हाल ही में चीन ने अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है. अब बजट 224 बिलियन डॉलर यानी करीब 18 लाख करोड़ रुपए हो गया है. गिरती अर्थव्यस्था से जूझने वाले ड्रैगन ने डिफेंस बजट को बढ़ाकर एक बार फिर अपने मंसूबे जाहिर किए हैं. चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक में इस बढ़ोतरी की वजह बताते हुए प्रवक्ता वांग चाओ ने कहा कि सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए बजट को बढ़ाया गया है. यह आठवां साल है जब चीन में सैन्य बजट में बढ़ोतरी का ऐलान किया गया है. स्पष्ट है कि चीन भले ही बुरे आर्थिक हालातों से जूझ रहा है, लेकिन जंग के लिए खुद को तैयार कर रहा है. प्रधानमंत्री ली केकियांग का कहना है, सैन्य अभियान चलाने और युद्ध की तैयारियों को बढ़ाने के लिए रक्षा बजट में बढ़ोतरी की गई है. अमेरिका के बाद चीन डिफेंस सेक्टर में सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश है. भारत से इसकी तुलना करें तो चीन का रक्षा बजट तीन गुना ज्यादा है.
2023-24 के लिए भारत का रक्षा बजट 5.94 लाख करोड़ रुपए (लगभग 72.6 अरब अमेरिकी डॉलर) तय किया गया है. वहीं, समाचारों के अनुसार 7.2 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ चीन का रक्षा बजट अब 224 बिलियन डॉलर यानी क़रीब 18 लाख करोड़ रुपए हो गया है. जो भारत से तीन गुना अधिक है. पिछले साल चीन का रक्षा बजट 230 बिलियन डॉलर था. रक्षा के मामले में चीन भारत से कितना आगे निकलेगा, अब इसे समझते हैं.
पहले बात भारत की.1 फरवरी को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले रक्षा बजट 5.25 लाख करोड़ को बढ़ाकर 2023-24 के लिए 5. 94 लाख करोड़ रुपए कर दिया. लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की सरहदों पर चीन से तनाव की खबरों के बीच बजट में 1 लाख 62 हज़ार करोड़ रुपए सैन्य खर्चों के लिए तय किए गए हैं. इनसे नए हथियार, विमान, युद्धपोतों और सेना के काम आने वाले दूसरे उपकरणों की खरीद की जाएगी. पिछले साल से इसकी तुलना की जाए तो इस साल करीब 10 हज़ार करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.
भारतीय बॉर्डर पर सड़कों के निर्माण की अहमियत को समझते हुए भी बजट में बढ़ोतरी की गई है. रक्षा बजट को बढ़ाना चीन की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. वर्तमान में चीन की हथियारों को तैयार करने की क्षमता काफी ज्यादा है. हथियारों को निर्यात करने के मामले में अमेरिका, रूस और फ्रांस के बाद चीन चौथे पायदान पर है. दुनिया की टॉप 10 हथियार कंपनियों में चीन की तीन शामिल हैं.
हथियारों की ब्रिकी का रिकॉर्ड देखें तो अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन और नॉर्थ्रप ग्रमन कॉरपोरेशन के बाद तीसरे पायदान पर चीन का नॉर्थ इंडस्ट्रीज ग्रुप कॉरपोरेशन है. डिफेंस सेक्टर में चीन के जो हालात हैं वो हमेशा से वैसे नहीं थे. सोवियत संघ के दौर में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी काफी अहद तक रूसी हथियारों पर निर्भर रहती थी. सोवियत संघ से चीन ने काफी कुछ सीखा. यही वजह है कि चीनी हथियार से लेकर लड़ाकू विमानों में सोवियत संघ की छाप देखने को मिलती है.
समय के साथ चीन में हथियारों के निर्माण के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ना शुरू किया. रूसी तकनीक और अपने पुराने मिसाइल सिस्टम में सुधार किए. अपनी वेपन सिस्टम डेवलप किए. अभी भी चीन सोवियत के दौर के हथियार बना रहा है. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच हथियारों का आदान-प्रदान हो रहा है. स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट कहती है, 2016 से 2021 तक चीन ने जितना हथियार आयात किया था, उसका 81 फीसदी हिस्सा तो रूस ने भेजा था.
गौरतलब है कि चीन द्वारा उसके रक्षा खर्चों में यह बढ़ोतरी ऐसे समय की गई है जब लद्दाख और अरुणाचल सीमा पर पिछले लगभग दो साल से चल रहा तनाव कम नहीं हुआ है. तनाव कम करने के लिए 15वें दौर की वार्ता में भी कुछ हल निकल सका है. वहीं दूसरी तरफ चीन का अमेरिका के साथ सैन्य एवं राजनीतिक तनाव बढ़ता ही जा रहा है. चीन के खिलाफ बने क्वाड गठजोड़ ने भी चीन की चिंताओं को अधिक बढ़ाया है.
इन सबके अलावा चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से पीछे हटने वाला नहीं है. शायद इसीलिए चीन अपने रक्षा बजट में लगातार बढ़ोतरी कर रहा है. विदित हो कि यह लगातार आठवां ऐसा वर्ष है जब चीन के रक्षा बजट में बढ़ोतरी का प्रतिशत इकाई अंक तक ही सीमित रखा, लेकिन भारत की तुलना में उसका रक्षा बजट काफी अधिक है.
यहां गौरतलब यह भी है कि रक्षा बजट के मामले में चीन अभी भी अमेरिका से काफी पीछे है. इस घोषणा के बाद चीन अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे अधिक खर्च करने वाला दूसरा देश बन गया है. अमेरिका का रक्षा बजट चीन के मुकाबले लगभग चार गुना ज्यादा होता था जो अब साढ़े तीन गुना ही ज्यादा है. हाल के वर्षों में चीन ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए कई बड़े सैन्य सुधार किए हैं.
इन सुधारों के तहत उसने दूसरे देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए नौसेना और वायु सेना को प्राथमिकता देते हुए उनका विस्तार किया. अब चीन नई रोबोट आर्मी तैयार कर रहा है और इसकी तैनाती भी भारतीय सीमा के नजदीक करनी शुरू कर दी है. उसने भारतीय सीमा के नजदीक सैन्य गांव भी बसा दिए हैं. जबकि उसने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की संख्या में तीन लाख तक की कटौती भी की है.
इसके बावजूद 20 लाख की सैन्य संख्या बल के साथ पीएलए अब भी दुनिया की सबसे बड़ी सेना है. चीन अपनी इसी रक्षा नीति पर चलते हुए अमेरिका को पीछे छोड़ता हुआ दुनिया की सबसे बड़ी नौसैन्य ताकत बन रहा है. विगत दो वर्षों में चीनी नौसेना में जितने युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल की गई हैं उतने शायद अमेरिका की नौसेना में न हों. इतने हथियारों की बढ़ोतरी के बाद भी उसकी भूख कम नहीं हुई है.
विदित हो कि कुछ समय पहले चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपनी नौसेना को संसार की सबसे बड़ी नौसैन्य ताकत बनाने का जो संकल्प लिया था उसे चीन पूरा करने में लगा हुआ है. वर्ष 2020 तक चीन ने 360 से ज्यादा युद्धपोतों की तैनाती की है. चीन की यह विस्तारवादी नीति आने वाले समय में विश्व को नए युद्ध में धकेलने में देर नहीं लगाएगी. चीन अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहता है.
चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि को उचित ठहराते हुए यह भी कह रहा है कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है. खासकर दक्षिण चीन सागर को लेकर खींचतान सबसे ज्यादा है. चीन के नीति नियंताओं के मुताबिक सेना को अत्याधुनिक बनाए जाने के फोकस को देखते हुए रक्षा बजट बढ़ाया गया है. चीन का ध्यान स्टील्थ लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, सेटेलाइट रोधी मिसाइल समेत नई सैन्य क्षमता विकसित करने पर है.
चीन अपना दबदबा बढ़ाने के लिए नौसेना की पहुंच को समुद्री क्षेत्रों में फैला रहा है. इस साल के रक्षा बजट का मुख्य जोर नौसेना के विकास पर रहेगा, क्योंकि दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर पर उसके दावे तथा समुद्री आवागमन के लिहाज से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा हुआ है. इसके अलावा, एशिया प्रशांत क्षेत्र में अस्थिर सुरक्षा स्थिति को देखते हुए उसके जवाब के तौर पर तैयार होना है.
इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन सैन्य क्षेत्र में दुनिया के शक्तिशाली देशों की तुलना में सबसे ऊपर रहना चाहता है. ऐसी स्थिति में भारत को चीन की रक्षा बजट में बढ़ोतरी से सजग रहने की आवश्यकता होगी. हथियारों के मामले में चीन और रूस की दोस्ती दुनियाभर के देशों समेत भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस को जिस तरह की तोपों के गोलों की जरूरत है, उसकी सप्लाई चीन आसानी से कर सकता है क्योंकि चीनी कंपनी के पास कच्चा माल भी है और उसे बनाने की क्षमता भी.
रूसी लड़ाकू विमानों और मिसाइल सिस्टम्स का एक बड़ा जखीरा चीन के पास है. अगर आने वाले दिनों में हालात बिगड़ते हैं तो चीन रूस को इनकी सप्लाई कर सकता है. रूस के लिए यह काफी आसान होगा क्योंकि हथियारों में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के मामले दोनों देश एक ही जैसे हैं. भारत और चीन के बीच हालात पहले से ही सामान्य नहीं हैं. ऐसे में चीन बड़ी समस्या बन सकता है.
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