भारत के राज परिवार के प्रतीक्षारत वारिस एक मुद्दत से देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. उससे पहले उनकी मां सपना देखा करती थीं. मां का सपना पूरा भी हो जाता, मगर अतीत में उनके सहयोगियों ने ही उनके विदेशी मूल के मुद्दे पर ऐसा यूटर्न लिया कि भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़े राज परिवार की बहू का सपना बिखर गया. पर ख़त्म नहीं हुआ था. गठबंधन राजनीति से बुरी तरह परहेज करनी वाली इंदिरा कांग्रेस ने जब यूपीए 1 के जरिए अटल बिहारी वाजपेयी को चुनावों में मात दी थी, तब उनका पीएम बनना लगभग तय था. जो सहयोगी विदेशी मूल के मुद्दे पर पहले चिल्ला रहे थे- सत्ता से कुछ महीनों की दूरी ने उन्हें विवश कर दिया और अब वे चाहते थे कि राज परिवार की विदेशी बहू पीएम बन जाए.
राजपरिवार और उनकी बहू का दुर्भाग्य देखिए कि तब राज परिवार के वारिस ने ही जिद कर ली- मॉम आप पीएम नहीं बनेंगी. इसलिए नहीं बनेंगी कि आपकी भी हत्या पिता की तरह हो जाएगी. इस तरह देश के लिए हर मिनट सिर्फ अपने राजर्षि पुरखों की कुर्बानी का मंत्र जपने वाला राज परिवार एक फिजूल की आशंका से डर जाता है. उसे देश में अपनी सुरक्षा का भरोसा तक नहीं है. और इस तरह राजनीतिक फ्रेम में एक खड़ाऊ पीएम आ जाता हैं. राज परिवार का वारिस खड़ाऊ पीएम को जब तब किस तरह बेइज्जत करता रहता है- पूरी दुनिया ने खुली आंखों से देखा. कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक मामूली पार्षद भी उतना विवश नहीं दिखा होगा कई मौकों पर राज परिवार के आगे जितना विवश हमारे पीएम नजर आए.
राहुल का बयान सुनने के बाद अच्छा हुआ कि उनकी मां पीएम नहीं बनीं और आजन्म वह भी पीएम इन वेटिंग ही रहने वाले हैं. सोनिया के उन सहयोगियों का आभार जिन्होंने विदेशी मूल के मसले पर बहुत जरूरी पहल की. स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव और शरद पवार की जितनी प्रशंसा की जाए कम है. भारत के लिए उनका यह बहुत बड़ा योगदान था अब समझ आ रहा.
राहुल गांधी
राज परिवार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को दिए वचन में बंधा है
बावजूद कि मनमोहन ने कई मौकों पर राज परिवार की एक ना सुनी और कुछेक मौकों पर अपने मन की करने में कामयाब रहें. इंदिरा कांग्रेस के विरोध के बावजूद उन्होंने केरल में भारत के पहले डीप वॉटर पोर्ट और अरुणाचल में सड़कों का जाल बिछाने की दिशा में पहल की. उन्हीं के रक्षामंत्री ने किस तरह सवाल उठाए यह बाद की बात है. चीन को असल में भारत के इन्हीं करतबों से आपत्ति है. पर वह भूल गया कि अब यहां आठ साल से इंदिरा कांग्रेस की कुछ नहीं चलती. उस चीन को जिसकी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ यूपीए 1 के जमाने में देश की सरकार ने नहीं बल्कि इंदिरा कांग्रेस ने समझौते किए. उस समझौते में क्या था यह रहस्य आज तक बरकरार ही है. यह वही चीन है जब डोकलाम की वजह से देश उबल रहा था, राज परिवार के वारिस मुंह छिपाकर चीनी दूतावास में मीटिंग करने गए थे.
राज परिवार असल में नेहरू-गांधी परिवार का ही है. और जिन मां बेटे की चर्चा हो रही है बेशक वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी जी ही हैं. राहुल गांधी, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुए समझौतों में बंधे हैं. उनके कमिटमेंट होंगे. होने ही चाहिए. वचन की वैल्यू नहीं तो क्या मतलब है. राहुल की तकलीफों को समझा जा सकता है. तभी उन्होंने अरुणाचल में चीन की सीमा पर भारतीय रणबांकुरों के अदम्य साहस का मजाक उड़ाया. बिल्कुल मजाक उड़ाया. हंसते हुए. वीडियो देख लीजिए. उन्होंने कहा- अरुणाचल में चीन हमारे जवानों को पीट रहा है मगर मीडिया चीन पर सवाल नहीं पूछता. असल में वो मीडिया के जरिए केंद्र सरकार से सवाल नहीं पूछ रहे थे. बल्कि वे किसी भी तरह अराजकता को पनपाकर अपने लिए सत्ता के रास्ते तैयार करने पर आमादा हैं.
राहुल का वीडियो नीचे है:-
संसद में राहुल के सवालों का जवाब दिया जाता है वे अपनी थकान मिटाने कहां गायब रहते हैं
राहुल गांधी को सवालों और उनके जवाबों से भला क्या काम? जिन्हें जानना हो वे संसद की आर्काइव खंगाले. बतौर सांसद राहुल गांधी के अब तक के सवालों को तलाशे. उन्होंने क्या पूछा? खासकर मोदी सरकार में. और जब सरकार की तरफ से राज परिवार के वारिस को जवाब दिया जा रहा था- चेक करें कि राहुल गांधी उस वक्त कहां थे? संसद की कैंटीन में थे. घर में नींद ले रहे थे. विदेश में किसी टूर पर थे. या फिर खान मार्केट के किसी रेस्त्रां में इटैलियन डिश ब्रुशितो के साथ जाकू बर्ड कॉफ़ी पीकर राजनीतिक थकान मिटाने गए थे. वे अपनी सरकार में भी स्टंट सीन्स के इतर संसद से गायब ही नजर आए हैं. एक भी महत्वपूर्ण सेशन में उन्हें संसद में दिनभर बैठे देखना अब तक दुर्लभ रहा है. सरकार चाहे उनकी रही या विपक्ष की. फिलहाल यात्रा में हैं तो संसद में रहने का सवाल ही नहीं.
सिर्फ सत्ता से लगातार और दूर होते जाने की राहुल गांधी की अकुलाहट समझना बहुत भारी काम नहीं. समझा जा सकता है कि देश में पैदा होने भर से देश की आत्मा को महसूस नहीं किया जा सकता. कहीं पैदा हो जाने से वह मातृभूमि नहीं हो जाती. इस देश में तमाम ऐसे लोग हैं जो कई पीढ़ियों से बेशक भारतीय जमीन पर पैदा हो रहे हैं, मगर उन्होंने आत्मा से इसे मातृभूमि स्वीकार ही नहीं. कुछ को लगता है कि यह देश उनके नवाबों-बादशाहों की जागीर थी और कुछ को लगता है कि उनके नाना परनाना ने देश को आजाद कराया तो यह उनकी खानदानी जागीर है. बावजूद कि ये जो कुछ लोग हैं, जिसे अपनी मातृभूमि समझते हैं- सीना ठोंककर उनके साथ खड़े हैं और अपने स्तर से प्रयास भी कर रहे हैं. खुली आंखों से देख लीजिए.
देश में असंख्य लोग हैं पर कुछ लोग इसे मातृभूमि नहीं समझते, कौन हैं ये जयचंद?
स्वाभाविक है कि भारतवंशी भी वही प्रयास अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं. यह उन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि राहुल गांधी जी आठ साल से लगातार सत्ता से बाहर हैं और अगले 80 साल तक दूर-दूर तक वे सत्ता के करीब जाते नहीं दिख रहे. कम से कम इंदिरा कांग्रेस के जहाज पर अगले कई दशकों तक राहुल गांधी का सपना, सपना ही रह जाएगा, यह तो तय हो चुका है. सेना के साहस पर राहुल की घिनौनी टिप्पणी के बाद वित्त पोषित लिबरल्स को अब चाहिए कि भारत को लेकर सहिष्णुता-वहिष्णुता जैसे राग अपनी ढपली पर ना छेड़ा करें.
इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि एक नेता सेना के शौर्य पर जिस अंदाज में सवाल उठाकर आराम से घूम रहा है- वह देश कितना सहिष्णु होगा. वह देश कितना सहिष्णु होगा जहां इंदिरा कांग्रेस का एक नेता सरेआम देश के प्रधानमंत्री की हत्या का आह्वान करता है सिर्फ इसलिए कि कुछ नवाबों बादशाहों के वारिस अबतक उसे देश का पीएम मानने को तैयार ही नहीं हुए. देश के मायने उनके लिए बिल्कुल अलग हैं. भला इससे ज्यादा सहिष्णुता और क्या हो सकती है कि बिलावल भुट्टो जरदारी और राहुल गांधी की भाषा लगभग एक जैसी होने के बावजूद सड़े अंडे और सड़े टमाटर अब तक नहीं फेंके जा रहे.
सच में भारत कितना सहिष्णु (आप लाचार भी कह सकते हैं) देश है इसका अंदाजा लगाइए कि कोई स्टारडम के नशे में कह सकता है - चीन हमारे सैनिकों को पीट रहा है. बावजूद जूते नहीं फेंके जा रहे. अब तक लोग उसे दुलार रहे. ब्रह्मांड में भला इससे प्यारा कोई और देश होगा क्या? कहीं और कहा होता तो चौराहे पर लटका देते लोग. पत्थर से पीट-पीट कर मार डालते. या इस्लामिक स्टेट के कार्यकर्ता उनके साथ जो करते उसका वीडियो पूरी दुनिया को दिखाते. दूर क्यों जाना. इसी इंदिरा कांग्रेस के राज्य में इसी साल एक दरजी बेमौत मारा गया था शांतिदूतों के हाथों. बिना कुछ कहे. बेगुनाह मौत.
स्टारडम के नशे से बाहर निकल आओ अब, किसी योग्य को जगह देकर रिटायर हो जाइए
पाकिस्तान के ही राज परिवार में जन्मा बिलावल भारत के पीएम को गाली ही देगा. उसे मालूम नहीं है भारत के पीएम अब किस तरह के घरों से निकलकर आते हैं. हमारे पीएम गर्व हैं समूचे देश का. वह पूजवाकर आए हैं. इंदिरा कांग्रेस के राज परिवार में पले-बढ़े राहुल कल्पना तक नहीं कर सकते कितने राजा-महाराजाओं को मोदी ने राजनीति से यूं फेका जैसे दूध से मक्खी. सिर्फ विपक्ष ही नहीं, अपनी ही पार्टी में भी. वह उनका जनाधार, उनके प्रति भरोसा और कौशल था कि चाहकर भी कोई अबतक बाल भी बांका नहीं कर पाया है. उनका कोई क्या उखाड़ लेगा? क्या था उनके पास जो चला जाएगा. उखड़ने का डर राहुल और बिलावल को लगता होगा, किसी मोदी को नहीं. असल में स्टारडम (आप हैसियत, बादशाही, जमींदारी, माफियागिरी भी कह सकते हैं) एक नशा है. गोविंदा-सन्नी देओल अब तक उस नशे से नहीं निकल पाए हैं. शाहरुख-सलमान भी नहीं निकल पा रहा है. पठान में जिद देखिए.
दुर्भाग्य से देश ने तय कर लिया है. नो मोर जिद. अकड़न छोडिए और शांतिपूर्वक अपनी जगह किसी दूसरे योग्य को देकर चुपचाप शोर मचाए बिना रिंग से बाहर हो जाइए. रिटायर हो जाए अब. यही जनादेश दे रहा है देश बार-बार और कुछ लोग समझना ही नहीं चाहते.
वीएस नायपॉल भारत के बारे में आपके विचार पूरी तरह सही थे. आपने ठीक कहा था- भारत दुनिया का अद्भुत देश है. एक ऐसा देश जो अपने इतिहास को इतिहास नहीं मानता. अपनी भाषा को भाषा नहीं मानता. अपने लोगों को सक्षम या विद्वान नहीं मानता. यहां वही मान्य इतिहास है जिसे विदेशी लिखते हैं. जिसे अंग्रेजी में लिखा जाता है. जिसमें भारतीयता का विरोध होता है.
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