'Democracy feeds on argument, on the discussion as to the right way forward. This is the reason why respecting the opinion of others belong to democracy.' डेमोक्रेसी के मद्देनजर दिया गया ये कोट जर्मनी के राष्ट्रपति Richard Von Weizsaecker का है. इस कोट को यदि ध्यान से पढ़े और इसका अवलोकन करें तो मिलता है कि बेहतरीन लोकतंत्र वहीं है जहां बहस, वाद-विवाद और संवाद की गुंजाइश तो हो ही साथ ही दूसरे के ओपिनियन को इज्ज़त भी दी जाए. इन बातों पर चर्चा होगी लेकिन उससे पहले ज़िक्र एक लोकतंत्र के रूप में भारत का. भारत कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है. देश में मौतों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. लोगों को मूलभूत चिकित्सीय सुविधाएं जैसे बेड, ऑक्सीजन और वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार तक में तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. स्थिति जब इस हद तक जटिल हो तो देश और विपक्ष दोनों का सरकार से सवाल पूछना स्वाभाविक है. कोविड 19 पर जैसा रुख सरकार का है साफ है कि वो हाथ पर हाथ धरे हुए नहीं बैठी है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि खराब होते हालात को नियंत्रित किया जाए. सरकार अपना काम कर रही है ऐसे में विपक्ष के रूप में राहुल गांधी का सामने आना और चाहे नाकामी छोटी हो या बड़ी उसे मुद्दा बनाना और दुनिया को ये बताना कि 'चौकीदार चोर है' न केवल विचलित करता है बल्कि तमाम तरह के सवालों को जन्म देता है.
विचलित होने की जरूरत नहीं है. विपक्ष का काम ही है सरकार की आलोचना करना लेकिन तब क्या जब आलोचना का स्तर भौंडेपन पर...
'Democracy feeds on argument, on the discussion as to the right way forward. This is the reason why respecting the opinion of others belong to democracy.' डेमोक्रेसी के मद्देनजर दिया गया ये कोट जर्मनी के राष्ट्रपति Richard Von Weizsaecker का है. इस कोट को यदि ध्यान से पढ़े और इसका अवलोकन करें तो मिलता है कि बेहतरीन लोकतंत्र वहीं है जहां बहस, वाद-विवाद और संवाद की गुंजाइश तो हो ही साथ ही दूसरे के ओपिनियन को इज्ज़त भी दी जाए. इन बातों पर चर्चा होगी लेकिन उससे पहले ज़िक्र एक लोकतंत्र के रूप में भारत का. भारत कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है. देश में मौतों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. लोगों को मूलभूत चिकित्सीय सुविधाएं जैसे बेड, ऑक्सीजन और वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार तक में तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. स्थिति जब इस हद तक जटिल हो तो देश और विपक्ष दोनों का सरकार से सवाल पूछना स्वाभाविक है. कोविड 19 पर जैसा रुख सरकार का है साफ है कि वो हाथ पर हाथ धरे हुए नहीं बैठी है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि खराब होते हालात को नियंत्रित किया जाए. सरकार अपना काम कर रही है ऐसे में विपक्ष के रूप में राहुल गांधी का सामने आना और चाहे नाकामी छोटी हो या बड़ी उसे मुद्दा बनाना और दुनिया को ये बताना कि 'चौकीदार चोर है' न केवल विचलित करता है बल्कि तमाम तरह के सवालों को जन्म देता है.
विचलित होने की जरूरत नहीं है. विपक्ष का काम ही है सरकार की आलोचना करना लेकिन तब क्या जब आलोचना का स्तर भौंडेपन पर पहुंच जाए ? 2020 में डोनाल्ड ट्रंप के भारत आने से लेकर अब तक कोरोना के मद्देनजर जिस तरह के ट्वीट राहुल गांधी ने किए हैं साफ़ है कि उन्हें देश या नागरिकों से कोई मतलब नहीं है. उनका एजेंडा पीएम मोदी को विश्व पटल पर नीचा दिखाना है और वो ये काम पूरी शिद्दत से कर रहे हैं.
हम बिल्कुल भी इस बात के पक्षधर नहीं हैं कि कोरोना के मद्देनजर जो प्रयास या नीतियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैं वो सही हैं. न ही हम सरकार का समर्थन कर रहे हैं. बात बस इतनी है कि यदि सरकार कुछ कह रही है हमें विश्वास दिला रही है तो अपने एजेंडे को दरकिनार कर हमें उसपर भरोसा करना ही होगा. और यही नियम राहुल गांधी पर भी लागू होता है.
चाहे वो पीएम केयर फंड्स को सवालों के घेरे में डालना हो या फिर वेंटिलेटर और विदेश से आई राहत सामग्री पर प्रश्न उठाना हो राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री और उनके सरकार के खिलाफ हमलावर हैं और आलोचना के नाम पर ऐसी तमाम बातें कर चुके हैं जिसकी गुंजाइश स्वस्थ लोकतंत्र में शायद ही हो.सवाल ये है कि कोविड रूपी इस आपदा में अवसर तलाशने वाले राहुल गांधी आखिर साबित क्या करना चाहते हैं? जैसे एक के बाद एक राहुल तमाम प्रयासों को सवालों के घेरे में डाल रहे हैं देश के सामने प्रश्न ये भी है कहीं राहुल गांधी देश विरोधी ताकतों से साथ तो नहीं हैं?
हो सकता है राहुल गांधी या कांग्रेस के समर्थक इस बात को कहें कि सरकार में कमियां हैं. सरकार इस आपदा को हैंडल करने में नाकाम हैं और पीएम मोदी एक असफल प्रधानमंत्री हैं और राहुल गांधी द्वारा इन कमियों को गिनाना देशद्रोह नहीं है. हम पूरी तरह से सहमत से इस बात से . जैसा कि हम Richard Von Weizsaecker के डेमोक्रेसी पर कथन के जरिये इस बात को पहले ही बता चुके हैं कि संवाद और सवाल किसी भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है लेकिन इस आपदा के दौरान जो कुछ भी राहुल गांधी कर रहे हैं उसे सवाल पूछना नहीं अपितु किसी को नीचा दिखाना कहते हैं.
पता नहीं इस कोरोना आपदा में चौकीदार को चोर बताने वाले राहुल गांधी इस बात को जानते हैं या नहीं कि जो वो कर रहे हैं उससे उन भारतीयों का बड़ा नुकसान हो रहा है जो विदेश में रह रहे हैं चूंकि राहुल गांधी कोविड के इस दूसरे स्ट्रेन को मोदी से जोड़ चुके हैं इसलिए विदेशी मीडिया भी इसी बात को दर्शा रहा है कि दूसरा स्ट्रेन भारतीय है.
साफ है कि भारत को बदनाम करने के लिए विदेशी मीडिया को जो मसाला चाहिए था वो उसे राहुल ने दिया है. बात विदेश में रह रहे भारतीयों की हुई है तो ये बताना बहुत ज़रूरी है कि राहुल की बदौलत विदेशी दूसरी स्ट्रेन का जिम्मेदार भारत को ही मान रहे हैं. हाल फिलहाल में कई ऐसे मामले आए हैं जिनमें विदेश में रह रहे भारतीयों को तिरस्कार झेलना पड़ा है.
बहरहाल राहुल गांधी भले ही कोविड का जिम्मेदार मोदी को मान रहे हों और देश को बताना चाह रहे हों कि, आज देश जो भी झेल रहा है उसके पीछे की एकमात्र वजह मोदी हैं लेकिन उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि इन आरोप प्रत्यारोपों का सीधा असर विदेश में पड़ रहा है. वो विदेशी जो अभी कुछ समय पहले तक इस बात को मानने लगे थे कि जल्द ही भारत विश्व गुरु बन जाएगा आज शक की निगाह से भारत की तरफ देख रहे हैं.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि अब वो वक़्त आ गया है जब राहुल गांधी को समझ लेना चाहिए कि वो कोविड की आड़ लेकर प्रधानमंत्री पर हमले तो कर रहे हैं लेकिन इससे सीधे तौर पर बदनामी एक देश के रूप में भारत की हो रही है.
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