महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे में एक के बाद एक फ्रेम बदले जा रहे हैं. बीते दिन ही इस बात की घोषणा हो चुकी थी कि एनसीपी ने मुख्यमंत्री के लिए उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमती बनाई है. तय था कि उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे मगर सियासी गलियारों में हलचल उस वक़्त मच गई जब देवेंद्र फडणवीस से मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री की शपथ ली. एक ही रात में ये सब कैसे हुआ? इसने बड़े बड़े राजनीतिक विचारकों को हैरत में डाल दिया है. मामला सामने आने के बाद एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस तीनों ही गहरे आघात में हैं. तीनों ही दल इस बात को लेकर स्तब्ध हैं कि आखिर ऐसी कौन सी चूक हुई जिसने सब कुछ तबाह करने के बाद भाजपा को साम दाम दंड भेद एक कर सरकार बनाने का मौका दे दिया. विपरीत विचारधारा होने के बावजूद कांग्रेस शिवसेना के साथ आई. और अब जब कारवां गुजर गया और सिर्फ गुबार का ढेर बचा है, तो हमेशा की तरफ आरोप प्रत्यारोप की राजनीति आरंभ हो गयी है. कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना को मिले धोखे पर कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. ये शायद संजय निरुपम के गुस्से का ही असर है कि कांग्रेस ने भी अपने आपको उस साझा प्रेस कांफ्रेंस से अलग कर लिया जिसमें शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपना पक्ष रख रहे थे.
गठबंधन की साझा प्रेस कांफ्रेंस पर बात करने से पहले बात निरुपम पर. महाराष्ट्र चुनाव में टिकटों के बंटवारे और फिर शिवसेना को समर्थन के निर्णय पर कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे संजय निरुपम ने कहा है कि वो इस पूरे घटनाक्रम से खुश नहीं बल्कि बहुत ज्यादा नाराज हैं. इसमें कांग्रेस को अनावश्यक रूप से बदनाम किया गया. निरुपम का मानना है कि...
महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे में एक के बाद एक फ्रेम बदले जा रहे हैं. बीते दिन ही इस बात की घोषणा हो चुकी थी कि एनसीपी ने मुख्यमंत्री के लिए उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमती बनाई है. तय था कि उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे मगर सियासी गलियारों में हलचल उस वक़्त मच गई जब देवेंद्र फडणवीस से मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री की शपथ ली. एक ही रात में ये सब कैसे हुआ? इसने बड़े बड़े राजनीतिक विचारकों को हैरत में डाल दिया है. मामला सामने आने के बाद एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस तीनों ही गहरे आघात में हैं. तीनों ही दल इस बात को लेकर स्तब्ध हैं कि आखिर ऐसी कौन सी चूक हुई जिसने सब कुछ तबाह करने के बाद भाजपा को साम दाम दंड भेद एक कर सरकार बनाने का मौका दे दिया. विपरीत विचारधारा होने के बावजूद कांग्रेस शिवसेना के साथ आई. और अब जब कारवां गुजर गया और सिर्फ गुबार का ढेर बचा है, तो हमेशा की तरफ आरोप प्रत्यारोप की राजनीति आरंभ हो गयी है. कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना को मिले धोखे पर कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. ये शायद संजय निरुपम के गुस्से का ही असर है कि कांग्रेस ने भी अपने आपको उस साझा प्रेस कांफ्रेंस से अलग कर लिया जिसमें शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपना पक्ष रख रहे थे.
गठबंधन की साझा प्रेस कांफ्रेंस पर बात करने से पहले बात निरुपम पर. महाराष्ट्र चुनाव में टिकटों के बंटवारे और फिर शिवसेना को समर्थन के निर्णय पर कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे संजय निरुपम ने कहा है कि वो इस पूरे घटनाक्रम से खुश नहीं बल्कि बहुत ज्यादा नाराज हैं. इसमें कांग्रेस को अनावश्यक रूप से बदनाम किया गया. निरुपम का मानना है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन की सोच एक गलती थी. मैं सोनिया जी से अपील करता हूं कि वे सबसे पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी को भंग करें. संजय निरुपम ने कहा कि राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान संभाल लेनी चाहिए.
ध्यान रहे कि हाल फिलहाल में अपने बागी तेवरों के लिए पहचान रखने वाले संजय निरुपम, महाराष्ट्र कांग्रेस के इकलौते ऐसे नेता हैं जो शुरू से ही शिवसेना के साथ कांग्रेस गठबंधन का विरोध कर रहे थे. पूर्व में भी ऐसे कई मौके आये हैं जब उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया है और इस गठबंधन को एक बड़ा मुद्दा बनाकर ट्वीट किया है.
इसके अलावा निरुपम ने ये भी कहा है कि वो कांग्रेस पार्टी जो कई दशकों से देश की जनता के सामने अपनी सेकुलर छवि के लिए जानी जाती है उसे अहमद पटेल के सी वेणु गोपाल जैसे नेताओं की बदौलत बुरी तरह से एक्सपोज कर दिया गया है. कांग्रेस के शिवसेना के साथ जुड़ने पर निरुपम ने ये भी माना है कि कांग्रेस की एक धर्म निरपेक्ष विचारधारा रही है और उस विचारधारा के ऊपर जिस तरह से दाग लगाने का काम पिछले 1 महीने में हुआ है वो कई मायनों में आघात देने वाला है.
इस दौरान निरुपम ने राहुल गांधी की उस बात का हवाला भी दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि Power Is Poison. निरुपम ने कहा कि राहुल इस बात को कह चुके हैं कि पवार पॉइज़न (जहर) है ऐसे ही पवार भी पॉइज़न हैं जिन्होंने तीनों दलों कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी को साथ लिया और वो कर दिखाया जिसके बाद कांग्रेस के दामन पर दाग लग गए हैं जो लंबे समय तक बने रहेंगे.
अलग-अलग मुद्दों पर बोलते हुए निरुपम के लहजे से साफ़ था कि वो कांग्रेस और CWC के नेताओं से खफा हैं. बात हमने गठबंधन की साझा प्रेस कांफ्रेंस पर भी की थी तो बता दें कि इस प्रेस कांफ्रेंस में उद्धव और पवार तो साथ थे मगर कांग्रेस अनुपस्थित थी. एक बेहद ही अहम मौके पर कांग्रेस के इस तरह से गयाबी होने के बाद तमाम बातें खुद-ब-खुद साफ़ हो गई हैं. कह सकते हैं कि इस बार कांग्रेस ने बागी निरुपम की बातों को न सिर्फ गंभीरता से लिया बल्कि पत्रकारवार्ता से गायब होकर निरुपम की बातों को समर्थन भी दिया.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में जब चुनाव बाद सरकार बनाने की बात आई थी और ये कहा गया था कि एनसीपी शिवसेना के साथ गठबंधन कर सकती है. तो कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं समेत सोनिया गांधी तक ने इस गठबंधन के लिए ऐतराज जाता था. तब वो लोग जो आज महाराष्ट्र में कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं उन्होंने ही सोनिया गांधी को इस बात का आश्वासन दिया था कि जो भी कदम आज उठाया जा रहा है वो पार्टी की बेहतरी के लिए है.
अब जबकि कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी को खारिज करते हुए साझा पत्रकारवार्ता से गायब हुई है पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का एक वर्ग वो भी है जिसका मानना है कि कांग्रेस ने एक बड़ा दाव खेला है. कांग्रेस इस बात को जानती थी कि यदि उसका गठबंधन शिवसेना के साथ कामयाब हो जाता तो भले ही दो या ढाई साल के लिए उसे महाराष्ट्र में फायदा मिलता. मगर जब बात देश की आती तो केवल इसी गठबंधन या ये कहें कि एक बिलकुल अलग विचारधारा की पार्टी के साथ जाने का खामियाजा कांग्रेस को लंबे समय तक देश की राजनीति में भुगतना पड़ता. इन तमाम बातों के बाद एक वर्ग वो भी है जिसका मानना है कि जब कांग्रेस तमाम पुरानी बातों और विचारधारा तक को भूलकर शिवसेना के साथ आई थी तो उसे एक अच्छे मित्र होने का परिचय देना था. इससे वो शिवसेना का विश्वास जीत पाती.
बहरहाल, अब कोई कुछ भी कहे निरुपम की बातों के बाद जिस तरफ कांग्रेस ने पूरे मामले से अपने आपको अलग किया है साफ़ हो गया है कि कांग्रेस भी मौके की राजनीति को अंजाम दे रही है. कांग्रेस इस बात से वाकिफ है कि छोटे फायदों के लिए बड़े नुकसान नहीं किये जाते.
कांग्रेस को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि वो अपनी नीतियों के चलते देश की जनता के सामने अपना जनाधार खो चुकी है. और यही वो वक़्त है जब वो धीरे से निकल जाए. अपने दामन को बेदाग बताते हुए महाराष्ट्र के अलावा देश की जनता को इस बात का एहसास करा दे कि, अगर भले ही वो शिवसेना के साथ आ गई थी. मगर ऐसी तमाम चीजें थीं जिनको लेकर उसने कभी भी शिवसेना को मन से माफ़ नहीं किया.
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