नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा दिया था. तभी से वो अपने इस मिशन में कामयाब भी होते रहे हैं. उन्होंने न केवल उस लोकसभा चुनाव में 282 सीटों पर जीत हासिल की बल्कि कांग्रेस को मात्र 44 सीटों पर भी समेट दिया था.
विधानसभाओं से भी कांग्रेस का सफाया-
बात केवल लोकसभा में कांग्रेस को हाशिये पर लाने की नहीं है. पिछले साढ़े तीन सालों में भाजपा, कांग्रेस से कई राज्यों में सत्ता छीन चुकी है. राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को झटके पे झटका मिलता गया. 2014 में ही कांग्रेस ने हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता गंवा दी. झारखंड, जम्मू-कश्मीर में भी उसकी करारी हार हुई.
2015 में बिहार में महागठबंधन में शामिल होकर उसने जीत का स्वाद चखा. लेकिन उसी साल कांग्रेस को असली झटका दिल्ली में मिला, जहां उसे एक भी सीट नहीं मिली. अगर बात करें 2016 की तो यह साल भी कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर लेकर नहीं आया. उस साल उसके हाथ से असम जैसा बड़ा राज्य चला गया. केरल में भी उसकी गठबंधन सरकार हार गई, जबकि पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उसका सूपड़ा साफ हो गया.
अब बात साल 2017 की. उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा ने बाज़ी मार ली. गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनी. मगर सरकार बनाने मे नाकाम रही. यहां भी भाजपा ने सरकार बना ली. कांग्रेस को पंजाब के रूप में सांत्वना पुरस्कार मिला.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहां ये है कि क्या मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने ये कमाल कर दिखाया या कुछ और भी कारक काम कर रहे थे? अगर हम विधान सभाओं का चुनाव परिणामों को देंखे तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि भाजपा का 'कांग्रेस मुक्त भारत' को साकार बनाने में...
नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा दिया था. तभी से वो अपने इस मिशन में कामयाब भी होते रहे हैं. उन्होंने न केवल उस लोकसभा चुनाव में 282 सीटों पर जीत हासिल की बल्कि कांग्रेस को मात्र 44 सीटों पर भी समेट दिया था.
विधानसभाओं से भी कांग्रेस का सफाया-
बात केवल लोकसभा में कांग्रेस को हाशिये पर लाने की नहीं है. पिछले साढ़े तीन सालों में भाजपा, कांग्रेस से कई राज्यों में सत्ता छीन चुकी है. राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को झटके पे झटका मिलता गया. 2014 में ही कांग्रेस ने हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता गंवा दी. झारखंड, जम्मू-कश्मीर में भी उसकी करारी हार हुई.
2015 में बिहार में महागठबंधन में शामिल होकर उसने जीत का स्वाद चखा. लेकिन उसी साल कांग्रेस को असली झटका दिल्ली में मिला, जहां उसे एक भी सीट नहीं मिली. अगर बात करें 2016 की तो यह साल भी कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर लेकर नहीं आया. उस साल उसके हाथ से असम जैसा बड़ा राज्य चला गया. केरल में भी उसकी गठबंधन सरकार हार गई, जबकि पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उसका सूपड़ा साफ हो गया.
अब बात साल 2017 की. उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा ने बाज़ी मार ली. गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनी. मगर सरकार बनाने मे नाकाम रही. यहां भी भाजपा ने सरकार बना ली. कांग्रेस को पंजाब के रूप में सांत्वना पुरस्कार मिला.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहां ये है कि क्या मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने ये कमाल कर दिखाया या कुछ और भी कारक काम कर रहे थे? अगर हम विधान सभाओं का चुनाव परिणामों को देंखे तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि भाजपा का 'कांग्रेस मुक्त भारत' को साकार बनाने में सबसे ज़्यादा आगे किसी ने सहायता की है तो वो कांग्रेस के नेतागण ही हैं. राज्यों में बनी भाजपा की सरकारों में करीब एक दर्जन से ज़्यादा ऐसे मंत्री है जो कांग्रेस से आये हुए हैं.
एक नज़र ऐसे राज्यों का जहां कांग्रेस के नेता भाजपा मंत्रिमंडल में शामिल हैं-
हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के विवादित नेता सुखराम और उनके बेटे अनिल शर्मा ने भाजपा का दामन थाम लिया है. अनिल शर्मा भाजपा के तरफ से चुनाव मैदान में भी हैं. यहां दिसम्बर में चुनाव होने हैं.
गुजरात: गुजरात में विधानसभा का चुनाव दिसम्बर में होना है. इससे पहले शंकर सिंह बघेला कांग्रेस छोड़ चुके हैं और परोक्ष रूप से भाजपा का सहयोग भी कर रहे हैं. कम से कम 8 कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है.
उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की यूपी इकाई की पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी बीजेपी में शामिल हो गई थी. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने बीजेपी की सरकार में मंत्री का पदभार भी संभाला.
उत्तराखंड: 2017 में भाजपा चुनाव से ठीक पहले थोक के भाव से कांग्रेसियों को शामिल करके विवाद में आ गयी थी. चुनाव से पहले ही 13 कांग्रेसी विधायकों ने दल-बदल करते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था. भाजपा की सरकार बनने के बाद छह पूर्व कांग्रेसी नेता मंत्री बनाये गये.
गोवा: गोवा में तो पूर्व कांग्रेस नेताओं का बोलबाला है. यहां के 11 मंत्रियों में 8 पूर्व कांग्रेसी हैं.
मणिपुर: इसी साल मणिपुर में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दूसरे छोटे दलों के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनायी. लेकिन बीजेपी सरकार में राज्य के सीएम बने एन बीरेन सिंह लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे थे. उनके 12 मंत्रियों में से छह पूर्व-कांग्रेसी या पूर्व कांग्रेस सहयोगी रहे हैं.
असम: जब साल 2016 में असम में बीजेपी ने पहली बार सरकार बनायी. उसमें 3 पू्र्व कांग्रेसी नेताओं को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल कैबिनेट में मंत्री बनाया गया. असम में भाजपा की जीत के पीछे करीब 15 साल कांग्रेस में रहने वाले हेमंत विश्वशर्मा का हाथ माना जाता है.
इस तरह से भाजपा का नारा 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना साकार करने में पूर्व कांग्रेसियों का हाथ ज़्यादा दिखता है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा ऐसा एक रणनीति के तहत कर रही है. जहां भाजपा खुद मज़बूत नहीं है, वहां कांग्रेस समेत दूसरे दलों के नेताओं को अपनी ओर खींचती है. जिससे एक तो भाजपा मज़बूत होती है और वहीं दूसरी विपक्षी पार्टियां और कमज़ोर होती हैं.
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