इस आर्टिकल में बात होगी कांग्रेस और उसके अध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों के बारे में. लेकिन एक बात तो तय है कि कांग्रेस की नैया बीच मंझधार में फंसी हुई लगती है और उसे एक खेवैया यानी अध्यक्ष की दरकार है और ये बात केवल हम नहीं कह रहे बल्कि कांग्रेस के युवराज यानी पूर्व अध्यक्ष रहे राहुल गांधी खुद अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखकर बता रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सोमवार को केरल में राहुल गांधी ने स्थानीय नाविकों के साथ प्रतियोगिता में एक नैया की पतवार संभाली और फेसबुक पर लिखा – जब नाव बीच मंझदार में फंस जाए, तब पतवार अपने हाथ में लेनी ही पड़ती है. न रुकेंगे, न झुकेंगे, भारत जोड़ेंगे.
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यहां आपको ये बताता चलूं कि जिस नाव पर राहुल सवार थे वो जीत गई. इसके बाद उन्होंने फेसबुक पर भी लिखा और वीडियो के साथ ट्वीट भी किया – When we all work together in perfect harmony, there is nothing we cannot accomplish.
यानी जब हम सब मिलकर पूरे सामंजस्य के साथ कोई काम करते हैं तो ऐसा कुछ भी नहीं जिसे हम पूरा न कर सकें. कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल से भी वही वीडियो शेयर करते हुए लिखा
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
तो अब आप लोग ही बताइए क्या राहुल गांधी कांग्रेस की डगमगाती नैया की पतवार संभालेंगे और पार्टी का साथ लेते हुए उसे जीत की धारा पर ले चलेंगे. अगर ऐसा होता है तब तो हमारे इस आर्टिकल में आगे कहने-सुनने को कुछ रह नहीं जाता लेकिन राहुल तो राहुल हैं. कभी-कभी लगता है जैसे वो वॉन्टेड फिल्म के सलमान खान का डायलॉग दोहरा रहे हों. एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी, उसके बाद तो मैं अपने आप की भी नहीं सुनता..
2019 के आम चुनाव में बीजेपी और एनडीए से मिली दूसरी बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और कुछ महीने पहले ही अपना कमिटमेंट दोहराया था कि वो फिर से कांग्रेस के अध्यक्ष पद को नहीं संभालना चाहते. कांग्रेस का चिंतन शिविर हो या अन्य बैठकें, राहुल हर बार अपने इसी कमिटमेंट वाले डायलॉग को दोहरा देते हैं और बस यहीं से ये गुंजाईश बनती है कि हम अपना आर्टिकल आगे बढ़ा सकें और आपको ये बता सकें कि कांग्रेस के अध्यक्ष पद की रेस में और कौन है जो कालिया के अमिताभ की तरह आगे खड़ा होकर ये कह सके – हम भी वो हैं जो कभी किसी के पीछे नहीं खड़े होते, जहां खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है.
वैसे कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की लाइन बड़ी लंबी हो सकती है लेकिन अभी तक दो ऐसे नाम सामने आ चुके हैं जो कांग्रेस की नैया के खेवैया बनकर उसे पार लगाने की सोच रहे हैं और ये दो नाम हैं रंगीलो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अपनी अतरंगी दुनिया के बेताज बादशाह कांग्रेस के सांसद शशि थरूर. खबरों के मुताबिक बताया जा रहा है कि शथि थरूर ने 10 जनपद पर सोनिया गांधी से मुलाकात की है. उनके साथ दीपेंद्र हुड्डा, जय प्रकाश अग्रवाल और विजेंद्र सिंह भी थे.
मुलाकात के बाद जब मीडिया ने शशि थरूर से कुछ पूछना चाहा तो वे बिना कुछ बात किए वहां से चले गए और राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जाने लगे कि शशि थरूर कांग्रेस अधक्ष पद के दावेदार हो सकते हैं. ऐसी खबर है कि सोनिया ने एक बात तो साफ कर दी है कि चुनाव लड़ना है या नहीं ये किसी का भी निजी फैसला होगा. लेकिन जो भी हो वो चुनावी प्रक्रिया के मुताबिक होना चाहिए.
शशि थरूर के बारे में इस तरह के कयासों के पीछे उनके अपने बयान हैं. थरूर के एक बयान ने इस बात को हवा दी है कि वे खुद भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकते हैं. असल में शशि थरूर ने अपने एक लेख में कहा था कि अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान जितने ज्यादा उम्मीवार रहेंगे उतना अच्छा होगा. उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत बताया था. वहीं बाद में अपनी अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी को लेकर भी उन्होंने मीडिया से बात की थी.
थरूर ने कहा था, ‘लोग कुछ भी सोचने के लिए आजाद हैं. मैंने अपने लेख के जरिए सिर्फ इतना कहा था कि पार्टी में चुनाव सही रहेंगे. एक लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक पार्टी का होना जरूरी है. कांग्रेस अब अध्यक्ष पद का चुनाव करवा रही है, ये स्वागत योग्य कदम है. मुझे नहीं पता था कि मेरे लेख पर इतनी कयासबाजी शुरू हो जाएगी. मैंने कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया है, अभी मैं इस मामले में कुछ नहीं कहना चाहता.’
वैसे शशि थरूर अगर कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ते हैं तो इसके भी अलग मायने होंगे. एक तरफ तो थरूर गांधी परिवार के हमेशा से करीबी रहे हैं, सोनिया-राहुल से भी उनके अच्छे संबंध हैं. वहीं दूसरी तरफ वे जी-23 गुट के साथ भी सक्रिय रहे हैं. उनकी तरफ से समय-समय पर पार्टी में बड़े बदलाव की पैरवी भी की गई है. हालांकि उनका ये अंदाज भी उन्हें एक अलग बैलेंस देता है जिसके दम पर वे हर किसी को अपने समर्थन में खड़ा कर सकते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस साल मार्च में शशि थरूर ने जी-23 के नेताओं से मुलाकात की थी. कांग्रेस का जी-23 वही गुट है जो कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव चाहता है. नए कांग्रेस अध्यक्ष की सबसे ज्यादा मांग भी इसी गुट की तरफ से की गई है. कुछ मौकों पर ये गुट कांग्रेस हाईकमान को लेकर भी कड़े रुख अपनाता रहा है. खुद शशि थरूर भी ऐसे बदलावों की पैरवी करते हैं. वे तो कांग्रेस के उस उदयपुर संकल्प को भी अमली जामा पहनाना चाहते हैं जिसके जरिए पार्टी ने बड़े बदलावों को लेकर कई संकल्प लिए थे.
हाल ही में कांग्रेस के कुछ युवा नेताओं ने एक अभियान शुरू किया. उस अभियान के जरिए मांग हुई है कि जो भी कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनेगा, उन्हें पहले 100 दिन में ही उदयपुर संकल्प को पूरा करना होगा. अब उस मांग को भी थरूर ने अपना समर्थन दिया है. थरूर ने ट्विटर पर वो याचिका साझा की और कहा कि ‘मैं उस याचिका का स्वागत करता हूं जिसे कांग्रेस के युवा सदस्यों का एक समूह प्रसारित कर रहा है. इसमें पार्टी के भीतर रचनात्मक सुधारों की मांग की गई है. इस पर 650 से अधिक लोगों ने अब तक हस्ताक्षर किए हैं. मैं इसकी पैरवी करके खुश हूं.’
लगता है कि थरूर ने मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से तो हरी झंडी ले ही ली है और कांग्रेस आलाकमान से नाखुश पार्टी कार्यकर्ताओं को भी अपने पाले में करते चल रहे हैं. ऐसे में अगर वो कांग्रेस के नए अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी करते हैं तो उनका पलड़ा भारी हो सकता है. वैसे अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी के दूसरे पलड़े पर भी दिग्गज कांग्रेसी ही विराजमान हैं जिनका नाम है अशोक गहलोत. एक ऐसा नाम जो राजस्थान कांग्रेस में एक बार उठी विरोध की आवाज को दबा चुका है.
आपको याद होगा कि युवा नेता सचिन पायलट से अशोक गहलोत का 36 का आंकड़ा रहा है लेकिन अपने अनुभव से गहलोत ने पायलट की उड़ान को थाम लिया था और अब भी राजस्थान के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. उनकी भी कांग्रेस आलाकमान से नजदीकी जगजाहिर रही है. एक ओर तो गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से बचने की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी अटकलें हैं कि वे नवरात्रों के दौरान 26 से 28 सितंबर के बीच अपना नामांकन भर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर ये शशि थरूर और अशोक गहलोत के बीच एक रोमांचक भिडंत होगी.
लेकिन एक सवाल और उठता है कि क्या ये टक्कर थरूर बनाम गहलोत की होगी या फिर से राहुल गांधी की एंट्री होगी? ये सवाल उठाने का भी कारण है. राहुल गांधी के बारे में पहले से कहा जा रहा था कि वो इस पद के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन 7 राज्य इकाइयों द्वारा उन्हें अध्यक्ष बनाए जाने के प्रस्तावों के मद्देनजर भ्रम की स्थिति बनी हुई है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बिहार और जम्मू-कश्मीर के साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात भी इस लिस्ट में शामिल हो गए. आने वाले दिनों में राज्यों की तरफ से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग वाली ये लिस्ट और लंबी हो सकती है. ऐसे में क्या राहुल गांधी अपना कमिटमेंट बदलेंगे ये आने वाला वक्त ही बताएगा.
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