चिराग पासवान (Chirag Paswan) की दलित पॉलिटिक्स (Dalit Vote Bank) रंग ला रही है. ये चिराग पासवान की राजनीतिक सक्रियता ही है जिसकी बदौलत बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में दलित वोट बैंक चुनावी राजनीति का केंद्र बिंदु बन चुका है.
NDA में दलित नेताओं की अहमियत तो बढ़ी हुई नजर आ ही रही है, महागठबंधन के भीतर भी दलित नेताओं की पूछ बढ़ गयी है - और तो और बिहार चुनाव में ऐसे दो चुनावी गठबंधन भी खड़े हो चुके हैं जिनका आधार भी दलित वोट बैंक ही है.
ये बिहार की 16 फीसदी दलित आबादी ही है जो यूपी से एक दिग्गज और एक युवा दलित नेता को चुनाव मैदान में खींच लायी है - चिराग पासवान की मुश्किल ये है कि उनकी अकेली मेहनत का फायदा सभी राजनीतिक दलों में फैले दलित नेताओं को मिलने लगा है, लेकिन खुद वो एनडीए के भीतर मनमाफिक सीटों के लिए जूझ रहे हैं.
एनडीए में दलित क्रांति और उसका असर
चिराग पासवान के निशाने पर शुरू से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे, लिहाजा पहला असर भी जेडीयू में ही होना था. लोक जनशक्ति पार्टी के अंगड़ाई लेते ही नीतीश कुमार सबसे पहले हरकत में देखे गये.
जब बीजेपी के बार बार नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बताये जाने के बाद भी चिराग पासवान चुप होने का नाम नहीं लिये, तो जेडीयू नेता को एक्शन में आना ही पड़ा. सबसे पहले तो नीतीश कुमार ने जहर का घूंट पीते हुए जीतनराम मांझी को अपने बूते एनडीए में एंट्री दिलाये और अब तो अशोक चौधरी को बिहार जेडीयू का कार्यकारी अध्यक्ष बना कर इरादा साफ कर ही दिया है. कहने के लिए ये जरूर रहा कि प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की सेहत को देखते हुए मदद के लिए ऐसा किया जा रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के करीबियों ने इस काम के लिए नेता तो और भी थे. अशोक चौधरी को तो तब भी करीबी माना जाता था जब वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन इस बार तो उनका दलित होना ही काम आया है.
जेडीयू ज्वाइन करने वाले पुलिस अफसरों में सबसे चर्चित तो गुप्तेश्वर पांडेय ही हैं, लेकिन सुनील कुमार जैसे...
चिराग पासवान (Chirag Paswan) की दलित पॉलिटिक्स (Dalit Vote Bank) रंग ला रही है. ये चिराग पासवान की राजनीतिक सक्रियता ही है जिसकी बदौलत बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में दलित वोट बैंक चुनावी राजनीति का केंद्र बिंदु बन चुका है.
NDA में दलित नेताओं की अहमियत तो बढ़ी हुई नजर आ ही रही है, महागठबंधन के भीतर भी दलित नेताओं की पूछ बढ़ गयी है - और तो और बिहार चुनाव में ऐसे दो चुनावी गठबंधन भी खड़े हो चुके हैं जिनका आधार भी दलित वोट बैंक ही है.
ये बिहार की 16 फीसदी दलित आबादी ही है जो यूपी से एक दिग्गज और एक युवा दलित नेता को चुनाव मैदान में खींच लायी है - चिराग पासवान की मुश्किल ये है कि उनकी अकेली मेहनत का फायदा सभी राजनीतिक दलों में फैले दलित नेताओं को मिलने लगा है, लेकिन खुद वो एनडीए के भीतर मनमाफिक सीटों के लिए जूझ रहे हैं.
एनडीए में दलित क्रांति और उसका असर
चिराग पासवान के निशाने पर शुरू से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे, लिहाजा पहला असर भी जेडीयू में ही होना था. लोक जनशक्ति पार्टी के अंगड़ाई लेते ही नीतीश कुमार सबसे पहले हरकत में देखे गये.
जब बीजेपी के बार बार नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बताये जाने के बाद भी चिराग पासवान चुप होने का नाम नहीं लिये, तो जेडीयू नेता को एक्शन में आना ही पड़ा. सबसे पहले तो नीतीश कुमार ने जहर का घूंट पीते हुए जीतनराम मांझी को अपने बूते एनडीए में एंट्री दिलाये और अब तो अशोक चौधरी को बिहार जेडीयू का कार्यकारी अध्यक्ष बना कर इरादा साफ कर ही दिया है. कहने के लिए ये जरूर रहा कि प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की सेहत को देखते हुए मदद के लिए ऐसा किया जा रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के करीबियों ने इस काम के लिए नेता तो और भी थे. अशोक चौधरी को तो तब भी करीबी माना जाता था जब वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन इस बार तो उनका दलित होना ही काम आया है.
जेडीयू ज्वाइन करने वाले पुलिस अफसरों में सबसे चर्चित तो गुप्तेश्वर पांडेय ही हैं, लेकिन सुनील कुमार जैसे पूर्व आईपीएस अफसर की खासियत तो दलित समुदाय से होना ही है. दलितों के लिए बना दूसरी स्कीमों के अलावा हाल ही में नीतीश कुमार ने हत्या की स्थिति में दलित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का भी वादा किया है.
सिर्फ जेडीयू की कौन कहे बीजेपी ने भी पिछले 20 साल में पहली बार किसी दलिता नेता प्रदेश में महासचिव का पद दिया है. गोपालगंज से सांसद रहे जनक चमार को बीजेपी ने बिहार में पार्टी का महासचिव बनाया है. हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बीजेपी में अपनी टीम बनायी है - और पार्टी के 23 प्रवक्ताओं में गुरु प्रकाश को भी शुमार किया गया है. गुरु प्रकाश बिहार के दलित नेता संजय पासवान के बेटे हैं और पटना यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.
महागठबंधन में भी दलित नेताओं का कद बढ़ा
बुजुर्ग दलित चेहरा होने के बावजूद जीतनराम मांझी को महागठबंधन में कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही थी. जीतन राम मांझी की तात्कालिक तौर पर जो पूछ बढ़ी है उसके लिए उनको चिराग पासवान का शुक्रगुजार होना चाहिये. जीतनराम मांझी के एनडीए में जाने को लेकर खास मोड़ उस वक्त आया जब श्याम रजन ने जेडीयू छोड़ कर लालू यादव की पार्टी आजेडी ज्वाइन करने का फैसला किया. श्याम रजक के साथ साथ रमई राम और पूर्व विधानसभा स्पीकर उदय नारायण चौधरी जैसे दलित नेताओं की भी आरजेडी में अहमियत बढ़ गयी है.
हालांकि, सबसे ज्यादा फायदे में रहे भूदेव चौधरी. भूदेव चौधरी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के गठबंधन छोड़ते ही तेजस्वी यादव ने भूदेव चौधरी को आरजेडी का प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया है.
दो दलित गठबंधन भी मैदान में
एनडीए और महागठबंधन में तो दलित नेताओं की जो अहमियत बढ़ी है वो तो है ही, अलग से बिहार के दो नेताओं ने भी दो चुनावी गठबंधन बना लिया है, जिसका बेस दलित वोट बैंक ही है - दोनों ही गठबंधनों में यूपी के दलित नेताओं को भी शामिल किया गया है.
1. कुशवाहा और मायावती: महागठबंधन छोड़ने के बाद उपेंद्र कुशवाहा का एनडीए में शामिल होना पक्का माना जा रहा था लेकिन सीटों की डिमांड आड़े आ गयी. उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन नेतृत्व के मुद्दे पर छोड़ा था. उपेंद्र कुशवाहा का कहना रहा कि अगर आरजेडी तेजस्वी यादव की जगह किसी और को महागठबंधन का नेता बनाये तो वो साथ बने रहेंगे. भला ये कहां संभव था, लिहाजा दरवाजा खुला था निकल गये.
उपेंद्र कुशवाहा को यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का साथ मिला है - और मायावती ने उपेंद्र कुशवाहा को चुनाव जीतने पर बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की करीब करीब वैसे ही घोषणा कर डाली है जैसे आम चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की कर डाली थी!
उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाले इस गठबंधन में मायावती की बीएसपी के अलावा भारतीय समाज पार्टी और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी को भी शामिल किया गया है. बीएसपी ने 2005 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल की थी और राज्य के गोपालगंज, रोहतास और कैमूर जैसे यूपी से सटे जिलों में पार्टी का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है.
2. पप्पू यादव और चंद्रशेखर: उपेंद्र कुशवाहा की ही तरह जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव उर्फ राजेश रंजन भी एक चुनावी गठबंधन की अगुवाई कर रहे हैं. पप्पू यादव को यूपी के भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद रावण का सपोर्ट हासिल हुआ है. चंद्रशेखर आजाद ने अब आजाद समाज पार्टी बना ली है. पप्पू यादव ने अपने गठबंधन का नाम रखा है - प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन. गठबंधन में जन अधिकार पार्टी और आजाद समाज पार्टी के साथ साथ सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को भी शामिल किया गया है.
सीटों पर सहमति तो अभी तक महागठबंधन में भी नहीं बन पायी है, लेकिन एनडीए में पेंच सिर्फ चिराग पासवान के जिद पर अड़े होने के कारण फंसा हुआ है, जबकि 1 अक्टूबर से पहले चरण की 71 सीटों के लिए नामांकन भी शुरू हो चुका है.
सुना जा रहा है कि बीजेपी की तरफ से चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को 27 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऑफर दिया गया है - और ये सुनते ही चिराग पासवान के साथियों ने 143 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने की बात शुरू कर दी है. पहले तो चिराग पासवान बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करते रहे, लेकिन बाद में बीजेपी के लिए 100 सीटें छोड़ कर 143 सीटों पर आ गये - और ऐसा करने का मकसद जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ एलजेपी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने का मकसद बताया गया है.
अभी तक सीट शेयरिंग को लेकर बातें बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ही करते आ रहे थे, लेकिन अब मालूम हुआ है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी दखल दे चुके हैं. जेपी नड्डा और अमित शाह के बीच उम्मीदवारों की लिस्ट और एलजेपी के साथ सीट शेयरिंग पर भी चर्चा हुई है, ऐसा सूत्रों के हवाले से खबर आयी है. इससे पहले जेपी नड्डा ने बैठक भी बुलायी थी जिसमें अमित शाह, बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल, डिप्टी सीएम सुशील मोदी और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव भी शामिल हुए. बैठक के बाद भूपेंद्र यादव ने मीडिया को बताया कि एडीए के सभी साथियों से सीटों पर तालमेल को लेकर बातचीत हो रही है - और जोर देकर कहा कि बीजेपी, एलजेपी और जेडीयू मिल कर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.
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