Cheetah Is Back. चीते ट्रेंड में हैं. करीब 70 साल बाद, हिंदुस्तान चीतों के स्वागत के लिए तैयार है. चीतों को भारत की भूमि तक लाने के लिए एक विशेष जंबो जेट बी 747 नामीबिया पहुंच चुका है. 8 चीते भारत आ रहे हैं जिसमें 3 नर चीते हैं और 5 मादाएं हैं. नामीबिया से आ रहे चीते पीएम मोदी के जन्मदिन के दिन यानी 17 सितंबर को विमान से करीब 16 घंटे की यात्रा कर ग्वालियर आएंगे. जहां से इन्हें एमपी के कूनो पार्क ले जाया जाएगा. पार्क में पीएम मोदी खुद मौजूद रहेंगे और एक भव्य प्रोग्राम के बाद इन्हें देश के हवाले किया जाएगा. बताया ये भी जा रहा है कि नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क तक इन चीतों को भूखा ही रखा जाएगा और चीतों पर ये जुल्म सिर्फ इसलिए होगा. ताकि एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप आ रहे इन चीतों की तबियत न ख़राब हो जाए. जिस जहाज से चीते भारत पहुंच रहे हैं उसमें वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स के अलावा डॉक्टर्स की टीम भी रहेगी जो समय समय पर इनका निरिक्षण और देखभाल करेगी.
जानकारी ये भी सामने आई है कि चीतों के आगमन के बाद कूनो पार्क में सांभर हिरणों के झुंड को छोड़ा जाएगा. क्योंकि भूखे चीते शिकार करके अपनी भूख की तृष्णा को शांत कर सकें. चीतों को भारत लाने नामीबिया गए जहाज से लेकर कूनो में होने वाले प्रोग्राम तक हर एक चीज एक भव्य इवेंट की तरह पेश की जाएगी.
सवाल ये है कि नामीबिया से लेकर भारत आने तक क्या चीतों की ये यात्रा सुगम होने वाली है? इस सवाल के मद्देनजर तमाम तरह की बातें हो सकती हैं. लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि तमाम चुनौतियां हैं जिनका सामना उन चीतों को करना पड़ेगा. जो पीएम मोदी के कारण आने वाले दिनों में कूनो की शोभा बढ़ाने वाले...
Cheetah Is Back. चीते ट्रेंड में हैं. करीब 70 साल बाद, हिंदुस्तान चीतों के स्वागत के लिए तैयार है. चीतों को भारत की भूमि तक लाने के लिए एक विशेष जंबो जेट बी 747 नामीबिया पहुंच चुका है. 8 चीते भारत आ रहे हैं जिसमें 3 नर चीते हैं और 5 मादाएं हैं. नामीबिया से आ रहे चीते पीएम मोदी के जन्मदिन के दिन यानी 17 सितंबर को विमान से करीब 16 घंटे की यात्रा कर ग्वालियर आएंगे. जहां से इन्हें एमपी के कूनो पार्क ले जाया जाएगा. पार्क में पीएम मोदी खुद मौजूद रहेंगे और एक भव्य प्रोग्राम के बाद इन्हें देश के हवाले किया जाएगा. बताया ये भी जा रहा है कि नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क तक इन चीतों को भूखा ही रखा जाएगा और चीतों पर ये जुल्म सिर्फ इसलिए होगा. ताकि एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप आ रहे इन चीतों की तबियत न ख़राब हो जाए. जिस जहाज से चीते भारत पहुंच रहे हैं उसमें वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स के अलावा डॉक्टर्स की टीम भी रहेगी जो समय समय पर इनका निरिक्षण और देखभाल करेगी.
जानकारी ये भी सामने आई है कि चीतों के आगमन के बाद कूनो पार्क में सांभर हिरणों के झुंड को छोड़ा जाएगा. क्योंकि भूखे चीते शिकार करके अपनी भूख की तृष्णा को शांत कर सकें. चीतों को भारत लाने नामीबिया गए जहाज से लेकर कूनो में होने वाले प्रोग्राम तक हर एक चीज एक भव्य इवेंट की तरह पेश की जाएगी.
सवाल ये है कि नामीबिया से लेकर भारत आने तक क्या चीतों की ये यात्रा सुगम होने वाली है? इस सवाल के मद्देनजर तमाम तरह की बातें हो सकती हैं. लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि तमाम चुनौतियां हैं जिनका सामना उन चीतों को करना पड़ेगा. जो पीएम मोदी के कारण आने वाले दिनों में कूनो की शोभा बढ़ाने वाले हैं.
चीतों के आगमन पर बात होगी. लेकिन उससे पहले हमें इस बात को भी समझना होगा कि ये कोई पहली बार नहीं है जब हिंदुस्तान में चीते ने कदम रखा है. इससे पहले चीतों को हम मैसूर स्थित श्री चमराजेन्द्र जूलॉजिकल गार्डन या मैसूर ज़ू में देख चुके हैं. लेकिन ये अपने में ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि 2017 आते आते जर्मनी से लाए गए उन चीतों की मौत हो गयी.
बात वर्तमान की हो तो दोबारा 2020 में अफ्रीका से चीतों को मंगवाया गया.आज मैसूर में 1 नर और दो मादा चीते हैं. दिलचस्प ये कि उनकी भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है. चूंकि मैसूर के वो चीते अपने प्राकृतिक आवास में न होकर बाड़े में हैं. अंदाजा लगाया जा सकता है उन परेशानियों का जिनका सामना वहां चीतों को करना पड़ रहा है.
नामीबिया से आ रहे चीतों का हो तो इनका मामला इसलिए भी अलग है, क्योंकि मैसूर जो की तरह उन चीतों को बाड़ों या पिंजड़े में नहीं रखा जाएगा. बल्कि ये खुले में रखेंगे. लेकिन हां हमें इस बात को भी दिमाग में रखना होगा कि, वो चीते जो पूरी शानो शौकत से हिंदुस्तान आ रहे हैं उन्हें भी एक महीने भर के लिए बाड़ों में रखा जाएगा. डॉक्टर्स इस बात की निगरानी करेंगे कि चीतें भारत में एडजस्ट कर पा रहे हैं और उन्हें कोई बीमारी तो हो नहीं रही.
यक़ीनन नामीबिया से चीतों का भारत पहुंचाना भारतीय वन्यजीवन के हिसाब से एक बड़ी खबर है. लेकिन क्या वाक़ई इस पहल की जरूरत थी? हम ये सवाल सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि जैसी नामीबिया के इन चीतों की बनावट है उनके लिए बहुत मुश्किल होगा भारत में रहकर जीवित बचे रहना.
हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि नामीबिया के और भारत के जंगलों और जानवरों दोनों में खासा फर्क है. अगर आपने डिस्कवरी या एनिमल प्लेनेट जैसा कोई चैनल देखा हो या फिर कोई ऐसी डॉक्यूमेंट्री देखी हो जिसमें चीतों को दर्शाया गया हो तो आप इस बात को कहीं बेहतर ढंग से समझ पांएगे कि उनका शिकार करने का तरीका और जिस जमीन पर वो शिकार को अंजाम दे रहे हैं वो कैसा है. ऐसे में जब हम भारत को और भारत में भी कूनो को देखते हैं तो लाख इन्हें नामीबिया के अनुकूल बनाया गया हो लेकिन भारतीय जंगल कभी भी किसी अफ़्रीकी जंगल जैसे नहीं हो सकते.
दिल को बहलाने के लिए हम और सरकार दोनों तमाम बातें कर सकते हैं लेकिन क्यों कि ज़िन्दगी दांव पर चीतों की है तो हमारी भी कामना यही है कि वो ज़िंदा बचे यहां प्रजनन करें और एक बार फिर भारत को 1948 के उस भारत जैसा बनाएं जहां चीतों की ठीक ठाक संख्या थी.
फ़िलहाल जो चुनौती हमें चीतों के सन्दर्भ में कुनो पार्क में दिख रही है उसमें पहला तो वेजिटेशन और जानवर हैं इसके बाद भारत का मौसम भी इन चीतों के लिए ख़ासी दुविधाएं खड़ी कर सकता है. बाकी हाल फ़िलहाल में हमारे अपने कई जानवर विलुप्त हुए हैं. कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं. मानव और बाघ का संघर्ष रोजाना अख़बारों की सुर्ख़ियों में रहता है. ऐसे में चीते भारत आएं और जिन्दा सलामत बच जाएं ये देखना और जानना दोनों ही हमारे लिए खासा दिलचस्प है.
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