हमारे इस लेख का मुद्दा युद्ध की नोक पर टिका है. न जाने कब एक और युद्ध की घंटी बज जाए. मुद्दा छोटा है लेकिन है बहुत टेक्निकल. मुद्दा है आपकी आंखों के बिल्कुल सामने लेकिन फिर भी शायद दिख नहीं रहा होगा. आप उसका इस्तेमाल तो कर रहे हैं लेकिन शायद समझ नहीं पा रहे हैं. अब आप कहेंगे कि पहेलियां बुझाना बंद करके आपको मुद्दे की बात बताई जाए. बिल्कुल बताएंगे लेकिन साथ में करीब 6 महीने से दुनिया को परेशान कर रहे एक युद्ध की बात भी कर लें. रूस-यूक्रेन युद्ध 24 फरवरी को शुरू हुआ और कब थमेगा, ये या तो रूस जानता है या ऊपरवाला. युद्ध के बाद से जब कई कहानियां और परेशानियां दुनिया के सामने आईं तब कुछ लोगों को पता चला कि यूक्रेन दुनिया का इतना बड़ा फूड-सप्लायर देश है. मैं उन स्टूडेंट्स या जानकारों की बात नहीं कर रहा जिन्हें पहले से पता था कि रूस और यूक्रेन दोनों ही जगह बहुत बड़ी मात्रा में उन खाद्य वस्तुओं की उपज होती है जिनकी सबसे ज्यादा जरूरत हर देश को होती है और इसीलिए जब युद्ध लंबा खिंच गया तो दुनिया पर खाद्य-संकट मंडराने लगा है लेकिन ताज्जुब की बात लोगों के लिए ये रही कि रूस से ही अलग हुआ एक छोटा सा देश यूक्रेन इतनी ज्यादा पैदावार करता है कि जंग की भट्टी में झोंके जाने से जब उसकी उपज और सप्लाई पर असर पड़ा तो पूरी दुनिया हैरान-परेशान हो गई.
ठीक ऐसे ही हमारे इस लेख का मुद्दा है.. हम सब लोगों को खाने की जरूरत तो होती ही है लेकिन उसके अलावा हमारी जिंदगियों में अब ऐसा क्या जुड़ गया है जिसके बिना हम रह नहीं सकते.वही जो मैं बात कर रहा था कि आपकी आंखों के सामने है लेकिन शायद आप देख नहीं पा रहे यानी आपका मोबाइल या लैपटॉप.अब आप कहेंगे कि क्या मुद्दा ये है? नहीं ये नहीं बल्कि...
हमारे इस लेख का मुद्दा युद्ध की नोक पर टिका है. न जाने कब एक और युद्ध की घंटी बज जाए. मुद्दा छोटा है लेकिन है बहुत टेक्निकल. मुद्दा है आपकी आंखों के बिल्कुल सामने लेकिन फिर भी शायद दिख नहीं रहा होगा. आप उसका इस्तेमाल तो कर रहे हैं लेकिन शायद समझ नहीं पा रहे हैं. अब आप कहेंगे कि पहेलियां बुझाना बंद करके आपको मुद्दे की बात बताई जाए. बिल्कुल बताएंगे लेकिन साथ में करीब 6 महीने से दुनिया को परेशान कर रहे एक युद्ध की बात भी कर लें. रूस-यूक्रेन युद्ध 24 फरवरी को शुरू हुआ और कब थमेगा, ये या तो रूस जानता है या ऊपरवाला. युद्ध के बाद से जब कई कहानियां और परेशानियां दुनिया के सामने आईं तब कुछ लोगों को पता चला कि यूक्रेन दुनिया का इतना बड़ा फूड-सप्लायर देश है. मैं उन स्टूडेंट्स या जानकारों की बात नहीं कर रहा जिन्हें पहले से पता था कि रूस और यूक्रेन दोनों ही जगह बहुत बड़ी मात्रा में उन खाद्य वस्तुओं की उपज होती है जिनकी सबसे ज्यादा जरूरत हर देश को होती है और इसीलिए जब युद्ध लंबा खिंच गया तो दुनिया पर खाद्य-संकट मंडराने लगा है लेकिन ताज्जुब की बात लोगों के लिए ये रही कि रूस से ही अलग हुआ एक छोटा सा देश यूक्रेन इतनी ज्यादा पैदावार करता है कि जंग की भट्टी में झोंके जाने से जब उसकी उपज और सप्लाई पर असर पड़ा तो पूरी दुनिया हैरान-परेशान हो गई.
ठीक ऐसे ही हमारे इस लेख का मुद्दा है.. हम सब लोगों को खाने की जरूरत तो होती ही है लेकिन उसके अलावा हमारी जिंदगियों में अब ऐसा क्या जुड़ गया है जिसके बिना हम रह नहीं सकते.वही जो मैं बात कर रहा था कि आपकी आंखों के सामने है लेकिन शायद आप देख नहीं पा रहे यानी आपका मोबाइल या लैपटॉप.अब आप कहेंगे कि क्या मुद्दा ये है? नहीं ये नहीं बल्कि इनमें लगीं चिप. वो माइक्रो-चिप या सेमी-कंडक्टर चिप जो अक्सर गैजेट्स में लगी होती हैं, यही नहीं कई सारे एलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में लगी होती हैं, यहां तक कि नई तकनीक वाली गाड़ियों में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है.
कुछ समय पहले आपने सुना होगा कि भारत सहित कुछ देशों में कारों में लगने वाली सेमी-कंडक्टर चिप्स की कमी हो गई थी तो गाड़ियों के उत्पादन पर गहरा असर पड़ा था. तब से भारत ने भी ऐसी यूनिट्स शुरू करने की कवायद तेज कर दी है. AI तकनीक यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए सेमी-कंडक्टर चिप्स यूज हो रही हैं. 5G तकनीक दस्तक दे रही है और वहां भी चिप का इस्तेमाल रिवोल्यूशन लाएगा. आप सोच रहे होंगे कि इतना सब बताने के बाद कवि कहना क्या चाहता है?
कहना ये चाहता हूं कि इन सबका सबसे बड़ा निर्माता और सप्लायर देश है ताइवान. जैसे यूक्रेन दुनिया का बहुत बड़ा फूड- सप्लायर देश, वैसे ही ताइवान हमारी तकनीकी सुविधाओं वाली चीजों को उनका फूड, चिप्स, (अब तक तो आप समझ गए हैं कि खाने वाली नहीं) यानी सेमी-कंडक्टर चिप्स बनाने और देने वाला देश है और ये भी एक कारण है कि चीन ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता है और ताइवान के ऐसा नहीं मानने पर उसे धमकाता रहता है, और दूसरी तरफ अमेरिका ताइवान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता रहता है, उसका साथ देने की बात करता है.
चीन के खिलाफ ताइवान का सपोर्ट करने की बात करता है अमेरिका. अब आपको मुद्दा तो समझ आ गया कि ताइवान जैसे छोटे से देश को चीन के टारगेट करने का एक कारण क्या है लेकिन एक खास बात और बता दूं कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद से कुछ देशों की इकॉनोमी एक अच्छी रफ्तार से लगातार बढ़ती रही, उन चंद देशों में ताइवान भी है और इसलिए भी चीन उसे अपने क्षेत्र में शामिल करना चाहता है.
वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिका को भी तकनीकी रूप से और ज्यादा समृद्ध और विकसित होने के लिए ताइवान के तकनीक की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में, ताइवान को अपने निर्णय सोच-समझकर लेने होंगे. हमारे इस लेख का पूरा मामला ताइवान के इर्द-गिर्द ही है जिसमें चीन से उसकी तकरार भी है और अमेरिका से उसकी नजदीकी भी.
आपने लव-ट्रायंगल वाली बहुत सी कहानियां पढ़ी होंगी, त्रिकोणीय-प्रेम कहानियों पर फिल्में देखी होंगी लेकिन यहां मामला वॉर-ट्रायंगल का हो सकता है मतलब ताइवान के लिए चीन-अमेरिका आपस में भिड़ सकते हैं, उनमें युद्ध हो सकता है.. ऐसा कुछ जानकारों का मानना है लेकिन ऐसी सोच क्यों आई कि चीन ताइवान पर हमला कर सकता है और अमेरिका ताइवान की मदद करेगा, इसका एक कारण तो हाल ही में अमेरिकी सीनेट की स्पीकर नैंसी पेलोसी का ताइवान दौरा रहा.
पेलोसी अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दौरे के हिस्से के रूप में ताइवान पहुंची थीं. पिछले 25 सालों में ताइवान का दौरा करने वाली वो पहली अमेरिकी शीर्ष अधिकारी हैं. पेलोसी के दौरे से चीन और अमेरिका के संबंध अब तक के सबसे खराब दौर में पहुंच गए. अमेरिकी सीनेट स्पीकर नैंसी पेलोसी तो चीन से लौट भी गईं लेकिन बौखलाए चीन ने ताइवान पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए. सबसे बड़ा काम चीन ने ये किया कि उसने ताइवान की नाकेबंदी कर दी.
चीन ने ताइवान के पास के क्षेत्र में सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है. चीन ने इसके लिए कई वॉरशिप, फाइटर जेट और मिसाइलों को तैनात कर दिया है. चीन की आर्मी ताइवान की सीमा से कुछ ही समुद्री मील की दूरी पर युद्धाभ्यास कर रही है. हालांकि चीन के युद्धाभ्यास को लेकर ताइवान रक्षा मंत्रालय ने कहा कि - ‘हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. ताइवान किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं. लेकिन हम संघर्ष नहीं चाहते.’
अमेरिका भी इस स्थिति पर पूरी नजर बनाए हुए है. अमेरिका ने चीन के युद्धाभ्यास को देखते हुए ताइवान के पास फिलिपींस सी में अपना युद्धपोत SS Ronald Reagan भेज दिया है. अमेरिका ने भी चीन को चेतावनी दी है. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जीन पियरे ने कहा कि चीन नैंसी पेलोसी के ताइवान के दौरे को संकट में न बदले. खबरों के मुताबिक, चीन नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर भड़का हुआ है. उसने पहले ही अमेरिका को ये दौरा टालने के लिए कहा था.
साथ ही ताइवान को अंजाम भुगतने की धमकी दी थी. अब नैंसी पेलोसी के लौटते ही चीन ने समुद्र में सैन्य गतिविधियां शुरू कर दी हैं. चीन के इस कदम को युद्ध भड़काने जैसा ही माना जा रहा है. चीन ने ताइवान के चारों तरफ 6 जगहों से हवा और समुद्र में अभ्यास करने का ऐलान किया है. मतलब ये कि ताइवान के इर्दगिर्द हवाई जहाज भी मंडराएंगे और पानी पर चलने वाले जहाज भी.
चीन की सख्त आपत्ति के बावजूद नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया. पेलोसी ने ताइवान की राजधानी ताइपे में ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन से मुलाकात की और जोर दिया कि- अमेरिका ताइवान के साथ है. इस द्वीप की यात्रा का लक्ष्य ये स्पष्ट करना था कि अमेरिका ताइवान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ेगा. अमेरिका ताइवान के लोकतंत्र की रक्षा करेगा. साथ ही ताइवान से किए हुए हर वादे को निभाएगा.
पेलोसी ने अपनी यात्रा के दौरान लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी. इसमें 1989 के तियानमेन स्क्वायर पर हुए प्रदर्शन के दौरान छात्र नेता रहे कैक्सी भी शामिल थे. जो 2019 में हॉन्गकॉन्ग चले गए थे. उधर, नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि हमारी स्थिति एकदम साफ है. हम महासभा के प्रस्तावों के तहत चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हैं.
जानकार बताते हैं कि ताइवान को चीन अपना क्षेत्र मानता है. जबकि ताइवान खुद को स्वतंत्र देश बताता है. दूसरी तरफ, अमेरिका एक अलग ही पेंच में फंसा है. अमेरिका चीन की वन पॉलिसी का समर्थन करता है. वहीं अमेरिका के ताइवान के साथ आधिकारिक रूप से राजनयिक संबंध नहीं है लेकिन अमेरिका ताइवान रिलेशंस एक्ट के तहत अमेरिका ताइवान को हथियार भी बेचता है. इस कानून में कहा गया है कि अमेरिका ताइवान की आत्मरक्षा के लिए जरूरी मदद देगा.
अब ये तमाम गतिविधियां एक गंभीर परिणाम के संकेत जरूर देती हैं, लेकिन चीन की जैसी प्रवृत्ति रही है उसे देखते हुए इसे सीधे युद्ध मान लेना भी सही नहीं होगा. जानकार मानते हैं कि चीन की ये पुरानी रणनीति रही है कि वो डराने वाली राजनीति करता है, दुश्मन देश को पीछे धकेलने के लिए प्रोपोगेंडा वीडियो बनवाता है और जरूरत पड़ने पर किसी देश की सीमा के पास जानबूझकर सेना अभ्यास करता है.
डोकलाम विवाद के दौरान भारत के साथ चीन ये पैंतरा आजमा चुका है, ये अलग बात है कि तब भारत की कूटनीति के सामने उसे झुकना पड़ा. लेकिन अब वैसा ही पैंतरा वो ताइवान के साथ भी अपना रहा है. ताइवान को डरा-धमकाकर और उसके जरिये अमेरिका तक चीन क्या संदेश देना चाहता है ये तो वक्त बताएगा. लेकिन छोटा देश जान के उसको ना धमकाना रे!
ताइवान अपने आप में चाहे छोटा देश है, मात्र सवा दो से ढाई करोड़ की आबादी वाला ही देश है ताइवान लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत है, इकॉनोमी विकसित है और उसकी ग्रोथ लगातार हो रही है. चीन भौगोलिक और पुराने रिश्ते के कारण उसे अपने साथ मिलाने की भले सोचता हो लेकिन चीन और अमेरिका दोनों की ताइवान की तकनीक और इकॉनोमी पर भी नजर लगती है.
चीन उसे धमकाता रहेगा और अमेरिका उसे दोस्ती की बात बोलता रहेगा लेकिन कुछ जानकारों के मुताबिक ताइवान को यूक्रेन से सबक लेना ही होगा. खुद की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत रखते हुए अमेरिका पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए. हम यही चाहेंगे कि ताइवान का मार्केट खूब विकसित होता रहे और आप लोग अपने गैजेट्स में ताइवान की चिप के जरिये हमारा ये लेख पढ़ते रहें लेकिन साथ ही कमेन्ट भी करते रहें और हमें सुझाव भी देते रहें. चीन-ताइवान की हिस्ट्री के लिए आज तक के YouTube चैनल पर डिजिटल शो ‘RNA’ का इसका पूरा एपिसोड जरूर देखें.
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