संविधान के हिसाब से देश तो सभी देशों की राजनीतिक पार्टियां काम करती हैं, लेकिन चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए संविधान को ही बदलने की तैयारी की जा रही है. चीन की सत्ताधारी पार्टी ने रविवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ कर दिया है. इसके लिए संविधान के उस नियम में बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है, जिसके तहत कोई भी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति सिर्फ दो कार्यकाल तक ही अपने पद पर रह सकता है. संविधान में बदलाव के बाद 64 साल के शी जिनपिंग को बदशाह का रुतबा हासिल हो जाएगा. मौजूदा समय में जिनपिंग सेना और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के प्रमुख भी हैं.
असर हम पर और दुनिया पर:
किसी देश की सत्ता महेशा के लिए किसी एक शख्स के हाथ में चले जाना कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा आप उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन को देखकर ही लगा सकते हैं. आपको बता दें कि चीन में पहले से ही लोकतंत्र नहीं है और वहां दशकों से कम्युनिस्ट पार्टी ही शासन कर रही है. अभी तक तो देश की सत्ता पर एक ही पार्टी काबिज थी, लेकिन अब उसी पार्टी के एक शख्स यानी शी जिनपिंग के हाथ में सारी ताकत देने की तैयारी की जा रही है. शी जिनपिंग के शासनकाल में ही चीन ने पाकिस्तान में CPEC जैसी योजना शुरू की, जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर जाती है. इसके अलावा चीन भारत के अन्य पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में भी अपने पैठ बढ़ा रहा है. इन दिनों चीन मालदीव में एक Joint ocean observation centre शुरू करने की तैयारी में है. खबर है कि यहां चीन की पनडुब्बी भी तैनात हो सकती है. पिछले साल हमने डोकलाम में चीन की घुसपैठ और उसके मंसूबों को सरेआम होते देखा है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चीन आंतकवादी मसूद अजहर जैसे आतंकी का बचाव करता दिखता है कि भारत को लेकर जिनपिंग के मन में क्या है. चीन की ये सारी हरकतें पहले ही भारत की नाक में दम कर रही हैं. ऐसे में शी जिनपिंग का और अधिक ताकतवर बनना भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है.
संविधान के हिसाब से देश तो सभी देशों की राजनीतिक पार्टियां काम करती हैं, लेकिन चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए संविधान को ही बदलने की तैयारी की जा रही है. चीन की सत्ताधारी पार्टी ने रविवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ कर दिया है. इसके लिए संविधान के उस नियम में बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है, जिसके तहत कोई भी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति सिर्फ दो कार्यकाल तक ही अपने पद पर रह सकता है. संविधान में बदलाव के बाद 64 साल के शी जिनपिंग को बदशाह का रुतबा हासिल हो जाएगा. मौजूदा समय में जिनपिंग सेना और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के प्रमुख भी हैं.
असर हम पर और दुनिया पर:
किसी देश की सत्ता महेशा के लिए किसी एक शख्स के हाथ में चले जाना कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा आप उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन को देखकर ही लगा सकते हैं. आपको बता दें कि चीन में पहले से ही लोकतंत्र नहीं है और वहां दशकों से कम्युनिस्ट पार्टी ही शासन कर रही है. अभी तक तो देश की सत्ता पर एक ही पार्टी काबिज थी, लेकिन अब उसी पार्टी के एक शख्स यानी शी जिनपिंग के हाथ में सारी ताकत देने की तैयारी की जा रही है. शी जिनपिंग के शासनकाल में ही चीन ने पाकिस्तान में CPEC जैसी योजना शुरू की, जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर जाती है. इसके अलावा चीन भारत के अन्य पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में भी अपने पैठ बढ़ा रहा है. इन दिनों चीन मालदीव में एक Joint ocean observation centre शुरू करने की तैयारी में है. खबर है कि यहां चीन की पनडुब्बी भी तैनात हो सकती है. पिछले साल हमने डोकलाम में चीन की घुसपैठ और उसके मंसूबों को सरेआम होते देखा है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चीन आंतकवादी मसूद अजहर जैसे आतंकी का बचाव करता दिखता है कि भारत को लेकर जिनपिंग के मन में क्या है. चीन की ये सारी हरकतें पहले ही भारत की नाक में दम कर रही हैं. ऐसे में शी जिनपिंग का और अधिक ताकतवर बनना भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है.
दूसरे ऐसे शख्स होंगे जिनपिंग
अगर इस प्रस्ताव पर चीन आगे बढ़ जाता है तो माओ त्से-तुंग के बाद शी जिनपिंग दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता बन जाएंगे. आपको बता दें कि माओ त्से-तुंग का शासन 1976 तक तीन दशक तक चला था. आपको बता दें कि माओ त्से-तुंग को आधुनिक चीन का संस्थापक भी माना जाता है. माओ के शासनकाल में ही चीन ने भारत से युद्ध किया था. पिछले साल सत्ताधारी पार्टी ने जिनपिंग को माओ त्से-तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता माना है. पार्टी ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि संविधान में 'नए युग के लिए चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद' पर शी जिनपिंग के विचारों को भी लिखा जाए. आपको बता दें कि ऐसी स्थिति में माओ त्से-तुंग और देंग शियोपिंग के बाद शी जिनपिंग अकेले ऐसे नेता बन जाएंगे, जिनके विचार संविधान में लिखे होंगे.
समाप्त हो रहा है जिनपिंग का कार्यकाल
इससे पहले जियांग जेमिन और हू जिंताओ 1993-2003 और 2003-2013 तक नियम के अनुसार पार्टी महासचिव और राष्ट्रपति पद से हट गए थे. नियम बदलने के इस प्रस्ताव को 5 मार्च से शुरू हो रहे नेशनल पीपल्स कांग्रेस में रखा जाएगा, जिसके बाद यह प्रस्ताव संसद में जाएगा. आपको बता दें कि अभी जो व्यवस्था है, उसके अनुसार 2023 तक शी जिनपिंग को अपना पद छोड़ना है.
कब से चल रहा है मौजूदा नियम?
10 साल तक पद पर रहने की यह परंपरा 1990 में शुरू हुई थी. यह परंपरा तब शुरू हुई जब दिग्गज नेता डेंग जियाओपिंग ने अराजकता को दोहराने से बचने की मांग की थी. इस नियम का उद्देश्य चीन जैसे एक दलीय देश में सामूहिक नेतृत्व को बढ़ावा देना है. आपको बताते चलें कि चीन में 1949 से कम्युनिस्ट पार्टी का ही शासन रहा है. जिनपिंग से पहले दो पूर्व राष्ट्रपतियों ने इस नियम का बखूबी पालन किया, लेकिन जब 2012 में शी जिनपिंग सत्ता में आए तो उन्होंने अपने नियम लिखने शुरू कर दिए.
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