एक तरफ जहां 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार अभियान पूरे जोर-शोर से चल रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ 5 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अभी तक किसी भी उम्मीदवार का नाम तक घोषित नहीं किया है. हालांकि इस बात की सबसे अधिक संभावना है कि वर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को दूसरे कार्यकाल के लिए नामित नहीं किया जाएगा.
उपराष्ट्रपति अंसारी का ये दूसरा कार्यकाल है. पहली बार 2007 में उन्होंने भाजपा के नजमा हेपतुल्ला को हराकर वो उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने गए थे. 2012 में यूपीए ने उन्हें फिर से नामांकित किया. इस बार भाजपा ने जसवंत सिंह को मैदान में उतारा. लेकिन अंसारी ने जसवंत सिंह को भी हरा दिया और अब उनका कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है.
2012 में यूपीए सरकार की तरफ से राष्ट्रपति पद के दावेदार माने जा रहे अंसारी को कम से कम तीन विवादों के लिए हमेशा याद किया जाएगा
1- राज्यसभा का मनचाहा स्थगन
30 दिसंबर 2011 को, संसद के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन था. अन्ना हजारे आंदोलन के मद्देनजर राज्य सभा में जन लोकपाल विधेयक पर गर्मागरम चर्चा हो रही थी. चर्चा के बाद मतदान होना था.
आधी रात के आसपास, ऊपरी सदन के पदेन अध्यक्ष के रूप में अंसारी अपनी सीट पर आए थे. बहस के बीच में उन्होंने सदन को अचानक अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया. भाजपा के अलावा कई अन्य विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ थीं. सरकार के हारने की स्थिति बन गई थी. भाजपा ने सदन के अचानक स्थगित कर देने के लिए अंसारी की आलोचना की. उसने ये आरोप लगाया गया कि उपराष्ट्रपति सरकार के बचाव में आए थे. 2012 में उपराष्ट्रपति चुनाव में इसी कारण से भाजपा ने अंसारी के खिलाफ...
एक तरफ जहां 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार अभियान पूरे जोर-शोर से चल रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ 5 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अभी तक किसी भी उम्मीदवार का नाम तक घोषित नहीं किया है. हालांकि इस बात की सबसे अधिक संभावना है कि वर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को दूसरे कार्यकाल के लिए नामित नहीं किया जाएगा.
उपराष्ट्रपति अंसारी का ये दूसरा कार्यकाल है. पहली बार 2007 में उन्होंने भाजपा के नजमा हेपतुल्ला को हराकर वो उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने गए थे. 2012 में यूपीए ने उन्हें फिर से नामांकित किया. इस बार भाजपा ने जसवंत सिंह को मैदान में उतारा. लेकिन अंसारी ने जसवंत सिंह को भी हरा दिया और अब उनका कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है.
2012 में यूपीए सरकार की तरफ से राष्ट्रपति पद के दावेदार माने जा रहे अंसारी को कम से कम तीन विवादों के लिए हमेशा याद किया जाएगा
1- राज्यसभा का मनचाहा स्थगन
30 दिसंबर 2011 को, संसद के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन था. अन्ना हजारे आंदोलन के मद्देनजर राज्य सभा में जन लोकपाल विधेयक पर गर्मागरम चर्चा हो रही थी. चर्चा के बाद मतदान होना था.
आधी रात के आसपास, ऊपरी सदन के पदेन अध्यक्ष के रूप में अंसारी अपनी सीट पर आए थे. बहस के बीच में उन्होंने सदन को अचानक अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया. भाजपा के अलावा कई अन्य विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ थीं. सरकार के हारने की स्थिति बन गई थी. भाजपा ने सदन के अचानक स्थगित कर देने के लिए अंसारी की आलोचना की. उसने ये आरोप लगाया गया कि उपराष्ट्रपति सरकार के बचाव में आए थे. 2012 में उपराष्ट्रपति चुनाव में इसी कारण से भाजपा ने अंसारी के खिलाफ जसवंत सिंह को मैदान में उतारा था.
अंसारी ने राज्यसभा अध्यक्ष के नाते सत्ता पक्ष (कांग्रेस) का मनमाना साथ देने का आरोप बीजेपी ने लगाया था. अंसारी को इस स्थिति से बचना चाहिए था. लेकिन, अब यह दाग कभी नहीं धुलेगा.
2- योग दिवस के फंक्शन से नदारद रहना
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया है. 2015 में पहले योग दिवस को 190 से अधिक देशों ने इसे मनाया. साथ ही भारत में भी इसे खुब धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया गया था. मोदी ने राजपथ में इस समारोह में भाग लिया. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में एक समारोह आयोजित किया था और सभी मंत्रियों ने इसमें भाग लिया था.
लेकिन शायद उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ही एकमात्र संवैधानिक पदाधिकारी थे जिन्होंने योग दिवस के कार्यक्रम में भाग नहीं लिया था. यहां तक की उन्होंने कोई समारोह भी आयोजित नहीं किया. भाजपा के महासचिव राम माधव ने भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में अंसारी की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया था. हालांकि बाद में ना सिर्फ उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांगी बल्कि उन्होंने अपना ट्वीट भी ये कहते हुए हटा दिया था कि उन्हें बताया गया कि- 'उपराष्ट्रपति अस्वस्थ होने की वजह से अनुपस्थित रहे थे.
हालांकि, शाम को उपराष्ट्रपति के कार्यालय ने इस बात को स्पष्ट किया कि- 'अंसारी बीमार नहीं थे बल्कि उन्हें योग कार्यक्रम के लिए आमंत्रित ही नहीं किया गया था.' आगे ये भी कहा गया कि- 'उपराष्ट्रपति केवल उन कार्यक्रमों में शामिल होते हैं जिसमें संबंधित विभाग के मंत्री प्रोटोकॉल के अनुसार उन्हें आमंत्रित करते हैं.'
लेकिन योग दिवस समारोह में भाग लेने में उपराष्ट्रपति अंसारी की अनिच्छा तब उजागर हो गई जब उनकी तुलना राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ की गई. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी हामिद अंसारी की तरह आयोजन में आमंत्रित नहीं किया गया था लेकिन फिर भी वो उसमें शामिल हुए. हामिद अंसारी ने किसी भी तरह की दिलचस्पी दिखाने के बजाय आयोजन से गायब रहना ही चुना. और यही नहीं पिछले तीन सालों से पूरे देश में योग दिवस का आयोजन किया जा रहा है लेकिन फिर भी उपराष्ट्रपति इसमें से अनुपस्थित ही रहे.
जिस योग पर पूरे भारत का गर्व है और पूरी दुनिया भारत की इस सांस्कृतिक विरासत की क्रद करती है, उससे उपराष्ट्रपति रहते अंसारी का दूर रहना कई सवाल खड़े करता रहा है. अच्छा होता कि वे आगे आकर योग गतिविधियों का नेतृत्व करते.
3- राष्ट्रीय ध्वज को सलामी नहीं देना
2015 के गणतंत्र दिवस पर अंसारी ने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी नहीं दी थी. इस बात पर भी विवाद गहरा गया. वैसे तो प्रोटोकॉल के अनुसार सिर्फ राष्ट्रपति को ही राष्ट्रीय झंडे को सलाम करना होता है लेकिन फिर भी पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्री पर्रिकर दोनों ही ध्वज को सलामी देते नजर आ रहे थे.
भारतीय ध्वज संहिता की धारा VI के अनुसार, 'राष्ट्रीय झंडे को फहराने या उसे उतारने के समय, किसी समारोह या परेड के दौरान वहां उपस्थित सभी व्यक्तियों को झंडे की तरफ मुंह करके सावधान की मुद्रा में खड़े होना चाहिए. वर्दी में मौजूद लोगों को झंडे को सलामी देनी चाहिए और उच्च पद पर बैठे लोग बिना वर्दी के भी झंडे की सलामी ले सकते हैं.'
इसलिए सेना के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति को छोड़कर झंडे को सलामी देने की किसी को भी आवश्यकता नहीं है. मोदी, अंसारी, ओबामा और पर्रीकर यूनीफॉर्म में नहीं थे इसलिए उन्हें ध्वज को सलाम करने की आवश्यकता नहीं थी. झंडे को सलामी देकर अंसारी खुद को किसी विवाद में फंसाने से बचा सकते थे. ऐसा करना कोई राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में नहीं गिना जाता. लेकिन प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री को फॉलो नहीं करने के लिए उन्हें ट्रोल किया गया. राष्ट्रध्वज का मामला किसी राजनीतिक दल, विचारधारा या धर्म से जुड़ा मामला नहीं है. मगर, इससे जुड़े मामले में भी अंसारी ने कंट्रोवर्सी खड़ी कर दी.
दिलचस्प यह है कि अपने सभी विवादों को लेकर हामिद अंसारी के पास कोई न कोई तर्क जरूर था. और वे बिना किसी लागलपेट के अपनी बात मीडिया में पहुंचाते भी रहे. लेकिन, इन सभी विवादों का एक सिरा विशुद्ध राजनीति रहा. ऐसे में उपराष्ट्रपति जैसे पद की तटस्थ छवि को अंसारी ने नुकसान ही पहुंचाया. और ऐसे करने वाले अंसारी पहले ही थे. उम्मीद है यह परंपरा न बने.
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