पिछले कुछ महीनों में भाजपा ने अर्थव्यवस्था की जो रंगीन तस्वीर देश के सामने पेश की थी उसकी सच्चाई सामने आने लगी है. नोटबंदी का एकतरफा फैसला, आनन-फानन में जीएसटी को लागू करना, और इन दोनों ही नीतियों के खराब कार्यान्वयन ने देश की जीडीपी को अपंग बना दिया. बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि और निर्यात में भी कमी आ गयी.
यहां तक की अब तो भाजपा के नेता भी दबी जुबान में अर्थव्यवस्था की खास्ता हालत को स्वीकार करने लगे हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने तो खुलेआम पार्टी की आलोचना कर दी और उन्हें आगाह करने से परहेज नहीं किया कि 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना है तो चेत जाएं. कांग्रेस पार्टी के लिए ये एक सुनहरा मौका है खुद को फिर से स्थापित करने का. जनता में अपनी पैठ वापस बनाने और जनता के बीच अपने खोए हुए विश्वास को पाने का.
2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस पार्टी ने अपना पूरा ध्यान सिर्फ असहिष्णुता पर ही केंद्रित कर लिया था. कांग्रेस ने ये भी माना कि उनके पास विजन की कमी थी. अनजाने में ही कांग्रेस ने सिर्फ एक ही मुद्दे तक अपने सीमित रखकर खुद को बैकफुट पर ढकेल लिया. इससे कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी की लहर को थामने का मौका गवां दिया था.
पार्टी ने किसानों की आत्महत्या से लेकर गुजरात में बाढ़ और अस्पतालों में बच्चों की मौत तक का मुद्दा अपनी सुविधानुसार उठाया. लेकिन वो इन समस्याओं का कोई भी समाधान बताने में असफल रही. बीजेपी की प्रभावशाली छवि के आगे कांग्रेस इनकी इकोनॉमिक और विकास की नीतियों में खामियों को भुना नहीं पाई. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने अर्थव्यवस्था के मुद्दे से मुंह ही मोड़ लिया था, जिसका फायदा बीजेपी ने उठाया. और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी सभाओं में अपने सपनों...
पिछले कुछ महीनों में भाजपा ने अर्थव्यवस्था की जो रंगीन तस्वीर देश के सामने पेश की थी उसकी सच्चाई सामने आने लगी है. नोटबंदी का एकतरफा फैसला, आनन-फानन में जीएसटी को लागू करना, और इन दोनों ही नीतियों के खराब कार्यान्वयन ने देश की जीडीपी को अपंग बना दिया. बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि और निर्यात में भी कमी आ गयी.
यहां तक की अब तो भाजपा के नेता भी दबी जुबान में अर्थव्यवस्था की खास्ता हालत को स्वीकार करने लगे हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने तो खुलेआम पार्टी की आलोचना कर दी और उन्हें आगाह करने से परहेज नहीं किया कि 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना है तो चेत जाएं. कांग्रेस पार्टी के लिए ये एक सुनहरा मौका है खुद को फिर से स्थापित करने का. जनता में अपनी पैठ वापस बनाने और जनता के बीच अपने खोए हुए विश्वास को पाने का.
2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस पार्टी ने अपना पूरा ध्यान सिर्फ असहिष्णुता पर ही केंद्रित कर लिया था. कांग्रेस ने ये भी माना कि उनके पास विजन की कमी थी. अनजाने में ही कांग्रेस ने सिर्फ एक ही मुद्दे तक अपने सीमित रखकर खुद को बैकफुट पर ढकेल लिया. इससे कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी की लहर को थामने का मौका गवां दिया था.
पार्टी ने किसानों की आत्महत्या से लेकर गुजरात में बाढ़ और अस्पतालों में बच्चों की मौत तक का मुद्दा अपनी सुविधानुसार उठाया. लेकिन वो इन समस्याओं का कोई भी समाधान बताने में असफल रही. बीजेपी की प्रभावशाली छवि के आगे कांग्रेस इनकी इकोनॉमिक और विकास की नीतियों में खामियों को भुना नहीं पाई. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने अर्थव्यवस्था के मुद्दे से मुंह ही मोड़ लिया था, जिसका फायदा बीजेपी ने उठाया. और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी सभाओं में अपने सपनों के 'विकास' मॉडल से लोगों को जोड़ा. जीएसटी और एफडीआई जैसे मुद्दे कांग्रेस पार्टी के दिमाग की उपज थे लेकिन वो उसको लागू नहीं करा पाई. इसका भरपूर फायदा बीजेपी ने उठाया और विपक्ष में होते हुए जिन मुद्दों का वो विरोध करते थे उन्हें ही अपनी ब्रांडिंग के साथ बेच डाला.
हालांकि अब ये साबित हो गया है कि बीजेपी ने कुल्हाड़ी पर पैर नहीं डाला है बल्कि वो कुल्हाड़ी पर ही कूद पड़ी है. इन्होंने कांग्रेस के विचारों को चुरा तो लिया लेकिन उसे लागू करने के पहले की प्लानिंग ढंग से नहीं कर पाए. सीना ठोंककर नोटबंदी ने मोदी को कुछ विधानसभा चुनाव तो जीतवा दिया लेकिन अब उनके लिए डगर कठिन होती जा रही है.
अपने एक्सपर्ट की बात न सुनकर अपनी मनमानी करना, अब बीजेपी को बहुत भारी पड़ रहा है. उनकी इस गलती ने देश को आर्थिक रूप से गर्त में ढकेल दिया है. कांग्रेस को इस स्वर्णिम मौके का लाभ उठाते हुए आर्थिक और विकास के मुद्दों को भुनाना चाहिए, तभी 2019 में ये बीजेपी को कड़ी टक्कर दे पाएंगे. कांग्रेस के पास समय भी कम है और मौका भी. अब उन्हें इस खुशफहमी से बाहर आ जाना चाहिए कि आर्थिक दृढ़ता और विकास को पाने के लिए पहले असहिष्णुता से निपटना जरुरी है.
मतदाता को 'रोटी' और 'छत' की चिंता होती है. 'न्याय' और 'लोकतंत्र' जैसी बातें खाए-अघाए लोगों के हैं. मोदी अपने वोटरों को यही सपना दिखाते हैं कि उन्हें रोटी और छत मुहैया कराएंगे. वोटर इस आस में न्याय और लोकतंत्र जैसे मुद्दों को भूल भी जाते हैं. इसलिए देश के लाखों गरीब किसानों और श्रमिकों के बीच कांग्रेस को अपनी पैठ वापस बनानी होगी. जिसके लिए उन्हें लोगों से उनकी रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने की अपील करनी होगी और उन्हें ये भरोसा भी दिलाना होगा कि बीजेपी जो सुविधाएं उन्हें मुहैया नहीं करा पाई वो कांग्रेस करके देगी. बीजेपी भले ही लोगों के 'अच्छे दिन' न ला पाई लेकिन कांग्रेस लाकर देगी.
इस मौके पर चौका मारने के लिए पहले कांग्रेस को अपनी पार्टी को ही ठीक करना पड़ेगा. पार्टी के युवा नेता बदलाव चाहते हैं. उन्हें पार्टी में बदलाव लाने, पार्टी को सुगठित करने और पार्टी की पॉलिसी को और ज्यादा स्पष्ट करने की जिम्मदारी दी जानी चाहिए. इसके अलावा पार्टी को अर्थशास्त्रियों, व्यापारियों और अन्य प्रोफेशनल को अपने साथ जोड़ना चाहिए और उनकी राय को जानना चाहिए. ताकि वो इस एजेंडे को जब जनता के पास ले जाएं तो उसमें जमीन से जुड़े लोगों के लिए कोई सब्जबाग नहीं बल्कि एक ठोस आधार हो.
पार्टी को आंतरिक कमिटियों का गठन करना चाहिए और अपने पॉलिसी समाधानों की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर देना चाहिए. इससे कांग्रेस की विचारधारा तो स्पष्ट होगी ही साथ ही नीति-निर्माण में भी उनकी दक्षता सामने आएगी. पार्टी जब एक तरफ अपना पॉलिसी एजेंडा लोगों के सामने रखेगी तो उसे असहिष्णुता के बहस से बाहर रहना चाहिए और अपना पूरा फोकस नए आर्थिक और विकास के मुद्दों पर केंद्रित रखना चाहिए. एक ऐसा विजन जो मोदी के गलत कदमों द्वारा चोट खाए लोगों के जख्मों पर मरहम का काम करे.
उदाहरण के तौर पर कांग्रेस को अपनी आर्थिक नीतियों को लाखों सूक्ष्म, छोटे और मझोले व्यापारियों और कामगारों को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए. मोदी की नोटबंदी के फैसले से सबसे ज्यादा यही तबका प्रभावित हुआ है और इनमें गुस्सा सबसे ज्यादा है. भारत को आर्थिक और विकास के मुद्दे पर अनगिनत समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अब जरुरत इन समस्याओं का समाधान खोजने का है. उसके लिए नए आइडिया लाने का है. भाजपा के विकास का मॉडल धराशायी हो रहा है. कांग्रेस को इस मुद्दे को पकड़ लेना चाहिए और देश को विकास का अपना एजेंडा, अपना विजन देना चाहिए.
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