कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) से लेकर महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तक राष्ट्रीय अधिवेशन में कई नेताओं के भाषण में विपक्षी एकता पर जोर देखने को मिला है. कांग्रेस की तरफ से विपक्ष को जो प्रस्ताव दिया गया है, उसमें यूपीए के ही नये वर्जन की झलक मिलती है - लेकिन शर्तें पहले की ही तरह लागू हैं. बल्कि पहले वाले ही कंडीशन हैं, नये सिरे से घोषणा कर दी गयी है.
और अपनी तरफ से कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा में भी नया अपडेट पेश कर दिया है - कन्याकुमारी से कश्मीर तक की राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सफल यात्रा के बाद नयी पेशकश भी विपक्ष पर दबाव बढ़ाने की ही रणनीति लगती है.
जिस तरह से राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अपनी तपस्या का जिक्र किया, पहले ही संकेत मिल गये थे कि अगला एक्शन प्लान तैयार हो चुका है. राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा खत्म होने से ठीक पहले देश के लोगों के नाम एक संदेश जारी किया थी - और उसमें तपस्या का जिक्र किया था. बाद में भी कई बार राहुल गांधी अपनी यात्रा को तपस्या के तौर पर लोगों के बीच रखने की कोशिश कर चुके हैं.
कांग्रेस अधिवेशन खत्म होने के बाद पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यात्रा के अगले स्वरूप की रूपरेखा समझाने की कोशिश की. जयराम रमेश के मुताबिक, 'हो सकता है ये यात्रा पासीघाट से शुरू हो और इसका समापन पोरबंदर में हो... इसे लेकर काफी उत्साह है. निजी तौर पर मेरा मानना है कि इसकी जरूरत भी है.'
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कदम कदम पर लोगों को अपडेट देते रहे जयराम रमेश का कहना रहा, 'पूरब से पश्चिम के बीच निकलने वाली यात्रा का प्रारूप... दक्षिण से उत्तर की ओर निकाली जाने वाली यात्रा से अलग होता है... शायद ये यात्रा उतने व्यापक स्तर पर न हो.'
भारत जोड़ो यात्रा के शुरू होने से...
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) से लेकर महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तक राष्ट्रीय अधिवेशन में कई नेताओं के भाषण में विपक्षी एकता पर जोर देखने को मिला है. कांग्रेस की तरफ से विपक्ष को जो प्रस्ताव दिया गया है, उसमें यूपीए के ही नये वर्जन की झलक मिलती है - लेकिन शर्तें पहले की ही तरह लागू हैं. बल्कि पहले वाले ही कंडीशन हैं, नये सिरे से घोषणा कर दी गयी है.
और अपनी तरफ से कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा में भी नया अपडेट पेश कर दिया है - कन्याकुमारी से कश्मीर तक की राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सफल यात्रा के बाद नयी पेशकश भी विपक्ष पर दबाव बढ़ाने की ही रणनीति लगती है.
जिस तरह से राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अपनी तपस्या का जिक्र किया, पहले ही संकेत मिल गये थे कि अगला एक्शन प्लान तैयार हो चुका है. राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा खत्म होने से ठीक पहले देश के लोगों के नाम एक संदेश जारी किया थी - और उसमें तपस्या का जिक्र किया था. बाद में भी कई बार राहुल गांधी अपनी यात्रा को तपस्या के तौर पर लोगों के बीच रखने की कोशिश कर चुके हैं.
कांग्रेस अधिवेशन खत्म होने के बाद पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यात्रा के अगले स्वरूप की रूपरेखा समझाने की कोशिश की. जयराम रमेश के मुताबिक, 'हो सकता है ये यात्रा पासीघाट से शुरू हो और इसका समापन पोरबंदर में हो... इसे लेकर काफी उत्साह है. निजी तौर पर मेरा मानना है कि इसकी जरूरत भी है.'
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कदम कदम पर लोगों को अपडेट देते रहे जयराम रमेश का कहना रहा, 'पूरब से पश्चिम के बीच निकलने वाली यात्रा का प्रारूप... दक्षिण से उत्तर की ओर निकाली जाने वाली यात्रा से अलग होता है... शायद ये यात्रा उतने व्यापक स्तर पर न हो.'
भारत जोड़ो यात्रा के शुरू होने से लेकर समापन तक कांग्रेस ने विपक्ष (Opposition) को साथ लेने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. कुछ तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी की निजी वजहों से, और कुछ विपक्षी नेताओं के राहुल गांधी से परहेज के कारण.
निश्चित तौर पर डीएमके, एनसीपी, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, आरएलडी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों ने यात्रा में शामिल होकर अपना समर्थन जताया, लेकिन यूपीए के साथी समझे जाने वाले तेजस्वी यादव और ममता बनर्जी तो नेटवर्क से बाहर ही रहे.
अरविंद केजरीवाल और के. चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं से राहुल गांधी ने खुद दूरी बना ली. समापन समारोह के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से भेजा गया न्योता इस बात का सबूत है.
शुरुआती दौर में ही भारत जोड़ो यात्रा के केरल में दाखिल होने के मौके पर लेफ्ट के कई नेताओं ने भी कड़ी आपत्ति जतायी थी, लेकिन फिर वे खामोश भी हो गये. दिल्ली से आगे बढ़ने से पहले जब कांग्रेस की तरफ से अखिलेश यादव सहित कुछ नेताओं को न्योता भेजा गया तो उनकी तरफ से रिएक्शन आने लगे.
अखिलेश यादव ने तो यही सवाल उठा दिया कि बीजेपी से मुकाबला कौन करेगा? अखिलेश यादव असल में यही बताने की कोशिश कर रहे थे कि कांग्रेस नेतृत्व को वो बीजेपी से मुकाबले के काबिल नहीं मानते.
अखिलेश यादव के सवालों का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी का नाम लेकर उसकी हदें समझाने लगे. बताने लगे कि समाजवादी पार्टी को यूपी से बाहर कोई नहीं पूछता. न केरल या कर्नाटक में, न ही बिहार में - और फिर ये भी बताया कि कांग्रेस के पास ही ये क्षमता है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से मुकाबला कर सकती है.
एक बार फिर कांग्रेस ने विपक्ष के सामने शर्तों के साथ ही साथ आने का प्रस्ताव रखा है - और भारत जोड़ो यात्रा का अगला चरण शुरू करने का मकसद भी विपक्ष पर दबदबा कायम रखने की कोशिश लगती है.
विपक्ष के लिए कांग्रेस का प्रस्ताव
बीजेपी के 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के मुकाबले कांग्रेस का भी नया स्लोगन आ गया है - 'सेवा, संघर्ष, बलिदान सबसे पहले हिंदुस्तान'
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि हर कांग्रेसी ही नहीं, बल्कि हर देशवासी को आगे बढ़ कर ये नारा लगाना होगा - क्योंकि आज देश को इसकी जरूरत है, क्योंकि देश कठिन दौर से गुजर रहा है.
जैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस नेतृत्व को बार बार आगाह कर रहे हैं, प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी विपक्ष को उसी अंदाज में जवाब दिया है, सिर्फ एक साल का वक्त है. रायपुर में कांग्रेस अधिवेशन में प्रियंका गांधी ने कहा कि जनता को कांग्रेस से सबसे ज्यादा उम्मीद है.
और विपक्षी दलों के नेताओं से सलाहभरी अपील की, 'हम सब को एकजुट हो कर लड़ना होगा... विपक्षी दल एक साथ आयें... हमें एक साथ होना चाहिए. साथ लड़ने की जरूरत है.'
प्रियंका गांधी से पहले मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी विपक्षी दलों से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी. मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना रहा, '2023 और 2024 में हमारा एजेंडा साफ है... हम देश के मुद्दों पर संघर्ष भी करेंगे... कुर्बानी भी देंगे.'
कांग्रेस अध्यक्ष ने विपक्ष को कांग्रेस की तरफ से की जा रही पेशकश को भी अपने तरीके से समझाने की कोशिश की. बोले, '2004 से 2014 के बीच यूपीए गठबंधन में समान विचारधारा वाले कई दल हमारे सहयोगी थे... दस साल हमारी सरकार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को सामने रख कर चली... आज फिर से उसी गठबंधन को और मजबूती देने की जरूरत है.
मतलब, मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि विपक्ष यूपीए 3 के लिए मन बना ले और कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहे. और कहा है, 'वे तमाम दल जो बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ हैं, हम उनको भी अपने साथ लेने को तैयार हैं.'
निश्चित तौर पर केंद्र में 10 साल तक कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार चली थी, लेकिन यूपीए कोई चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं था. यूपीए भी महाराष्ट्र के महाविकास आघाड़ी की तरह खड़ा हुआ था, सरकार बनाने के लिए. सत्ता के लिए जिन दलों में सहमति बनी थी, वे साथ आने को तैयार हो गये.
पांच साल सरकार चल गयी तो सत्ताधारी गठबंधन चुनाव में भी साथ उतर गया. ये स्वाभाविक भी है. लेकिन अभी की स्थिति तो बिलकुल ही अलग है. 2004 में सरकार में शामिल होने के लिए ही विपक्षी दलों के नेताओं ने कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार किया था, वो भी इसलिए क्योंकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर आयी थी.
अभी जो स्थिति है, किसी को भी भरोसा नहीं है कि चुनाव बाद कांग्रेस अभी की स्थिति में भी रह पाएगी या नहीं?
विपक्षी खेमे के कुछ नेताओं को छोड़ दें तो वे कांग्रेस के साथ आने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनकी भी अपनी शर्तें हैं. जहां कांग्रेस मजबूत है, ड्राइविंग सीट पर बनी रही, लेकिन जहां ऐसी स्थिति नहीं है, क्षेत्रीय दलों के लिए ड्राइविंग सीट छोड़ दे - जब तक कांग्रेस ये शर्त नहीं मानती, उसकी परवाह भला किसे हो, और क्यों?
प्रधानमंत्री तो राहुल ही बनेंगे: कांग्रेस अधिवेशन छत्तीसगढ़ में हो रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी राहुल गांधी की नजरों में उतनी ही अहमियत रखते हैं, जितना अशोक गहलोत. राजस्थान के मामले में जो रवैया अशोक गहलोत ने अख्तियार कर रखा है, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल का भी वही हाल है. जैसे राजस्थान में सचिन पायलट के लिए अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं हुए, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने टीएस सिंह देव से किया गया राहुल गांधी का वादा नहीं पूरा होने दिया.
जैसे अशोक गहलोत बार बार राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने की मांग करते रहे, इस बार भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी का नाम उछाल दिया है. कहते हैं, देश के हालात बेहद खराब हैं... सभी की नजरें राहुल गांधी पर हैं.
जिन मुद्दों को राहुल गांधी उठाते रहे हैं, उनको सामने रखते हुए भूपेश बघेल कहते हैं, ऐसे वक्त जब राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा करते हैं... आज पूरा देश राहुल गांधी की ओर उम्मीदों भरी निगाह से देख रहा है.
लगे हाथ ये भी दावा कर डालते हैं कि छत्तीसगढ़ में सबसे कम बेरोजगारी है क्योंकि उनकी सरकार राहुल गांधी के विजन पर काम कर रही है. राहुल गांधी ने जो लोगों से वादा किया था, सरकार पूरा करने में सफल रही है.
और फिर अपना सबसे बड़ा दांव चल देते हैं, 'कांग्रेस है तो विश्वास है... हम सबकी इच्छा है कि राहुल जी नेतृत्व करें - और 2024 में प्रधानमंत्री बनें.'
मुकाबले का सीन ही कहां है
हाल की एक चुनावी रैली में मल्लिकार्जुन खड़गे का भी दावा रहा कि 2024 में कांग्रेस के नेतृत्व में ही विपक्ष की सरकार बनेगी - और अब उसी चीज पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी मुहर लगा दी गयी है.
लेकिन पेंच वहीं फंसा है. कांग्रेस उन राज्यों में भी ड्राइविंग सीट छोड़ने को तैयार नहीं है जहां बस जैसे तैसे सांस ले पा रही है. 2020 में बिहार में 70 सीटों पर चुनाव लड़ कर कांग्रेस 19 विधायक ही जुटा पायी, तो आरजेडी के नेता आक्रामक हो गये थे. 2017 में जब 100 से ज्यादा सीटें देने के बाद भी कांग्रेस के सात ही उम्मीदवार जीत पाये तो अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन ही तोड़ लिया था.
आज की तारीख में यूपी में कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक हैं, लेकिन न तो वो अखिलेश यादव के लिए ड्राइविंग सीट छोड़ने को तैयार है, न ही बिहार में अगली बार समझौते के आसार समझ में आ रहे हैं - कांग्रेस खुद तो डूबेगी है, क्षेत्रीय दलों को भी डुबाएगी अगर वे उसकी शर्तें मानने को राजी नहीं हुए.
और जिन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा रही है, वहां तो उसकी कोई ऐसी शर्त समझ में नहीं आती. महाराष्ट्र की सरकार तो जाती रही, लेकिन झारखंड, तमिलनाडु और बिहार में अब भी कांग्रेस सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है - लेकिन जिन राज्यों में विपक्षी खेमे की पार्टियों की सरकारें हैं, वे कांग्रेस से पहले से ही दूरी बना कर चल रहे हैं.
कांग्रेस की तरफ से विपक्ष को जो प्रस्ताव दिया गया है, उसमें ये भी चेतावनी दी गयी है कि अगर तीसरा मोर्चा तो बीजेपी को ही उसका फायदा मिलेगा. अगर कांग्रेस सोच रही है कि ऐसे धमका कर वो विपक्ष पर दबदबा कायम कर लेगी, तो बहुत बड़ी गलती कर रही है - और इस रस्साकशी में कांग्रेस अपना सब कुछ दांव पर लगा दे रही है.
पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, केरल, दिल्ली और पंजाब में लोक सभा की कुल 98 सीटें हैं. ये वे राज्य हैं जहां ममता बनर्जी, केसीआर, पी. विजयन और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता मजबूत स्थिति में हैं क्योंकि उनकी ही सरकारें हैं.
ये नेता अभी से कांग्रेस को भाव नहीं दे रहे है, और हैदराबाद में केसीआर की रैली में शामिल होकर अपना स्टैंड भी साफ कर चुके हैं. ध्यान रहे, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इसी मोर्चे का हिस्सा हैं.
और आंध्र प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्य हैं जिनके मुख्यमंत्री कहने को तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों से दूरी बना कर चलते हैं, लेकिन ज्यादा दूरी कांग्रेस से ही महसूस होती है. दोनों राज्यों से लोक सभा के 46 सांसद चुने जाते हैं.
ऐसी करीब डेढ़ सौ सीटें हो जाती हैं जिनसे दूर होने का जोखिम कांग्रेस उठाने जा रही है, क्योंकि वहां रसूख रखने वाले सारे ही क्षेत्रीय नेता कांग्रेस का नेतृत्व पहले ही ठुकरा चुके हैं - ये तो मान सकते हैं कि कांग्रेस को फिलहाल पॉलिटिक्स समझ में नहीं आ रही है, लेकिन मैथ्स भी समझ में न आये तो क्या कह सकते हैं?
इन्हें भी पढ़ें :
राहुल गांधी को लेकर सोनिया गांधी अब भी आश्वस्त क्यों नहीं हो पा रही हैं?
तेजस्वी यादव कांग्रेस को बिहार में खतरा क्यों मानने लगे हैं?
राहुल गांधी की नरेंद्र मोदी पर निगाहें, अरविंद केजरीवाल पर निशाना - आपने गौर किया?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.