वैसे तो हमारे देश में चुनाव प्रक्रिया में सुधार की काफी जरूरत है लेकिन इस क्रम में नीति आयोग एक अहम सुझाव दिया है. नीति आयोग 2024 से लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ करवाने का सुझाव दिया है. इसके अनुसार देश हमेशा 'प्रचार मोड' में होता है जिसके कारण शासन व्यवस्था में काफी व्यवधान होता है. लेकिन इसका ये भी कहना है कि इस प्रस्ताव को लागू करने से एक बार कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में कुछ कटौती या विस्तार भी करना पड़ सकता है.
इसके लिए नीति आयोग ने भारतीय चुनाव आयोग को इस पर गौर करने को कहा है और एकसाथ चुनावों का रोडमैप तैयार करने के लिए संबंधित पक्षकारों का एक कार्यसमूह गठित करने का सुझाव भी दिया है. नीति आयोग की मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, 'भारत में सभी चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और समकालिक तरीके से होने चाहिए ताकि शासन व्यवस्था में प्रचार मोड के कारण होने वाला व्यवधान कम से कम किया जा सके. हम 2024 के चुनाव से इस दिशा में काम शुरू कर सकते हैं.'
वैसे तो चुनाव हमारे लोकतंत्र का आधार हैं परन्तु यह भी सच है कि हमें बार-बार चुनावों से बचना चाहिए. हमारे देश में स्थिति यह है कि कोई भी साल ऐसा नहीं बीतता जब चुनावी माहौल न रहता हो. कुछ राज्य की विधानसभा चुनावों का दौर खत्म होते ही दूसरे राज्यों की चुनावों की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. तो सवाल उठता है कि क्या वाकई लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ संभव हैं?
राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी और प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं समर्थन
नीति आयोग के सुझाव से पहले राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ करवाने की वकालत कर चुके हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 25 जनवरी यानि मतदाता दिवस पर कहा था कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने से खर्च...
वैसे तो हमारे देश में चुनाव प्रक्रिया में सुधार की काफी जरूरत है लेकिन इस क्रम में नीति आयोग एक अहम सुझाव दिया है. नीति आयोग 2024 से लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ करवाने का सुझाव दिया है. इसके अनुसार देश हमेशा 'प्रचार मोड' में होता है जिसके कारण शासन व्यवस्था में काफी व्यवधान होता है. लेकिन इसका ये भी कहना है कि इस प्रस्ताव को लागू करने से एक बार कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में कुछ कटौती या विस्तार भी करना पड़ सकता है.
इसके लिए नीति आयोग ने भारतीय चुनाव आयोग को इस पर गौर करने को कहा है और एकसाथ चुनावों का रोडमैप तैयार करने के लिए संबंधित पक्षकारों का एक कार्यसमूह गठित करने का सुझाव भी दिया है. नीति आयोग की मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, 'भारत में सभी चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और समकालिक तरीके से होने चाहिए ताकि शासन व्यवस्था में प्रचार मोड के कारण होने वाला व्यवधान कम से कम किया जा सके. हम 2024 के चुनाव से इस दिशा में काम शुरू कर सकते हैं.'
वैसे तो चुनाव हमारे लोकतंत्र का आधार हैं परन्तु यह भी सच है कि हमें बार-बार चुनावों से बचना चाहिए. हमारे देश में स्थिति यह है कि कोई भी साल ऐसा नहीं बीतता जब चुनावी माहौल न रहता हो. कुछ राज्य की विधानसभा चुनावों का दौर खत्म होते ही दूसरे राज्यों की चुनावों की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. तो सवाल उठता है कि क्या वाकई लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ संभव हैं?
राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी और प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं समर्थन
नीति आयोग के सुझाव से पहले राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ करवाने की वकालत कर चुके हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 25 जनवरी यानि मतदाता दिवस पर कहा था कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने से खर्च और प्रबंधन से जुड़ी दिक्कतों को कम करने में मदद मिल सकती है. इसी तरह पिछले साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एकसाथ चुनाव करवाने की वकालत करते हुए कहा था, 'एकसाथ चुनाव से सभी को कुछ नुकसान होगा, हमें भी नुकसान होगा.' उन्होंने कहा था कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ होने चाहिए और इस पर सभी राजनीतिक दलों को साथ आना चाहिए और व्यापक बहस होनी चाहिए.
पहले भी एकसाथ चुनाव हो चुके हैं
हमारे देश में पहले भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ हो चुके हैं. लेकिन किसी विशेष कारणों से इसे बंद करना पड़ा था. चार लोकसभा और विधानसभा चुनाव लगातार साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एकसाथ हुए थे. लेकिन 1971 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर दी थी और तब से इसका सिलसिला टूट गया.
चुनावों में अरबों रूपये खर्च होते हैं
भारत में चुनावों को लोकतंत्र का पर्व कहा जाता है. चुनाव के चलते आचार संहिता लगती है और उस वक्त विकास के काम रूक जाते हैं. सरकार और चुनाव आयोग को चुनाव कराने में भारी मात्रा में पैसे खर्च करना पड़ता है. इसके अलावा राजनीतिक दलों और खुद प्रत्याशियों को भी करोड़ों रूपये खर्च करने पड़ते हैं.
* राष्ट्रीय खजाने से साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 3426 करोड़ रूपये खर्च किए गए, वहीं राजनीतिक दलों द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 26,000 करोड़ रूपये खर्च किए गए थे. वहीं साल 2009 के लोकसभा चुनाव में सरकारी खजाने से 1483 करोड़ रूपये का खर्च हुआ था.
* साल 1952 के चुनाव में प्रति मतदाता खर्च 60 पैसे थी जो साल 2009 में बढ़कर 12 रूपये पहुंच गई.
इससे क्या- क्या फायदे हो सकते हैं?
* चुनाव आयोग के अनुसार विधानसभाओं के चुनावों में लगभग 4500 करोड़ रूपये का खर्च बैठता है. अगर एक साथ चुनाव कराया जाए तो इस खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
* दोनों चुनावों को एक साथ कराने से सरकारें लोकलुभावन वादों के बजाय विकासोन्मुख वादे करेंगे.
* हर बार चुनाव प्रचार में केंद्र व राज्य सरकार के मंत्री चुनावों में व्यस्त होने के वजह से जो सरकारी काम बाधित होता है वो रुकेगा.
* सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी लगती है जिससे प्रशासनिक कार्य प्रभावित होती है उसपर अंकुश लगेगा.
* एक साथ लोकसभा व विधानसभा के चुनाव होने पर सरकारी मशीनरी की कार्य क्षमता बढ़ेगी तथा सामान्य लोगों को इससे फायदा होगा.
* एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक स्थिरता का दौर शुरू होगा जिससे विकास-कार्यों में तेजी आएगी.
लेकिन नीति आयोग का एकसाथ चुनावों का सुझाव इतना आसान भी नहीं. क्योंकि इसे तब तक अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता जब तक इसके लिए देश में राजनीतिक आम सहमति नहीं बनती, क्योंकि इसके लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन कराना होगा और संशोधन प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में पारित कराना होगा.
हमारे देश में पर्याप्त सुरक्षा बलों के अभाव को पूरा करना भी जरूरी होगा. जब कुछ राज्यों के चुनाव कराने में ही सुरक्षा बलों का कमी होता है तो लोकसभा और सारे राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर सुरक्षा संबंधी चुनौती काफी बड़ी होगी. लेकिन कुछ अच्छा पाने के लिए कुछ मेहनत की भी जरूरी होती है. ऐसे में यह बिलकुल उम्मीद की जा सकती है कि राजनीतिक आम सहमति बनेगी तो इन सारे परेशानियों का हल भी अपने आप निकल आएगा.
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