पवन खेड़ा (Pawan Kheda) को फ्लाइट से उतारने से लेकर असम पुलिस के गिरफ्तार कर लेने तक - कांग्रेस नेताओं ने बाहर चाहे जितना भी बवाल किया हो, सुप्रीम कोर्ट के भीतर तो वो एक आम नागरिक की ही तरह इंसाफ की भीख मांग रहे थे.
और वो आम नागरिक भी तब तक गुमनाम ही नजर आया जब तक कि सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया नहीं था कि पवन खेड़ा कौन हैं - और उनकी बातों से वो कितना इत्तेफाक रखते हैं.
अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलील के साथ ही एक डिस्क्लेमर भी पेश किया था - पवन खेड़ा ने क्या स्टेटमेंट दिया है... मैं इसका समर्थन नहीं करता. साथ ही, सिंघवी ने एक झटके में पूरा मामला भी ब्रीफ कर दिया. पवन खेड़ा 11 बजे फ्लाइट में बैठ गये थे. फिर अचानक फ्लाइट से उतार दिया गया. क्योंकि असम, वाराणसी और लखनऊ में उनके बयान को लेकर शिकायतें दर्ज करायी गयी हैं.
संक्षेप में मामला सुन लेने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का सवाल था - "ये पवन खेड़ा कौन हैं?"
फिर अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस को बताया कि वो कांग्रेस के प्रवक्ता हैं और लगातार प्रेस से बातचीत करते रहते हैं. ये दोहराते हुए कि वो उनके बयान का समर्थन नहीं करते, जिसे लेकर पुलिस ने हिरासत में लिया है, अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज किये गये हैं.
असम पुलिस की ओर से पेश वकील ने कहा सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पवन खेड़ा ने देश की एकता के साथ खिलवाड़ किया है. असल में पवन खेड़ा के खिलाफ ये पुलिस कार्रवाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता के नाम को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में एक टिप्पणी को लेकर हुई है. पवन खेड़ा ने मोदी के नाम के साथ उनके पिता के नाम में दामोदर की जगह गौतम बोला था. ये राजनीतिक बयान पवन खेड़ा ने अदानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अदानी पर कांग्रेस के स्टैंड को प्रकट करने के लिए किया था.
करीब आधे घंटे की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पवन खेड़ा के लिए तात्कालिक तौर पर सबसे बड़ी राहत दे दी - अंतरिम जमानत. ये ठीक है कि पवन खेड़ा को...
पवन खेड़ा (Pawan Kheda) को फ्लाइट से उतारने से लेकर असम पुलिस के गिरफ्तार कर लेने तक - कांग्रेस नेताओं ने बाहर चाहे जितना भी बवाल किया हो, सुप्रीम कोर्ट के भीतर तो वो एक आम नागरिक की ही तरह इंसाफ की भीख मांग रहे थे.
और वो आम नागरिक भी तब तक गुमनाम ही नजर आया जब तक कि सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया नहीं था कि पवन खेड़ा कौन हैं - और उनकी बातों से वो कितना इत्तेफाक रखते हैं.
अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलील के साथ ही एक डिस्क्लेमर भी पेश किया था - पवन खेड़ा ने क्या स्टेटमेंट दिया है... मैं इसका समर्थन नहीं करता. साथ ही, सिंघवी ने एक झटके में पूरा मामला भी ब्रीफ कर दिया. पवन खेड़ा 11 बजे फ्लाइट में बैठ गये थे. फिर अचानक फ्लाइट से उतार दिया गया. क्योंकि असम, वाराणसी और लखनऊ में उनके बयान को लेकर शिकायतें दर्ज करायी गयी हैं.
संक्षेप में मामला सुन लेने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का सवाल था - "ये पवन खेड़ा कौन हैं?"
फिर अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस को बताया कि वो कांग्रेस के प्रवक्ता हैं और लगातार प्रेस से बातचीत करते रहते हैं. ये दोहराते हुए कि वो उनके बयान का समर्थन नहीं करते, जिसे लेकर पुलिस ने हिरासत में लिया है, अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज किये गये हैं.
असम पुलिस की ओर से पेश वकील ने कहा सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पवन खेड़ा ने देश की एकता के साथ खिलवाड़ किया है. असल में पवन खेड़ा के खिलाफ ये पुलिस कार्रवाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता के नाम को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में एक टिप्पणी को लेकर हुई है. पवन खेड़ा ने मोदी के नाम के साथ उनके पिता के नाम में दामोदर की जगह गौतम बोला था. ये राजनीतिक बयान पवन खेड़ा ने अदानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अदानी पर कांग्रेस के स्टैंड को प्रकट करने के लिए किया था.
करीब आधे घंटे की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पवन खेड़ा के लिए तात्कालिक तौर पर सबसे बड़ी राहत दे दी - अंतरिम जमानत. ये ठीक है कि पवन खेड़ा को नियमित जमानत के लिए कोर्ट के फैसले का इंतजार करना होगा, लेकिन ये तो है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनको असम पुलिस की गिरफ्त से निजात दिला दी है. ये भी ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने पवन खेड़ा के खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द नहीं किया है, लेकिन सभी को एक जगह कर केस चलाये जाने का इंतजाम तो कर ही दिया है - ये राहत कम है क्या?
अपने पार्टी का नेता होने के नाते ही नहीं, अभी एक बात ये भी समझ में आ रही है कि कांग्रेस भी फिलहाल अंदर से पवन खेड़ा जैसा ही महसूस कर रही है. कांग्रेस के या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के ऐसा महसूस करने की वजह भी मिलती जुलती ही है - और वो है विपक्षी खेमे के नेताओं का लगतार सपोर्ट मिलना.
जैसे पवन खेड़ा को अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द ने होने से जूझना है, कांग्रेस को भी अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेताओं से कदम कदम पर जूझते रहना है - लेकिन नीतीश कुमार से लेकर शरद पवार तक जिस तरीके से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने लगे हैं, बहुत बड़ी राहत वाली बात है.
देखा जाये तो नगालैंड पहुंच कर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस की तरफ से अब तक का सबसे बड़ा दावा करने की हिम्मत भी तो ऐसे ही माहौल की वजह से आयी है - और उदयपुर शिविर के बाद रायपुर में होने जा रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कुछ और भी फैसले लिये जाने की अपेक्षा है.
उदयपुर शिविर में ही एक लंबी यात्रा निकालने का फैसला हुआ था. और भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी का आत्मविश्वास तो बढ़ा ही है - देखना है रायपुर में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन (Congress Plenary Session) के मंच से क्या ऐलान करते हैं. संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐलान-ए-जंग तो वो पहले ही कर चुके हैं.
राहुल गांधी के प्रति विपक्ष का मिजाज तो बदल रहा है
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नगालैंड में सीधे सीधे तो नहीं कहा है, लेकिन एक तरीके से प्रधानमंत्री पद पर पार्टी का दावा तो पेश कर ही दिया है. मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी असल में अपने नेता राहुल गांधी की बातों को ही आगे बढ़ाया है - वे बातें जिसमें क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी सुनने को मिलती रही है.
हाल ही में पटना में सीपीआई-एमएल लिबरेशन की रैली में नीतीश कुमार ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से राहुल गांधी तक अपना मैसेज पहुंचाने को कहा था. नीतीश कुमार का कहना था कि वो चाहते हैं कि कांग्रेस आगे आये और विपक्ष एक साथ मिल कर 2024 में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करे.
नीतीश कुमार ने कहा था कि उनके पास विपक्षी दलों के नेताओं के फोन आ रहे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी वैसी ही बात की है कि विपक्षी दलों से 2024 की रणनीति को लेकर कांग्रेस की बातचीत चल रही है. नीतीश कुमार ने पहले भी कांग्रेस विधायकों से एक मीटिंग के दौरान कहा था कि वो अपने नेतृत्व तक उनका मैसेज पहुंचा दें.
विपक्ष को एकजुट करने का मकसद बताते हुए नीतीश कुमार बार बार एक ही बात साफ करने की कोशिश करते हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं. और अलग फोरम से कांग्रेस नेतृत्व तक वो अपना यही मैसेज पहुंचाने की गुजारिश कर रहे हैं.
असल में विपक्ष को एकजुट करने की पहल के तहत विपक्ष के कई नेताओं से मिलने के बाद नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी. मिलने के लिए वो लालू यादव के साथ गये थे. असल में लालू यादव का साथ होना नीतीश कुमार के लिए सोनिया गांधी से मुलाकात की गारंटी जैसा है.
लेकिन उसके बाद से नीतीश कुमार को कोई जवाब नहीं आया, जिसका अब तक उनको इंतजार है. मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी अध्यक्ष बनने से पहले ही अपनी तरफ से नीतीश कुमार को आश्वस्त करने की कोशिश की थी, लेकिन वो भी नेताओं के चुनावी रैलियों के आश्वासन जैसा ही लगता है.
अच्छी बात ये रही कि सलमान खुर्शीद ने अपनी तरफ से नीतीश कुमार को ये कहते हुए भरोसा दिलाने की कोशिश की कि कांग्रेस भी करीब करीब वैसा ही सोच रही है, जैसा उनके मन में चल रहा है - और वहां मौजूद तेजस्वी यादव की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा था कि मुश्किल ये है कि 'आई लव यू' पहले बोले तो बोले कौन?
और अब शरद पवार की तरफ से कांग्रेस के पक्ष में एक बार फिर बड़ी बात बोल दी गयी है, ‘कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है, उन्हें नेतृत्व करने दें... हम कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं.’
ऐसी बात तो शरद पवार ने पहले भी कही थी, जब ममता बनर्जी बंगाल चुनाव जीतने के बाद विपक्षी एकता की कोशिशों में लगी थीं. लेकिन ममता बनर्जी ऐसा कांग्रेस को किनारे रख कर रही थीं - और ऐसा भी नहीं कि उन बैठकों में कोई भी शामिल नहीं हो रहा था. खुद शरद पवार भी बैठकों में शामिल और ममता बनर्जी की कोशिशों से सहमत देखे गये थे.
लेकिन फिर एक दिन मीडिया के सामने आकर बोल दिया कि कांग्रेस को शामिल किये बगैर विपक्ष के एकजुट होने का कोई मतलब ही नहीं है - और उस बात का असर ये हुआ कि ममता के प्रयास तो थम ही गये, निराश होकर ममता बनर्जी ने कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों से दूरी बना ली.
वैसे राहुल गांधी ने एक बार फिर ममता बनर्जी को चिढ़ाने वाला ही काम किया है. मेघालय में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तृणमूल कांग्रेस को भी कांग्रेस के लिए बीजेपी जैसा ही करार दिया है.
हो सकता है राहुल गांधी को लगता हो कि जिस तरह भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वो अखिलेश यादव को खरी खोटी सुनाये थे, और वो चुप से हो गये, हो सकता है ममता बनर्जी भी ऐसा ही करें. लेकिन राहुल गांधी को ये नहीं भूलना चाहिये कि ममता बनर्जी और अखिलेश यादव में बुनियादी फर्क है.
ये भी मान लेते हैं कि तृणमूल कांग्रेस की पहुंच भी समाजवादी पार्टी से ज्यादा नहीं है, लेकिन ममता बनर्जी पारिवारिक विरासत के भरोसे राजनीति में नहीं आयी हैं. ममता बनर्जी का लंबा राजनीतिक संघर्ष रहा है - और अभी दो साल पहले ही ममता बनर्जी ने मोदी-शाह की ताकतवर जोड़ी से जूझते हुए पश्चिम बंगाल चुनाव में अपनी पार्टी को जीत दिलायी है. अखिलेश यादव ऐसे दो दो मौके पूरी तरह गवां बैठे हैं.
शरद पवार से पहले उद्धव ठाकरे भी राहुल गांधी के नेतृत्व में आस्था जता चुके हैं. करीब करीब वैसे ही जैसे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. दोनों में अभी तो फर्क यही है कि उद्धव ठाकरे पार्टी और सत्ता दोनों गवां चुके हैं, और एमके स्टालिन मुख्यमंत्री बने हुए हैं, हालांकि, डीएमके में उनके सामने में चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं.
संजय राउत तो कई बार कह ही चुके हैं, सामना के जरिये उद्धव ठाकरे का पक्ष भी सामने आया है. उद्धव ठाकरे का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता में परिपक्वता आयी है. उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी और गौतम अदानी को लेकर संसद में उठाये गये राहुल गांधी के सवालों के लिए सैल्यूट वाले अंदाज में तारीफ की थी - और ये भी कहा था कि राहुल गांधी के सवालों का मोदी जवाब नहीं दे पाये.
शरद पवार की तरह उद्धव ठाकरे का कहना है कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता संभव नहीं है, और वो 2024 के आम चुनाव को लेकर चर्चा किये जाने पर जोर दे रहे हैं - उद्धव ठाकरे का भी कहना है कि कांग्रेस के पहल करने में कोई दिक्कत नहीं है.
कांग्रेस या राहुल गांधी के लिए ऐसी बातें बहुत मायने रखती हैं. कहने को तो ये भी कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय राजनीति में शरद पवार, नीतीश कुमार या उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं का प्रभाव ही कितना है, जो बहुत मायने रखता हो.
क्योंकि ये तीनों ही नेता अरविंद केजरीवाल जैसी उभरती ताकत और ममता बनर्जी जैसे प्रभावी तो नहीं ही हैं. फिर भी कांग्रेस नेतृत्व के लिए ये बड़े संतोष की बात है कि विपक्षी खेमे के ऐसे नेताओं का खुला सपोर्ट तो मिलने ही लगा है - और कुछ न सही, ऐसा होने से कांग्रेस के पक्ष में एक माहौल तो बन ही रहा है.
ये बढ़ते हौसले का सबूत नहीं तो क्या है
मल्लिकार्जुन खड़गे ने 2024 के आम चुनाव को लेकर वैसा ही दावा किया है, जैसा 2019 को लेकर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया था. लहजे में थोड़ा फर्क हो सकता है. वैसे भी मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए सोनिया गांधी वाले लहजे में कांग्रेस को पेश करना मुश्किल तो है ही.
नगालैंड के चुमौकेदिमा में एक चुनावी रैली में मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि 2024 में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष की सरकार बनेगी. 2019 से पहले सोनिया गांधी का कहना था कि कांग्रेस बीजेपी को सरकार बनाने ही नहीं देगी. चुनावों के दौरान भी दोहराया था कि वाजपेयी भी अपने जमाने में अजेय माने जाते थे, लेकिन नतीजे आये तो मालूम हुआ कि राहुल गांधी भी अपनी अमेठी सीट गवां चुके हैं.
प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना रहा, 'मोदी अक्सर कहते हैं कि वो अकेले इंसान हैं, जो देश चला सकते हैं... कोई लोकतांत्रिक व्यक्ति ऐसा नहीं कह सकता... आपको ये याद रखना चाहिये कि आप लोकतंत्र में हैं... आप तानाशाह नहीं हैं... आपको लोगों ने चुना है - और आपको चुनने वाले लोग 2024 में आपको सबक सिखाएंगे.'
मल्लिकार्जुन खड़गे का भाषण सुन कर लोग जो भी सोंचे, लेकिन ये भी कम तो नहीं कि कांग्रेस का अध्यक्ष सरेआम दावा करने लगा है. पहले तो कांग्रेस की तरफ से सिर्फ मोदी और बीजेपी की बुराइयों की ही बातें होती रही हैं - लेकिन अब मल्लिकार्जुन खड़गे को ये भी समझाना होगा कि कांग्रेस सरकार ऐसा क्या देने वाली है जो लोग 2024 में मोदी और बीजेपी को सबक सिखाएंगे?
ऐसा दावा करके मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये भी साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस अपना दावा नहीं छोड़ने वाली है. कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाने के दावे का मतलब तो यही हुआ कि राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगे - लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि राहुल गांधी को सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेताओं से भी मुकाबला करना है.
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