बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चमकी बुखार से हुई बच्चों की मौत पर कुछ नही बोल रहें हैं. मीडिया लगातार उनसे सवाल कर रहा है लेकिन वो जवाब नहीं दे रहे हैं. और तो और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मामले पर पूरी तरह से चुप हैं. हिमाचल में हुई बस दुर्घटना में मरे लोगों के साथ-साथ टीम इंडिया के बल्लेबाज शिखर धवन की अंगुली में चोट लगने पर उन्होंने संवेदना तो प्रकट की लेकिन मुजफ्फरपुर मे एईएस (ENCEPHALITIS) से पीड़ित बच्चों की मौत पर उन्होंने संवेदना प्रकट करना उचित नहीं समझा. मुजफ्फरपुर केस में पीएम मोदी ने एक शब्द भी ट्वीट नहीं किया. यही हाल बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का है. पीड़ितों से मिलने के लिए हमेशा बेताब रहने वाले सुशील कुमार मोदी इतनी बड़ी त्रास्दी पर चुप हैं और पत्रकारों के चमकी बुखार को लेकर सवाल करने पर उन्हें बाहर जाने के लिए कह देते हैं.
यहां तक कि हर मुद्दे पर सरकार को घेरने वाला विपक्ष भी इस पर मौन है. बिहार में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव अज्ञातवास में हैं. उनके लापता होने का पोस्टर भी मुजफ्फरपुर में लगाया गया है. सवाल है कि आखिर सारे सियासतदान इस पर मौन क्यों हैं. मौन की एक वजह इन सियासतदानों की आत्मग्लानि है. क्योंकि ये जवाब देने की स्थिति में नही हैं. पिछले एक दशक से ये बीमारी मुजफ्फरपुर के हजारों बच्चों को लील गई लेकिन उसका कोई निदान नहीं निकला. कोई भी रिसर्च अब तक अंजाम तक नहीं पहुंच पाई है. इसकी रोकथाम के लिए जो उपाय किए जाते थे वो भी इस साल लोकसभा चुनाव के शोर में कहीं गुम हो गए. सत्ता पक्ष तो इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन विपक्ष भी अपनी भूमिका से बच नहीं सकता. इस साल की बेरहम गर्मी ने इन सारे सियासतदानों की पोल खोल के रख दी.
कहा जा रहा है कि गरीबी और कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत हो रही है. लेकिन इसके लिए भी जिम्मेदार सरकार ही है. बच्चों को कुपोषण से...
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चमकी बुखार से हुई बच्चों की मौत पर कुछ नही बोल रहें हैं. मीडिया लगातार उनसे सवाल कर रहा है लेकिन वो जवाब नहीं दे रहे हैं. और तो और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मामले पर पूरी तरह से चुप हैं. हिमाचल में हुई बस दुर्घटना में मरे लोगों के साथ-साथ टीम इंडिया के बल्लेबाज शिखर धवन की अंगुली में चोट लगने पर उन्होंने संवेदना तो प्रकट की लेकिन मुजफ्फरपुर मे एईएस (ENCEPHALITIS) से पीड़ित बच्चों की मौत पर उन्होंने संवेदना प्रकट करना उचित नहीं समझा. मुजफ्फरपुर केस में पीएम मोदी ने एक शब्द भी ट्वीट नहीं किया. यही हाल बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का है. पीड़ितों से मिलने के लिए हमेशा बेताब रहने वाले सुशील कुमार मोदी इतनी बड़ी त्रास्दी पर चुप हैं और पत्रकारों के चमकी बुखार को लेकर सवाल करने पर उन्हें बाहर जाने के लिए कह देते हैं.
यहां तक कि हर मुद्दे पर सरकार को घेरने वाला विपक्ष भी इस पर मौन है. बिहार में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव अज्ञातवास में हैं. उनके लापता होने का पोस्टर भी मुजफ्फरपुर में लगाया गया है. सवाल है कि आखिर सारे सियासतदान इस पर मौन क्यों हैं. मौन की एक वजह इन सियासतदानों की आत्मग्लानि है. क्योंकि ये जवाब देने की स्थिति में नही हैं. पिछले एक दशक से ये बीमारी मुजफ्फरपुर के हजारों बच्चों को लील गई लेकिन उसका कोई निदान नहीं निकला. कोई भी रिसर्च अब तक अंजाम तक नहीं पहुंच पाई है. इसकी रोकथाम के लिए जो उपाय किए जाते थे वो भी इस साल लोकसभा चुनाव के शोर में कहीं गुम हो गए. सत्ता पक्ष तो इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन विपक्ष भी अपनी भूमिका से बच नहीं सकता. इस साल की बेरहम गर्मी ने इन सारे सियासतदानों की पोल खोल के रख दी.
कहा जा रहा है कि गरीबी और कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत हो रही है. लेकिन इसके लिए भी जिम्मेदार सरकार ही है. बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है. उसके लिए करोड़ों का बजट है, समाज कल्याण का एक पूरा अमला है, जिसमें आंगनबाड़ी सेविकाएं भर्ती की गई हैं. उनको देखने के लिए बाल विकास परियोजना यानि सीडीपीओ की एक पोस्ट हर जिले में होती है. ये सीडीपीओ करता क्या है इन पर कभी कोई सवाल क्यों नहीं उठाता? केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित इस योजना में केवल लूट ही लूट है गरीब और कुपोषित बच्चों का निवाला इन भ्रष्ट अधिकारियों के जेब में जाता है. उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती?
बिहार में नीतीश कुमार सरकार के 14 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं. अब कम से कम लालू राबड़ी के 15 साल का हवाला देना बंद होना चाहिए. लालू राबड़ी राज में क्या हुआ ये सब इतिहास की बाते हैं. केंद्र में भी पिछले 5 सालों से एनडीए की सरकार है उनको भी सारी स्थितियों का पता है. वर्तमान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन 5 साल पहले भी इसी बीमारी के दौरान मुजफ्फरपुर आये थे और यह बयान दिया था कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए अनुसंधान किया जाएगा लेकिन पांच साल बाद भी अभी तक अंजाम ढाक के तीन पात साबित हुए. इसलिए बच्चों की मौत के लिए केंद्र सरकार भी उतनी जिम्मेदार मानी जायेगी जितनी बिहार सरकार.
ले देकर मीडिया ने जब इस पर सवाल उठाया तो फिर उसी पर सवाल उठने लगे. आखिर मुजफ्फरपुर के मेडिकल कालेज अस्पताल में सारी व्यवस्थाएं पहले से मौजूद थीं तो फिर बाद में आईसीयू के बेड क्यों बढ़ाए गए? डाक्टर बाहर से क्यों मंगाए गए? अस्पताल के सिस्टम को मीडिया के द्वारा दिखाने के बाद क्यों ठीक किया गया? ये तमाम बातें इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि सरकार इस विपत्ति के लिए पहले से तैयार नहीं थी. हांलाकि, यह विपत्ति अचानक नहीं आती है हर साल आती रही है लेकिन इस बार बहुत जोर से आई और यही कारण है कि सरकार को अपने स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर गंभीर सोच बनानी होगी. आज उपमुख्यमंत्री इस बीमारी के रिसर्च के 100 करोड़ रूपये की मांग कर रहे हैं. यह काम पहले भी हो सकता था. पर चुप रहने से कुछ नहीं होता.
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