भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसका फैसला 21 जुलाई को आने वाले नतीजों से पता चल जाएगा. लेकिन, राष्ट्रपति चुनाव के लिए हुए मतदान के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के वोट डालने की तस्वीरों की खूब चर्चा हुई. दरअसल, निर्मला सीतारमण और आरके सिंह कोरोना से संक्रमित थे. और, पीपीई किट पहनकर वोट डालने पहुंचे थे. जबकि, एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का पलड़ा पहले से ही भारी माना जा रहा था. निर्मला सीतारमण और आरके सिंह का कोरोना संक्रमित होने के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने आना विपक्षी सियासी दलों की गंभीरता पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाता है.
वैसे, विपक्षी सियासी दल लंबे समय से साझा विपक्ष की बातें कर रहे हैं. लेकिन, यशवंत सिन्हा को विपक्ष का साझा उम्मीदवार घोषित करने के बाद भी सियासी दल अपने स्टैंड पर कायम नहीं रह सके. पश्चिम बंगाल में यशवंत सिन्हा को प्रचार से दूर रखने के लिए सीएम ममता बनर्जी ने ही 'खेला' कर दिया. वहीं, भाजपा की ओर से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के साथ ही झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों के सियासी दलों ने विपक्षी एकता को किनारे रखते हुए अपना पाला बदल लिया. इतना ही नहीं, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में कांग्रेस, एनसीपी, समाजवादी पार्टी के विधायकों ने पार्टी लाइन से किनारा करते हुए क्रॉस वोटिंग की.
देखा जाए, तो अगर निर्मला सीतारमण और आरके सिंह के दो वोट नहीं भी पड़ते, तो द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुनाव हारने वाली नहीं थीं. लेकिन, निर्मला सीतारमण और आरके सिंह ने कोरोना संक्रमित होने के बावजूद वोट डालने पहुंचकर...
भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसका फैसला 21 जुलाई को आने वाले नतीजों से पता चल जाएगा. लेकिन, राष्ट्रपति चुनाव के लिए हुए मतदान के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के वोट डालने की तस्वीरों की खूब चर्चा हुई. दरअसल, निर्मला सीतारमण और आरके सिंह कोरोना से संक्रमित थे. और, पीपीई किट पहनकर वोट डालने पहुंचे थे. जबकि, एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का पलड़ा पहले से ही भारी माना जा रहा था. निर्मला सीतारमण और आरके सिंह का कोरोना संक्रमित होने के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने आना विपक्षी सियासी दलों की गंभीरता पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाता है.
वैसे, विपक्षी सियासी दल लंबे समय से साझा विपक्ष की बातें कर रहे हैं. लेकिन, यशवंत सिन्हा को विपक्ष का साझा उम्मीदवार घोषित करने के बाद भी सियासी दल अपने स्टैंड पर कायम नहीं रह सके. पश्चिम बंगाल में यशवंत सिन्हा को प्रचार से दूर रखने के लिए सीएम ममता बनर्जी ने ही 'खेला' कर दिया. वहीं, भाजपा की ओर से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के साथ ही झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों के सियासी दलों ने विपक्षी एकता को किनारे रखते हुए अपना पाला बदल लिया. इतना ही नहीं, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में कांग्रेस, एनसीपी, समाजवादी पार्टी के विधायकों ने पार्टी लाइन से किनारा करते हुए क्रॉस वोटिंग की.
देखा जाए, तो अगर निर्मला सीतारमण और आरके सिंह के दो वोट नहीं भी पड़ते, तो द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुनाव हारने वाली नहीं थीं. लेकिन, निर्मला सीतारमण और आरके सिंह ने कोरोना संक्रमित होने के बावजूद वोट डालने पहुंचकर विपक्ष को कई सबक दिए हैं. आइए जानते हैं कि वो सबक क्या हैं?
प्रतिबद्धता - किसी लक्ष्य को पाने के लिए प्रतिबद्धता हमेशा से ही जरूरी मानी जाती है. राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का लक्ष्य अपनी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत को सुनिश्चित करना था. और, इस लक्ष्य को पाने के लिए निर्मला सीतारमण और आरके सिंह की प्रतिबद्धता साफ नजर आती है. वैसे, सीतारमण और आरके सिंह कोरोना महामारी से संक्रमित होने की बात के सहारे मतदान से किनारा कर सकते थे. लेकिन, राष्ट्रपति पद के लक्ष्य के लिए उनकी प्रतिबद्धता ने स्पष्ट किया कि वह विपक्षी सियासी दलों से अलग हैं. जबकि, अन्य सियासी दलों के कई विधायक और सांसद यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति बनाने के अपने लक्ष्य को भूल गए.
वचनबद्धता - निर्मला सीतारमण और आरके सिंह का कोरोना संक्रमित होने के बावजूद वोट डालने पहुंचना उनका अपनी पार्टी यानी भाजपा के लिए वचनबद्धता को दर्शाता है. जब पार्टी की ओर से घोषणा कर दी गई कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के लिए सभी सांसदों और विधायकों को मौजूद रहना है. तो, पार्टी के प्रति अपनी वचनबद्धता को ध्यान में रखते हुए तमाम बाधाओं को पार कर निर्मला सीतारमण और आरके सिंह ने अपना वोट डाला. जबकि, कांग्रेस, एनसीपी, समाजवादी पार्टी समेत कई दलों के सांसदों और विधायकों ने इस वचनबद्धता से किनारा करते हुए द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट दिया.
कर्तव्यबोध - आमतौर पर किसी नैतिक जिम्मेदारी को कर्तव्यबोध के संदर्भ में देखा जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो नागरिकों के कर्तव्यों में से एक वोट डालना भी होता है. और, यही कर्तव्यबोध निर्मला सीतारमण और आरके सिंह ने भी दिखाया. सांसद होने के नाते यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी थी कि वे राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लें. और, मतदान कर उन्होंने अपने इस कर्तव्य को बखूबी निभाया भी. वैसे, बताना जरूरी है कि राष्ट्रपति चुनाव में करीब 99 फीसदी वोट ही पड़े थे. यानी करीब 1 फीसदी सांसदों और विधायकों ने अपने मतों का इस्तेमाल नहीं किया. कर्तव्यबोध को लेकर यह एक बड़ी नसीहत मानी जा सकती है.
प्रेरणास्पद - मोदी सरकार में उच्च पद पर होने के बावजूद निर्मला सीतारमण और आरके सिंह का मतदान करने पहुंचना सांसदों और विधायकों के लिए प्रेरणास्पद कहा जा सकता है. अगर ये दोनों नेता मतदान से दूरी बना लेते, तो भी शायद भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती. लेकिन, एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह सीतारमण और आरके सिंह ने अपनी पार्टी के नेताओं के साथ ही विपक्ष को भी प्रेरणा दी है. क्योंकि, संगठन का हर नेता अगर निर्मला सीतारमण और आरके सिंह की तरह व्यवहार करेगा. तो, यह जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए भी प्रेरणा देने वाला मामला हो जाता है.
विरोधियों को संदेश - राष्ट्रपति चुनाव में निर्मला सीतारमण और आरके सिंह का मतदान विरोधियों के लिए एक बड़ा संदेश है कि भाजपा जैसी पार्टी में पूरी ताकत के साथ अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश की जाती है. और, लक्ष्य को पाने के लिए भाजपा के कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेता तक एकजुट रहते हैं. कहना गलत नहीं होगा कि सीतारमण और आरके सिंह के वोट डालने पहुंचने से कई विपक्षी नेताओं के वोट अपने आप ही द्रौपदी मुर्मू के खाते में पहुंच गए होंगे. क्योंकि, इस मतदान ने विपक्षी नेताओं को भी अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने के लिए मजबूर कर दिया होगा.
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