कांग्रेस नेताओं को नये साल में सबसे पहले अगर किसी चीज का इंतजार है तो वो है - एक अदद पूर्णकालिक अध्यक्ष (Congress President) की. सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले G-23 नेताओं के हिसाब से ऐसा स्थायी अध्यक्ष जो फील्ड में काम करता हुआ भी नजर आये.
अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेताओं की तरफ से ऐसी कोई शर्त नहीं है, बल्कि वे तो चाहते हैं जल्द से जल्द राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठ जायें - बाकी चीजें तो चलती ही रहेंगी. ये नेता जानते हैं कि देश के राजनीतिक हालात तो बदलने से रहे, फिर क्या फर्क पड़ता है कि कांग्रेस अध्यक्ष काम करता हुआ नजर आया चाहे मत आये. कुछ एक्स्ट्रा कर लेने से भी क्या होगा. बिहार चुनाव में जितनी सीटें मिलनी थीं, मिली ही. कुछ करने पर भी उससे ज्यादा नहीं मिल पातीं. पश्चिम बंगाल में चुनाव होने जा रहे हैं, वहां भी जितनी किस्मत में होंगी मिलेंगी ही. आखिर समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को मिलता ही क्या है - और अगर ऐसा वैसा कुछ नहीं होने वाला तो एक्स्ट्रा काम करने से कौन सा फर्क पड़ने वाला है.
राहुल गांधी भी समझ गये हैं. वो चाहे जैसे भी रहें. काम करते हुए दिखें या फिर कभी भी छुट्टी चले जायें, कहीं कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस का काम उनके बगैर नहीं चलने वाला है - चार लोग मिल कर चाहे जितना भी शोर मचा लें, बाकी कोई उनका साथ देने वाला नहीं है.
राहुल गांधी को लेकर एक बार फिर खबरें आने लगी हैं कि वो दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बनने जा रहे हैं - क्योंकि ऐसी चीजों में उनकी जरा भी दिलचस्पी नहीं है. हालांकि, कांग्रेस में प्लान बी की भी तैयारी साथ ही साथ चल रही है, अगर राहुल गांधी अध्यक्ष बनने से इंकार कर दें तो पार्टी चलाने के इंतजाम क्या हों.
मुद्दे की बात ये है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहते ये तो ठीक है, लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है? क्या प्रधानमंत्री पद को...
कांग्रेस नेताओं को नये साल में सबसे पहले अगर किसी चीज का इंतजार है तो वो है - एक अदद पूर्णकालिक अध्यक्ष (Congress President) की. सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले G-23 नेताओं के हिसाब से ऐसा स्थायी अध्यक्ष जो फील्ड में काम करता हुआ भी नजर आये.
अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेताओं की तरफ से ऐसी कोई शर्त नहीं है, बल्कि वे तो चाहते हैं जल्द से जल्द राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठ जायें - बाकी चीजें तो चलती ही रहेंगी. ये नेता जानते हैं कि देश के राजनीतिक हालात तो बदलने से रहे, फिर क्या फर्क पड़ता है कि कांग्रेस अध्यक्ष काम करता हुआ नजर आया चाहे मत आये. कुछ एक्स्ट्रा कर लेने से भी क्या होगा. बिहार चुनाव में जितनी सीटें मिलनी थीं, मिली ही. कुछ करने पर भी उससे ज्यादा नहीं मिल पातीं. पश्चिम बंगाल में चुनाव होने जा रहे हैं, वहां भी जितनी किस्मत में होंगी मिलेंगी ही. आखिर समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को मिलता ही क्या है - और अगर ऐसा वैसा कुछ नहीं होने वाला तो एक्स्ट्रा काम करने से कौन सा फर्क पड़ने वाला है.
राहुल गांधी भी समझ गये हैं. वो चाहे जैसे भी रहें. काम करते हुए दिखें या फिर कभी भी छुट्टी चले जायें, कहीं कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस का काम उनके बगैर नहीं चलने वाला है - चार लोग मिल कर चाहे जितना भी शोर मचा लें, बाकी कोई उनका साथ देने वाला नहीं है.
राहुल गांधी को लेकर एक बार फिर खबरें आने लगी हैं कि वो दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बनने जा रहे हैं - क्योंकि ऐसी चीजों में उनकी जरा भी दिलचस्पी नहीं है. हालांकि, कांग्रेस में प्लान बी की भी तैयारी साथ ही साथ चल रही है, अगर राहुल गांधी अध्यक्ष बनने से इंकार कर दें तो पार्टी चलाने के इंतजाम क्या हों.
मुद्दे की बात ये है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहते ये तो ठीक है, लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है? क्या प्रधानमंत्री पद को लेकर भी राहुल गांधी के मन में वैसे ही विचार हैं जैसे कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर हैं - अगर राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद (PM Post) को लेकर नये सिरे से अपडेट दे दें तो कांग्रेस के सामने की ज्यादातर चुनौतियां अपनेआप खत्म हो जाएंगी.
कांग्रेस अध्यक्ष या प्रधानमंत्री पद?
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि कांग्रेस का अगला राष्ट्रीय अधिवेशन राजस्थान में हो सकता है. सूत्रों के हवाले से आई खबर बताती है कि कांग्रेस राष्ट्रीय अधिवेशन उदयपुर, जैसलमेर या जयपुर में भी हो सकता है, लेकिन ये फाइनल तभी होगा जब राहुल गांधी विदेश दौरे से लौटेंगे. पहले खबर थी कि ये जनवरी में ही हो सकता है, लेकिन अब बताते हैं कि ये 15 फरवरी तक भी हो सकता है.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा अपनी तरह से सारे इंतजाम कर रहे हैं, ताकि जैसे ही राहुल गांधी से ग्रीन सिग्नल मिले फटाफट कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा सके.
राहुल गांधी कांग्रेस के 136वें स्थापना दिवस कार्यक्रम से ठीक पहले विदेश यात्रा पर रवाना हो गये थे. कांग्रेस की तरफ से इतना ही बताया गया कि वो अपने निजी विदेश यात्रा पर हैं.
ये सवाल तब भी उठा जब कांग्रेस के स्थापना दिवस कार्यक्रम के वक्त पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा जिम्मेदारियां संभालती नजर आयीं. सोनिया गांधी भी तबीयत खराब होने के चलते कार्यक्रम से दूर रहीं. उनका संदेश पहले ही आ गया था.
राहुल गांधी को लेकर मीडिया के सवाल को प्रियंका गांधी टाल गयीं और बगैर कुछ बोले ही चली गयीं. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला भी नया क्या बताते लिहाजा बचाव की मुद्रा में बने रहे. बातों बातों में बताया कि वो अपनी बीमार नानी को देखने गये हुए हैं. सुरजेवाला पहले ही बता चुके थे कि राहुल गांधी कुछ दिनों के लिए देश से बाहर रहेंगे, लेकिन ये नहीं बताया कि ये बाहर वाली जगह कौन सी है.
ये सारी बातें अपनी जगह है और कांग्रेस की समस्या जहां की तहां बनी हुई है - सवाल ये है कि क्या राहुल गाधी के अध्यक्ष बन जाने भर से कांग्रेस के सामने जो चुनौतियां हैं वे खत्म हो जाएंगी?
ये तो बताने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस विपक्ष की राजनीति में भी पूरी तरह फेल हो चुकी है. अगर कांग्रेस के अंदर अब भी चेतना नहीं आयी तो अभी तक सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से उसे जो कुछ भी हासिल है उससे भी हाथ धोते ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.
अप्रैल-मई में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद देश की राजनीति में काफी बदलाव हो सकते हैं. वैसी स्थिति के लिए कांग्रेस ने पहले से तैयारी नहीं की तो कहना मुश्किल है कि विपक्षी खेमे में नंबर 1 से खिसक कर वो किस पायदान पर पहुंचने वाली है. शिवसेना और एनसीपी बड़ी तेजी से कांग्रेस को पछाड़ने की कोशिश में हैं लगी हुई हैं. भले ही ममता बनर्जी गैर हिंदी भाषी हों, लेकिन विधानसभा के चुनाव नतीजे अगर उनके पक्ष में रहे तो वो भी कांग्रेस को आगे से घास नहीं डालने वाली हैं - क्योंकि ये तो साफ हो ही चुका है कि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ साथ यूपीए चेयरपर्सन की पोस्ट भी छोड़ने का मन बना चुकी हैं.
राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनने की स्थिति में भी वो नाममात्र की ही अध्यक्ष रहेंगी और सारे कामकाज उनके अधीन काम करने वाले उपाध्यक्ष और महासचिवों की टीम मिल जुल कर करेगी.
अब अगर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनते तो प्रधानमंत्री पद को लेकर रूख साफ कर देना चाहिये. जरूरी नहीं कि प्रधानमंत्री पद को लेकर राहुल गांधी कोई स्थायी संकल्प ही लें - अस्थायी तौर पर भी चलेगा.
राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस की दावेदारी भरे रिजर्वेशन वापस ले लें तो पार्टी की बहुतेरी समस्यायें अपनेआप सुलझ जाएंगी. ये प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी के लिए दावेदारी ही है जो छोटे से छोटा राजनीतिक दल कांग्रेस से परहेज कर रहा है.
एक बार अगर विपक्षी खेमे में साफ हो जाये कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी छोड़ दी है, एक झटके में सारी समस्या ही सुलझ सकती है. वरना, तेजस्वी यादव भी 2019 में ही बोलने लगे थे कि चुनाव नतीजे आने के बाद ही प्रधानमंत्री पद पर फैसला होना चाहिये.
प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी छोड़ने के फायदे
2018 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा था कि अगर कांग्रेस चुनाव जीत लेती है तो वो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. फिर क्या था, बीजेपी नेताओं ने तो जैसे दौड़ा ही लिया. राहुल गांधी शांत हो गये. इतने शांत कि जब किसी ने मायावती और ममता बनर्जी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर सवाल पूछ लिया तो बोल दिये कि उनको कोई आपत्ति नहीं होगी.
कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद जुलाई, 2018 में विपक्ष की तरफ से संसद में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. राहुल गांधी ने भाषण दिया और सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट पर पहुंचे तो गले मिले. वैसे ये वाकया इस बात के लिए ज्यादा चर्चित रहा कि राहुल गांधी ने गले मिलने के बाद आंख मार दी.
बाद में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हुआ तो बोले कि उनकी कुर्सी तक पहुंचने की इतनी जल्दबाजी क्यों है - देश की जनता ने उस कुर्सी पर बिठाया है. तभी मोदी ने कहा था कि वो उनकी कुशलता की कामना करना चाहेंगे कि अगली बार भी वो ऐसे ही अविश्वास प्रस्ताव लेकर आयें. ये शायद 2019 की जीत पर पहले से ही विश्वास रहा और हुआ भी वही, मोदी 2019 का चुनाव जीत कर दोबारा वो कुर्सी हासिल कर लिये.
ऐसे में जबकि ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल चुनाव में शरद पवार से मदद मांगी है, एनसीपी नेता अपनी तरफ से सक्रिय हो गये हैं. इसी बीच, एक चर्चा और होने लगी थी कि सोनिया गांधी के यूपीए चेयरपर्सन का पद छोड़ने के बाद रेस में शरद पवार आगे चल रहे हैं, लेकिन एनसीपी की तरफ से आधिकारिक तौर पर इसे खारिज कर दिया गया.
शरद पवार ने उससे पहले राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए 'निरंतरता की कमी' वाला बयान दिया था. उसके बाद तो शिवसेना की तरफ से संजय राउत मैदान में उतर कर बल्लेबाजी करने लगे. बताने लगे कि कैसे यूपीए किसी एनजीओ जैसा हो गया है. विपक्षी दलों के नेताओं के नाम गिनाकर संजय राउत पूछने लगे कि जब ऐसे ऐसे नेता यूपीए से बाहर हैं तो भला मोदी और शाह की अगुवाई वाले एनडीए के मुकाबले वो कहां टिकने वाला है.
निश्चित तौर पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी को शिवसेना और एनसीपी की रणनीति का अंदाजा लग ही गया होगा. हो सकता है वो ये अंदाजा नहीं लगा पा रहे हों कि इस साल के विधानसभा चुनावों के खत्म होने के बाद क्या क्या संभव हो सकता है.
मालूम नहीं कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार और छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार पर मंडराते खतरे को भांप पा रहा है भी या नहीं? वैसे अशोक गहलोत ने तो माहौल बनाना फिर से शुरू कर ही दिया है, लेकिन उनकी सारी राजनीति सचिन पायलट के विरोध तक जाकर ठहर जाती है. वो बीजेपी पर भी सरकार गिराने का इल्जाम मढ़ते हैं तो वो सचिन पायलट के बगैर पूरा नहीं होता.
कांग्रेस के साथ साथ अपने भविष्य का भी ध्यान रखते हुए राहुल गांधी को भी दूसरों की तरह नये साल के लिए कुछ चीजें तय कर लेनी चाहिये, संकल्प के तौर पर - Resolution 2021. ये जरूरी नहीं कि इसे लिख कर ही बिंदुवार तैयार किया जाये. एक लाइन का एजेंडा भी हो सकता है, जो हर दम ख्यालों में रहे. हर वक्त याद रहे कि एक काम सबसे जरूरी है जिसे हर हाल में पूरा करना है. ये भी जरूरी नहीं कि सार्वजनिक घोषणा करके बताया भी जाये - क्या क्या किये जाने का संकल्प लिया गया है, लक्ष्य रखा गया है.
नये साल के लिए राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर भी वैसा ही कोई संकल्प ले लेते जैसे मन ही मन वो कांग्रेस अध्यक्ष पद को ले चुके हैं - और कांग्रेस अध्यक्ष पर तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाने के बाद प्रधानमंत्री पद पर भी दावेदारी को लेकर कांग्रेस नहीं तो कम से कम अपना ही रूख साफ कर देते - तो खुद भी चैन से रहते और देश का विपक्ष भी खुश हो जाता.
अगर एक बार राहुल गांधी हिम्मत दिखाते हुए डंके की चोट पर अपना स्टैंड साफ कर देते तो कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी कौन कहे, पूरा विपक्ष एक पैर पर खड़ा नजर आता - मुश्किल तो ये है कि क्या नौ मन तेल हो पाएगा और...
इन्हें भी पढ़ें :
राहुल गांधी के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने की खबर सवालिया निशानों से भरी है
कांग्रेस स्थापना दिवस को छोड़ इटली जा रहे राहुल गांधी पर सवाल क्यों न खड़े हों?
PA और राहुल गांधी को निशाना बनाते शिवसेना की सियासत के मायने
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.