भारत-चीन तनाव की जड़ में दलाई लामा का भारत में शरण लेना भी शामिल है. जब चीन ने तिब्बत पर अपना अधिपत्य जताया तो दलाई लामा समेत हजारों तिब्बती नागरिक भारत आ गए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन सभी शरणार्थियों को खुले दिल से भारत में जगह दी. उन्होंने 1962 का युद्ध भी झेला, लेकिन तिब्बती शरणार्थियों को लेकर अपनी नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया. लेकिन, अब दलाई लामा की नजरों में अचानक से नेहरू का किरदार 'स्वार्थी' नजर आने लगा है. उन्होंने भारत-पाकिस्तान बंटवारे को लेकर ऐसी टिप्पणी की, जिससे सुनने वाले चौंक गए. दलाई लामा गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के छात्रों से बातचीत में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.
हम अक्सर ही कहावत सुनते हैं "उड़ता तीर पकड़ना", अर्थ है जा रही मुसीबत को पुचकारते हुए गले लगाना. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुहम्मद अली जिन्नाह की फोटो के रूप में एक तीर कर्नाटक चुनाव में उड़ा था. खूब हो हल्ला हुआ. खूब बवाल काटा गया. खूब विरोध प्रदर्शन भी हुए. मामले में कुछ लोग जिन्नाह के साथ थे तो कुछ उनके खिलाफ. चुनाव खत्म हुए, मामला ठंडे बसते में चला गया. तब के बाद अब फिर जिन्नाह चर्चा में हैं कारण हैं दलाई लामा. दलाई लामा ने जिन्नाह के जिन के रूप में उड़ता तीर पकड़ा है. अच्छा चूंकि अभी ये मामला कम लोगों को पता है तो दलाई लामा बेफिक्र रह सकते हैं. मगर आने वाले दो-एक दिन में जब ये सोशल मीडिया पर तैर जाएगा तब दलाई लामा को पता चलेगा इस तीर से लगने वाला घाव कितना गहरा होगा.
बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के एक प्रोग्राम में इस बात को स्वीकार किया कि यदि जवाहर...
भारत-चीन तनाव की जड़ में दलाई लामा का भारत में शरण लेना भी शामिल है. जब चीन ने तिब्बत पर अपना अधिपत्य जताया तो दलाई लामा समेत हजारों तिब्बती नागरिक भारत आ गए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन सभी शरणार्थियों को खुले दिल से भारत में जगह दी. उन्होंने 1962 का युद्ध भी झेला, लेकिन तिब्बती शरणार्थियों को लेकर अपनी नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया. लेकिन, अब दलाई लामा की नजरों में अचानक से नेहरू का किरदार 'स्वार्थी' नजर आने लगा है. उन्होंने भारत-पाकिस्तान बंटवारे को लेकर ऐसी टिप्पणी की, जिससे सुनने वाले चौंक गए. दलाई लामा गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के छात्रों से बातचीत में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.
हम अक्सर ही कहावत सुनते हैं "उड़ता तीर पकड़ना", अर्थ है जा रही मुसीबत को पुचकारते हुए गले लगाना. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुहम्मद अली जिन्नाह की फोटो के रूप में एक तीर कर्नाटक चुनाव में उड़ा था. खूब हो हल्ला हुआ. खूब बवाल काटा गया. खूब विरोध प्रदर्शन भी हुए. मामले में कुछ लोग जिन्नाह के साथ थे तो कुछ उनके खिलाफ. चुनाव खत्म हुए, मामला ठंडे बसते में चला गया. तब के बाद अब फिर जिन्नाह चर्चा में हैं कारण हैं दलाई लामा. दलाई लामा ने जिन्नाह के जिन के रूप में उड़ता तीर पकड़ा है. अच्छा चूंकि अभी ये मामला कम लोगों को पता है तो दलाई लामा बेफिक्र रह सकते हैं. मगर आने वाले दो-एक दिन में जब ये सोशल मीडिया पर तैर जाएगा तब दलाई लामा को पता चलेगा इस तीर से लगने वाला घाव कितना गहरा होगा.
बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के एक प्रोग्राम में इस बात को स्वीकार किया कि यदि जवाहर लाल नेहरू की जगह जिन्ना प्रधानमंत्री होते तो देशा का विभाजन नहीं होता. नेहरू और जिन्नाह को लेकर दलाई लामा ने जो भी कहा है उससे एक बात तो साफ है कि या तो दलाई लामा आने वाले वक्त में भारी पब्लिक डिमांड पर बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं या फिर वो इन दिनों खाली बैठे बोर हो गए हैं और कुछ तूफानी करना चाह रहे हैं.
एक ऐसे वक़्त में जब दसहरी आम में लगने वाले कार्बाइड के कारण आम पिलपिला होने से लेकर दूध और खोये में मिले यूरिया तक सबके लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया जा रहा हो. दलाई लामा का ये कहना कि 'महात्मा गांधी तो जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन नेहरू ने इसके लिए मना कर दिया. वह आत्मकेंद्रित थे. नेहरू ने कहा था कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं. भारत पाकिस्तान एक हो जाता अगर जिन्ना प्रधानमंत्री बन जाते. पंडित नेहरू बहुत ज्ञानी थे, लेकिन उनसे गलती हो गई.' बता देता है कि बौद्ध धर्मगुरू मूड में हैं.
बहरहाल, प्रोग्राम के दौरान अभी दलाई लामा अपनी बात कह ही रहे थे उनसे एक छात्र ने सवाल कर लिया. छात्र ने बौद्ध धर्मगुरू से पूछा कि, आखिर कोई किस तरह इस तरह के निर्णय ले जिससे कि गलतियां नहीं हों? इस पर दलाई लामा ने बहुत गंभीर होकर नेहरू के निर्णय की पृष्ठभूमि में कहा, 'गलतियां होती ही हैं.' बात आगे बढ़ाने से पहले आपको बताते चलें कि इंस्टीट्यूट की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर बौद्ध धर्मगुरू को आमंत्रित किया गया था और इस मौके पर वो संस्थान के छात्रों से बात चीत कर रहे थे.
कहना गलत नहीं है खुद को बड़ा इतिहासकार समझने वाले दलाई लामा इस बात को भूल गए कि जिस मुद्दे पर वो अपनी निजी राय दे रहे हैं वो एक बेहद संवेदनशील विषय है. साथ ही उन्हें ये भी याद रखना चाहिए कि वो एक धर्मगुरू हैं. इस तरह के बयान देकर भले ही वो कुछ पलों के लिए फैंटम बन जाएं मगर जमीनी सच्चाई ये है कि हम उनसे 'कुछ बेहतर' की उम्मीद करते हैं. ऐसा कुछ जो हमें एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करे.
इन सब बातों के अलावा दलाई लामा को इंडिया-पाकिस्तान और नेहरू-जिन्ना के विषय में बोलने से पहले ये भी सोचना चाहिए था कि हिंदुस्तान में कांग्रेस-भाजपा, सपा-बसपा, सीपीआई-तृणमूल जैसे राजनीतिक दल बरसों से ऐसे मुद्दों पर राजनीति कर देश की जनता को बेवकूफ बनाते आ रहे हैं. मगर बात जब किसी धर्मगुरु की होती है ऐसी बातें और ऐसे बयान एक धर्मगुरु हो हरगिज शोभा नहीं देते.
बहरहाल अब चूंकि दलाई लामा उड़ता तीर पकड़ ही चुके हैं. हम बस ईश्वर से इतनी ही कामना करते हैं कि वो उन्हें राजनीति के अलावा सोशल मीडिया वाले शूरवीरों के ताप से महफूज रखे. ऐसा इसलिए क्योंकि दौर खराब है बिना सिर मुड़ाए ही कब किसपर ओले पड़ जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता.
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