मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्म में बहुत है. मान्यता के अनुसार इसी दिन के बाद से शुभ कार्यों की शुरुआत लोग करते हैं. दही-चूड़ा खाकर. राष्ट्रीय जनता दल की ओर से 14 जनवरी को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास में इस अवसर पर दही-चूड़ा के भोज का आयोजन है.
हालांकि, लालू प्रसाद जब पटना में होते थे तब इस भोज की रौनक कुछ और होती थी. इस बार उनके बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से इस भोज की रौनक होने वाली है. राजद कार्यकर्ताओं और तेजस्वी के शुभचिंतकों को इंतजार है कि नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को कब मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपते हैं. अजीब बात यह कि राजद की ओर से राबड़ी देवी के आवास पर दही-चूड़ा का भोज 14 जनवरी को है और इसी दिन जेडीयू संसदीय दल के नेता उपेन्द्र कुशवाहा के आवास पर जेडीयू की ओर से दही-चूड़ा भोज का आयोजन रख दिया गया है. यह खिंचाव जैसी स्थिति के स्पष्ट संकेत हैं.
वैसे बिहार की सियासत कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता. दोस्त कब दुश्मन बन जाए, ये भी कहना मुश्किल है. कल तक शांत दिखने वाले बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह फिर से तेवर में आ गए हैं. या यूं कहे पापा जगदानंद सिंह ने जिस तरह 60 दिन के बाद कमबैक किया है, शायद उसी के चलते सुधाकर सिंह भी पुराने तेवर में आ गए और सीएम नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
अगर ऐसा नहीं होता तो इतने दिनों तक शांत रहने वाले आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलते.अब सवाल उठता है कि मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद शांत रहने वाले सुधाकर सिंह को पावर कहां से मिल रहा है? क्या पापा जगदानंद सिंह बैक से पावर दे रहे हैं? क्या पार्टी ने भी मौन सहमति दे दी है या लालू यादव की रणनीति के तहत ही सुधाकर सिंह महागठबंधन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सुधाकर सिंह ने कहा कि बिहार में कृषि रोड मैप दो में 10 साल पहले कृषि विपणन के लिए कानून होना चाहिए, लेकिन अब तक उसे पूरा नहीं किया गया. उन्होंने यह भी घोषणा की कि कहा कि 13 दिसंबर से शुरू हो रहे बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में मंडी कानून को लेकर प्राइवेट मेंबर बिल लाएंगे. सुधाकर सिंह ने मंगलवार को पत्रकारों से बात करते हुए इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा विधानसभा को इसकी लिखित जानकारी दे दी है.
उन्होंने कहा कि 2006 में कृषि मंडी कानून समाप्त करने के बाद मूल्य स्तर और उत्पादन स्तर पर राज्य के किसानों को गेहूं और धान में करीब 90 हजार करोड़ रुपये जबकि सभी फसलों को मिला लें तो करीब डेढ लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. किसानों की इस स्थिति के लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार बताते हुए सुधाकर सिंह ने कहा कि कई संस्थाएं यह कह चुकी हैं कि मंडी कानून होना चाहिए जिससे किसानों को फसल का न्यूनतम मूल्य मिल सके. उन्होंने प्राइवेट मेंबर बिल के संबंध में पूछे जाने पर कहा कि यह बिहार की 80 फीसदी आबादी को प्रभावित करना वाला बिल है.
खाद्यान के रूप में देखें तो 100 फीसदी आबादी को प्रभावित करने वाला है. ऐसे मुद्दे को लेकर सदन में सहमति बन जाएगी, इसकी मुझे पूरी उम्मीद है. मुझे विश्वास है कि कोई भी किसानों के खिलाफ नहीं जाना चाहेगा. उन्होंने दावे के साथ कहा कि मुख्यमंत्री भी इसके साथ होंगे क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो कृषि रोड मैप में किसानों को कृषि विपणन की जरूरत की बात नहीं लिखी होती.
हालांकि सुधाकर सिंह को तेजस्वी यादव दोबारा चेतावनी दे चुके हैं, लेकिन ये भाजपा के हाथों में न खेलने वाले अंदाज में ही दी जा रही चेतावनी है. जेडीयू की तरफ से सवाल उठाया जा रहा है कि चेतावनी देना तो ठीक है, लेकिन नीतीश कुमार को शिखंडी कह देने वाले सुधाकर सिंह के खिलाफ एक्शन कब तक होगा? एक तरह से जेडीयू के सीनियर नेता उपेंद्र कुशवाहा ने आरजेडी नेतृत्व को अल्टीमेटम देने की भी कोशिश की है. लहजा थोड़ा नरम जरूर देखा गया है. उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि 14 जनवरी तक सुधाकर सिंह के खिलाफ कोई न कोई एक्शन जरूर होगा.
नीतीश कुमार की लड़ाई लड़ने के साथ साथ उपेंद्र कुशवाहा अपनी राजनीतिक जमीन भी मजबूत करने की कोशिश में हैं, लेकिन कुछ भाजपा नेताओं से उनके संपर्क को लेकर बिहार की राजनीति तरह तरह की बातें भी चल रही हैं. ऐसी चर्चा भी चल पड़ी है कि उपेंद्र कुशवाहा फिर से भाजपा के साथ एनडीए में जा सकते हैं. वैसे भी कुछ दिनों से ये देखने को मिला है कि एनडीए में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा में से कोई एक ही रहता है.एक तरफ उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में डिप्टी सीएम बनाये जाने की भी चर्चा चल रही है, और दूसरी तरफ उनका चूड़ा-दही भोज भी हॉट टॉपिक बना हुआ है.
रही बात सुधाकर सिंह जैसे नेताओं के खिलाफ एक्शन लेने की तो, सुना है कि फैसला आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव लेने वाले हैं. लालू यादव के लौटने का कार्यक्रम तो मार्च, 2023 तक है, लेकिन ये तो सबको पता है कि वो जहां भी रहते हैं चौबीस घंटे बिहार की राजनीति पर उनकी नजर रहती ही है.
रांची से लेकर दिल्ली तक- और अभी सिंगापुर से आरजेडी का हर फैसले की मंजूरी लालू यादव से लेनी ही पड़ती है. लेकिन ऐसा भी तो नहीं है कि सुधाकर सिंह बगैर लालू यादव और तेजस्वी यादव से शह मिले नीतीश कुमार पर हमलावर बने रहें? जाहिर है नीतीश कुमार तो ये सब समझ ही रहे होंगे, लिहाजा अपनी तरफ से वो भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं. अभी तो ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार और लालू यादव कोई फ्रेंडली मैच खेल रहे हों. ये फ्रेंडली मैच भाजपा को गफलत में रखने के लिए भी हो सकता है और एक दूसरे के खिलाफ वास्तव में परदे के पीछे चल रही लड़ाई भी हो सकती है.
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा की शुरुआत और शुरुआती दौर के रूट मैप तो ऐसे ही इशारे कर रहे हैं जैसे निशाने पर भाजपा नहीं बल्कि महागठबंधन में प्रमुख पार्टनर राष्ट्रीय जनता दल ही हो कम से कम नीतीश कुमार की मुस्लिम वोटर पर नजर तो ऐसा ही इशारा कर रहा है. समाधान यात्रा पर निकलने से पहले नीतीश कुमार की मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों के साथ मुख्यमंत्री आवास पर बंद कमरे में हुई मुलाकात काफी चर्चित रही. तब ऐसा लगा था कि भाजपा के साथ रह कर मुस्लिम वोटर की नजर में धूमिल हुई अपनी छवि को बदलने की कोशिश हो रही है.
नीतीश कुमार ने असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं से बचने की सलाह दी थी, इसलिए मुस्लिम नेताओं से उनकी मुलाकात को अगले आम चुनाव की तैयारियों का हिस्सा समझा गया. तब नीतीश कुमार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों से 2024 से पहले भाजपा के सक्रिय होने और सांप्रदायिक सद्भाव खराब करने की भी आशंका जतायी थी. ऐसी ही आशंका नीतीश कुमार ने तब भी जतायी थी, जब उनके महागठबंधन में चले जाने के बाद केंद्रीय मंत्री अमित शाह पहली बार बिहार का दौरा करने वाले थे.
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा के आरंभिक पड़ावों के आस पास की आबादी भी मुस्लिम बहुल ही है. नीतीश कुमार ने 4 जनवरी को वाल्मीकि नगर का कार्यक्रम बनाया था, अगले दिन 5 जनवरी को पश्चिम चंपारण के बेतिया इलाके में समाधान यात्रा पहुंची थी. और वैसे ही 6 जनवरी को शिवहर और सीतामढ़ी में, 7 जनवरी को वैशाली और 8 जनवरी को सिवान पहुंचे थे -
सिवान के बारे में तो सबको पता है, बाहुबली आरजेडी नेता शहाबुद्दीन का गढ़ रहा है. शहाबुद्दीन का गढ़ होने का मतलब इलाके के लोगों के लालू यादव और तेजस्वी यादव के समर्थक होने की गारंटी है. लेकिन ये सिवान का ही मामला नहीं है, शुरुआती पांचों पड़ावों के इर्द गिर्द मुस्लिम आबादी ही चुनावों में निर्णायक भूमिका में होती है. समाधान यात्रा पर निकलने से पहले एक और खास बात पर ध्यान दिया गया था. नीतीश कुमार ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ हुई बैठक से जेडीयू के मुस्लिम नेताओं को दूर रखा था.
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा में वैसे तो अफसरों का ही बोलबाला होता है, लेकिन कुछ नेता भी होते हैं. नेता से मतलब यहां मंत्रियों से ही है. नीतीश की समाधान यात्रा में बाकी मंत्री तो बदलते रहते हैं, लेकिन एक मंत्री को पहले पांचों पड़ावों में मौके पर मौजूद पाया गया है और वो मंत्री हैं, जमा खान.जमा खान चुनाव तो बीएसपी के टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने उनको जेडीयू का विधायक बना दिया और फिर अपनी सरकार में मंत्री भी बना लिया. नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटर तक अपनी पैठ बनाने के लिए जमा खान को ड्यूटी पर लगा रखा है.
गौरतलब है कि 2020 के चुनाव तक नीतीश कुमार भाजपा और आरजेडी दोनों को झांसे में रखे हुए थे. भाजपा की अपनी मजबूरी थी कि उसके पास बिहार में कायदे का कोई नेता नहीं था, और किसी भी सूरत में वो नीतीश कुमार को नाराज नहीं करना चाहती थी. लेकिन जिस बात का डर था, नीतीश कुमार ने तो वही कर दिया.
भाजपा में दोबारा जाने से पहले नीतीश कुमार ऐसी ही प्रेशर पॉलिटिक्स आरजेडी के खिलाफ अपनाये हुए थे, और एक दिन खेल भी कर ही दिया. लेकिन ये सब बार बार और लगातार तो चलता नहीं. अब नीतीश कुमार के पास भाजपा में जाने का ऑप्शन बचा भी नहीं है. अगर अपनी तरफ से नीतीश कुमार प्रयास भी करें तो भाजपा को कोई बहुत बड़ा स्कोप न दिखायी दे तो फिर से साथ आने की बहुत ही कम संभावना है.
जनाधार मजबूत होने और विधायकों की तादाद ज्यादा होने से आरजेडी नेतृत्व नीतीश कुमार पर हावी होने लगा है, फिर तो नीतीश कुमार के सामने ऐसे ही उपाय बचते हैं कि वो जैसे भी संभव हो अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करें और हर हाल में कुर्सी पर पकड़ बनाये रखें.नीतीश कुमार भी अपनी तरफ से अपने खिलाफ चल रही चीजों को न्यूट्रलाइज करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
तेजस्वी यादव को 2025 के लिए महागठबंधन का नेता घोषित करना अगर राहत की सांस लेने जैसा प्रयास रहा तो समाधान यात्रा के जरिये मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने की कोशिश लालू परिवार को दबाव में लेने के लिए ही तो लगती है.
नीतीश कुमार अपने सारे एक्शन प्लान काफी सोच समझ कर और भविष्य पर नजर रखते हुए बनाते रहे हैं. हो सकता है समाधान यात्रा में लोगों से दूरी दिखाने की भी ऐसी ही कोशिश रही हो. कहने को तो वो अफसरों तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन अगर कुछ लोग वहां मिलने के लिए आ गये तो मना तो करेंगे नहीं.
अगर नीतीश कुमार ऐसे प्लान नहीं किये होते तो उनकी सभाओं में मुस्लिम समुदाय की भी भीड़ नजर आती और तब लालू यादव के सीधे सीधे कान खड़े हो जाते. अभी तो वो विकास योजनाओं की समीक्षा के बहाने दौरा कर रहे हैं, और इस पर तो आरजेडी की तरफ से आपत्ति जताने का बहाना भी नहीं है.अब देखना यह हैं कि बिहार जहां का सियासती मोहौल हर मकर संक्रांति पर रंग बदलता है. अब इस मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा खाकर क्या रंग बदलता है?
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