अभी देश के जो हालात हैं वह किसी भी सूरत में ठीक-ठाक भी नहीं कहे जा सकते हैं. देश की स्थिति अभी भी भयभीत कर देने वाली बनी हुई है. अस्पतालों में जगह पाना अभी भी चुनौती बना हुआ है, श्मशान व कब्रिस्तानों में लाशों के ढ़ेर दिखाई दे रहे हैं, संसाधनों की भारी मात्रा में कमी भी दिखाई पड़ती है, सरकार की सारी कोशिशें कम पड़ जा रही हैं या यूं कहिये कि दम तोड़ती नजर आ रही हैं.
कोरोना का आंकड़ा किसी राज्य में सुकून और राहत दे रहा है तो किसी राज्य में कोरोना का आंकड़ा आसमान छू रहा है. भारत संकटों से घिरा हुआ है, तमाम कोशिशों के बावजूद भी अभी तक हालात संभल नहीं पाए हैं. भारत को ज़रूरत है इस वक्त मिलकर इस वायरस से युद्ध लड़ने की. भारत सरकार को इस बात का कतई अंदाजा नहीं रहा होगा कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर उसकी तमाम व्यवस्थाओं को खोखला करके रख देगी और कोरोना के इस नए स्ट्रेन से भारत की चरमराई हुई व्यवस्था ही वेंटिलेटर पर पहुंच जाएगी.
सरकार कोरोना वायरस के दूसरी लहर के खतरे से बिल्कुल भी वाकिफ नहीं थी, यही वजह रही कि सरकार ने कोरोना की पहली लहर की तरह ही दूसरी लहर को भी समझा और आश्वस्त हो गई कि हमारे संसाधन इस नए स्ट्रेन को भी मात दे देंगे. प्रधानमंत्री से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री पांच राज्यों के चुनावों में भिड़ गए, इसी बीच जब कोरोना की दूसरी लहर ने अपना तांडव दिखाना शुरू किया तो लाशों के अंबार लग गए, चारों तरफ ऑक्सीजन और दवाओं के लिए हाहाकार मच गया.
अस्पतालों के बेड फुल हो गए. एक तरफ देश में मौतों का अंबार का लगा हुआ था तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल जैसे राज्य चुनावी शोरगुल में डूबे थे. सरकार कोरोना की इस रफ्तार को रोकने...
अभी देश के जो हालात हैं वह किसी भी सूरत में ठीक-ठाक भी नहीं कहे जा सकते हैं. देश की स्थिति अभी भी भयभीत कर देने वाली बनी हुई है. अस्पतालों में जगह पाना अभी भी चुनौती बना हुआ है, श्मशान व कब्रिस्तानों में लाशों के ढ़ेर दिखाई दे रहे हैं, संसाधनों की भारी मात्रा में कमी भी दिखाई पड़ती है, सरकार की सारी कोशिशें कम पड़ जा रही हैं या यूं कहिये कि दम तोड़ती नजर आ रही हैं.
कोरोना का आंकड़ा किसी राज्य में सुकून और राहत दे रहा है तो किसी राज्य में कोरोना का आंकड़ा आसमान छू रहा है. भारत संकटों से घिरा हुआ है, तमाम कोशिशों के बावजूद भी अभी तक हालात संभल नहीं पाए हैं. भारत को ज़रूरत है इस वक्त मिलकर इस वायरस से युद्ध लड़ने की. भारत सरकार को इस बात का कतई अंदाजा नहीं रहा होगा कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर उसकी तमाम व्यवस्थाओं को खोखला करके रख देगी और कोरोना के इस नए स्ट्रेन से भारत की चरमराई हुई व्यवस्था ही वेंटिलेटर पर पहुंच जाएगी.
सरकार कोरोना वायरस के दूसरी लहर के खतरे से बिल्कुल भी वाकिफ नहीं थी, यही वजह रही कि सरकार ने कोरोना की पहली लहर की तरह ही दूसरी लहर को भी समझा और आश्वस्त हो गई कि हमारे संसाधन इस नए स्ट्रेन को भी मात दे देंगे. प्रधानमंत्री से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री पांच राज्यों के चुनावों में भिड़ गए, इसी बीच जब कोरोना की दूसरी लहर ने अपना तांडव दिखाना शुरू किया तो लाशों के अंबार लग गए, चारों तरफ ऑक्सीजन और दवाओं के लिए हाहाकार मच गया.
अस्पतालों के बेड फुल हो गए. एक तरफ देश में मौतों का अंबार का लगा हुआ था तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल जैसे राज्य चुनावी शोरगुल में डूबे थे. सरकार कोरोना की इस रफ्तार को रोकने की अंदरूनी कोशिश कर रही थी जबकि चुनावों में वह खुलकर सत्ता को पाने की हर संभव कोशिश कर रही थी.
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जब इस तरह की आपदा आती है और सरकार का यह रवैया दिखाई देता है तो ऐसे समय में विपक्ष ही सबसे अहम कड़ी होता है. विपक्ष को कभी भी इतना कमज़ोर नहीं होना चाहिए, जितना कमज़ोर विपक्ष मौजूदा समय में भारत में है. ये हमारे लोकतंत्र के लिए हरगिज़ सही नहीं है. विपक्ष जनता की आवाज़ होता है, जनता की समस्याओं को विपक्ष ही जोर शोर से उठाकर सरकार पर दबाव बनाता है ताकि सरकार उनकी सुध ले सके.
कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने भारत की जनता को बेबस और लाचार बनाकर रख दिया है लेकिन सरकार चुप्पी साधे हुए है, सरकार की चुप्पी को विपक्ष ही तुड़वा सकता है लेकिन विपक्ष इतना कमज़ोर है कि खुद ही चुप बैठा हुआ है. सरकार अपने मनमुताबिक कोरोना से लड़ने का प्लान तैयार कर रही है जिसे विपक्ष को कानों कान तक खबर नहीं है जबकि किसी भी आपदा के वक्त पक्ष और विपक्ष का साथ रहकर काम करना ही ज़रूरी होता है.
भारत सरकार के ऊपर इस तरह का पहला कोई संकट आया है जिसकी कभी किसी ने कोई कल्पना तक न की रही होगी. यह ऐसा संकट है जिसके बारे में अधिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं है. कोरोना की पहली लहर के लक्षण और दूसरी लहर के लक्षण में भिन्नता: है. इतने बड़े स्तर पर ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ सकती है इसकी जानकारी भी किसी को नहीं थी ऐसे में जब एकबारगी इस तरह का संकट आया तो व्यवस्थाओं ने अपना दम तोड़ दिया.
ऐसे समय में विपक्ष को सरकार पर दबाव बनाने का मुख्य काम करना था ताकि सरकार दबाव में ही सही मगर कार्य में तेज़ी दिखाती. लेकिन विपक्ष खुद भी बंटा हुआ नज़र आया. क्षेत्रीय दलों ने चुप्पी साधे रखी और मौका देखकर संसाधनों की कमी का ही रोना रोया जबकि कांग्रेस ने लगातार आवाज़ उठाने की नाकाम कोशिश ही की, कांग्रेस कभी ट्विटर पर बोलती नज़र आई तो कभी राहुल गांधी का बखान करती नज़र आयी. मौजूदा समय में भारत को एक मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत थी जो अबतक गुम है.
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