साल 2004 में राहुल गांधी औपचारिक रूप से राजनीति में आए थे. और उनसे एक साल पहले यानी 2003 में स्मृति ईरानी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. दोनों के पास राजनीतिक अनुभव लगभग बराबर है और आज ये दोनों एक ही सीट अमेठी से मुकाबला भी कर रहे हैं. राहुल कांग्रेस के प्रेसिडेंट हैं और स्मृति ईरानी केंद्रीय मंत्री.
लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में ये दोनों महारथी एक दूसरे से कितने बेहतर हैं. आज ये जान लेते हैं. लेकिन इससे पहले ये भी जान लीजिए कि 2014 में नामांकन भरते वक्त स्मृति ईरानी की शिक्षा पर जो बहस छिड़ी थी वो 2019 में भी शुरू हो गई है. वजह है स्मृति ईरानी का हलफनामा जो हर चुनाव में अलग दिखाई देता है.
शुरुआत स्मृति से ही करते हैं. स्मृति ईरानी ने 1991 में CBSE बोर्ड के होली चाइल्ड ऑक्सीलियम स्कूल दिल्ली से हाई स्कूल किया है और यहीं से 1993 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उतीर्ण की है. 2019 के अपने शपथ पत्र में दी गई जानकारी के अनुसार, उन्होंने वर्ष 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से संबद्ध स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (पत्राचार) से बीकॉम प्रथम वर्ष तक की पढ़ाई का जिक्र किया है.
यानी 2019 में स्मृति ईरानी ने ये माना है कि वो ग्रेजुएट नहीं है.
smriti irani
विपक्ष स्मृति को उनकी शिक्षा पर हमेशा घेरता आया है
स्मृति ईरानी 2004 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली के चांदनी चौक से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार थीं. उस वक्त उनके हलफ़नामे में लिखा था कि उन्होंने 1996 में दिल्ली विश्विद्यालय से पत्राचार माध्यम से बीए किया है.
अपनी शिक्षा को लेकर हर हलफनामें में स्मृति ईरानी ने अलग जानकारी दी
लेकिन 2014 चुनाव में दाखिल किए गए हलफ़नामे में उन्होंने लिखा कि उन्होंने 1994 में दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार से बीकॉम के पहले साल की पढ़ाई की है.
वो हर नामांकन में अपनी शिक्षा के बारे में अलग जानकारी देती हैं. लेकिन इस बार उन्होंने इस बहस को विराम देते हुए ये मान लिया कि वो सिर्फ 12वीं पास हैं.
2019 के हलफनामें में स्मृति ईरानी ने कहा है कि वो ग्रैजुएट नहीं हैं
उनके हलफनामे की जानकारी पर कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की तर्ज पर ‘क्योंकि मंत्री भी कभी ग्रेजुएट थी’ कहकर कुछ इस तरह चुटकी ली
टर्निंग प्वाइंट-
नौकरी में भले ही आपकी पढ़ाई मायने रखती है, लेकिन राजनीति में प्रगति करने के लिए सर्टिफकेट नहीं आपकी काबिलियत मायने रखती है. ये मायने रखता है कि आपमें कितना दम है. और वही करियर का टर्निंग प्वाइंट होता है. स्मृति ईरानी के राजनीतिक करियर का टर्निंग प्वाइंट 2004 में आया. 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए दिल्ली की चांदनी चौक सीट से स्मृति ने चुनाव लड़ा था. पर वो हार गईं. लेकिन उसके बाद स्मृति ईरानी ने गुजरात दंगों से पार्टी की छवि खराब होने का आरोप लगाते हुए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफ़े तक की मांग कर डाली थी और कहा था कि वह इसके लिए भूख हड़ताल करेंगी. बस यहीं स्मृति ने दिखा दिया कि वो क्या कर सकती हैं और परिणाम ये है कि वो आज राहुल गांधी से मुकाबला कर रही हैं.
अब बात कांग्रेस प्रेसिडेंड राहुल गांधी की शिक्षा की
राहुल एक राजनीतिक घराने से आते हैं उन्हें राजनीति में आने के लिए उतना स्ट्रगल नहीं करना पड़ा जैसा कि बाकी लोगों को करना पड़ता है. राहुल नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी हैं. राहुल गांधी की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से हुई. इसके बाद उन्हें देहरादून के 'दून स्कूल' भेज दिया गया. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद राहुल को सुरक्षा कारणों के चलते देहरादून से वापस दिल्ली बुला लिया गया और उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई घर से ही की.
सुरक्षा कारणों से राुल गांधी को पढ़ाई बीच बीच में छोड़ती रहनी पड़ी
1989 में राहुल ने दिल्ली के Saint stepehen कॉलेज में दाखिला लिया और सुरक्षा कारणों के चलते उन्हें यहां भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. फिर वो अमेरिका चले गए जहां उन्होंने हॉवार्ड यूनीवर्सिटी में एडमिशन लिया. यहां उन्हें अपनी पहचान छिपानी पड़ी और वो विंसी के नाम से जाने जाते थे. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें ये भी छोड़ना पड़ा. 1991 से 1994 तक उन्होंन फ्लोरिडा के रोलिंस कॉलेज में आर्ट्स से ग्रेजुएशन पास की. 1995 में कैंम्ब्रिज यूनीवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से एमफिल किया.
हालांकि राहुल गांधी के नाम बदलने को लेकर भी विरोधी उन्हें घेरते रहे, लेकिन सुरक्षा कारणों से उन्हें ये करना पड़ा था. राहुल ने मार्च 2004 में राजनीति में एंट्री ली और मई 2004 में अपने पिता राजीव गंधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी.
टर्निंग प्वाइंट- राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन में उनकी पढ़ाई-लिखाई या काबिलियत कोई मायने नहीं रखती. और न ही उन्हें इस पद पर पहुंचने के लिए खुद को साबित करने की जरूरत पड़ी. भले ही सेंट स्टीफन कॉलेज के प्रिंसिपल रहे वाल्सन थंपू ने कहा हो कि राहुल गांधी राजनीति के लिए नहीं बने हैं, फिर भी राहुल गांधी आज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.
सवाल राहुल गांधी की डिग्री पर भी उठ रहे हैं
स्मृति ईरानी पर ये आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने अपने हलफनामे में गलत जानकारी दी, तो वही राहुल गांधी के साथ भी हो रहा है. राहुल गांधी के हलफनामे में भी झोल नजर आता है जिसपर सोशल मीडिया में बहस हो रही है.
राहुल गांधी ने 2004 और 2009 में बताया था कि उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज से development economics में MPhil किया है, जबकि 2014 में कहा कि MPhil development studies में किया गया है. कोई ये भी बता रहा है कि एमफिल में राहुल गांधी ने एक विषय में पास होने लायक नंबर भी नहीं पाए.
अरुण जेटली का राहुल पर आरोप है कि राहुल गांधी की एमफिल की डिग्री झूठी है. बिना पोस्ट ग्रैजुएशन किए उन्हें एमफिल की डिग्री कैसे मिल गई.
यानी अगर हलफनामे में गड़बड़ी की बात की जाए तो राहुल और स्मृति दोनों बराबरी पर हैं. दोनों की दी हुई जानकारी में गड़बड़ी हैं. तो राजनीतिक अनुभव में राहुल गांधी भले ही स्मृति ईरानी से थोड़े कम हों लेकिन पढ़ाई लिखाई की बात करें तो राहुल गांधी के पास स्मृति ईरानी से ज्यादा डिग्रियां दिखाई देती हैं. लेकिन जैसा कि पहले कहा गया कि राजनीति में पढ़ाई-लिखाई मायने नहीं रखती, इसलिए ये आरोप भी सिवाय चुनावी हल्ले से ज्यादा कुछ नहीं लगते.
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