महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत में ठाकरे परिवार (Thackeray Family ) की भूमिका दशकों से हैं. मराठी और महाराष्ट्र (Maharashtra) के नाम पर ही शिवसेना (Shivsena) का गठन भी किया गया था. बाल ठाकरे (Bala Saheb Thackeray) इस पार्टी के संस्थापक थे. ठाकरे परिवार की अपनी पार्टी तो थी लेकिन उनका कोई भी सदस्य चुनाव के मैदान में नहीं उतरा था. वह हमेशा पर्दे के पीछे से चेहरा हुआ करते थे, हालंकि उनके दबदबे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था. वक्त और हालात यूं ही बदलते रहे लेकिन ठाकरे परिवार की राजनीति उसी ढ़र्रे पर चलती रही. पार्टी की कमान बाल ठाकरे से उनके बेटे उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) तक आ पहुंची. शिवसेना का महाराष्ट्र में अच्छा खासा वर्चस्व भी कायम हो गया था और शिवसेना से ही 2 मुख्यमंत्री भी चुन लिए गए थे, लेकिन ठाकरे परिवार अब भी राजनीति के मैदान में जनता के सामने खुद के लिए नहीं पहुंचा था. सन 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections) के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए (Maharashtra Assembly Elections) और इसमें पहली बार ठाकरे परिवार से उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) चुनावी मैदान में उतरे. चुनाव शिवसेना के लिए बेहद अच्छा गुज़रा.
चुनाव से पहले और नतीजे आने के बाद तक किसी ने भी नहीं सोचा रहा होगा कि महाराष्ट्र में क्या सियासी खिचड़ी पकने जा रही है. शिवसेना और बीजेपी का बरसों बरस का साथ मुख्यमंत्री पद की वजह से अलग-थलग पड़ गया. सियासी उठापठक इस कद्र देखने को मिली की कई दिनों तक महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा होता रहा और आखिर में ठाकरे परिवार से पहले सदस्य़ और पार्टी के मुखिया...
महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत में ठाकरे परिवार (Thackeray Family ) की भूमिका दशकों से हैं. मराठी और महाराष्ट्र (Maharashtra) के नाम पर ही शिवसेना (Shivsena) का गठन भी किया गया था. बाल ठाकरे (Bala Saheb Thackeray) इस पार्टी के संस्थापक थे. ठाकरे परिवार की अपनी पार्टी तो थी लेकिन उनका कोई भी सदस्य चुनाव के मैदान में नहीं उतरा था. वह हमेशा पर्दे के पीछे से चेहरा हुआ करते थे, हालंकि उनके दबदबे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था. वक्त और हालात यूं ही बदलते रहे लेकिन ठाकरे परिवार की राजनीति उसी ढ़र्रे पर चलती रही. पार्टी की कमान बाल ठाकरे से उनके बेटे उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) तक आ पहुंची. शिवसेना का महाराष्ट्र में अच्छा खासा वर्चस्व भी कायम हो गया था और शिवसेना से ही 2 मुख्यमंत्री भी चुन लिए गए थे, लेकिन ठाकरे परिवार अब भी राजनीति के मैदान में जनता के सामने खुद के लिए नहीं पहुंचा था. सन 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections) के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए (Maharashtra Assembly Elections) और इसमें पहली बार ठाकरे परिवार से उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) चुनावी मैदान में उतरे. चुनाव शिवसेना के लिए बेहद अच्छा गुज़रा.
चुनाव से पहले और नतीजे आने के बाद तक किसी ने भी नहीं सोचा रहा होगा कि महाराष्ट्र में क्या सियासी खिचड़ी पकने जा रही है. शिवसेना और बीजेपी का बरसों बरस का साथ मुख्यमंत्री पद की वजह से अलग-थलग पड़ गया. सियासी उठापठक इस कद्र देखने को मिली की कई दिनों तक महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा होता रहा और आखिर में ठाकरे परिवार से पहले सदस्य़ और पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
इसके बाद से ही भाजपा और शिवसेना की दोस्ती कब दुश्मनी में बदल गई यह लोगों को मालूम ही नहीं चला. एक साथ विधानसभा चुनाव में लड़ने वाली पार्टी अब एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के वार से भी नहीं चूकती है. हाल ही में महाराष्ट्र के पालघर में एक मॅाब लिंचिंग की खबर पूरे देश में चली, जहां तीन साधुओं को भीड़ ने बुरी तरह से पीट-पीटकर मार डाला.
जैसे ही यह खबर फैली तो फौरन भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने उद्धव ठाकरे को कटघरे में खड़ा कर दिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उद्धव ठाकरे को फोन कर डाला और ग्रह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र सरकार से इस हिंसा की रिपोर्ट तलब कर ली. महाराष्ट्र के मुखिया उद्धव ठाकरे ने खुद मोर्चा संभाला और 110 लोगों को गिरफ्तार होने की जानकारी दी.
उद्धव ठाकरे जान चुके हैं कि भाजपा उनकी किसी भी गलती की फिराक में बैठी है और मौका पाते ही उनकी सरकार को घेरने को तैयार है. अब बारी उद्धव ठाकरे की थी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में भी इसी तरह की हिंसा सामने आयी तो फौरन ही उद्धव ठाकरे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को फोन घुमा दिया, ठीक वैसी ही बात कही जैसे योगी आदित्यनाथ ने उनसे कुछ दिनों पहले कही थी. या यू कहें कि उद्धव ठाकरे ने फौरन ही अपना बदला ले लिया.
महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के सबसे ज़्यादा केस सामने आए हैं और इन दिनों वहां की राजनीति भी अपने चरम सीमा पर है. भाजपा और शिवसेना दोनों ही मौका पाते ही एक दूसरे पर सियासी वार करने से नहीं चूकते हैं. महाराष्ट्र में राजनीतिक हलचल कुछ यूं भी तेज़ है कि उद्धव ठाकरे की सरकार को लगभग 6 महीने होने वाले हैं और अभी तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज उद्धव ठाकरे किसी भी सदन के सदस्य़ नहीं बने हैं. चुनाव आयोग नेे महाराष्ट्र में MLC चुनाव की घोषणा कर दी है. लेकिन ऐसा होने सेे पहले काफी सियासी ड्रामा हुआ है.
कोरोना वायरस और लॅाकडाउन के बीच सियासत का यह शह-मात का खेल बदस्तूर जारी है ऐसे में देखना भी दिलचस्प है कि महाराष्ट्र में अगले कुछ दिनों में क्या घटनाक्रम घटने वाला है, लेकिन इस सियासी लड़ाई में कोरोना वायरस को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.
ये भी पढ़ें -
बुलंदशहर साधु हत्याकांड: योगी आदित्यनाथ को घेरने की नाकाम कोशिश में उद्धव ठाकरे
Vadodara Ludo case: ये लूडो की हार पचती क्यों नहीं?
ddhav Thackeray को क्या इस्तीफा देना होगा? उनके सामने क्या विकल्प हैं
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.