सुबह सात बजे. मध्यप्रदेश के खरगौन जिले में नर्मदा किनारे का छोटा सा गांव गंगातखेडी. साढ़े आठ सौ की आबादी वाले इस गांव में खूब चहल पहल है. यूं तो नर्मदा परिक्रमावासियों का यहां आना आम है, लेकिन आज परिक्रमावासी भी खास हैं. वो हैं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे चर्चित नेता दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी अमृता.
दोनों बीती रात से यहीं एक आश्रम में रुके हैं. 3300 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा का ये 95वां पड़ाव है. करीब साढ़े सोलह सौ किलोमीटर हो चुके हैं. नर्मदा के किनारे उंची नीची पगडंडीयों पर पैदल साढ़े सोलह सौ किलोमीटर का सफर. मानों सफर के निशां दोनों के चेहरों पर चस्पां हो गए हों. मां नर्मदा की आरती का वक्त हो गया है. नर्मदाष्टक का गान और फिर यात्रा बढ़ चली, अगले मुकाम के लिये.
नर्मदा के किनारे कच्ची पगडंडियों पर धूल उड़ाते हर कदम के साथ मां श्री नर्मदे हर की गूंज. बीते 95 दिनों से दिग्विजय सिंह ना तो किसी गाड़ी में बैठे हैं, ना ही राजनीति की कोई बात की है. कोई बयान नहीं. पूरा गुजरात चुनाव हो गया. राहुल गांधी अध्यक्ष बन गए. लेकिन कोई बयान नहीं. हर मौके पर दिल्ली के सियासी सर्कल की निगाहें उन्हें तलाश रही थी.
लेकिन दिग्विजय सिंह भगवा उठाए नर्मदा परिक्रमा में लगे हुए थे. इतनी कठोर, इतनी दुष्कर यात्रा, क्या सिर्फ इमेज बदलने के लिये? सवाल के जवाब में कहते हैं- 'मैं तो मां के पास प्रायश्चित करने आया हूं.' लेकिन सवाल...
सुबह सात बजे. मध्यप्रदेश के खरगौन जिले में नर्मदा किनारे का छोटा सा गांव गंगातखेडी. साढ़े आठ सौ की आबादी वाले इस गांव में खूब चहल पहल है. यूं तो नर्मदा परिक्रमावासियों का यहां आना आम है, लेकिन आज परिक्रमावासी भी खास हैं. वो हैं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे चर्चित नेता दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी अमृता.
दोनों बीती रात से यहीं एक आश्रम में रुके हैं. 3300 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा का ये 95वां पड़ाव है. करीब साढ़े सोलह सौ किलोमीटर हो चुके हैं. नर्मदा के किनारे उंची नीची पगडंडीयों पर पैदल साढ़े सोलह सौ किलोमीटर का सफर. मानों सफर के निशां दोनों के चेहरों पर चस्पां हो गए हों. मां नर्मदा की आरती का वक्त हो गया है. नर्मदाष्टक का गान और फिर यात्रा बढ़ चली, अगले मुकाम के लिये.
नर्मदा के किनारे कच्ची पगडंडियों पर धूल उड़ाते हर कदम के साथ मां श्री नर्मदे हर की गूंज. बीते 95 दिनों से दिग्विजय सिंह ना तो किसी गाड़ी में बैठे हैं, ना ही राजनीति की कोई बात की है. कोई बयान नहीं. पूरा गुजरात चुनाव हो गया. राहुल गांधी अध्यक्ष बन गए. लेकिन कोई बयान नहीं. हर मौके पर दिल्ली के सियासी सर्कल की निगाहें उन्हें तलाश रही थी.
लेकिन दिग्विजय सिंह भगवा उठाए नर्मदा परिक्रमा में लगे हुए थे. इतनी कठोर, इतनी दुष्कर यात्रा, क्या सिर्फ इमेज बदलने के लिये? सवाल के जवाब में कहते हैं- 'मैं तो मां के पास प्रायश्चित करने आया हूं.' लेकिन सवाल इमेज बदलने का है तो वो बदल रही है. तभी तो नर्मदा यात्रा जब गंगातखेड़ी से निकल कर अगले पड़ाव बड़वाह पहुंचती है, तो बीजेपी तो छोड़िये, हिंदू संगठन के नेता भी स्वागत करते हैं. कहते हैं- 'हमें तो भगवा ध्वज से मतलब है कोई भी उठाए.'
नर्मदा परिक्रमा यात्रा में भले ही लोग आस्था से शामिल हो रहे हों. लेकिन जिस अंदाज में दिग्विजय सिंह और अमृता सिंह ग्रामीणों से मिल जुल रहे हैं, यात्रा की सियासी तरंगों से इनकार नहीं किया जा सकता. इसी साल मध्यप्रदेश में चुनाव हैं. जहां से यात्रा गुजर रही है, वहां के कांग्रेसी भी उत्साहित हैं. तुष्टीकरण के सनातन आरोप से मानों उन्हे मुक्ति मिल रही हो.
गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के मंदिर–मंदिर दर्शन को अगर कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ लौटने का कदम माना जाए, तो यहां तो 3300 किलोमीटर तक सिर्फ भजन, पूजन, आरती और अभिषेक हैं. हजारों मंदिर हैं. ध्वज भी भगवा है. और तो और धर्माचार्यों-धर्मगुरुओं का साथ भी है. तभी तो भानपुरा पीठ के शंकराचार्य स्वयं यात्रा में सम्मिलित होने पहुंचे.
साफ है अगर हिंदुत्व मुद्दा है, तो कम से कम मध्यप्रदेश के आने वाले चुनाव में दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस की तरफ से उसकी ऐसी काट तैयार की है, जिसे बीजेपी नकार नहीं पाएगी. हालांकि दिग्विजय सिंह तो यात्रा के सियासी मायनों से साफ इंकार करते हैं. लेकिन ये भी कहते हैं कि- 'राजनेता था. राजनेता हूं. और राजनेता रहूंगा.'
देखते हैं नर्मदा की लहरों से उठी सियासी तरंगे कहां तक जाती हैं.
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