मध्यप्रदेश में 15 साल की एंटी-इंकमबेंसी को बीजेपी ने गंभीरता से लिया है लेकिन 15 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस अभी भी जनता को विकल्प देने के लिए गंभीर नहीं है. इन दिनों प्रदेश में आम लोगों के बीच एक ही चर्चा का विषय है कि प्रदेश में सरकार किस की बन रही है. अब ये सवाल जनता के मन में इसलिए है क्योंकि इस बार कोई लहर दिख नहीं रही है. वोटर यानी जनता जनार्दन ही कनफ्यूज़ है कि पंद्रह साल बीजेपी राज़ के बाद अब किसे मौका दिया जाए- फिर से बीजेपी को या कांग्रेस को.
अभी कांग्रेस के वचन पत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं पर कथित पाबंदी पर बवाल अभी थमा भी नहीं था कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के वायरल वीडियो ने नया विवाद खड़ा कर दिया है जिसकी सफाई देना पार्टी को भारी पड़ रहा है. वीडियो में कमलनाथ मुस्लिमों के सामने चुनाव के बाद आरएसएस से निपटने की बात कर रहे हैं. प्रदेश में टिकिट बंट चुके हैं, मतदान सिर पर है और कांग्रेस का अच्छे से प्रचार शुरू भी नहीं हो पाया कि बीजेपी ने बड़ी होशियारी से ये मुद्दा झटक लिया है. कमलनाथ के इस वीडियो ने प्रदेश में अनावश्यक तौर पर हिन्दू-मुसलिम के मुद्दे को हवा दे दी है, जिससे ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस को तो फायदा होने वाला नहीं है. कमलनाथ का आरएसएस को लेकर वीडियो और फिर महिलाओं के टिकिट को लेकर टिप्पणी पार्टी को भारी पड़ रही है.
छह महीने पहले जब कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपी थी तो ये लगा कि कांग्रेस में सब कुछ जल्दी ठीक हो जाएगा. शुरूवात में जोश दिखाई भी दिया. कांग्रेस के बड़े नेताओं से मेरी मुलाकात हुई थी तो उन्होनें कहा था कि पार्टी में अब गुटबाजी नहीं है और इस बार टिकट भी जल्दी बांट दी जाएंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कैम्पेन कमेटी के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रचार शुरू भी कर दिया था लेकिन बीच में टिकिट वितरण के दौरान सिंधिया और...
मध्यप्रदेश में 15 साल की एंटी-इंकमबेंसी को बीजेपी ने गंभीरता से लिया है लेकिन 15 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस अभी भी जनता को विकल्प देने के लिए गंभीर नहीं है. इन दिनों प्रदेश में आम लोगों के बीच एक ही चर्चा का विषय है कि प्रदेश में सरकार किस की बन रही है. अब ये सवाल जनता के मन में इसलिए है क्योंकि इस बार कोई लहर दिख नहीं रही है. वोटर यानी जनता जनार्दन ही कनफ्यूज़ है कि पंद्रह साल बीजेपी राज़ के बाद अब किसे मौका दिया जाए- फिर से बीजेपी को या कांग्रेस को.
अभी कांग्रेस के वचन पत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं पर कथित पाबंदी पर बवाल अभी थमा भी नहीं था कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के वायरल वीडियो ने नया विवाद खड़ा कर दिया है जिसकी सफाई देना पार्टी को भारी पड़ रहा है. वीडियो में कमलनाथ मुस्लिमों के सामने चुनाव के बाद आरएसएस से निपटने की बात कर रहे हैं. प्रदेश में टिकिट बंट चुके हैं, मतदान सिर पर है और कांग्रेस का अच्छे से प्रचार शुरू भी नहीं हो पाया कि बीजेपी ने बड़ी होशियारी से ये मुद्दा झटक लिया है. कमलनाथ के इस वीडियो ने प्रदेश में अनावश्यक तौर पर हिन्दू-मुसलिम के मुद्दे को हवा दे दी है, जिससे ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस को तो फायदा होने वाला नहीं है. कमलनाथ का आरएसएस को लेकर वीडियो और फिर महिलाओं के टिकिट को लेकर टिप्पणी पार्टी को भारी पड़ रही है.
छह महीने पहले जब कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपी थी तो ये लगा कि कांग्रेस में सब कुछ जल्दी ठीक हो जाएगा. शुरूवात में जोश दिखाई भी दिया. कांग्रेस के बड़े नेताओं से मेरी मुलाकात हुई थी तो उन्होनें कहा था कि पार्टी में अब गुटबाजी नहीं है और इस बार टिकट भी जल्दी बांट दी जाएंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कैम्पेन कमेटी के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रचार शुरू भी कर दिया था लेकिन बीच में टिकिट वितरण के दौरान सिंधिया और दिग्विजय में खटपट की खबरें भी आईं. ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस प्रदेश के विकास के मुद्दे और शिवराज को घेरने की बजाय अपने ही नेताओं के विवादित बयानों में उलझ रही है.
सूबे से शिवराज सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस के क्षत्रपों ने प्रचार का एक्शन प्लान तैयार किया है. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी के साथ महाकौशल पर नजरें जमाएं हैं. कमलनाथ की 100 रैलियों के प्लान के मुताबिक हर दिन 4 से 5 सभाएं कर रहें हैं. पार्टी के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी होने के नाते साख भी उनकी ही दांव पर है. वहीं दिग्विजय सिंह डेमेज कंट्रोल में जुटे हैं, रूठों को मना रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय का कोई प्लान सभा लेने का नहीं है, वे सिर्फ गुना, भोपाल या जहां उम्मीदवार बुलाते हैं वहां जा रहे हैं लेकिन कोई पब्लिक मीटिंग नहीं ले रहे हैं. मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में एक ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरा फोकस चंबल की 56 सीटें हैं और मालवा-बुंदेलखंड की उन सीटों पर सभा लेने जा रहे हैं जहां उनके समर्थकों को टिकिट मिली हैं. इसी तरह कद्दावर नेता के पुत्र अजय सिंह विंध्य में मैदान संभाले हुए हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव पूरी ताकत बुदनी में शिवराज को घेरने में लगा रहे हैं. इसी तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री रहे सुरेश पचौरी भी भोजपुर विधानसभा सीट से मैदान में हैं. पार्टी आलाकमान राहुल गांधी की करीब 20 सभाओं का प्लान है.
थोड़ा सा याद दिला दें कि 2013 के विधान सभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था और देश भर में मोदी की सभाओं ने युवाओं का दिल जीत कर माहौल एक तरफा कर दिया था और प्रदेश में शिवराज का जादू भी कम नहीं हुआ था. दूसरी ओर यूपीए की नाकामी और प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी ने बीजेपी को तीसरा मौका दिया था. शिवराज के नेतृत्व में बीजेपी को 172 सीटें मिलीं जो पार्टी की उम्मीद से कहीं ज्यादा थीं.
पंद्रह साल से बीजेपी सत्ता में है और जनता बदलाव के मूड में है, लेकिन कांग्रेस के पांच साल के एक्शन प्लान का इंतजार कर रही है. यदि कांग्रेस मुद्दे से भटकती है तो सत्ता फिर हाथ से निकल सकती है.
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