश पहुंचाने की थी कि सुरक्षा बलों की लड़ाई उनके मजहब के विरुद्ध नहीं है. लेकिन इस दौरान वहां की वारदातों के आंकड़े साफ तौर पर दर्शाते हैं कि वहां आतंकवादियों ने इसका पुरज़ोर फायदा उठाया. यही नहीं हाल के समय में पत्थरबाजों में भी खासी उग्रता देखी गई है जो आतंकवादियों को सहयोग करते हैं.
इसका ताज़ा उदाहरण गुरुवार को देखने को मिला जब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने सेना के एक जवान का उस वक़्त अपहरण कर हत्या की जब वो ईद मनाने के लिए अपने घर जा रहा था. यही नहीं उससे एक दिन पहले ही आतंकवादियों ने एक स्थानीय नागरिक और पुलिसकर्मी को भी अगवा कर लिया, जिनका अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है.
वहीं कश्मीर के एक प्रतिष्ठित पत्रकार सैय्यद शुजात बुखारी की भी गुरुवार को श्रीनगर में उनके दफ्तर के बाहर बाइक सवार तीन आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
अब बात कुछ आंकड़ों की जो ये दिखते हैं कि संघर्ष विराम के दौरान आतंकी वारदातों में वृद्धि हुई
देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के अनुसार रमज़ान के दौरान संघर्ष विराम से लेकर जून की 13 तारीख तक आतंक से संबंधित 66 केस दर्ज़ किये गए हैं. वहीं ग्रेनेड से हमले के 22 केस और 23 केस आतंकवादियों द्वारा फायरिंग के हैं. इन 28 दिनों में सात केस नागरिकों पर हमले के भी दर्ज़ हुए हैं.
हालांकि इस दौरान सुरक्षा बलों ने कश्मीर में आतंकी हमलों के जवाब में 14 आतंकियों को भी मार गिराया लेकिन आतंकियों को अपने ऊपर हमले के बाद जवाबी कार्यवाई करने और आतंकियों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर मार गिराने में फर्क तो होता ही है.
पाकिस्तान द्वारा भी संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया
पाकिस्तान भी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया और इस दौरान उसने एलओसी पर 14 से ज़्यादा बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया. पिछले महीने की 29 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच डीजीएमओ स्तर की बातचीत हुई थी जिसमें 2003 के संघर्ष विराम समझौते को पूरी तरह लागू करने पर सहमति बनी थी, लेकिन उसके बाद भी पाकिस्तान अपने नापाक हरकत संघर्ष विराम का लगातार उल्लंघन करके करता रहा.
ऐसे में ज़हन में कुछ सवाल उठना जायज़ है. तो क्या संघर्ष विराम किसी बड़े राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किया गया था क्योंकि वहां की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ही पहल की थी? क्या इस दौरान बढ़ी आतंकी वारदातों को देखते हुए इसकी समय सीमा बढ़ाना उचित होगा? इसी महीने के अंत से अमरनाथ यात्रा भी शुरू होने वाला है, ऐसे में इन यात्रियों पर आतंकी हमलों का खतरा बढ़ नहीं जायेगा? ये सारे सवाल हैं जिसके जवाब केंद्र और राज्य सरकार को देने पड़ सकते हैं.
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