अंधविश्वास एक इंसान से क्या-क्या करा सकता है, इसका ताजा उदाहरण है दिल्ली के बुराड़ी इलाके में हुई घटना. अंधविश्वास ऐसा कि 11 लोग मौत को गले लगाने से भी नहीं चूके. लेकिन यह अंधविश्वास सिर्फ समाज में नहीं है, बल्कि हमारे देश की राजनीति भी अंधविश्वास के जाल में फंसी हुई है. हाल ही में छत्तीसगढ़ विधासनभा पर एक बाबा ने तंत्र-मंत्र और टोटके किए हैं ताकि वहां फिर से भाजपा की सरकार आ सके. जब भी कोई नेता बड़े-बड़े मंच पर भाषण देता है तो वह विकास, तकनीक और देश को एक सुपर पावर बनाने की बात खूब जोर-शोर से करता है, लेकिन यही नेता जब मंच पर नहीं होते हैं तो तंत्र-मंत्र और टोटकों के चक्कर में न जाने क्या-क्या नहीं करते. छत्तीसगढ़ विस को बांधने पहुंचे इन बाबा का असली नाम राम लाल कश्यप है. मूल रूप से वह जांजगीर जिले के पामगढ़ के पास मुलमुला निवासी हैं.
विधानसभा को टोटके से बांधने पहुंचा बाबा
बुधवार को जब छत्तीसगढ़ विधानसभा में माथे पर सिंदूर और भभूत लगाए और ढेर सारी मालाएं पहने एक बाबा घूमता दिखा तो लोग हैरान रह गए. जब उसने वहां आने का मकसद बताया तो लोगों की हैरानी और बढ़ गई. बाबा ने कहा कि वह विधानसभा को संकल्प से बांधने आए हैं और खुद को भाजपा का मंडल अध्यक्ष बताया. संकल्प इस बात का कि इस बार भी भाजपा की सरकार बने और यही संकल्प लेकर वह बाबा अब अमरनाथ जा रहे हैं. सुनिया बाबा ने क्या-क्या कहा.
ऐसा नहीं है कि पहली बार ऐसे किसी बाबा का राजनीति में जिक्र हो रहा है. इससे पहले भी बहुत से राजनेता बाबाओं के आगे-पीछे घुमते रहे हैं. चलिए एक नजर डालते हैं कुछ नेताओं के अंधविश्वास पर-
सिद्धारमैया की कार पर बैठा कौवा
कर्नाटक के...
अंधविश्वास एक इंसान से क्या-क्या करा सकता है, इसका ताजा उदाहरण है दिल्ली के बुराड़ी इलाके में हुई घटना. अंधविश्वास ऐसा कि 11 लोग मौत को गले लगाने से भी नहीं चूके. लेकिन यह अंधविश्वास सिर्फ समाज में नहीं है, बल्कि हमारे देश की राजनीति भी अंधविश्वास के जाल में फंसी हुई है. हाल ही में छत्तीसगढ़ विधासनभा पर एक बाबा ने तंत्र-मंत्र और टोटके किए हैं ताकि वहां फिर से भाजपा की सरकार आ सके. जब भी कोई नेता बड़े-बड़े मंच पर भाषण देता है तो वह विकास, तकनीक और देश को एक सुपर पावर बनाने की बात खूब जोर-शोर से करता है, लेकिन यही नेता जब मंच पर नहीं होते हैं तो तंत्र-मंत्र और टोटकों के चक्कर में न जाने क्या-क्या नहीं करते. छत्तीसगढ़ विस को बांधने पहुंचे इन बाबा का असली नाम राम लाल कश्यप है. मूल रूप से वह जांजगीर जिले के पामगढ़ के पास मुलमुला निवासी हैं.
विधानसभा को टोटके से बांधने पहुंचा बाबा
बुधवार को जब छत्तीसगढ़ विधानसभा में माथे पर सिंदूर और भभूत लगाए और ढेर सारी मालाएं पहने एक बाबा घूमता दिखा तो लोग हैरान रह गए. जब उसने वहां आने का मकसद बताया तो लोगों की हैरानी और बढ़ गई. बाबा ने कहा कि वह विधानसभा को संकल्प से बांधने आए हैं और खुद को भाजपा का मंडल अध्यक्ष बताया. संकल्प इस बात का कि इस बार भी भाजपा की सरकार बने और यही संकल्प लेकर वह बाबा अब अमरनाथ जा रहे हैं. सुनिया बाबा ने क्या-क्या कहा.
ऐसा नहीं है कि पहली बार ऐसे किसी बाबा का राजनीति में जिक्र हो रहा है. इससे पहले भी बहुत से राजनेता बाबाओं के आगे-पीछे घुमते रहे हैं. चलिए एक नजर डालते हैं कुछ नेताओं के अंधविश्वास पर-
सिद्धारमैया की कार पर बैठा कौवा
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जून 2016 में एक कौवे की वजह से अपना कार बदल दी थी. बेंगलुरु मिरर की खबर के मुताबिक सिद्धारमैया की गाड़ी पर एक कौवा बैठ गया, जिसके बाद उस कौवे को शनि का प्रतीक मानते हुए मुख्यमंत्री के लिए नई गाड़ी खरीदने का आदेश जारी कर दिया गया. जिस नई कार को खरीदने का आदेश दिया गया था, उसकी कीमत 35 लाख रुपए थी.
येदियुरप्पा का 'काला जादू'
जब बात कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की बात हुई है तो येदियुरप्पा को कैसे भूल सकते हैं. उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि काले जादू की मदद से विरोधी उन्हें मारने की साजिश कर रहे हैं और उनकी सत्ता छीनना चाहते हैं. इतना ही नहीं, काले जादू का तोड़ निकालने के लिए वह तीन रातों तक बिना कुछ पहले सोए थे और उसी हालत में नदी में खड़े भी हुए थे.
शिवराज सिंह ने कैबिनेट में शामिल किए 4 बाबा
करीब 3 महीने पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 5 संत बबाओं को कैबिनेट में शामिल होने का न्योता दिया था. ये 5 बाबा नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद महाराज, कंप्यूटर बाबा, भैय्यूजी महाराज और पंडित योगेंद्र महंत थे. इनमें से भैय्यूजी महाराज ने शिवराज सिंह का न्योता ठुकरा दिया था. कुछ समय बाद भैय्यूजी महाराज ने आत्महत्या कर ली. हालांकि, इन 4 बाबाओं के कैबिनेट में शामिल करने का मामला अंधविश्वास से अधिक वोट बैंक की राजनीति का है.
पवन बंसल का 'बलि का बकरा'
मई 2013 में रेलवे घूसकांड में फंसे रेल मंत्री पवन बंसल ने भी बचने के लिए किसी बाबा या तांत्रिक के कहने पर खूब टोने-टोटके का सहारा लिया था. उन्होंने तो बकरे की पूजा भी की थी और उसकी बलि चढ़ाने की पूरी तैयारी थी. उनका मानना था कि अगर वह बकरे की बलि दे देते हैं तो वह सभी मुसीबतों से बच सकते हैं. खैर, कोई टोना-टोटका उनके काम नहीं आया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
नरसिम्हा राव भी थे अंधविश्वासी
नरसिम्हा राव के जमाने में चर्चित हुए तांत्रिक चंद्रास्वामी को कौन नहीं जानता. ये वही बाबा हैं, जिनके सामने राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहने के दौरान नरसिम्हा राव सिर झुकाते थे. उन्हें तो नरसिम्हा राव का ज्योतिष सलाहकार तक कहा जाने लगा था. इंदिरा गांधी ने तो उन्होंने कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में विश्व धर्मायतन संस्थान आश्रम बनाने के लिए जमीन तक दे दी थी. राजीव गांधी का पूरा मंत्रिमंडल ही उनका भक्त था. लेकिन यही वो बाबा हैं, जिनका नाम राजीव गांधी हत्याकांड से भी जुड़ा. इस तांत्रिक में कितनी ताकत थी इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनके सामने राजनेता से लेकर अभिनेता तक नतमस्तक हो जाया करते थे.
इंदिरा गांधी के देवरहा बाबा
ये वो बाबा थे, जिनके दर पर जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, शिवराज सिंह चौहान और विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल जैसे दिग्गज माथा टेकते थे. यूपी के देवरिया जिले के देवरहा बाबा लोगों के सिर पर पैर रखकर आशीर्वाद दिया करते थे. यह भी कहा जाता है कि जब आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की करारी हार हुई थी, तो वह देवरहा बाबा की शरण में गई थीं. उन्हें बाबा ने अपने हाथ के पंजे से आशीर्वाद दिया. यह माना जाता है कि इसी के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बदलकर हाथ का पंजा कर दिया. 1980 में जब दोबारा इंदिरा गांधी प्रचंड बहुमत से जीतीं और देश की प्रधानमंत्री बनीं तो उनका विश्वास देवरहा बाबा में और बढ़ गया.
युवा मुख्यमंत्री भी हैं अधंविश्वासी
यहां बात हो रही है अखिलेश यादव की, जो नोएडा सिर्फ इसलिए नहीं आते थे क्योंकि यूपी की राजनीति में किसी मुख्यमंत्री का नोएडा आना अपशगुन माना जाता था. इस अपशगुन को तोड़ा योगी आदित्यनाथ ने. अब इसे आप क्या कहेंगे. एक युवा नेता, जिसकी सोच 21वीं सदी की है, जो बातें विकास की करता है, काफी हद तक काम भी अच्छे होते हैं, लेकिन अंधविश्वास ने ऐसे युवा मुख्यमंत्री की अक्ल पर भी पर्दा डाल दिया था. यहां तक कि अगर कोई बड़ी बैठक भी होती थी तो वह खुद नहीं आते थे, किसी को भेज देते थे. नतीजा, आज अखिलेश यादव की सरकार यूपी की सत्ता से बाहर हो गई है.
बुराड़ी केस का अंधविश्वास इन दिनों जितना चर्चा में है, कुछ उसी तरह से समय-समय पर बाबाओं और नेताओं को लेकर भी अंधविश्वास की बातें होती रहती हैं. छत्तीसगढ़ विधानसभा को तो तंत्र-मंत्र से बांध दिया गया है, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्ता भाजपा के ही हाथ में रहती है या फिर सारे टोने-टोटके बेकार साबित हो जाते हैं.
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