धारा 370 पर कांग्रेस बुरी तरह फंस गयी है. कांग्रेस का राजनीतिक स्टैंड जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को खत्म किये जाने के मामले में भी पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक की तरह नजर आ रहा है.
असल बात तो ये थी कि महबूबा मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार की बढ़ी हुई चुनौतियों तरह कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के लिए ये अस्तित्व बचाने का मसला रहा - लेकिन हुआ ये कि पूरी कांग्रेस पार्टी ही लपेटे में आ गयी. कांग्रेस ने एक बार स्टैंड साफ किया तो वो उससे गले की हड्डी की तरह जूझ रही है.
कांग्रेस के लिए इससे बड़ी दिक्कत क्या होगी कि जब उसे अपने लिए एक अदद अध्यक्ष खोजना मुश्किल हो रहा है, तो वो एक बड़े राष्ट्रीय मुद्दे पर नेताओं को एकजुट रखने के लिए जूझ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बार फिर युवा पीढ़ी बनाम बुजुर्गों में जंग शुरू हो गयी है. एक ही मुद्दे पर दोनों बंट गये हैं.
हालांकि, बुजुर्गों में जनार्दन द्विवेदी और अनिल शास्त्री जैसे नेता भी हैं जो धारा 370 के मामले में मोदी सरकार के कदम का सपोर्ट कर रहे हैं. हद तो तब हो गयी जब राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने भी पार्टी के स्टैंड को जनभावना के खिलाफ बताते हुए संसद की सदस्यता से ही इस्तीफा दे डाला.
ऐसे में 10 अगस्त को बुलायी गयी CWC की मीटिंग से भला क्या अपेक्षा की जा सकती है?
धारा 370 पर बंटी कांग्रेस की आगे की राह मुश्किल है
अव्वल तो CWC की मीटिंग का मुहूर्त ही नहीं निकल पा रहा था. धारा 370 को लेकर पहले ही बैठक बुलानी पड़ी. बैठक हुई भी तो कांग्रेस नेताओं का एक ग्रुप जनभावना के हिसाब से दलीलें पेश करता रहा, तो दूसरा मोदी सरकार के फैसले के विरोध की वकालत करता रहा.
कांग्रेस की इस महत्वपूर्ण मीटिंग में अरसे बाद सारे नेता इकट्ठे हुए थे. सारे नेता से आशय सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ राहुल गांधी भी. बैठक की सबसे बड़ी खास बात रही, गुलाम नबी आजाद का भाषण - पूरे 45 मिनट. पूरे वक्त तरह तरह से गुलाम...
धारा 370 पर कांग्रेस बुरी तरह फंस गयी है. कांग्रेस का राजनीतिक स्टैंड जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को खत्म किये जाने के मामले में भी पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक की तरह नजर आ रहा है.
असल बात तो ये थी कि महबूबा मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार की बढ़ी हुई चुनौतियों तरह कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के लिए ये अस्तित्व बचाने का मसला रहा - लेकिन हुआ ये कि पूरी कांग्रेस पार्टी ही लपेटे में आ गयी. कांग्रेस ने एक बार स्टैंड साफ किया तो वो उससे गले की हड्डी की तरह जूझ रही है.
कांग्रेस के लिए इससे बड़ी दिक्कत क्या होगी कि जब उसे अपने लिए एक अदद अध्यक्ष खोजना मुश्किल हो रहा है, तो वो एक बड़े राष्ट्रीय मुद्दे पर नेताओं को एकजुट रखने के लिए जूझ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बार फिर युवा पीढ़ी बनाम बुजुर्गों में जंग शुरू हो गयी है. एक ही मुद्दे पर दोनों बंट गये हैं.
हालांकि, बुजुर्गों में जनार्दन द्विवेदी और अनिल शास्त्री जैसे नेता भी हैं जो धारा 370 के मामले में मोदी सरकार के कदम का सपोर्ट कर रहे हैं. हद तो तब हो गयी जब राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने भी पार्टी के स्टैंड को जनभावना के खिलाफ बताते हुए संसद की सदस्यता से ही इस्तीफा दे डाला.
ऐसे में 10 अगस्त को बुलायी गयी CWC की मीटिंग से भला क्या अपेक्षा की जा सकती है?
धारा 370 पर बंटी कांग्रेस की आगे की राह मुश्किल है
अव्वल तो CWC की मीटिंग का मुहूर्त ही नहीं निकल पा रहा था. धारा 370 को लेकर पहले ही बैठक बुलानी पड़ी. बैठक हुई भी तो कांग्रेस नेताओं का एक ग्रुप जनभावना के हिसाब से दलीलें पेश करता रहा, तो दूसरा मोदी सरकार के फैसले के विरोध की वकालत करता रहा.
कांग्रेस की इस महत्वपूर्ण मीटिंग में अरसे बाद सारे नेता इकट्ठे हुए थे. सारे नेता से आशय सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ राहुल गांधी भी. बैठक की सबसे बड़ी खास बात रही, गुलाम नबी आजाद का भाषण - पूरे 45 मिनट. पूरे वक्त तरह तरह से गुलाम नबी आजाद कांग्रेस नेताओं को समझाते रहे कि धारा 370 पर कांग्रेस का आधिकारिक स्टैंड क्यों सही है.
सबसे बड़ी हैरानी की बात ये रही कि CWC की बैठक से कुछ ही देर पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक ट्वीट कर खलबली मचा दी. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्विटर पर मोदी सरकार के फैसले का सपोर्ट किया था. कांग्रेस का एक ऐसा नेता जिसे राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता हो, जो कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में शामिल माना जा रहा हो - वो धारा 370 पर अपनी ही पार्टी के पक्ष का सरेआम विरोध करने लगे.
ये ठीक है कि जनार्दन द्विवेदी को अशोक गहलोत और केसी वेणुगोपाल के आने से हाशिये पर छोड़ दिया गया है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि अगर वो कुछ कहें तो मणिशंकर अय्यर की तरह हवा में उड़ा दी जाये. पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री के साथ साथ दीपेंद्र हुड्डा और अदिति सिंह ने भी मोदी सरकार के कदम को लेकर सार्वजनिक तौर पर समर्थन व्यक्त किया है.
हालांकि, मीटिंग में ज्योतिरादित्य सिंधिया अकेले पड़ गये. वैसे भी सिंधिया की अहमियत तो राहुल गांधी के करीबी होने के चलते ही रही है और जब वो अपनी जड़ से ही कट जाएंगे तो कौन पूछेगा. प्रियंका गांधी वाड्रा भी बैठी तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास रहीं, लेकिन राहुल गांधी की हां में हां मिलाती रहीं.
अपनी सफाई में सिंधिया ने समझाने की पूरी कोशिश की कि उनका ट्वीट जन भावना से जुड़ा है, लेकिन वो सरकार के तौर तरीके से बिलकुल इत्तेफाक नहीं रखते.
दीपेंद्र हुड्डा भी सिंधिया की ही तरह सफाई देते देखे गये. हुड्डा का कहना रहा कि पुलवामा के वक्त भी उनका वही स्टैंड रहा जोब अब है, लेकिन उन्हें सरकार के अख्तियार किये तरीके पर ऐतराज है. दीपेंद्र हुड्डा वैसे भी हरियाणा की राजनीति में दूसरे पक्ष के नेता हैं. पहला पक्ष तो अशोक तंवर का है जो राहुल गांधी के करीबी और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं.
जितिन प्रसाद भी दूसरी छोर पर खड़े नजर आये. कहा, इस वक्त देश का माहौल बीजेपी के पक्ष में है. जितिन प्रसाद, दरअसल, गुलाम नबी आजाद की बातों पर रिएक्ट कर रहे थे. तभी पी. चिदंबरम, जितिन प्रसाद के विरोध में बोलने लगे - आप केरल और तमिलनाडु के बारे में ऐसा नहीं कह सकते. जितिन प्रसाद भी कहां चूक जाते, बोले - मैं उत्तर प्रदेश से आता हूं, वहां यही भावना है.
क्या जनभावना कांग्रेस के लिए मायने नहीं रखती
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राहुल गांधी बड़े गौर से हर किसी की सुनते रहे. फिर काफी सोच समझ कर बोले - 'हम सच के साथ हैं.'
साथ में राहुल गांधी ने एक और बात कही, 'सिर्फ पब्लिक सेंटीमेंट ही पैमाना नहीं हो सकता.'
फिर तो सवाल यही उठता है कि क्या जनभावना कांग्रेस के लिए कोई मायने नहीं रखती? तो क्या 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर 'खून की दलाली' वाले बयान के पीछे यही सोच रही होगी? क्या बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद 21 दलों की ओर से जारी संयुक्त को पढ़ते हुए राहुल गांधी अपने मन की बात कर रहे थे? वही बयान जिसे लेकर बीजेपी नेतृत्व ने पाकिस्तान में बहस का मुद्दा बनाने का इल्जाम लगाया था.
नेताओं के अपने अपने पक्ष रखते वक्त कई दिलचस्प पहलू भी सामने आये. कांग्रेस नेतृत्व और गुलाम नबी आजाद वाले रूख की तरफ से पी. चिदंबरम तर्क पेश कर रहे थे.
धारा 370 खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले पर आरपीएन सिंह ने कहा, 'आप कश्मीर पर तकनीकी रूप से सही हो सकते हैं, लेकिन जनता के बीच क्या लेकर आए? क्या जवाब दें?'
सरकार के फैसले के विरोध की बात को आरपीएन सिंह ने नेतृत्व की तरफ उछाल दिया, 'तकनीकी पहलू नहीं सियासी पहलू सामने आएं जिन्हें लेकर हम जनता के बीच जाएं.'
रिएक्शन के रूप में चिदंबरम का काउंटर सवाल हाजिर हो गया - अगर कल जनभावना के अनुरूप तमिलनाडु में हिंदी अनिवार्य कर दें तो? क्या ऐसा कर सकते हैं? क्या पुराने वादे भूल सकते हैं?
जब राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे और जनभावनाओं को लेकर कांग्रेस के दो धड़े आमने सामने हों, फिर कैसा उम्मीद की जाये कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष आसानी से चुन लेगी. लगता तो ऐसा है कि CWC की 10 अगस्त को होने जा रही मीटिंग में भी यही आलम रहने वाला है.
अगर देश के सबसे ज्वलंत मुद्दे पर कांग्रेस में आम राय नहीं बन पा रही है, तो कैसे माना जाये कि नया नेता सबको साथ लेकर चलने में कामयाब रह पाएगा?
राहुल गांधी का भी धारा 370 पर वही स्टैंड है जो गुलाम नबी आजाद ने संसद में लिया है - और कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग इसी के विरोध में खड़ा हो गया है. प्रियंका गांधी वाड्रा राहुल गांधी के साथ खड़ी हैं - लेकिन धारा 370 पर मोदी सरकार का सपोर्ट करने वालों को इसकी जरा भी परवाह नहीं लगती. ऐसे में क्या उम्मीद करें कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की पसंद का अध्यक्ष कांग्रेस नेताओं को मान्य होगा? अगर कांग्रेस अध्यक्ष की बातें कोई मायने ही नहीं रखतीं तो ऐसे ही क्या बुरा है?
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