कांग्रेस (Congress) के भीतर हो रहा झगड़ा बाहर आ चुका है. मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर सवाल उठने के बाद युवा ब्रिगेड के खिलाफ पुराने कांग्रेसियों ने मोर्चा खोल दिया है. यूपीए सरकार को लेकर ट्विटर पर उपलब्धियों की फेहरिस्त डाली जा रही है.
सोनिया गांधी की तरफ से बुलाई गयी राज्य सभा सांसदों की मीटिंग में कपिल सिब्बल के आत्ममंथन के सुझाव पर राहुल गांधी के करीबी राजीव सातव ने यूपीए सरकार पर ही सवाल उठा दिये थे - जिसे लेकर कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं ने आपत्ति जतायी है.
देखने में तो ये आ रहा है कि 10 साल तक यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री होने के नाते निशाने पर मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) हैं, लेकिन असलियत तो ये है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ही निशाने पर आ चुकी हैं.
निशाने पर कौन है - मनमोहन सिंह या सोनिया गांधी?
राज्य सभा के 34 सांसदों की मीटिंग करीब तीन घंटे तक चली - और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौजूदगी में ही यूपीए की सरकार पर सवाल उठाये गये - वो भी 2009 में कांग्रेस की चुनावी जीत के बाद की स्थिति के जिक्र के साथ. मनमोहन सिंह तब भी प्रधानमंत्री रहे और उसके बाद पांच साल और भी.
राहुल गांधी के करीबी और गुजरात कांग्रेस के प्रभारी राजीव सातव ने 2009 से लेकर 2014 के कांग्रेस के प्रदर्शन को मुद्दा बनाया. राजीव सातव ने दो चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को सरकार के कामकाज से जोड़ कर देखने और दिखाने की कोशिश की. राजीव सातव का कहना रहा कि 2009 में 200 से ज्यादा सांसदों वाली कांग्रेस 2014 में 44 पर क्यों सिमट गयी?
अव्वल तो कांग्रेस के 2019 के आम चुनाव में प्रदर्शन पर सवाल उठना चाहिये कि पांच साल में 44 से पार्टी 52 तक ही क्यों पहुंच पायी. 2014 में यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी और मोदी लहर में कांग्रेस मैदान में धराशायी हो गयी - लेकिन अगले पांच साल तक युवा ब्रिगेड कहां सोया रहा कि इतनी सीटें भी नहीं आ सकीं कि कांग्रेस को विपक्ष के नेता का पद प्राप्त हो...
कांग्रेस (Congress) के भीतर हो रहा झगड़ा बाहर आ चुका है. मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर सवाल उठने के बाद युवा ब्रिगेड के खिलाफ पुराने कांग्रेसियों ने मोर्चा खोल दिया है. यूपीए सरकार को लेकर ट्विटर पर उपलब्धियों की फेहरिस्त डाली जा रही है.
सोनिया गांधी की तरफ से बुलाई गयी राज्य सभा सांसदों की मीटिंग में कपिल सिब्बल के आत्ममंथन के सुझाव पर राहुल गांधी के करीबी राजीव सातव ने यूपीए सरकार पर ही सवाल उठा दिये थे - जिसे लेकर कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं ने आपत्ति जतायी है.
देखने में तो ये आ रहा है कि 10 साल तक यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री होने के नाते निशाने पर मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) हैं, लेकिन असलियत तो ये है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ही निशाने पर आ चुकी हैं.
निशाने पर कौन है - मनमोहन सिंह या सोनिया गांधी?
राज्य सभा के 34 सांसदों की मीटिंग करीब तीन घंटे तक चली - और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौजूदगी में ही यूपीए की सरकार पर सवाल उठाये गये - वो भी 2009 में कांग्रेस की चुनावी जीत के बाद की स्थिति के जिक्र के साथ. मनमोहन सिंह तब भी प्रधानमंत्री रहे और उसके बाद पांच साल और भी.
राहुल गांधी के करीबी और गुजरात कांग्रेस के प्रभारी राजीव सातव ने 2009 से लेकर 2014 के कांग्रेस के प्रदर्शन को मुद्दा बनाया. राजीव सातव ने दो चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को सरकार के कामकाज से जोड़ कर देखने और दिखाने की कोशिश की. राजीव सातव का कहना रहा कि 2009 में 200 से ज्यादा सांसदों वाली कांग्रेस 2014 में 44 पर क्यों सिमट गयी?
अव्वल तो कांग्रेस के 2019 के आम चुनाव में प्रदर्शन पर सवाल उठना चाहिये कि पांच साल में 44 से पार्टी 52 तक ही क्यों पहुंच पायी. 2014 में यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी और मोदी लहर में कांग्रेस मैदान में धराशायी हो गयी - लेकिन अगले पांच साल तक युवा ब्रिगेड कहां सोया रहा कि इतनी सीटें भी नहीं आ सकीं कि कांग्रेस को विपक्ष के नेता का पद प्राप्त हो सके.
सवाल ये है कि क्या यूपीए सरकार के प्रदर्शन के लिए मनमोहन सिंह को टारगेट किया जाना चाहिये?
मनमोहन सिंह को तो बीजेपी भी यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर कभी नहीं करती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कहते हैं - डॉक्टर साहब रेन कोट पहन कर कैसे बाथरूम में स्नान करते रहे, मानना पड़ेगा.
लेकिन राहुल ब्रिगेड ने तो सवाल उठाने के मामले में बीजेपी को भी लगता है पीछे छोड़ दिया है!
अब तो सवाल ये उठेगा कि राहुल ब्रिगेड के निशाने पर वास्तव में मनमोहन सिंह ही हैं या फिर सीधे सीधे सोनिया गांधी?
बीजेपी का आरोप रहा है कि यूपीए की सरकार रिमोट कंट्रोल से चलती रही. प्रधानमंत्री के तौर पर सरकार तो मनमोहन सिंह चलाते रहे, लेकिन उसका रिमोट सोनिया गांधी के हाथ में हुआ करता था. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ही मीडिया सलाहकार रहे, संजय बारू की किताब 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में भी ऐसी ही बातों का ज्यादातर जिक्र है.
कांग्रेस में सबसे ज्यादा वक्त 21 साल तक पार्टी अध्यक्ष रहने के बाद सोनिया गांधी साल भर से अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं - और 10 अगस्त को ही उनके कार्यकाल का आखिरी दिन है. इस बीच राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस में फिर से अध्यक्ष बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है.
गांधी परिवार से बाहर किसी को कमान सौंपने को लेकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके राहुल गांधी के बारे में माना जा रहा है कि वो वापसी का मन तो बना रहे हैं, लेकिन उनकी अपनी शर्तें हैं. ये शर्तें पुराने कांग्रेसियों का पत्ता पूरी तरह साफ करने से जोड़ कर देखी जा रही हैं.
17 महीने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे रहे राहुल गांधी ने कुर्सी संभालते वक्त कहा था कि पार्टी को युवाओं के जोश के साथ साथ बुजुर्गों के अनुभव की जरूरत है. ऐसा करके वो बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के मुद्दे पर कटाक्ष करने की कोशिश भी किये थे - लेकिन लगता है कांग्रेस भी अब उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई है.
मनमोहन सिंह के बचाव में उतरे पुराने कांग्रेसी
यूपीए 2 की मनमोहन सरकार में मंत्री रहे आनंद शर्मा ने एक एक करके 11 ट्वीट किये हैं - और 10 साल के शासन की उपलब्धियों की सूची सामने रख दी है. आनंद शर्मा बताते हैं कि किस तरह वो सब बीजेपी, राजनीतिक विरोधियों और ताकतवर निहित स्वार्थ से भरे लोगों की दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक साजिश और मुहिम का शिकार हो गया.
मनीष तिवारी ने तो राज्य सभा सांसदों की मीटिंग के बाद भी ट्विटर पर चार सवाल पूछे थे. अब मनीष तिवारी ने राहुल गांधी के करीबी नेताओं को बीजेपी का उदाहरण दिया है. मनीष तिवारी ने लिखा है कि बीजेपी भी 10 साल तक सत्ता से बाहर रही, लेकिन कभी भी वाजपेयी सरकार पर सवाल नहीं उठाया गया.
मनीष तिवारी के ट्वीट को मिलिंद देवड़ा ने टिप्पणी के साथ रीट्वीट किया है. मिलिंद देवड़ा ने मनमोहन सिंह के बयान का हवाला दिया है - 'इतिहास मेरे प्रति दया भाव जरूर रखेगा.' देवड़ा लिखते हैं - क्या उन्होंने कभी सोचा होगा कि उनकी अपनी पार्टी के कुछ लोग उनकी बरसों की देश सेवा को खारिज कर देंगे और उनकी विरासत को नुकसान पहुंचाएंगे और वो भी उनकी मौजूदगी में ही?
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने मिलिंद देवड़ा और मनीष तिवारी दोनों की बातों का सपोर्ट किया है - और लिखा है, 'यूपीए के बदलाव भरे 10 साल दुर्भावनापूर्ण तरीके से खराब कर दिये गये. हमारी हार और बहुत कुछ जानने के लिए और कांग्रेस को पुर्नजीवित करने के लिए थी - न कि वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों के हाथों में खेलने के लिए.'
मनमोहन सिंह तो खामोश हैं ही सोनिया गांधी की तरफ से भी मौजूदा बवाल पर कोई बयान नहीं आया है - और न ही राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा की ही तरफ से कोई टिप्पणी की गयी है. ऐन उसी वक्त सीनियर कांग्रेस नेता ट्विटर पर सवाल उठाने वाली युवा ब्रिगेड पर सवाल उठा रहे हैं - और यूपीए सरकार के साथ साथ मनमोहन सिंह का बचाव भी कर रहे हैं.
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