भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी और सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस आज सबसे बुरे हाल में है. विगत लोकसभा चुनाव के बाद इस विरासत का पतन निरंतर देखने को मिल रहा है. पार्टी को एक के बाद एक चुनावों में मुंह की खानी पड़ रही है. इसके मद्देनजर कांग्रेस ने बड़े उलटफेर का मन बना लिया हैं. जिसका जिक्र अभी कुछ दिनों पहले पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने किया था. अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि इसी माह के अंत में होने वाले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी की कमान राहुल गाँधी के हाथों सौंप दी जाएगी.
राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनना अब तय माना जा रहा हैं. परंतु अध्यक्ष पद संभालने से ठीक पहले जो खबरें आ रहीं हैं वो कांग्रेस में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता पर सवालियां निशान लगा रहीं हैं. कांग्रेस के सामने कई चुनौतियाँ मुंह बाए खड़ी हैं. जिससे निपटना पार्टी के लिए आसान नही होगा. हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. इन विधानसभा चुनावों के बाद से दो बातें निकल कर सामने आई हैं जो कांग्रेस की दशा और दिशा को बयाँ करने के लिए काफी हैं.
पहला कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है तथा उससे भी चिंताजनक बात यह है कि कांग्रेस बिखर रही है. बगावत के सुर दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहें हैं. जिसे समेटने के बजाय कांग्रेस आलाकमान मौन है. पार्टी छोड़ने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है. जिसमें सबसे पहले असम में पार्टी के मुख्य कप्तान हेमंत बिस्व शर्मा उसके बाद छत्तीसगढ़ में पार्टी के वरिष्ठ नेता व पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी अब महाराष्ट्र के कद्दावर नेता गुरुदास कामत ने कांग्रेस पार्टी से दूरी बना ली है. पार्टी छोड़ने का सिलसिला यहीं समाप्त नही होता,त्रिपुरा से भी कांग्रेस के लिए बुरी खबर आ रही है. वहां पार्टी के छह विधायकों के तृणमूल का दामन थाम लिया है. कुल मिलाकर हम कह सकतें है कि पार्टी इस वक्त विश्वास के संकट से गुजर नही है. जनता के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं का भी पार्टी से मोहभंग होता जा रहा हैं. जो किसी भी संगठन के लिए चिंता का विषय है.
भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी और सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस आज सबसे बुरे हाल में है. विगत लोकसभा चुनाव के बाद इस विरासत का पतन निरंतर देखने को मिल रहा है. पार्टी को एक के बाद एक चुनावों में मुंह की खानी पड़ रही है. इसके मद्देनजर कांग्रेस ने बड़े उलटफेर का मन बना लिया हैं. जिसका जिक्र अभी कुछ दिनों पहले पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने किया था. अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि इसी माह के अंत में होने वाले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी की कमान राहुल गाँधी के हाथों सौंप दी जाएगी.
राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनना अब तय माना जा रहा हैं. परंतु अध्यक्ष पद संभालने से ठीक पहले जो खबरें आ रहीं हैं वो कांग्रेस में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता पर सवालियां निशान लगा रहीं हैं. कांग्रेस के सामने कई चुनौतियाँ मुंह बाए खड़ी हैं. जिससे निपटना पार्टी के लिए आसान नही होगा. हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. इन विधानसभा चुनावों के बाद से दो बातें निकल कर सामने आई हैं जो कांग्रेस की दशा और दिशा को बयाँ करने के लिए काफी हैं.
पहला कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है तथा उससे भी चिंताजनक बात यह है कि कांग्रेस बिखर रही है. बगावत के सुर दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहें हैं. जिसे समेटने के बजाय कांग्रेस आलाकमान मौन है. पार्टी छोड़ने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है. जिसमें सबसे पहले असम में पार्टी के मुख्य कप्तान हेमंत बिस्व शर्मा उसके बाद छत्तीसगढ़ में पार्टी के वरिष्ठ नेता व पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी अब महाराष्ट्र के कद्दावर नेता गुरुदास कामत ने कांग्रेस पार्टी से दूरी बना ली है. पार्टी छोड़ने का सिलसिला यहीं समाप्त नही होता,त्रिपुरा से भी कांग्रेस के लिए बुरी खबर आ रही है. वहां पार्टी के छह विधायकों के तृणमूल का दामन थाम लिया है. कुल मिलाकर हम कह सकतें है कि पार्टी इस वक्त विश्वास के संकट से गुजर नही है. जनता के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं का भी पार्टी से मोहभंग होता जा रहा हैं. जो किसी भी संगठन के लिए चिंता का विषय है.
सोनिया, राहुल और कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की चुनौती |
कांग्रेस के बिखरने की वजहों को समझा जाए तो सबसे बड़ी वजह पार्टी नेतृत्व की उदासीनता हैं. लगातार मिल रही पराजय से कांग्रेस हाशिए पर है. पार्टी के कार्यकताओं और नेताओं को इस बात का अंदाज़ा हो गया है कि पार्टी अब अप्रासंगिक होती जा रही है जिसको लेकर शीर्ष नेतृत्व गंभीर नही है. दूसरी वजह है अभी भी जमीन से नहीं जुड़ रही आज भी पार्टी के कई नेता जनता से जुड़ने के बजाय वातानुकूलित कमरों में रहना पसंद कर रहे हैं. कांग्रेस के इन आला नेताओं को समझना होगा कि अगर पार्टी को फिर से सफलता के रास्ते पर लाना है तो उसे कई कड़े फैसले लेने होंगे जो पार्टी के हित में हो.
कांग्रेस शुरू से ही परिवारवाद से ग्रस्त रही है. फिर से कमान परिवार के युवराज सँभालने जा रहें हैं. कुछ नेताओं की माने तो राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनतें ही पार्टी की दिशा और दशा बदल जाएगी अर्थात पार्टी फिर से खड़ी हो जाएगी. किंतु ये नेता गफलत में हैं. उन्हें अपनी स्मरण शक्ति मजबूत करते हुए इस बात पर गौर करना चाहिए कि लोकसभा तथा उसके बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में राहुल ही पार्टी का मुख्य चेहरा थे. जिसे जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. कांग्रेस बदलाव में मूड में है तो इस बात का स्वागत होना चाहिए किंतु कांग्रेस की कमान राहुल गाँधी की बजाय ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने पर विचार करना चाहिए जो जनता तथा संगठन दोनों को साथ लेकर चल सके.
अगर कांग्रेस ये प्रयोग करे तो इससे पार्टी ही नहीं वरन देश की जनता में कांग्रेस के प्रति एक सकारात्मक भाव पहुंचेगा. पहला तो उनके कार्यकर्ताओं में एक नई उर्जा का संचार होगा जो लगातार मिल रही पराजयों से शिथिल पड़ गई है. नए अध्यक्ष के साथ काम करने की ललक कार्यकर्ताओं में आएगी. इसके साथ ही पार्टी परिवारवाद जैसे गंभीर आरोपों से भी बच जाएगी. दरअसल कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के बाद ही कुछ बड़े बदलाव करने चाहिए थे. लेकिन कांग्रेस ने अभी तक नहीं किया. इसका एक कारण ये भी है की कांग्रेस के अदद कुछ नेताओं को छोड़ दिया जाए तो एक बड़ा तबका एक परिवार की चापलूसी कर अपना काम निकाल लेना चाहता है और पार्टी में बने रहना चाहता है. कांग्रेस को अगर अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाना है तो एक नया चेहरा ढूढने की कवायद शुरू कर देनी चाहिए, जिसकी पार्टी को दरकार है. जो पार्टी देश में सबसे ज्यादा सत्ता पर काबिज़ रही हो, आज उसी पार्टी की लोकप्रियता हासिए पर है. उस खोई हुई लोकप्रियता को हासिल करना आसान नही होगा इसके लिए पार्टी को परिवारवाद तथा पद का मोह त्याग कर पार्टी को मजबूत बनाना होगा, जनता से संवाद करना होगा, संगठन को सुदृढ़ करना होगा. और इसके लिए पार्टी नेताओं को एकजुट होकर साथ आना पड़ेगा.
ऐसे समय में पार्टी हाईकमान में बदलाव को लेकर जो अटकलें तेज़ हुई हैं उसपर सभी की नजरें टीकी हुई हैं. पार्टी किस तरह से बदलाव करती है ये तो देखने वाली बात होगी किंतु राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने से पहले ही संगठन से जो आवाज राहुल गाँधी के विरोध में आ रहीं है उसे भी हाईकमान को दरकिनार नहीं करना चाहिए. राहुल गाँधी की राजनीतिक समझ को लेकर भी सवाल उठते रहें है. एक बात तो स्पष्ट है कि राहुल गाँधी अभी भी राजनीति में पूरी तरह से परिपक्व नहीं है. राजनीतिक गंभीरता के आभाव में राहुल गाँधी को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी देना कांग्रेस के भविष्य को और खतरे में डाल सकती है. अत: कांग्रेस को एक ईमानदार तथा एक कुशल संगठनकर्ता के हाथो पार्टी की कमान सौपनी चाहिए जो पार्टी की दिशा और दशा को सही रास्ते पर ला सके.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.