2014 से हर बीतते दिन के साथ देश की राजनीति बदल रही है. दौर राष्ट्रवादी राजनीति या ये कहें कि खुद को राष्ट्रवादी दिखाने का है. क्योंकि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ये बेहद जरूरी है. इसलिए तमाम चीजें अप्रत्याशित हुई हैं. कैसे? जवाब क्रिकेटर हरभजन सिंह और उनके पॉलिटिकल डेब्यू में छिपा है. 41 साल के ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह ने 24 दिसंबर 2021 को इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लिया था. अलग-अलग मुद्दों पर मुखर होकर अपनी बात कहने का जैसा रुख हरभजन का रहा है. मान तो तभी लिया गया था कि हरभजन सिंह राजनीति में आएंगे. लेकिन जिस तरह उन्हें न केवल आम आदमी पार्टी में जगह मिली बल्कि जैसे उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है राजनीतिक गलियारों में बेचैनियां बढ़ गयी हैं. जैसा भाग्य हरभजन का है कहना गलत नहीं है कि ये कुछ वैसा ही है कि कोई ऑल राउंडर अपना पहला ODI डेब्यू करे और अपने पहले मैच में सेंचुरी भी बनाए और 5 विकेट भी निकाले. हरभजन का आम आदमी पार्टी के खेमे से राज्यसभा जाना जहां एक तरफ कुछ लोगों के गले नहीं उतर रहा है. तो वहीं कयास ये भी हैं कि अगर हरभजन पर आज खुदा मेहरबान है तो इसके पीछे की एक बड़ी वजह नवजोत सिंह सिद्धू हैं.
सिद्धू कैसे हरभजन के सारथी हुए हैं इसपर चर्चा होगी. लेकिन उससे पहले हमारे लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि क्रिकेट के बाद अपने लिए पॉलिटिकल ग्राउंड खुद हरभजन ने तैयार किया था. हरभजन जानते थे कि, क्रिकेट के बाद अगर कहीं स्कोप है, तो वो राजनीति है. और क्योंकि हरभजन को शायद पंजाब में ही राजनीति करनी थी तैयारी उनकी पहले से ही थी.
बात हरभजन के राजनीति में आने की और पार्टी ज्वाइन करने की हुई है इसलिए ये बता देना भी जरूरी...
2014 से हर बीतते दिन के साथ देश की राजनीति बदल रही है. दौर राष्ट्रवादी राजनीति या ये कहें कि खुद को राष्ट्रवादी दिखाने का है. क्योंकि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ये बेहद जरूरी है. इसलिए तमाम चीजें अप्रत्याशित हुई हैं. कैसे? जवाब क्रिकेटर हरभजन सिंह और उनके पॉलिटिकल डेब्यू में छिपा है. 41 साल के ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह ने 24 दिसंबर 2021 को इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लिया था. अलग-अलग मुद्दों पर मुखर होकर अपनी बात कहने का जैसा रुख हरभजन का रहा है. मान तो तभी लिया गया था कि हरभजन सिंह राजनीति में आएंगे. लेकिन जिस तरह उन्हें न केवल आम आदमी पार्टी में जगह मिली बल्कि जैसे उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है राजनीतिक गलियारों में बेचैनियां बढ़ गयी हैं. जैसा भाग्य हरभजन का है कहना गलत नहीं है कि ये कुछ वैसा ही है कि कोई ऑल राउंडर अपना पहला ODI डेब्यू करे और अपने पहले मैच में सेंचुरी भी बनाए और 5 विकेट भी निकाले. हरभजन का आम आदमी पार्टी के खेमे से राज्यसभा जाना जहां एक तरफ कुछ लोगों के गले नहीं उतर रहा है. तो वहीं कयास ये भी हैं कि अगर हरभजन पर आज खुदा मेहरबान है तो इसके पीछे की एक बड़ी वजह नवजोत सिंह सिद्धू हैं.
सिद्धू कैसे हरभजन के सारथी हुए हैं इसपर चर्चा होगी. लेकिन उससे पहले हमारे लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि क्रिकेट के बाद अपने लिए पॉलिटिकल ग्राउंड खुद हरभजन ने तैयार किया था. हरभजन जानते थे कि, क्रिकेट के बाद अगर कहीं स्कोप है, तो वो राजनीति है. और क्योंकि हरभजन को शायद पंजाब में ही राजनीति करनी थी तैयारी उनकी पहले से ही थी.
बात हरभजन के राजनीति में आने की और पार्टी ज्वाइन करने की हुई है इसलिए ये बता देना भी जरूरी है कि हरभजन जाने को तो भाजपा में भी जा सकते थे लेकिन पंजाब में भाजपा का कोई बहुत ज्यादा स्कोप नहीं है इसलिए उन्होंने इरादे बदल दिए.
जिस समय हरभजन ने संन्यास लिया पंजाब की कमान कांग्रेस के पास थी इसलिए कयास ये भी लगाए गए कि हरभजन कांग्रेस की क्षरण में भी जा सकते हैं. लोग अभी कयास लगा भी नहीं पाए थे कि इंटरनेट पर एक वो तस्वीर वायरल हुई जिसमें हरभजन और नवजोत सिंह सिद्धू एक साथ दिखे.
ध्यान रहे कि ये तस्वीर उस समय आई जब पंजाब कांग्रेस में चन्नी और सिद्धू में टकराव अपने चरम पर था और चुनाव को बस कुछ ही दिन शेष थे.
जिक्र वायरल तस्वीर का हुआ है. तो दिलचस्प बात ये भी है कि, ये वही समय था जब कहा ये भी गया कि भाजपा की नजर हरभजन सिंह और युवराज सिंह पर है. ये चर्चा कोरी अफवाह नहीं थी तमाम मीडिया आउटलेट्स ने भाजपा के एक बड़े नेता के उस बयान को बड़े ही जोरो शोर से उठाया था जिसमें कहा गया था कि हरभजन और युवराज भारतीय जनता पार्टी के राडार पर हैं और भविष्य में देश कुछ बड़ी ख़बरों से रू-ब-रू होगा.
वहीं हरभजन सिंह ने इस तरह की किसी भी सम्भावना का खंडन किया था और ट्विटर पर अपने फैंस के बीच इस खबर को फेक न्यूज करार दिया था.
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि हरभजन सिंह का शुमार टीम इंडिया के उन क्रिकेटर्स में है जो मुखर होकर अपनी बात कहते हैं. हरभजन और उनकी मुखरता से जुड़ा ये नियम उस वक़्त भी लागू हुआ जब देश किसान आंदोलन का साक्षी बन रहा था.
हरभजन सरकार के नहीं किसानों के साथ थे जिस कारण उन्हें सरकार या नए कृषि बिल के समर्थक लोगों की आलोचनाओं से दो चार होना पड़ा. ज्ञात हो कि किसान आंदोलन के उस दौर में हरभजन का वो इंस्टाग्राम पोस्ट भी लोगों के बीच कौतुहल का विषय बना था जिसमें उन्होंने एक तस्वीर शेयर करते हुए इस बात पर बल दिया था कि किसान आतंकवादी नहीं हैं.
इस तस्वीर के लिए हरभजन को खूब ट्रोल किया गया. हरभजन को जहां एक तरफ लोगों ने आपिया / कांग्रेस सिम्पेथाइजर की संज्ञा दी तो वहीं उनको जनता द्वारा खालिस्तानी भी बताया गया.
जिक्र हरभजन का कृषि बिल को लेकर सरकार के खिलाफ होने और फिर आम आदमी पार्टी के झंडे से राज्य सभा जाने का हुआ है. साथ ही हम ये भी बता चुके हैं कि हरभजन को सिर्फ पंजाब में राजनीति करनी थी और साथ ही वो पूरे पंजाब चुनावों का गहनता से अवलोकन कर रहे थे. इसलिए जब हरभजन ने पंजाब में कांग्रेस की स्थिति देख ली उन्होंने आम आदमी पार्टी का रुख किया.
भगवंत मान हरभजन के करीबी हैं और क्योंकि राष्ट्रवाद की राजनीति कर रही आम आदमी पार्टी को हरभजन में टीम इंडिया फैक्टर दिखा उन्होंने हरभजन सिंह को हाथों हाथ लिया. ध्यान रहे आम आदमी पार्टी को इस महीने यानी मार्च 2022 के अंत तक राज्यसभा में पांच सीटें मिलने वाली हैं.
मुख्यमंत्री मान से हरभजन की दोस्ती उन्हें किस हद तक फायदा पहुंचाती नजर आ रही है इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब की नवगठित राज्य सरकार, हरभजन सिंह को एक खेल विश्वविद्यालय की कमान भी दे सकती है. गौरतलब है कि सीएम भगवंत मान ने अभी हाल ही में जालंधर में खेल विश्वविद्यालय बनाने का वादा कर चुके हैं.
हरभजन क्रिकेट कोई तरह राजनीति के मैदान में कैसा प्रदर्शन करेंगे इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन जिस तरह वो आम आदमी पार्टी की क्षरण में आए हैं कोई बड़ी बात नहीं कि कल की तारीख में हम सिद्धू को भी आम आदमी पार्टी के दर पर खड़ा पाएं.
मान से हरभजन की दोस्ती तो एक बहाना है.सिद्धू अपना राजनीतिक भविष्य जानते हैं कोई बड़ी बात नहीं कि हरभजन को उन्होंने अपने निजी फायदे के लिए आम आदमी पार्टी का दर दिखाया हो. वहीं बात आम आदमी पार्टी की हो तो एक तो राष्ट्रवादी इमेज बिल्डिंग ऊपर से टीम इंडिया में रह चुके हर हरभजन का पार्टी में आना कहीं से भी घाटे का सौदा नहीं है.
कुल मिलाकर फायदा आम आदमी पार्टी और हरभजन सिंह दोनों का है. हरभजन की वजह से पार्टी की राष्ट्रवादी इमेज और मजबूत होगी तो वहीं पंजाब में राजनीति का इससे बड़ा चांस हरभजन को शायद ही कोई और दे पाए.
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