पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पर कांग्रेस का आधिकारिक कमेंट है - 'नो कॉमेंट्स'. कांग्रेस के प्रवक्ता टॉम वडक्कन इस बारे में इतना ही बोलते हैं, हालांकि, उन्होंने कांग्रेस और संघ की विचारधारा में बड़े फासले की बात भी की है.
आरएसएस ने पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी को अपने एक कार्यक्रम के लिए नागपुर आने का न्योता दिया है. प्रणब मुखर्जी ने भी संघ के 7 जून के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर हामी भर दी है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अब तक मुखर्जी की कुल चार मुलाकातें हुई हैं.
कांग्रेस के कुछ नेताओं को पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी का संघ के कार्यक्रम में जाना ही नागवार गुजर रहा है. दूसरी तरफ, संघ पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लेकर कांग्रेस नेताओं की आपत्तियों का खारिज कर रहा है.
ये तो संघ को पाठ पढ़ाने का मौका है
बेहतर तो ये होता कि कांग्रेस नेता संघ के कार्यक्रम में एक पूर्व कांग्रेसी के भाषण को लेकर खुश होते. देखें तो ये एक तरीके से संघ को कांग्रेस का पाठ पढ़ाने का एक बेहतरीन मौका भी तो है.
प्रणब मुखर्जी संघ के उन 600 नव सैनिकों को संबोधित करने जा रहे हैं जो ट्रेनिंग लेकर फील्ड में उतरने वाले हैं. ऐसे नये नवेले संघ प्रचारकों को प्रणब मुखर्जी जो कुछ भी बताएंगे उन बातों का उन पर कुछ न कुछ असर तो होना ही चाहिये. हो सकता है वे प्रणब मुखर्जी की बातों को पूरी तरह रिजेक्ट कर दें क्योंकि वो उस खांचे में फिट नहीं होतीं जिस बात की उन्हें ट्रेनिंग दी गयी है.
ऐसा भी तो हो सकता है कि संघ की ट्रेनिंग लेने के बाद भी कुछ ऐसे नौजवान निकलें जिन्हें प्रणब मुखर्जी की बातें तर्कपूर्ण लगें...
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पर कांग्रेस का आधिकारिक कमेंट है - 'नो कॉमेंट्स'. कांग्रेस के प्रवक्ता टॉम वडक्कन इस बारे में इतना ही बोलते हैं, हालांकि, उन्होंने कांग्रेस और संघ की विचारधारा में बड़े फासले की बात भी की है.
आरएसएस ने पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी को अपने एक कार्यक्रम के लिए नागपुर आने का न्योता दिया है. प्रणब मुखर्जी ने भी संघ के 7 जून के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर हामी भर दी है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अब तक मुखर्जी की कुल चार मुलाकातें हुई हैं.
कांग्रेस के कुछ नेताओं को पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी का संघ के कार्यक्रम में जाना ही नागवार गुजर रहा है. दूसरी तरफ, संघ पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लेकर कांग्रेस नेताओं की आपत्तियों का खारिज कर रहा है.
ये तो संघ को पाठ पढ़ाने का मौका है
बेहतर तो ये होता कि कांग्रेस नेता संघ के कार्यक्रम में एक पूर्व कांग्रेसी के भाषण को लेकर खुश होते. देखें तो ये एक तरीके से संघ को कांग्रेस का पाठ पढ़ाने का एक बेहतरीन मौका भी तो है.
प्रणब मुखर्जी संघ के उन 600 नव सैनिकों को संबोधित करने जा रहे हैं जो ट्रेनिंग लेकर फील्ड में उतरने वाले हैं. ऐसे नये नवेले संघ प्रचारकों को प्रणब मुखर्जी जो कुछ भी बताएंगे उन बातों का उन पर कुछ न कुछ असर तो होना ही चाहिये. हो सकता है वे प्रणब मुखर्जी की बातों को पूरी तरह रिजेक्ट कर दें क्योंकि वो उस खांचे में फिट नहीं होतीं जिस बात की उन्हें ट्रेनिंग दी गयी है.
ऐसा भी तो हो सकता है कि संघ की ट्रेनिंग लेने के बाद भी कुछ ऐसे नौजवान निकलें जिन्हें प्रणब मुखर्जी की बातें तर्कपूर्ण लगें और आगे चल कर वे उचित फोरम पर अतार्किक बातों का प्रतिकार करें. जब भी उन्हें लगे कि कुछ ठीक नहीं हो रहा तो वे उसका विरोध करें. अगर छोटे से स्तर पर भी ऐसा हो पाता है तो इसे कांग्रेस की विचारधारा की ही जीत समझा जाना चाहिये. क्या प्रणब मुखर्जी के कार्यक्रम में नहीं जाने पर ऐसा मुमकिन है? हरगिज नहीं.
'चढ़ै न दूजो रंग...'
प्रणब मुखर्जी के लिए राष्ट्रपति रहते बात और थी. तब सत्तारूढ़ दल की सरकार की बातें रखना संवैधानिक व्यवस्था का हिस्सा रहा. ऐसा तो वो तब भी करते रहे होंगे जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही. अब तो ऐसा नहीं होने वाला. प्रणब मुखर्जी जो कुछ भी कहेंगे वो निश्चित रूप से सिर्फ और सिर्फ उनके मन की बात ही होगी. ऐसी कोई संभावना तो है नहीं कि प्रणब मुखर्जी कोई लिखा हुआ भाषण तो पढ़ने जा रहे हैं. कोई ऐसी स्क्रिप्ट जिसे संघ की लाइन पर तैयार की गयी हो.
क्या ये मुमकिन है कि प्रणब मुखर्जी जैसी शख्सियत को कोई नयी विचाराधारा प्रभावित कर सकेगी? मोटे तौर पर देखें तो ऐसी कोई संभावना बिलकुल भी नहीं बनती, बशर्ते कोई यूनीक आइडिया सामने न आ जाये.
यूनीक आइडिया को कम ही लोग ऐसे हैं जो पूरी तरह खारिज कर पाते हैं. अगर कोई शख्स किसी तार्किक और नये यूनीक आइडिया को नकारता भी है तो किसी पूर्वाग्रह या दलगत मजबूरी के चलते ही.
राष्ट्रपति रहते हुए भी प्रणब मुखर्जी डंके की चोट कह चुके हैं वो इंदिरा गांधी की शख्सियत के कायल रहे हैं - उनके जैसा उन्हें अब तक कोई करिश्माई लीडर नहीं दिखा. जाहिर है उनके उस पैमाने पर न तो अटल बिहारी वाजपेयी टिक पाये और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. गौर करने वाली बात ये भी है कि खुद प्रणब मुखर्जी और मोदी भी कई बार एक दूसरे की तारीफ भी कर चुके हैं. मोदी तो मुखर्जी को पिता तुल्य भी बता चुके हैं. मुखर्जी भी मोदी के अहमदाबाद से दिल्ली पहुंच कर सब कुछ जल्दी सीख लेने के कायल रहे हैं. मुखर्जी को इस बात का ताज्जुब भी रहा कि मोदी ने ऐसा तब किया जब वो उससे पहले कभी सांसद भी नहीं बने थे.
दुविधा में कांग्रेस
प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में शिरकत न करें इसे लेकर सीनियर कांग्रेस नेता सीके जाफर शरीफ ने उन्हें चिट्ठी तक लिख डाली है. कहते भी हैं, "समझ में नहीं आ रहा है, ऐसी भी मजबूरी क्या है?"
राष्ट्रपति बनने से पहले पहले प्रणब मुखर्जी कांग्रेस महाधिवेशन के राजनीतिक प्रस्तावों का ड्राफ्ट तैयार करते रहे. बुराड़ी के महाधिवेशन में संघ पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. तभी से कांग्रेस भगवा आतंकवाद की बातें जोर शोर से उठाती रही है.
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित पूछते हैं कि मुखर्जी को बुलाने का मतलब क्या ये हुआ कि संघ ने उनकी कही हुई बातों को स्वीकार कर रहा है.
कांग्रेस के ही अभिषेक मनु सिंघवी इसे अलग नजरिये से देखते हैं. कर्नाटक के मुद्दे पर आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस का पक्ष रखने के साथ ही पटखनी देने वाले अभिषेक मनु सिंघवी का मानना है कि किसी समारोह में प्रणब मुखर्जी का बोलना उनकी मान्यताओं को लेकर कोई संकेत नहीं है - क्योंकि राष्ट्रपति बनने के बाद मुखर्जी ने राजनीति छोड़ दी. प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
बड़े ही सधे अंदाज में अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि मुखर्जी को किसी कार्यक्रम में जाने को लेकर नहीं बल्कि 50 साल के उनके राजनीतिक कॅरियर में स्थापित मान्यताओं और कही बातों के आधार पर जज किया जाना चाहिये.
कांग्रेस की आशंकाओं को लेकर संघ की ओर से कांग्रेस नेताओं की ही पुरानी बातें याद दिलाने की कोशिश हो रही है. संघ की ओर से 1963 में नेहरू द्वारा संघ के कार्यकर्ताओं को रिपब्लिक डे परेड में बुलाये जाने की याद दिलायी जा रही है. संघ की ओर से ये भी बताया जा रहा है कि सीनियर नेता एकनाथ रानाडे के बुलावे पर 1977 में इंदिरा गांधी ने विवेकानंद रॉग मेमोरियल का अनावरण किया था.
डर किस बात का?
क्या कांग्रेस को ऐसा कुछ लगता है कि प्रणब मुखर्जी कहीं संघ के राष्ट्रवाद और उसकी विचारधारा को एनडोर्स कर सकते हैं? अगर ऐसा होता तो कांग्रेस को मान कर चलना चाहिये कि उसकी विचारधारा की प्रासंगिकता खत्म हो रही है - और उसे सांगोपांग समीक्षा की महती जरूरत है.
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