प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने के लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है. वैसे ज्यादा दिन नहीं हुए जब केरल पहुंचे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सुप्रीम कोर्ट पर बिफरे हुए थे. तब अमित शाह का कहना रहा कि कोर्ट को ऐसे फैसले देने चाहिये जो अमल में लाये जा सकें. शाह सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज थे.
तमिलनाडु व पुडुचेरी के भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सेना और सीएजी को अपमानित कर रही है - और देश में शक-शुबहे का माहौल कायम करना चाहती है. प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं के इससे मुकाबले का मंत्र भी दिया - कांग्रेस के अलोकतांत्रिक व्यवहार का सबसे अच्छा उत्तर यही है कि लोकतंत्र को मजबूत किया जाये.
वैसे लोकतंत्र को मजबूत करने में सत्ता पक्ष और विपक्ष में बराबरी का मुकाबला बहुत अच्छा होता है. हालांकि, अब तक कम ही वक्त ऐसा रहा है जब बीजेपी और कांग्रेस में मुकाबला बराबरी पर छूटता हो. ज्यादातर मुकाबला एकतरफा ही नजर आया है - कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस भारी पड़ती है.
कहां गई दबंगई?
चार साल तक बीजेपी ने कांग्रेस को दम नहीं लेने दिया. बीजेपी की दबंगई के आगे कांग्रेस हरदम पानी भरती नजर आ रही थी. 2014 की भयानक हार के बाद तो कांग्रेस को खड़ा होने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था - और बीजेपी का कांग्रेस मुक्त अभियान रफ्तार पकड़े रहा. अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में जो जी किया वो तो किया ही, गोवा और मणिपुर में बीजेपी ने सरकारें ऐसे बनाई जैसे बस वाले बीच सड़क पर रुक कर सवारियां उठा लेते हैं.
न तो कोई विमर्श न विचार और न ही सलाहियत, अचानक एक शाम टीवी पर घोषणा हुई और पूरे देश में नोटबंदी लागू हो गयी. हर कोई मुंह देखता रह...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने के लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है. वैसे ज्यादा दिन नहीं हुए जब केरल पहुंचे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सुप्रीम कोर्ट पर बिफरे हुए थे. तब अमित शाह का कहना रहा कि कोर्ट को ऐसे फैसले देने चाहिये जो अमल में लाये जा सकें. शाह सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज थे.
तमिलनाडु व पुडुचेरी के भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सेना और सीएजी को अपमानित कर रही है - और देश में शक-शुबहे का माहौल कायम करना चाहती है. प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं के इससे मुकाबले का मंत्र भी दिया - कांग्रेस के अलोकतांत्रिक व्यवहार का सबसे अच्छा उत्तर यही है कि लोकतंत्र को मजबूत किया जाये.
वैसे लोकतंत्र को मजबूत करने में सत्ता पक्ष और विपक्ष में बराबरी का मुकाबला बहुत अच्छा होता है. हालांकि, अब तक कम ही वक्त ऐसा रहा है जब बीजेपी और कांग्रेस में मुकाबला बराबरी पर छूटता हो. ज्यादातर मुकाबला एकतरफा ही नजर आया है - कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस भारी पड़ती है.
कहां गई दबंगई?
चार साल तक बीजेपी ने कांग्रेस को दम नहीं लेने दिया. बीजेपी की दबंगई के आगे कांग्रेस हरदम पानी भरती नजर आ रही थी. 2014 की भयानक हार के बाद तो कांग्रेस को खड़ा होने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था - और बीजेपी का कांग्रेस मुक्त अभियान रफ्तार पकड़े रहा. अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में जो जी किया वो तो किया ही, गोवा और मणिपुर में बीजेपी ने सरकारें ऐसे बनाई जैसे बस वाले बीच सड़क पर रुक कर सवारियां उठा लेते हैं.
न तो कोई विमर्श न विचार और न ही सलाहियत, अचानक एक शाम टीवी पर घोषणा हुई और पूरे देश में नोटबंदी लागू हो गयी. हर कोई मुंह देखता रह गया. विपक्षी धर्म निभाने की रस्मअदायगी में राहुल गांधी भी लाइन में लग कर ₹2 हजार निकाले.
लव-जिहाद और घरवापसी से आगे बढ़ चुकी बीजेपी ने नोटबंदी को भी राष्ट्रवाद की चाशनी में लपेटा और सर्जिकल स्ट्राइक को भी यूपी चुनाव में पूरा भुनाया. अरविंद केजरीवाल की तरह सर्जिकल स्ट्राइक को राहुल गांधी ने भी काउंटर करने की कोशिश की और खून की दलाली बैकफायर हो गया.
दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव बीजेपी भले ही हार गयी, लेकिन असम की जीत से मनोबल बढ़ा और यूपी चुनाव तक सब ठीक ठाक चला भी. तब तक लोगों ने भी नोटबंदी को देश के दुश्मनों के खिलाफ मोदी सरकार का फौलादी कदम माना. बीजेपी की मुश्किल गुजरात से बढ़नी शुरू हुई जब कांग्रेस की बातें लोगों को समझ में आने लगी कि विकास पागल हो गया है.
कांग्रेस तब सबसे ज्यादा बेबस नजर आयी जब उसे भी लगने लगा कि बीजेपी ने उसे मुस्लिम पार्टी के रूप में स्थापित कर दिया है. लगता है कांग्रेस अब तमाम ऐसी चीजों से जूझते जूझते उबरने लगी है - और अब तो वो बीजेपी को आगे बढ़ कर घेरने लगी है. कांग्रेस के हमलों से बीजेपी का बचना मुश्किल हो रहा है और राफेल से लेकर किसानों तक बीजेपी नेता सफाई में सिर्फ बयानबाजी करते आ रहे हैं.
1. किसान और कर्जमाफी
राहुल गांधी ने राजनीति का ककहरा किसानों के जरिये ही सीखा है - संसद में राहुल गांधी का शुरुआती भाषण जो याद आता है वो भी किसान परिवार की कलावती की कहानी का जिक्र ही रहा. बाद के दिनों में भी राहुल गांधी विदर्भ से लेकर बुंदेलखंड तक किसानों की समस्याएं उठाते रहे हैं. यूपी चुनाव के दौरान राहुल गांधी की किसान यात्रा और खाट सभा ने कांग्रेस को सत्ता भले न दिला सके, लेकिन बीजेपी को किसानों के मुद्दे पर बैकफुट पर तो ला ही दिया.
2017 के यूपी चुनाव के बीचोंबीच बीजेपी नेताओं को सत्ता में आने पर कर्जमाफी का वादा करना पड़ा - और जब योगी आदित्यनाथ कुर्सी पर बैठे तो बूचड़खानों और एंटी रोमियो स्क्वायड के कहर के बाद पहली राहत किसानों को कर्जमाफी से ही दी.
बीजेपी किसानों की कर्जमाफी की पक्षधर कभी नहीं रही है. यहां तक कि ताजा विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी को राहुल गांधी के '10 दिन में कर्जमाफी' में कोई खास दम नजर नहीं आया. अगर ऐसा लगता तो बीजेपी लापरवाही में कुल्हाड़ी पर पैर थोड़े पड़ने देती.
यहां तक कि सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली दौरे पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के कल्याण पर ही जोर दिया और कर्जमाफी को नजरअंदाज करते रहे. मोदी ने कर्नाटक का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां सरकार बन जाने के छह महीने बाद भी लोगों को सरकारी घोषणा का कोई फायदा नहीं मिल पाया है.
लेकिन गुजरात सरकार की बिजली बिल माफी और असम सरकार की कर्जमाफी को किस चश्मे से देखा जाना चाहिये? क्या बीजेपी 2019 को देखते हुए राहुल गांधी की चुनौती स्वीकार करने वाली है? तो क्या देश भर के किसानों के चार लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किये जा सकते हैं?
2. जीएसटी पर भी राहत
कांग्रेस तो शुरू से ही जीएसटी के विरोध में रही. यहां तक कि आधी रात को संसद में हुए जीएसटी समारोह का भी कांग्रेस ने बहिष्कार किया. गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा करते रहे. जीएसटी को लेकर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर खूब हमला बोला.
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि जल्द ही जीएसटी स्लैब में 99 फीसदी आइटम 18 फीसदी या फिर उससे भी कम के दायरे में आ जाएंगे. 28 फीसदी वाला स्लैब तो नहीं खत्म होगा, लेकिन उसके दायरे में सिर्फ लग्जरी आइटम ही रहेंगे.
मोदी सरकार का ये कदम भी मध्य प्रदेश से आये फीडबैक से प्रभावित लगता है. मध्य प्रदेश में जीएसटी का विरोध हुआ था और इससे कारोबारी तबका कासा नाराज रहा जिसका नुकसान बीजेपी को चुनावों में उठाना पड़ा है. अब लगता है मोदी सरकार भूल सुधार में जुटी है और ये उसी का हिस्सा है.
3. राफेल पर फेल
राफेल सौदे में कमीशनखोरी का सच जो भी हो, लेकिन इसके सियासी फायदे और नुकसान साफ साफ नजर आ रहे हैं. राफेल के मुद्दे पर पूरे चुनाव प्रचार में राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' नारा लगवाते रहे. वोटर पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ होगा ऐसा भी नहीं लगता. और कुछ न सही मोदी के करिश्मे को तो इसने प्रभावित किया ही. चुनावी नतीजे तो यही कहते हैं.
चुनाव के आखिरी दौर में राजस्थान में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने हेलीकॉप्टर सौदे के बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल जेम्स का हवाला देते हुए कहा था - 'राजदार आ गया है, राज खुलेंगे...'
सुप्रीम कोर्ट से जब राफेल पर सारी याचिकाएं खारिज हो गयीं तो बीजेपी के मंत्री और नेता संसद से सड़क तक उतरे जरूर लेकिन लोचा ऐसा हुआ कि तुरंत ही पैवेलियन लौटना पड़ा.
टाइपो लोचा ने तो जैसे मोदी सरकार को पूरी तरह बैकफुट पर ला दिया. दूसरी तरफ राहुल गांधी पीएसी के चेयरमैन मल्लिकार्जुन खड़गे को लेकर प्रेस कांफ्रेंस करने लगे. राहुल गांधी ने खुलेआम दो नाम लिये - नरेंद्र मोदी और अनिल अंबानी.
अब केंद्र की बीजेपी सरकार दोबारा सुप्रीम कोर्ट गयी है - भूल सुधार याचिका के साथ. प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कि कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट को भी झूठा मान रही है - लेकिन पब्लिक कब तक इमोनल अत्याचार का शिकार होती रहे भला?
4. एससी-एसटी एक्ट का मामला
राहुल गांधी ने जब एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध किया तो भी बीजेपी नेताओं ने लोगों को कांग्रेस के झांसे में न आने की सलाह दी - जब एनडीए के अंदर आवाज उठने लगी और दलितों के भारत बंद में हिंसा और मौतें होने लगी तो बीजेपी को गलती का एहसास हुआ. फिर तो बीजेपी के मंत्री और सांसद दलितों की बस्ती में घूमने लगे और रात्रि विश्राम भी किया. फिर भी बात नहीं बनी, ऊपर से सवर्णों की नाराजगी अलग झेलनी पड़ी.
चौतरफा दबाव में मोदी सरकार को एससी-एसटी एक्ट को पुरानी लाइन पर लाने के लिए अध्यादेश लाना ही पड़ा. किसानों के मुद्दे पर भी लगता है मोदी सरकार उसी नाजुक मोड़ पर खड़ी हो गयी है.
5. रोजगार के वो वादे!
नये सिरे से नयी पारी शुरू करने से पहले एक अमेरिकी कार्यक्रम में राहुल गांधी ने माना कि नौजवानों को रोजगार देने में यूपीए सरकार से भारी भूल हुई थी. राहुल गांधी ने माना कि ऐसा नहीं होना चाहिये था. जब भारत लौटे तो गुजरात चुनाव से बेरोजगारी का मुद्दा उठाना शुरू किया. हर चर्चा में वो चीन का हवाला देते रहे.
जवाब में बीजेपी नेता तमाम सरकारी प्रोजेक्ट की याद दिलाकर नौकरियों के नंबर बताते और सफाई देते रहते हैं. रायबरेली पहुंचे मोदी भी यही समझाते रहे कि फैक्ट्री में उत्पादन बढ़ेगा तो नौजवानों को रोजगार भी मिलेगा.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और दूसरे भी यही समझाते रहते हैं कि इतने प्रोजेक्ट चल रहे हैं लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है क्या? मगर, पब्लिक को कुछ ठोस नजर नहीं आता. सब हवा हवाई ही लगता है.
6. मोदी के हिंदुत्व पर सवाल!
गुजरात चुनाव से शुरू हुआ राहुल गांधी का सॉफ्ट हिंदुत्व राजस्थान पहुंचते पहुंचते मोदी के हिंदुत्व पर ही सवाल उठाने लगा. ये सब राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष की सभाओं में लगने वाले बोल बम के नारों के चलत भी हुआ होगा.
मोदी के हिंदुत्व पर सवाल उठा तो सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला, 'राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदू होने का मतलब नहीं पता है... ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वो और कांग्रेस अपने धर्म और जाति के बारे में कन्फ्यूज हैं...'
7. विकास तो पागल है!
2014 में विकास के गुजरात मॉडल को लेकर ही मोदी अहमदाबाद से बनारस होते हुए दिल्ली पहुंचे. 2017 में 'विकास गांडो थायो छे' हो गया. जब कोई उपाय नहीं सूझ रही थी तो बीजेपी ने विकास को गुजराती अस्मिता से जोड़ा और मोदी को भरी सभा में कहना पड़ा - 'हूं छू गुजरात, हूं छू विकास'. ये इस मसले पर बीजेपी का आखिरी हथियार था.
कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी के हथियार
बड़ी मुश्किल से बीजेपी के हाथ कांग्रेस की एक कमजोर कड़ी लगी है - 1984 के सिख दंगे में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा होना. प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री इस मुद्दे पर कांग्रेस को हर कदम पर घेर रहे हैं. राहुल गांधी से भी इस पर सवाल पूछे जा रहे हैं लेकिन वो लगातार बच रहे हैं - और कह रहे हैं कि इस मसले पर अपना रुख वो पहले ही साफ कर चुके हैं.
वैसे बीजेपी इस मामले में कांग्रेस को एक सीमा तक ही घेर पाएगी. 2002 के गुजरात दंगे में मोदी और अन्य लोगों को क्लीन चिट दिये जाने के खिलाफ जाकिया जाफरी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में ही है. पहले इस पर 3 दिसंबर को सुनवाई होनी थी, अब इसे जनवरी तक तक टाल दिया गया है.
बीजेपी का एजेंडा
बीजेपी ने कर्नाटक और कैराना के बीच जिन्ना मामला जरूर उछाला लेकिन एकजुट विपक्ष ने इसे गन्ने में ऐसा लपेटा कि जिन्ना बनाम गन्ना की जंग में बीजेपी चारों खाने चित्त हो गयी.
बीजेपी को अली बनाम बजरंगबली से भी श्मशान बनाम कब्रिस्तान जैसे नतीजे की उम्मीद रही होगी, लेकिन दांव पलट गया. अब ले देकर एनआरसी और पाकिस्तान से बीजेपी को थोड़ी उम्मीद जरूर होगी. वरना आरबीआई और सीबीआई पर तो बीजेपी बुरी तरह घिरी हुई है ही.
ऐसा भी नहीं है कि ये सिर्फ सत्ताधारी बीजेपी के साथ हो रहा है, यूपीए सरकार की दूसरी पारी में भी बीजेपी और टीम अन्ना या फिर टीम केजरीवाल एजेंडा ऐसे ही तय कर देते रहे और तत्कालीन सरकार के मंत्री मीडिया में आकर सफाई देते फिरते रहे.
2019 के मुहाने पर खड़ी मोदी सरकार को भी ऐसे ही मुद्दों से लगातार दो-चार होना पड़ रहा है जो किसी भी सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरनाक संकेत माना जाता है. इस लिहाज से देखें तो बीजेपी के पास बचे खुचे हथियार ही हैं - या तो बीजेपी देश भर के किसानों की कर्जमाफी की घोषणा करे या फिर राम मंदिर पर कानून लाने की तैयारी करे.
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