यह बर्फ से ढकी नदी नहीं अपनी यमुना (Yamuna) है. वैसे ये नदी दीवाली या छठ पूजा (chhath puja 2021) पर अचानक से प्रदूषित नहीं हुई है. जबसे हम याद कर रहे हैं तभी से इसके प्रदूषित होने की चर्चा है. यह चर्चा हर साल दीपावली और छठ पर्व पर तेज हो जाती है. थोड़े दिन बाद लोग फिर यमुना नदी को भूल जाते हैं. वैसे छठ पर्व पर घाट पर पूजा होनी चाहिए लेकिन इतने प्रदूषण वाली जगह पर जाकर ही पूजा करनी चाहिए यह किसने कहा है?
हमारी जानकारी में कई ऐसे दोस्त हैं जिन्होंने छत पर एक सीमेंट की टंकी बना ली है, वे उसमें साफ पानी भरते हैं और बड़ी ही श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं और महिलाएं उसी पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं. खैर, यह अपनी-अपनी आस्था है. जहां तक संभव होता है लोग छठ पूजा तालाब, पोखरे और नदी के घाट पर जाकर ही करते हैं.
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि अब जनता को ही सारा इंतजाम खुद ही करना है. सरकार किसी की भी हो यमुना नदी मैली ही रही. कोई भी सरकार आए या जाए, लेकिन यमुना की हालत जस की तस ही रही. अब हम किसे दोष दें और किसे नहीं...इन नेताओं को यमुना की याद तो आती है लेकिन राजनीति चमकाने के लिए. एक राज्य सरकार दूसरे राज्य के सरकार पर दोष मढ़ देती है.
यह बात कितनी गंभीर है लेकिन लोग इसके बारे में चटकारे लेकर बयानबाजी कर रहे हैं. इन सबके चक्कर में बेचारी हमारी यमुना नदी सियासी राजनीति की शिकार हो कर दम तोड़ रही है और प्रदूषण को झेलते-झेलते अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत है...
असल में छठ व्रती यहां नहाने को मजबूर हैं क्योंकि यह धार्मिक मान्यता तो है, लेकिन नेताओं को लगता है कि पूजा दिल्ली की यमुना घाट पर होनी चाहिए. इससे सियासी रोटियां...
यह बर्फ से ढकी नदी नहीं अपनी यमुना (Yamuna) है. वैसे ये नदी दीवाली या छठ पूजा (chhath puja 2021) पर अचानक से प्रदूषित नहीं हुई है. जबसे हम याद कर रहे हैं तभी से इसके प्रदूषित होने की चर्चा है. यह चर्चा हर साल दीपावली और छठ पर्व पर तेज हो जाती है. थोड़े दिन बाद लोग फिर यमुना नदी को भूल जाते हैं. वैसे छठ पर्व पर घाट पर पूजा होनी चाहिए लेकिन इतने प्रदूषण वाली जगह पर जाकर ही पूजा करनी चाहिए यह किसने कहा है?
हमारी जानकारी में कई ऐसे दोस्त हैं जिन्होंने छत पर एक सीमेंट की टंकी बना ली है, वे उसमें साफ पानी भरते हैं और बड़ी ही श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं और महिलाएं उसी पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं. खैर, यह अपनी-अपनी आस्था है. जहां तक संभव होता है लोग छठ पूजा तालाब, पोखरे और नदी के घाट पर जाकर ही करते हैं.
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि अब जनता को ही सारा इंतजाम खुद ही करना है. सरकार किसी की भी हो यमुना नदी मैली ही रही. कोई भी सरकार आए या जाए, लेकिन यमुना की हालत जस की तस ही रही. अब हम किसे दोष दें और किसे नहीं...इन नेताओं को यमुना की याद तो आती है लेकिन राजनीति चमकाने के लिए. एक राज्य सरकार दूसरे राज्य के सरकार पर दोष मढ़ देती है.
यह बात कितनी गंभीर है लेकिन लोग इसके बारे में चटकारे लेकर बयानबाजी कर रहे हैं. इन सबके चक्कर में बेचारी हमारी यमुना नदी सियासी राजनीति की शिकार हो कर दम तोड़ रही है और प्रदूषण को झेलते-झेलते अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत है...
असल में छठ व्रती यहां नहाने को मजबूर हैं क्योंकि यह धार्मिक मान्यता तो है, लेकिन नेताओं को लगता है कि पूजा दिल्ली की यमुना घाट पर होनी चाहिए. इससे सियासी रोटियां सेंकने का मौका जो मिल रहा है. मगर किसी ने यह सोचा कि यमुना सूख जाएगी तो दिल्ली का क्या होगा? हमें तो लगता है कि अलबत्ता, नदी कभी साफ ही नहीं होगी...ऐसा कितने लोगों को लगता है?
आपको नदी की घाट पर कितनी महिलाओं की भीड़ दिखी? गरीब, अशिक्षित महिलाओं के कंधे पर बंदूक रखकर की जाने वाली राजनीति जनता के समझ में भी आ रही है.
छठ व्रती महिलाएं प्रदूषित यमुना नदी में नहाने को मजबूर है, क्योंकि ऐसा नेता चाहते हैं. भले ही महिलाएं गंदे पानी में नहाकर बीमार पड़ जाएं लेकिन इन्हें राजनीति करने से मतलब है भर, उनके स्वास्थ्य से नहीं. ऐसा होता तो नदी की सफाई की बात छठ पूजा से पहले होती, पूजा वाले दिन नहीं. ये नहीं कि जबतक नदी साफ नहीं हो रही है महिलाओं के लिए छठ पूजा के लिए कहीं दूसरे विकल्फ की व्यस्था कर दें.
यमुना नदी का हाल यह है कि आप इस पिछली साल वाली फोटो इस साल भी दिखा सकते हैं और इस साल वाली फोटो का इस्तेमाल अगले साल भी कर सकते हैं...क्योंकि इसकी सूरत नहीं बदलने वाली.
दिलासा देने के लिए यह बोल सकते हैं कि आने वाले दिन में यमुना नदी साफ होगी. हमें तो लगता है कि अगले साल छठ पर्व पर दोबोरा यही दृश्य देखने को मिलेगा...आपकी इस बारे में क्या राय है? अगर यह नहीं सूख गई तो क्या नेता पापा के भागीदारा नहीं होंगे?
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