राजनीति टाइमिंग का खेल है, इसमें कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. भारत में राजनीति की ये विशेषता भी है कि, ये जहां एक तरफ लोगों का खुला मुंह बंद करा सकती है. तो वहीं दूसरी तरफ बंद मुंह को खुलवा भी सकती है. खुले मुंह के बंद होने तक, सब ठीक रहता है. मगर जब बरसों से बंद मुंह, खुलता है तो फिर ये कइयों की चिंता का सबब बन जाता है. कह सकते हैं कि बरसों से बंद मुंह जब खुलता है तो फिर इसकी आग कई घरों को अपनी जद में ले लेती है जिससे लोग परेशान हो जाते हैं.
अब अगर आप उपरोक्त बात समझना चाहते हैं तो फिर इसे आपको कांग्रेस पार्टी, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सन्दर्भ में रखना होगा. एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे शांत स्वाभाव के आदमी कुछ ऐसा बोल गए हैं जिसको सुनकर शायद सोनिया गांधी के कलेजे पर सांप लोट गया हो, राहुल के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी हो, पार्टी से जुड़े बड़े नेता सकते में आ गए हों कि आखिर मनमोहन सिंह को ये क्या हो गया. वो अचानक ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं.
ज्ञात हो कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुस्तक 'द कोलिशन इयर्स' के उद्घाटन के अवसर पर, अपने मन की बात रखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि,' प्रधानमंत्री बनने के मामले में उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचा था और इस बात को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी जानते थे.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को कई मामलों में अपने से बेहतर मानने वाले मनमोहन सिंह का मत है कि, 2004 में जब प्रधानमंत्री चुने जाने की बात हुई तब पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी ने उनका नाम सामने किया जबकि इस पद के असली हकदार प्रणब मुखर्जी थे और तब वो इसलिए कुछ...
राजनीति टाइमिंग का खेल है, इसमें कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. भारत में राजनीति की ये विशेषता भी है कि, ये जहां एक तरफ लोगों का खुला मुंह बंद करा सकती है. तो वहीं दूसरी तरफ बंद मुंह को खुलवा भी सकती है. खुले मुंह के बंद होने तक, सब ठीक रहता है. मगर जब बरसों से बंद मुंह, खुलता है तो फिर ये कइयों की चिंता का सबब बन जाता है. कह सकते हैं कि बरसों से बंद मुंह जब खुलता है तो फिर इसकी आग कई घरों को अपनी जद में ले लेती है जिससे लोग परेशान हो जाते हैं.
अब अगर आप उपरोक्त बात समझना चाहते हैं तो फिर इसे आपको कांग्रेस पार्टी, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सन्दर्भ में रखना होगा. एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे शांत स्वाभाव के आदमी कुछ ऐसा बोल गए हैं जिसको सुनकर शायद सोनिया गांधी के कलेजे पर सांप लोट गया हो, राहुल के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी हो, पार्टी से जुड़े बड़े नेता सकते में आ गए हों कि आखिर मनमोहन सिंह को ये क्या हो गया. वो अचानक ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं.
ज्ञात हो कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुस्तक 'द कोलिशन इयर्स' के उद्घाटन के अवसर पर, अपने मन की बात रखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि,' प्रधानमंत्री बनने के मामले में उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचा था और इस बात को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी जानते थे.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को कई मामलों में अपने से बेहतर मानने वाले मनमोहन सिंह का मत है कि, 2004 में जब प्रधानमंत्री चुने जाने की बात हुई तब पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी ने उनका नाम सामने किया जबकि इस पद के असली हकदार प्रणब मुखर्जी थे और तब वो इसलिए कुछ नहीं कर पाए क्योंकि उस समय उनके पास कोई विकल्प था ही नहीं.
हालांकि ये बात सभी जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी में सभी फैसले सोनिया गांधी ही लेती हैं. ऐसे में मनमोहन की यह टिप्पणी इसलिए भी खासा महत्व रखती है क्योंकि मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में ये बात स्वीकारी है कि, उन्हें पूरी उम्मीद थी की पार्टी में अनुभव की अधिकता के चलते पार्टी देश का प्रधानमंत्री उन्हें ही बनाएगी. पुस्तक के लोकार्पण में मुखर्जी ने यह भी कहा कि जब उन्होंने मनमोहन सरकार में शामिल होने से मना कर दिया तब सोनिया द्वारा उनपर दबाव डाला गया कि वो पार्टी में शामिल हों जिससे मनमोहन सरकार को बल मिले जिससे सरकार का कामकाज सुचारू रूप से चल सके.
बहरहाल, जो होना था हो चुका, जो हो रहा है वो हमारे सामने है. ऐसे में अगर हम मनमोहन सिंह की बात पर पुनर्विचार करें तो तब की परिस्थितियों का अंदाजा हमें स्वयं लग जाएगा. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बारे में न सिर्फ कांग्रेस बल्कि दूसरी पार्टियों तक में मशहूर है कि कभी भी उन्होंने गलत चीजों या गलत बातों का समर्थन नहीं किया और गलत चीजों पर सदैव उन्होंने खुल के अपना विरोध दर्ज किया है.
कहा जा सकता है कि पूर्व से लेकर आजतक प्रणब दा अपनी साफगोही और बागी तेवरों के लिए जाने गए हैं. इसके ठीक विपरीत मनमोहन सिंह को क्लास के उस बच्चे के रूप में देखा जा सकता है जो पढाई में अच्छा न सही मगर वो क्लास का मॉनिटर इसलिए है क्योंकि वो टीचर का चहेता है. उसको लेकर टीचर को इस बात का विश्वास है कि वो उसे कितना भी काम दे, वो चूं तक नहीं करेगा और वही करता जाएगा जो टीचर उससे करवाएगी.
भले ही आज मनमोहन खुलकर अपने मन की बातें रख रहे हों मगर ये तब खामोश थे जब कई अलग - अलग मुद्दों पर पार्टी को लगातार विपक्ष द्वारा घेरा जा रहा था. अपने शासनकाल में न ही कभी इन्होंने सोनिया गांधी पर कुछ कहा, न ही ये राहुल गांधी पर कभी कुछ बोले. पार्टी में जो भी फैसले लिए जाते उसे ये गर्दन झुका के चुपचाप सुन लेते और उस पर अमल करते. अपने कार्यकाल में मनमोहन तब भी चुप थे जब सबके सामने राहुल गांधी ने ऑर्डिनेंस फाड़ा और ये तब भी खामोश थे जब उनके सांसद और विधायक 5-5 रुपए में देश की जनता का पेट भर रहे थे.
अंत में इतना ही कि, भले ही तब मनमोहन न बोलें हों मगर जिस तरह आज वो खुल कर अपने मन की बात रख रहे हैं उससे एक बात तो साफ है कि, समय बड़ा बलवान है. यदि समय चाहेगा तो वो भी बोलना शुरू कर देगा जो बरसों से खामोश बैठा, खुली आंखों से लोकतंत्र का मजाक बनते देख रहा था. बाकी मनमोहन सिंह के बारे में इतना ही कि जिस तरह आज वो अतीत की डायरी से, एक के बाद एक नए किस्से सुना रहे हैं वो निश्चित तौर पर बहुत से लोगों के माथे पर चिंता के बल डाल देगी.
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