महाराष्ट्र में अब छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) को लेकर विवाद चल रहा है. ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसा वीर सावरकर पर बवाल के बाद हो रहा है. पैटर्न एक ही है. जैसे राहुल गांधी के एक बयान के बाद सावरकर पर बवाल होने लगा था, छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर तकरीबन वैसा ही विवाद महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) एक भाषण के बाद शुरू हो चुका है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो सावरकर पर बोल कर भारत जोड़ो यात्रा के साथ आगे निकल गये, लेकिन भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद से हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी है - भगत सिंह कोश्यारी की मुश्किल ये है कि छह महीने के भीतर ये दूसरा मौका है जब न तो उनको बीजेपी का समर्थन मिल पा रहा है, न ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के लिए भी राज्यपाल का बचाव करना काफी मुश्किल हो रहा है. महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी कह चुके हैं कि राज्यपाल को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और एनसीपी नेता शरद पवार की तुलना मराठा राजा शिवाजी से नहीं करनी चाहिये थी.
सावरकर को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी के बाद सबसे ज्यादा दिक्कत उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को हुई थी. तत्काल प्रभाव से उनको राहुल गांधी के विचार से खुद को अलग करना पड़ा था. फिर संजय राउत से कहलवाना पड़ा कि ऐसा हुआ तो कांग्रेस के साथ गठबंधन पर भी खतरा पैदा हो सकता है.
शिवाजी पर राज्यपाल कोश्यारी के बयान के बाद उद्धव ठाकरे को आक्रामक होने का मौका मिल गया है. राज्यपाल को अमेज़न पार्सल बताते हुए केंद्र की मोदी सरकार से वापस बुलाने की मांग करने लगे हैं - और शिवाजी के नाम पर सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होने की अपील के साथ केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की अपील कर रहे...
महाराष्ट्र में अब छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) को लेकर विवाद चल रहा है. ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसा वीर सावरकर पर बवाल के बाद हो रहा है. पैटर्न एक ही है. जैसे राहुल गांधी के एक बयान के बाद सावरकर पर बवाल होने लगा था, छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर तकरीबन वैसा ही विवाद महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) एक भाषण के बाद शुरू हो चुका है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो सावरकर पर बोल कर भारत जोड़ो यात्रा के साथ आगे निकल गये, लेकिन भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद से हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी है - भगत सिंह कोश्यारी की मुश्किल ये है कि छह महीने के भीतर ये दूसरा मौका है जब न तो उनको बीजेपी का समर्थन मिल पा रहा है, न ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के लिए भी राज्यपाल का बचाव करना काफी मुश्किल हो रहा है. महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी कह चुके हैं कि राज्यपाल को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और एनसीपी नेता शरद पवार की तुलना मराठा राजा शिवाजी से नहीं करनी चाहिये थी.
सावरकर को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी के बाद सबसे ज्यादा दिक्कत उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को हुई थी. तत्काल प्रभाव से उनको राहुल गांधी के विचार से खुद को अलग करना पड़ा था. फिर संजय राउत से कहलवाना पड़ा कि ऐसा हुआ तो कांग्रेस के साथ गठबंधन पर भी खतरा पैदा हो सकता है.
शिवाजी पर राज्यपाल कोश्यारी के बयान के बाद उद्धव ठाकरे को आक्रामक होने का मौका मिल गया है. राज्यपाल को अमेज़न पार्सल बताते हुए केंद्र की मोदी सरकार से वापस बुलाने की मांग करने लगे हैं - और शिवाजी के नाम पर सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होने की अपील के साथ केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की अपील कर रहे हैं.
ऐसा क्यों लगता है जैसे सावरकर पर मचे बवाल को बैलेंस करने के लिए ही, शिवाजी के नाम पर विवाद खड़ा किया जा रहा हो? क्या ये राज्यपाल के निजी विचार हैं या फिर ये चीज कहीं और से कंट्रोल हो रही है?
राहुल गांधी का एजेंडा तो बिलकुल साफ है क्योंकि ये कोई पहली बार नहीं हुआ है, लेकिन शिवाजी को विवादों में घसीटने के पीछे किसका दिमाग चल रहा है?
राज्यपाल कोश्यारी के बयान पर बवाल
बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने शिवाजी पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के विचार का सपोर्ट तो नहीं किया है, लेकिन परोक्ष रूप से बचाव करने की कोशिश जरूर की है. देवेंद्र फडणवीस का कहना है, 'एक बात साफ है, छत्रपति शिवाजी महाराज महाराष्ट्र और देश के तब तक हीरो और आदर्श रहेंगे - जब तक कि सूरज और चांद रहेगा... यहां तक कि कोश्यारी के भी मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है... राज्यपाल की टिप्पणी के अलग अलग मतलब निकाले गये.'
छह महीने के भीतर ऐसा दूसरा मौका है जब राज्यपाल कोश्यारी ने देवेंद्र फडणवीस को बचाव की मुद्रा में ला दिया है. जुलाई, 2022 में ही भगत सिंह कोश्यारी ने अंधेरी वेस्ट में आयोजित राजस्थानी समाज के एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र के लोगों को लेकर ऐसी बात कह डाली थी कि बीजेपी की फजीहत होने लगी थी. राज्यपाल ने राजस्थान के लोगों की तारीफ करते करते गुजराती समाज को भी खींच लिया और मराठी लोगों के योगदान पर सवाल खड़े करने लगे.
तब राज्यपाल कोश्यारी ने कहा था, 'कभी-कभी मैं यहां लोगों से कहता हूं... महाराष्ट्र में, विशेष रूप से मुंबई और ठाणे से गुजरातियों को निकाल दो... और राजस्थानियों को निकाल दो, तो तुम्हारे यहां कोई पैसा बचेगा ही नहीं... ये राजधानी जो कहलाती है आर्थिक राजधानी, ये आर्थिक राजधानी कहलाएगी ही नहीं.'
उस वक्त शिवसेना और कांग्रेस के साथ राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी राज्यपाल कोश्यारी के बयान पर आपत्ति जतायी थी. हालांकि, कोश्यारी के भाषण के वक्त मंच पर मौजूद बीजेपी विधायक नितेश राणे ने अपनी तरफ से राज्यपाल का बचाव किया था, करीब करीब वैसे ही जैसे अभी देवेंद्र फडणवीस कह रहे हैं.
राज्यपाल का महाराष्ट्र के नाम संदेश क्या है: एक दिन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी औरंगाबाद के डॉक्टर बीआर अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पहुंचे थे - इस मौके पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को डाक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी.
मालूम नहीं राज्यपाल कोश्यारी को क्या सूझी कि वो छत्रपति शिवाजी और नितिन गडकरी की तुलना करने लगे. लोगों को समझाने के क्रम में लगता है वो मौजूदा राजनीतिक समीकरण भूल गये और शिवाजी को गुजरे जमाने का हीरो बता दिये - और नये जमाने का हीरो नितिन गडकरी को करार दिये.
भगत सिंह कोश्यारी कह रहे थे, 'हम जब मिडिल स्कूल और हाई स्कूल में पढ़ते थे तो हमारे टीचर हमसे पूछते थे कि आपके पसंदीदा नेता कौन हैं? हम सभी अपनी पसंद से सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी के नाम लेते थे... आज अगर आपसे कोई पूछे कि आपके पसंदीदा नेता कौन हैं, तो आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है... यहीं महाराष्ट्र में ही मिल जाएंगे... शिवाजी तो पुराने युग की बात है, नये युग की बात कर रहा हूं - डॉक्टर अंबेडकर से लेकर नितिन गडकरी तक यहीं मिल जाएंगे.'
नतीजा ये हुआ है कि उस वाकये के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को ही हटाने की मांग शुरू हो गयी है - और ऐसी मांग करने वालों में छत्रपति शिवाजी के वंशज और राज्य सभा सांसद उदयनराजे भोसले भी खुल कर सामने आ गये हैं.
खास बात ये है कि उदयनराजे भोसले को बीजेपी ने ही राज्य सभा भेजा है - और राज्यपाल को हटाने के लिए वो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पत्र लिख कर छत्रपति शिवाजी के अपमान का आरोप लगा रहे हैं.
अमेजन पार्सल वापस लो: जब राज्यपाल ने ये बात कही थी, तब तो नहीं, लेकिन बाद में एनसीपी नेता शरद पवार ने कहा था कि राज्यपाल ने सारी हदें पार कर दी है - और उसके बाद उद्धव ठाकरे तो महाराष्ट्र बंद की ही धमकी दे चुके हैं.
अपने हिस्से वाली शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे का कहना रहा, ‘मैं तीन से पांच दिन तक इंतजार करूंगा... मैं उनके खिलाफ एकजुट होने के लिए राजनीतिक दलों से संपर्क करूंगा... मैं कोश्यारी के खिलाफ शांतिपूर्ण राज्यव्यापी बंद करने के बारे में सोच रहा हूं.’
और फिर उद्धव ठाकरे ने कोश्यारी को अमेजन का पार्सल तक बता डाला और केंद्र सरकार को पैकेज रिटर्न लेने की सलाह दे डाले, ‘हम यहां महाराष्ट्र में, ये पार्सल नहीं चाहते... चूंकि हम इसे नहीं चाहते हैं, इसलिए आपको इसे वापस लेना चाहिये.’
सावरकर के मामले में उद्धव ठाकरे के बयान पर चुप रही कांग्रेस को भी अब बोलने का मौका मिल गया है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश अब कहने लगे हैं कि सावरकर के बारे में सवाल करने के बजाय बीजेपी पहले शिवाजी पर अपना स्टैंड साफ करे.
भारत जोड़ो यात्रा के साथ मध्य प्रदेश पहुंचे जयराम रमेश ने खंडवा में बीजेपी से सवाल किया, आप हमसे सावरकर के बारे में हमेशा सवाल करते हैं... मैं बीजेपी नेताओं, महाराष्ट्र के राज्यपाल और बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी से पूछना चाहता हूं कि छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में बीजेपी की क्या राय है?
असल में बीजेपी प्रवक्ता ने एक टीवी बहस में बोल दिया था कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को पांच बार पत्र लिखकर माफी मांगी थी. हो सकता है, ये सावरकर पर राहुल गांधी के बयान के खिलाफ बीजेपी का काउंटर अटैक हो, लेकिन ये भी तो वही बात हुई जो राज्यपाल कोश्यारी ने कही है.
क्या ये बहस सावरकर बनाम शिवाजी है?
अंबेडकर तक तो कोई बात नहीं, लेकिन शिवाजी से तुलना करते हुए नितिन गडकरी को उसी कतार में खड़े कर दिये जाने का आखिर क्या मतलब हो सकता है?
मानते हैं कि भगत सिंह कोश्यारी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ही आये हैं - और नितिन गडकरी को भी संघ की पसंद और बेहद करीबी बताया जाता है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि नितिन गडकरी की ऐसी तारीफ के पीछे सिर्फ संघ की विचारधारा का ही प्रभाव है या कुछ और है?
देखें तो नितिन गडकरी संघ के करीबी होने के बावजूद बीजेपी लीडरशिप के मौजूदा समीकरणों में मिसफिट पाये जाते हैं. ज्यादा दिन नहीं हुए जब नितिन गडकरी को बीजेपी के संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया - ऐसा किये जाने की एक वजह महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को तरजीह दिया जाना भी समझा गया था.
सुनने में तो यहां तक आया था कि बीजेपी के फैसले का आधार भी संघ की ही इच्छा समझाने की कोशिश की गयी थी. ऐसे में ये समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर नितिन गडकरी को अंबेडकर की कतार में खड़ा करके और शिवाजी की जगह पेश करके भगत सिंह कोश्यारी क्या संदेश देना चाहते हैं?
क्या शिवाजी और सावरकर के नाम पर महाराष्ट्र की राजनीति बंट चुकी है? क्या एक दूसरे को काउंटर करने के लिए शिवाजी और सावरकर के नाम का इस्तेमाल किया जाने लगा है?
ऐसा तो है नहीं कि उद्धव ठाकरे या शरद पवार की तरफ से सावरकर के नाम पर विवाद खड़ा किया गया हो, वो सब तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी कर रहे हैं - ये भी ध्यान देने वाली बात है कि शिवाजी और सावरकर दोनों ही के मामलों में उद्धव ठाकरे, शरद पवार और बीजेपी नेताओं का स्टैंड एक ही है.
फिर शिवाजी का नाम लेकर राज्यपाल कोश्यारी, राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस के गठबंधन सहयोगियों को बोलने का मौका क्यों दे रहे हैं? क्या शिवाजी के नाम पर हो रहे विवाद में नितिन गडकरी का भी कोई रोल हो सकता है - और क्या पीछे से उनको संघ की भी शह मिल रही है?
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