अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई पहली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया था और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा को हराने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन करने का भी ऐलान किया था. यही नहीं मई के महीने में बेंगलूरु के एक प्रोग्राम में राहुल गांधी ने कहा था कि अगर कांग्रेस लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो वो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. यानि राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बनने का सपना और कांग्रेस कार्यसमिति से इसका अनुमोदन से राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के आसार बन रहे थे लेकिन अब खबर ये आ रही है कि राहुल गांधी के इस सपने को ग्रहण लग सकता है.
कुछ समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार कांग्रेस भाजपा को रोकने के लिए मायावती या फिर तृणमूल नेता ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने में परहेज़ नहीं करेगी बशर्ते महागठबंधन को सरकार बनाने भर सीटें मिले. मतलब साफ़ है- राहुल गांधी की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस नरम रवैया अपना रही है.
लेकिन प्रश्न ये उठता है कि आखिर एकदम से ऐसा क्या हुआ जिससे कांग्रेस को राहुल गांधी के प्रधानमंत्री की दावेदारी से पीछे हटना पड़ रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में चिदंबरम का ये कहना कि कांग्रेस 150 सीटें जीतेगी, इसकी सहयोगी पार्टियों को एक कमज़ोर कड़ी दे गया? कहीं ऐसा तो नहीं की चिदंबरम का ये कथन कि कांग्रेस की 150 और सहयोगियों की 150 सीटें यानि कुल 300 सीटों के साथ यूपीए सरकार बना सकती है, इससे गिरते हालत को सहयोगी पार्टियां समझ गयीं और ब्लैकमेल करने लगीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस अभी से ही हार स्वीकार कर चुकी है? कहीं कर्नाटक के तर्ज़ पर भाजपा को...
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई पहली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया था और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा को हराने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन करने का भी ऐलान किया था. यही नहीं मई के महीने में बेंगलूरु के एक प्रोग्राम में राहुल गांधी ने कहा था कि अगर कांग्रेस लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो वो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. यानि राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बनने का सपना और कांग्रेस कार्यसमिति से इसका अनुमोदन से राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के आसार बन रहे थे लेकिन अब खबर ये आ रही है कि राहुल गांधी के इस सपने को ग्रहण लग सकता है.
कुछ समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार कांग्रेस भाजपा को रोकने के लिए मायावती या फिर तृणमूल नेता ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने में परहेज़ नहीं करेगी बशर्ते महागठबंधन को सरकार बनाने भर सीटें मिले. मतलब साफ़ है- राहुल गांधी की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस नरम रवैया अपना रही है.
लेकिन प्रश्न ये उठता है कि आखिर एकदम से ऐसा क्या हुआ जिससे कांग्रेस को राहुल गांधी के प्रधानमंत्री की दावेदारी से पीछे हटना पड़ रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में चिदंबरम का ये कहना कि कांग्रेस 150 सीटें जीतेगी, इसकी सहयोगी पार्टियों को एक कमज़ोर कड़ी दे गया? कहीं ऐसा तो नहीं की चिदंबरम का ये कथन कि कांग्रेस की 150 और सहयोगियों की 150 सीटें यानि कुल 300 सीटों के साथ यूपीए सरकार बना सकती है, इससे गिरते हालत को सहयोगी पार्टियां समझ गयीं और ब्लैकमेल करने लगीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस अभी से ही हार स्वीकार कर चुकी है? कहीं कर्नाटक के तर्ज़ पर भाजपा को सत्ता से दूर रखने का कवायद तो नहीं?
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार संसद में राहुल गांधी की 'झप्पी' और 'आँखमारी' ने इसके सहयोगी दलों को एक मौका दे दिया. बिहार में कांग्रेस की पुराने सहयोगी पार्टी राजद के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि राहुल गांधी अकेले विपक्ष के नेता नहीं हैं. बकौल तेजस्वी यादव, 'सभी विपक्षी दल प्रधानमंत्री उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए साथ बैठकर चर्चा करेंगे. इस दौड़ में अकेले राहुल गांधी ही नहीं हैं. कई विपक्षी नेता जैसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और बसपा प्रमुख मायावती इसमें शामिल हैं'.
यही नहीं कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के अगले दिन ही उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा था कि अगर कांग्रेस बसपा को आने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा के चुनावों में सम्मानजनक सीटें नहीं देती तो समझौता सम्भव नहीं है. यही नहीं बसपा ने पहले ही मायावती को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है.
बात अगर समाजवादी पार्टी की करें तो इसके राष्ट्रिय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी बोल चुके हैं कि प्रधानमंत्री का चयन चुनावों के बाद सारे दल एक साथ बैठकर तय करेंगे.
अभी तक राहुल गांधी के पक्ष में केवल जनता दल सेक्यूलर नेता एचडी देवेगौड़ा ही राहुल गांधी की दावेदारी का समर्थन किया है.
खैर, अभी न तो गठबंधन बना है और न ही चुनावों का ऐलान हुआ है फिर भी अब तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे आने वाला चंद्रग्रहण राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के सपने को अपने चपेट में ले लिया है.
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