गुजरात चुनाव के लिए कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची अभी लटकी पड़ी है. बाकी अड़चनों के अलावा कांग्रेस का हार्दिक पटेल और छोटूभाई वसावा से डील फाइनल न होना भी इसकी बड़ी वजह है.
असल में, कांग्रेस सहयोगियों को कम से कम सीटों पर मना लेना चाहती है. कांग्रेस उनकी कमजोरी का पूरा फायदा उठाना चाहती है. मगर, कांग्रेस ये क्यों भूल जा रही है कि ये बात सहयोगियों से ज्यादा तो खुद उसी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.
कमजोर होते कांग्रेस के साथी
जेडीयू के बागी नेता छोटूभाई वासवा का वोट कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी साबित हुआ था. वसावा के वोट से ही कांग्रेस नेता अहमद पटेल राज्य सभा चुनाव में जीत हासिल कर सके. अब कांग्रेस उन्हें सस्ते में निबटाने की फिराक में है, खासकर जेडीयू केस में चुनाव आयोग का फैसला नीतीश कुमार के पक्ष में जाने के बाद.
हार्दिक के मामले में भी कांग्रेस ने यही रवैया अख्तियार किया है. दिल्ली पहुंचने के बाद भी कांग्रेस नेताओं द्वारा मुलाकात का वक्त न दिये जाने से हार्दिक के साथी बेहद खफा हैं. जब कांग्रेस चुनाव समिति के नेताओं ने उनका फोन तक न उठाया तो उन्होंने 24 घंटे का अल्टीमेटम भी दे डाला. हालांकि, कांग्रेस की ओर से इसे कम्युनिकेशन गैप बताया गया और कहा गया कि मामला सुलझाने की कोशिश की जाएगी.
हार्दिक पटेल को एक जोरदार झटका और लगा है. पाटीदार आंदोलन में हार्दिक के साथी केतन पटेल बीजेपी से जा मिले हैं. कभी केतन को हार्दिक के साये की तरह देखा जाता था. हार्दिक के साथ ही केतन पर भी देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ था लेकिन बाद में वो गवाह बन गये.
केतन से पहले हार्दिक के बेहद करीबियों में शुमार रेशमा पटेल और वरुण पटेल भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इनके अलावा चिराग पटेल...
गुजरात चुनाव के लिए कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची अभी लटकी पड़ी है. बाकी अड़चनों के अलावा कांग्रेस का हार्दिक पटेल और छोटूभाई वसावा से डील फाइनल न होना भी इसकी बड़ी वजह है.
असल में, कांग्रेस सहयोगियों को कम से कम सीटों पर मना लेना चाहती है. कांग्रेस उनकी कमजोरी का पूरा फायदा उठाना चाहती है. मगर, कांग्रेस ये क्यों भूल जा रही है कि ये बात सहयोगियों से ज्यादा तो खुद उसी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.
कमजोर होते कांग्रेस के साथी
जेडीयू के बागी नेता छोटूभाई वासवा का वोट कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी साबित हुआ था. वसावा के वोट से ही कांग्रेस नेता अहमद पटेल राज्य सभा चुनाव में जीत हासिल कर सके. अब कांग्रेस उन्हें सस्ते में निबटाने की फिराक में है, खासकर जेडीयू केस में चुनाव आयोग का फैसला नीतीश कुमार के पक्ष में जाने के बाद.
हार्दिक के मामले में भी कांग्रेस ने यही रवैया अख्तियार किया है. दिल्ली पहुंचने के बाद भी कांग्रेस नेताओं द्वारा मुलाकात का वक्त न दिये जाने से हार्दिक के साथी बेहद खफा हैं. जब कांग्रेस चुनाव समिति के नेताओं ने उनका फोन तक न उठाया तो उन्होंने 24 घंटे का अल्टीमेटम भी दे डाला. हालांकि, कांग्रेस की ओर से इसे कम्युनिकेशन गैप बताया गया और कहा गया कि मामला सुलझाने की कोशिश की जाएगी.
हार्दिक पटेल को एक जोरदार झटका और लगा है. पाटीदार आंदोलन में हार्दिक के साथी केतन पटेल बीजेपी से जा मिले हैं. कभी केतन को हार्दिक के साये की तरह देखा जाता था. हार्दिक के साथ ही केतन पर भी देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ था लेकिन बाद में वो गवाह बन गये.
केतन से पहले हार्दिक के बेहद करीबियों में शुमार रेशमा पटेल और वरुण पटेल भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इनके अलावा चिराग पटेल और महेश पटेल भी हार्दिक का साथ छोड़ चुके हैं. इस बीच गांधीनगर प्रशासन की इजाजत न मिलने से हार्दिक पटेल को रैली रद्द करनी पड़ी है.
हार्दिक की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रहीं. हार्दिक बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं और उनके साथी वही पार्टी ज्वाइन करते जा रहे हैं. कांग्रेस से भी अभी तक उनकी बात बनती नहीं नजर आ रही है.
सस्ते में निबटाने की कोशिश
कांग्रेस ने अल्पेश ठाकोर को तो मिला लिया लेकिन हार्दिक के अड़ जाने से बात अटकी पड़ी है. सेक्स सीडी को लेकर कांग्रेस नेता हार्दिक का बचाव तो कर रहे हैं लेकिन सीटों के मामले में सस्ते में निबटाना चाहते हैं. आरक्षण को लेकर भी कांग्रेस की ओर से एक फॉर्मूला बताया गया था, लेकिन दोनों ही मामलों में हार्दिक की ओर से बताया गया है कि पार्टी तस्वीर साफ नहीं कर रही है.
अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस से 25 सीटों की मांग की थी जबकि हार्दिक ने 22. कांग्रेस ने अल्पेश को 12-14 सीटों पर राजी कर लिया लेकिन लगातार कमजोर होते हार्दिक को वो छह-सात से ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं है, मीडिया रिपोर्ट से तो यही मालूम होता है.
हार्दिक की ही तरह जेडीयू के बागी नेता छोटूभाई वसावा के मामले में भी कांग्रेस वैसी ही सख्त नजर आ रही है. वसावा ने कम से कम एक दर्जन सीटों की मांग रखी थी, लेकिन चुनाव आयोग में फैसला खिलाफ चले जाने के बाद स्थिति कमजोर हो गयी है. चुनाव आयोग ने शरद यादव की अपील ठुकराते हुए नीतीश कुमार के गुट को असली जेडीयू माना है और चुनाव निशान पर भी अब उन्हीं का हक है.
पहले तो कांग्रेस छोटूभाई और उनके बेटे सहित दो-तीन सीटें देने की बात कर रही थी लेकिन अब सिर्फ एक सीट देने पर अड़ गयी है. वैसे चुनाव निशान को लेकर कांग्रेस की दलील मजबूत लगती है. कांग्रेस का कहना है कि जेडीयू का तीर निशान आदिवासी पहचानते थे लेकिन अब वसावा उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते. ऐसे में उनके हर उम्मीदवार को अलग अलग चुनाव निशान मिलेंगे जिसे आदिवासियों को समझाना मुश्किल होगा. कांग्रेस का कहना है कि वो ऐसा रिस्क लेने को तैयार नहीं है.
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