जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से केंद्र सरकार लगातार बता रही है कि वहां हालात सामान्य हैं. केंद्र के अनुसार ईद भी काफी सुकून के साथ मनाई गई. लेकिन इसके उलट कांग्रेसी नेताओं का बयान आ रहा है जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हैं. और ये नेता राज्य से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर हैं. जब संसद में आर्टिकल 370 हटाए जाने पर बहस हो रही थी तब कांग्रेस इस मुद्दे पर भी बंटी नज़र आई थी. लेकिन अब कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने जब सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया है उसके बाद कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने आर्टिकल 370 को हटाए जाने को लेकर सांप्रदायिक कार्ड खुलकर खेलना शुरू कर दिया है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि कहीं कांग्रेस अपनी पुरानी नीति 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' के रास्ते पर फिर से वापस तो नहीं आना चाहती? ये सवाल इसलिए भी क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में राहुल गांधी ने 'प्रो-अल्पसंख्यक' की छवि से हटकर मंदिरों के काफी दर्शन किये थे. यही नहीं उन्हें 'जनेऊधारी' ब्राह्मण होने का प्रमाण भी पेश किया था.
कश्मीर पर कांग्रेस नेताओं के उन हालिया बयानों पर एक नज़र डालते हैं जो 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' की तरफ लौटने के साफ संकेत देते हैं.
पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम- “अगर जम्मू-कश्मीर हिंदू बहुल राज्य होता तो भगवा पार्टी इस राज्य का विशेष दर्जा ‘नहीं’ छीनती. भाजपा ने अपनी ताकत से अनुच्छेद को समाप्त किया. जम्मू-कश्मीर अस्थिर है और अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां इस अशांत स्थिति...
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से केंद्र सरकार लगातार बता रही है कि वहां हालात सामान्य हैं. केंद्र के अनुसार ईद भी काफी सुकून के साथ मनाई गई. लेकिन इसके उलट कांग्रेसी नेताओं का बयान आ रहा है जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हैं. और ये नेता राज्य से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर हैं. जब संसद में आर्टिकल 370 हटाए जाने पर बहस हो रही थी तब कांग्रेस इस मुद्दे पर भी बंटी नज़र आई थी. लेकिन अब कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने जब सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया है उसके बाद कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने आर्टिकल 370 को हटाए जाने को लेकर सांप्रदायिक कार्ड खुलकर खेलना शुरू कर दिया है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि कहीं कांग्रेस अपनी पुरानी नीति 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' के रास्ते पर फिर से वापस तो नहीं आना चाहती? ये सवाल इसलिए भी क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में राहुल गांधी ने 'प्रो-अल्पसंख्यक' की छवि से हटकर मंदिरों के काफी दर्शन किये थे. यही नहीं उन्हें 'जनेऊधारी' ब्राह्मण होने का प्रमाण भी पेश किया था.
कश्मीर पर कांग्रेस नेताओं के उन हालिया बयानों पर एक नज़र डालते हैं जो 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' की तरफ लौटने के साफ संकेत देते हैं.
पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम- “अगर जम्मू-कश्मीर हिंदू बहुल राज्य होता तो भगवा पार्टी इस राज्य का विशेष दर्जा ‘नहीं’ छीनती. भाजपा ने अपनी ताकत से अनुच्छेद को समाप्त किया. जम्मू-कश्मीर अस्थिर है और अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां इस अशांत स्थिति को कवर कर रही हैं लेकिन भारतीय मीडिया घराने ऐसा नहीं कर रहे हैं.”
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने एक एक अखबार में लेख में लिखा- 'नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने देश के उत्तरी बॉर्डर पर एक फिलीस्तीन बना दिया है. मोदी-शाह ने ये पढ़ाई अपने गुर बेंजामिन नेतान्याहू और यहूदियों से ली है. मोदी और शाह ने इनसे सीखा है कि कश्मीरियों की आजादी, गरिमा और आत्मसम्मान को कैसे रौंदना है?'
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मध्य-प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह- 'अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का संदर्भ लें और देखें कि कश्मीर में क्या हो रहा है. मोदी सरकार ने आग में हाथ डाला है. कश्मीर को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता है. मैं मोदी जी, अमित शाह जी और अजीत डोभाल जी से सावधान रहने की अपील करता हूं, वरना हम कश्मीर खो देंगे.'
इससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कश्मीर के हालात पर चिंता ज़ाहिर की थी. बकौल राहुल गांधी- 'जम्मू-कश्मीर से जो खबरें आ रही हैं वो चिंताजनक हैं. खबरें आ रही हैं कि जम्मू-कश्मीर में हालात खराब हो गए हैं. प्रधानमंत्री देश को बताएं कि जम्मू-कश्मीर में हालात क्या हैं? उन्हें पूरी पारदर्शिता के साथ देश को इस बारे में बताना चाहिए.'
2014 की एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट- 2014 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस मात्र 44 सीटों पर सिमट गयी थी तब पार्टी ने ए. के. एंटोनी के नेतृत्व में इस करारी हार के लिए कमेटी बनाई थी. इस कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार पार्टी के 'अति अल्पसंख्यकवाद' को इस हार की सबसे बड़ी वजह बताया गया था.
इस रिपोर्ट के बाद ही राहुल गांधी ने कांग्रेस की छवि 'प्रो-अल्पसंख्यक' से हटकर गुजरात, कर्नाटक इत्यादि राज्यों के विधानसभा चुनावों में मंदिरों में जमकर दर्शन किये थे और उसमें कुछ हद तक कांग्रेस को फायदा भी हुआ था. इससे पहले वो केदारनाथ की यात्रा पर गए और शिव भक्त होने का भी दावा किया था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में मोदी-शाह के चुनावी रणनीति के सामने कांग्रेस की एक नहीं चली और कांग्रेस 52 सीटों पर ही जीत हासिल कर पायी. इसके बाद से ही कांग्रेस चुनावों में वापसी के रास्ते टटोल रही है.
भाजपा का हिंदुत्व मुद्दों पर कब्जा
मोदी सरकार 2 जब से सत्ता में आयी है तब से उसने अपने कोर हिंदुत्व मुद्दे जैसे- तीन तलाक़, आर्टिकल 370 और आयोध्या में राम मंदिर पर तेजी से कब्ज़ा कर लिया है. तीन तलाक़ और आर्टिकल 370 तो खत्म कर ही दिया अब उसका ध्यान राम मंदिर पर है.
ऐसे में कांग्रेस के लिए हिंदुत्व के रास्ते चुनावी नैय्या पार लगना मुश्किल सा लगता है. और शायद कांग्रेस के लिए उसकी पुरानी नीति 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' ही एकमात्र रास्ता बचता है. हालांकि इस रास्ते कांग्रेस को कितना चुनावी फायदा होगा ये कहना अभी मुश्किल है.
ये भी पढ़ें-
प्रियंका गांधी की चुनौती योगी या मोदी नहीं, बल्कि इंदिरा गांधी हैं
यूपी में नए रूप में उतरीं प्रियंका गांधी नए अस्त्र लेकर आई हैं
राहुल से परहेज करने वाली ममता को प्रियंका कहां तक पसंद हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.