कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी का बयान आ जाने के बाद कोई शक-शुबहा नहीं बचा है. राहुल गांधी अब पीछे मुड़ कर नहीं देखने वाले. राहुल गांधी अब से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठने वाले हैं - और न ही अब वो गांधी परिवार से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनने देने वाले हैं.
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा को भी कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में बिलकुल नहीं है. एकबारगी राहुल गांधी अपनी बहन को और मुसीबत में नहीं डालाना चाहते. CWC की मीटिंग में कह भी चुके हैं - 'मेरी बहन को इसमें मत घसीटो'. हो सकता है राहुल गांधी को लगता हो ऐसा होने पर गांधी परिवार की जानी दुश्मन बीजेपी और आक्रामक हमले करने लगेगी.
राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी पर छोड़ दिया है कि वो अपना अध्यक्ष जैसे मर्जी हो चुने. राहुल गांधी का कहना है कि वो चयन प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लेने वाले. हालांकि, उनका कहना है कि बतौर कार्यकर्ता वो कांग्रेस के लिए पहले की ही तरह काम करते रहेंगे.
राहुल गांधी के सार्वजनिक तौर पर ये कहने के साथ ही नये कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर कयासों के नये दौर शुरू हो गये हैं - लेकिन अब तक जो नाम सुनने को मिल रहे हैं वे गांधी परिवार के न होकर भी अलग नहीं लग रहे.
कहीं दूसरा मनमोहन सिंह तो नहीं खोज रही कांग्रेस?
कांग्रेस में नये अध्यक्ष की तलाश जोर शोर से शुरू हो चुकी है. राहुल गांधी के मनमाफिक उसे गांधी परिवार से अलग खोजा जा रहा है. सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता जरूर चुना गया लेकिन लगता नहीं कि वो फिर से संगठन की भी कमान संभालने वाली हैं. राहुल गांधी को कमान सौंपने की एक वजह बेटे को विरासत सौंपना जरूर रही, लेकिन उनकी खराब सेहत भी इजाजत नहीं दे रही थी. हालांकि, आखिर तक ज्यादातर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से कुर्सी न छोड़ने की गुजारिश करते ही रहे. ये तो नहीं मालूम कि अशोक गहलोत ने राहुल गांधी से जनहित में अध्यक्ष बने रहने की जो अपील की है - वो भी वैसी ही है क्या? वैसे सोनिया गांधी...
कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी का बयान आ जाने के बाद कोई शक-शुबहा नहीं बचा है. राहुल गांधी अब पीछे मुड़ कर नहीं देखने वाले. राहुल गांधी अब से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठने वाले हैं - और न ही अब वो गांधी परिवार से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनने देने वाले हैं.
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा को भी कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में बिलकुल नहीं है. एकबारगी राहुल गांधी अपनी बहन को और मुसीबत में नहीं डालाना चाहते. CWC की मीटिंग में कह भी चुके हैं - 'मेरी बहन को इसमें मत घसीटो'. हो सकता है राहुल गांधी को लगता हो ऐसा होने पर गांधी परिवार की जानी दुश्मन बीजेपी और आक्रामक हमले करने लगेगी.
राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी पर छोड़ दिया है कि वो अपना अध्यक्ष जैसे मर्जी हो चुने. राहुल गांधी का कहना है कि वो चयन प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लेने वाले. हालांकि, उनका कहना है कि बतौर कार्यकर्ता वो कांग्रेस के लिए पहले की ही तरह काम करते रहेंगे.
राहुल गांधी के सार्वजनिक तौर पर ये कहने के साथ ही नये कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर कयासों के नये दौर शुरू हो गये हैं - लेकिन अब तक जो नाम सुनने को मिल रहे हैं वे गांधी परिवार के न होकर भी अलग नहीं लग रहे.
कहीं दूसरा मनमोहन सिंह तो नहीं खोज रही कांग्रेस?
कांग्रेस में नये अध्यक्ष की तलाश जोर शोर से शुरू हो चुकी है. राहुल गांधी के मनमाफिक उसे गांधी परिवार से अलग खोजा जा रहा है. सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता जरूर चुना गया लेकिन लगता नहीं कि वो फिर से संगठन की भी कमान संभालने वाली हैं. राहुल गांधी को कमान सौंपने की एक वजह बेटे को विरासत सौंपना जरूर रही, लेकिन उनकी खराब सेहत भी इजाजत नहीं दे रही थी. हालांकि, आखिर तक ज्यादातर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से कुर्सी न छोड़ने की गुजारिश करते ही रहे. ये तो नहीं मालूम कि अशोक गहलोत ने राहुल गांधी से जनहित में अध्यक्ष बने रहने की जो अपील की है - वो भी वैसी ही है क्या? वैसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्य प्रणाली अलहदा है और हर कोई उससे बखूबी वाकिफ है.
अशोक गहलोत के अलावा अब तक जो नाम सामने आया है वो है - केसी वेणुगोपाल का. केसी वेणुगोपाल का नाम लेने की वजह उनका केरला से होना है. दरअसल, अमेठी के बाद राहुल गांधी का नया पॉलिटिकल प्यार केरला ही नजर आ रहा है.
अशोक गहलोत का नाम तो फुल टाइम अध्यक्ष के रूप में लिया जा रहा है, लेकिन केसी वेणुगोपाल का अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर ही. अशोक गहलोत के अध्यक्ष बनने की स्थिति में सचिन पायलट के दुख भी खत्म हो जाएंगे - और पांच साल तक राजस्थान के लोगों को जो उम्मीद जगायी थी उसे पूरा करने में पूरी ऊर्जा लगा सकेंगे. जब भी सचिन पायलट को लेकर ऐसी खबरें आती होंगी ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी कान खड़े हो ही जाते होंगे. चुनावी हार बहुत बुरी होती है. दुख जल्दी नहीं जाता. बहुत इम्तिहान लेता है तब जाकर रुतबा हासिल हो पाता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है.
केसी वेणुगोपाल को छोड़ भी दें क्योंकि वो तो अंतरिम ही रहेंगे, लेकिन अशोक गहलोत में ऐसी कौन सी काबिलियत कांग्रेस को नजर आ रही है जो अध्यक्ष बनाने पर विचार चल रहा है?
अशोक गहलोत की पहली और आखिरी काबलियत गांधी परिवार का करीबी होना है. साधारण रहन सहन वाले अशोक गहलोत हर तरीके से खुद को कांग्रेस पार्टी के लिए समर्पित और किसी भी तरह से महत्वाकांक्षी न होने की नुमाइश करते हैं. वैसे भी वो पेशेवर जादूगर हैं - किसी भी जादू चलाना उनके बायें हाथ का खेल है. फिर तो आलाकमान का दायां हाथ बने रहना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है.
राहुल गांधी विदेश यात्रा के बाद लौटे और गुजरात पहुंचे तो अशोक गहलोत परछाई की तरह आस पास बने रहे. काफी हद तक वैसे ही जैसे कभी दिग्विजय सिंह हुआ करते थे. सोनिया गांधी ने अपने बेहद भरोसेमंद लोगों को राहुल गांधी के इर्द गिर्द लगा रखा था - अशोक गहलोत के बाद दूसरा नाम सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रह चुके अहमद पटेल रहे. राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने झगड़ा खत्म करने के लिए अशोक गहलोत को कांग्रेस का संगठन महासचिव बना दिया - लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद वो सारे तिकड़म लगा कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी कब्जा कर लिये.
कुछ ही दिन बाद जब आम चुनाव हुए तो अशोक गहलोत पूरी तरह फेल साबित हुए. यहां तक कि अपने बेटे वैभव गहलोत को भी चुनाव नहीं जिता पाये. अब इसे क्या कहा जाये कि अशोक गहलोत चाहते थे कि उनके बेटे की हार के लिए सचिन पायलट अफसोस जाहिर करें. चुप भी तब हुए जब कांग्रेस में ही आवाज उठने लगी कि सत्ता में होने पर चुनावी हार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है और विपक्ष में होने पर पार्टी अध्यक्ष की.
अभी तो अशोक गहलोत में गांधी परिवार का करीबी होने से बड़ी कोई खास योग्यता नहीं लगती. लगता भी यही है कि अगर अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी मिलती तो वो दूसरे मनमोहन सिंह ही साबित होंगे - 'एक्सीडेंटल कांग्रेस प्रेसीडेंट'.
तो क्या कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी दूसरा मनमोहन सिंह ही खोज रही है?
धैर्य हो तो 'अधीर' की तरह कमान 'कैप्टन' को सौंप दे कांग्रेस
अभी तो कुछ कहना मुश्किल है लेकिन कांग्रेस के पास दिल्ली जैसा एक विकल्प भी मौजूद है. ये तभी मुमकिन है जब सोनिया गांधी एक बार फिर कांग्रेस की भी कमान संभाल लें. जरूरी नहीं कि पहले की ही तरह कामकाज संभालें. आखिर दिल्ली में शीला दीक्षित भी तो काम कर ही रही हैं और उसके लिए नेताओं की एक अच्छी टीम भी दी ही गयी है. एक साधे सब सधे. विपक्षी खेमे में कांग्रेस के फिट होने की मुश्किल भी तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाएगी.
सवाल ये है कि नया कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार का करीबी होना चाहिये या फिर कोई काबिल नेता?
एक ऐसा नेता जो कांग्रेस को खाक से उठा कर फलक पर बिठाने की काबिलियत रखता हो.
एक ऐसा नेता जो लोकप्रियता के एवरेस्ट पर पहुंचे बीजेपी नेतृत्व के सामने खड़े होकर सवाल पूछने की हिम्मत कर सके?
ऐसा तो नहीं है कि वो हिम्मत राहुल गांधी में कभी नहीं दिखी - लेकिन उनका मोदी की भाषण देने की कला का बखान करना और फिर 15 मिनट बहस की चुनौती देना मजाक लगता रहा. बोलने पर भूकंप आने का दावा करना और फिर फुस्स हो जाना जगहंसाई की वजह बनता रहा.
एक बात तो है कांग्रेस ने बंगाल से लाकर सदन में बेहतरीन नेता खड़ा किया है. मजबूरी या पश्चिम बंगाल चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही सही - फैसला उम्दा साबित होने वाला है. अधीर रंजन चौधरी हर रोज मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. पहले ही दिन किसानों को लेकर मोदी सरकार को निशाने पर लेने वाले अधीर रंजन चौधरी - बिहार में बच्चों की मौत पर नीतीश सरकार और मोदी सरकार दोनों से सवाल पूछे.
सवाल का जवाब सिर्फ कांग्रेस नेताओं को ही नहीं - राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को भी सोचने और समझने के बाद ही देने की जरूरत है. जल्दबाजी में उठाये गये कदम से लेने के देने पड़ सकते हैं.
अधीर रंजन चौधरी के रूप में कांग्रेस ने संसद में एक अच्छा नेता खोजा है. मजबूरी या पश्चिम बंगाल चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही सही - फैसला बेहतरीन साबित होने वाला है. अधीर रंजन चौधरी लगातार मोदी सरकार के प्रति आक्रामक बने हुए हैं. पहले ही दिन किसानों को लेकर मोदी सरकार को निशाने पर लेने वाले अधीर रंजन चौधरी ने बिहार में बच्चों की मौत पर नीतीश सरकार और मोदी सरकार दोनों से सवाल पूछ डाले.
अधीर रंजन चौधरी की भी सीमाएं हैं. हिंदी बोलना भी उनके लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा है. सदन में वो बोलते तो हिंदी हैं लेकिन बांग्ला वाली बात नहीं दिखती.
तो फिर कांग्रेस में ऐसा कौन सा नेता है जो मौजूदा हालात में कांग्रेस को नयी जिंदगी दिला सकता है?
कांग्रेस को अगर मुफ्त की सलाह चाहिये तो कैप्टन अमरिंदर सिंह से बेहतर विकल्प कोई और नजर नहीं आ रहा है. फिलहाल तो सिर्फ और सिर्फ कैप्टन अमरिंदर सिंह ही हैं जो कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आने से बचा सकते हैं और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भी बीजेपी को बैकफुट पर होने को मजबूर कर सकते हैं.
कांग्रेस को दिल्ली में हुए 1984 के सिख दंगों की बात उठते ही बचाव की मुद्रा में आना पड़ता है. जब जब ये सवाल राहुल गांधी के सामने आया है तो बच कर निकलना पड़ता है. कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के बाद उनसे माफी मंगवाकर उबरे की कोशिश जरूर की लेकिन उसका साया साथ नहीं छोड़ने को राजी है.
जिस तरह राष्ट्रवाद के एजेंडे पर बीजेपी केंद्र की सत्ता में लौटी है और बात बात पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही है - कांग्रेस को भी वैसा भी नेता चुनना जरूरी हो गया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ही कांग्रेस के पास एकमात्र जवाब हैं.
कांग्रेस में अकेले कैप्टन अमरिंदर सिंह ही ऐसे नेता हैं जिनकी कट्टर राष्ट्रवादी छवि बनी हुई है. बीजेपी की ओर से भी कभी किसी ने उन पर इस मामले में उंगली उठाने की कोशिश नहीं की है.
पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब अगर कांग्रेस में कोई देते हुए नजर आता है तो वो कैप्टन अमरिंदर सिंह ही हैं. वो सीधे सीधी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से सवाल करते हैं. वो पाक आर्मी चीफ जनरल बाजवा को भी ललकारते रहते हैं. करतारपुर कॉरिडोर के उद्धाटन के वक्त इमरान खान के न्योते को सीधे सीधे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ठुकरा दिया था. पाकिस्तान को लेकर कैप्टन अमरिंदर के तेवर कहीं से भी केंद्रीय मंत्रियों से कम नहीं लगे.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के कॉन्ट्रास्ट में पंजाब में अगर कोई दिखता है तो वो हैं नवजोत सिंह सिद्धू. सिद्धू के बयान से कैप्टन की छवि और भी निखर कर आती है.
कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ सिद्धू लाख जंग छेड़ें लेकिन राहुल गांधी ने भी अब तक कुछ नहीं कहा है. ये सही है कि राहुल गांधी कभी कैप्टन अमरिंदर को पसंद नहीं करेंगे. कैप्टन अमरिंदर ने तो लड़ कर पंजाब कांग्रेस की कमान ली थी. चुनावी रैली में बुलाकर राहुल गांधी से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कराया था. चुनाव जीत कर साबित भी कर दिया कि कैप्टन का कोई सानी नहीं.
मोदी सरकार के पास भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस के दूसरे नेताओं की तरह घेरने के बहुत हथियार नहीं हैं - अभी तो बिलकुल नहीं हैं. न तो कैप्टन की देशभक्ति पर सवाल उठाया जा सकता है - और न ही न तो कैप्टन 'जेल-गाड़ी' पर सवार हैं, न ही 'बेल-गाड़ी' पर.
राहुल गांधी को बीती बातों को भुलाकर एक बार कैप्टन को जरूर आजमाना चाहिये. ज्यादा कुछ भले न मुमकिन हो पाये, लेकिन कैप्टन अमरिंदर अगली बार कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का पद तो दिला ही सकते हैं? अभी कांग्रेस के लिए ये भी कम तो नहीं?
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