हिमाचल में मानसून की दस्तक के बाद भारी बारिश की चेतावनी जारी की जा चुकी है जिसे ऑरेंज अलर्ट भी कहा गया है. लेकिन हिमाचल की ये बारिश बहुत जल्द पंजाब पर भारी पड सकती है. यूँ भी कह सकते हैं की ये आफत सियासत का नतीजा है. दरअसल चुनावी वोट बैंक की खातिर पंजाब सरकार और अकाली दल के साथ पंजाब की सभी राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल नहर) को नेस्तनाबूत कर दिया. अब राज्य के ऊपर गंभीर खतरा मंडरा रहा है कि कहीं ये नहर पंजाब के लिए बाढ़ का सबब ना बन जाए.
करोड़ों रुपये की लागत से बनी 214 किलोमीटर लंबी और 133 मीटर एसवाईएल नहर हमेशा से ही हरियाणा और पंजाब के बीच राजनैतिक विवादों में रही है. दोनों ही राज्यों में यह नहर एक अहम चुनावी मुद्दा बनता था. जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राज्य के सभी जल समझौतों को रदद् कर दिया था वहीं अब बादल सरकार ने विधानसभा में बिल पास कराकर नहर की जमीन पंजाब के किसानों को मुफ्त देने का एलान कर दिया है. इस घोषणा के बाद से किसानों के नाम पर कई जगह नहर को तोड़ भी दिया गया है.
सतलुज यमुना लिंक नहर |
पंजाब और हरियाणा के बीच यह विवाद फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है लेकिन सियासत के जोर के आगे लोगों ने न्यायालय के फैसले का इंतजार करना भी मुनासिब नहीं समझा.
अब यही सतलुज नहर पंजाब के लोगों की नींद उडा रही है. हिमाचल में बारिश का जो पानी पटियाला बेल्ट मे अकसर बाढ़ लाता है पहले इसी नहर से होकर हरियाणा निकल जाता था. लेकिन अब वो पानी आगे नही जा पाएगा और नतीजा यह कि इस इलाके में बारिश के पानी की तबाही देखने को मिलेगी.
मौसम विभाग के निदेशक सुन्दर पाल सिंह का मानना है कि इस बार देश...
हिमाचल में मानसून की दस्तक के बाद भारी बारिश की चेतावनी जारी की जा चुकी है जिसे ऑरेंज अलर्ट भी कहा गया है. लेकिन हिमाचल की ये बारिश बहुत जल्द पंजाब पर भारी पड सकती है. यूँ भी कह सकते हैं की ये आफत सियासत का नतीजा है. दरअसल चुनावी वोट बैंक की खातिर पंजाब सरकार और अकाली दल के साथ पंजाब की सभी राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल नहर) को नेस्तनाबूत कर दिया. अब राज्य के ऊपर गंभीर खतरा मंडरा रहा है कि कहीं ये नहर पंजाब के लिए बाढ़ का सबब ना बन जाए.
करोड़ों रुपये की लागत से बनी 214 किलोमीटर लंबी और 133 मीटर एसवाईएल नहर हमेशा से ही हरियाणा और पंजाब के बीच राजनैतिक विवादों में रही है. दोनों ही राज्यों में यह नहर एक अहम चुनावी मुद्दा बनता था. जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राज्य के सभी जल समझौतों को रदद् कर दिया था वहीं अब बादल सरकार ने विधानसभा में बिल पास कराकर नहर की जमीन पंजाब के किसानों को मुफ्त देने का एलान कर दिया है. इस घोषणा के बाद से किसानों के नाम पर कई जगह नहर को तोड़ भी दिया गया है.
सतलुज यमुना लिंक नहर |
पंजाब और हरियाणा के बीच यह विवाद फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है लेकिन सियासत के जोर के आगे लोगों ने न्यायालय के फैसले का इंतजार करना भी मुनासिब नहीं समझा.
अब यही सतलुज नहर पंजाब के लोगों की नींद उडा रही है. हिमाचल में बारिश का जो पानी पटियाला बेल्ट मे अकसर बाढ़ लाता है पहले इसी नहर से होकर हरियाणा निकल जाता था. लेकिन अब वो पानी आगे नही जा पाएगा और नतीजा यह कि इस इलाके में बारिश के पानी की तबाही देखने को मिलेगी.
मौसम विभाग के निदेशक सुन्दर पाल सिंह का मानना है कि इस बार देश में अच्छा मानसून देखने को मिलेगा जिसके चलते पंजाब और हिमाचल में सामान्य से अधिक बारिश देखने को मिलेगी. लिहाजा, हिमाचल में बारिश का पानी नहर के कैचमेंट एरिया में जमा हो सकता है जिससे बाढ़ जैसे हालात की आशंका बनी हुई है. स्थिति और भी भयावह हो सकती है यदि एसवाईएल नहर का बचा कुचा हिस्सा भी बाढ़ में और क्षतिग्रस्त हो जाए.
आमतौर पर तो मौसम विभाग से अच्छे मानसून का अनुमान पंजाब में किसानों और व्यापारियों के लिए अच्छी खबर रहती है लेकिन इस बार सभी की नींद उड़ा हुई है. इससे पहले अच्छे मानसून में हिमाचल की बारिश का अत्यधिक पानी एसवाईएल नहर के जरिए हरियाणा निकल जाता था और राज्य को बाढ़ की चपेट में आने से बचा लिया जाता था. लेकिन इस बार एसवाईएल नहर यह काम नहीं कर सकेगी. राज्य सरकार ने अभी तक किसानों और कारोबारियों को इस खतरे के लिए कोई चेतावनी नहीं दी है जिसके चलता जानकार मान रहे हैं कि इस संभावित बाढ़ के कहर से राज्य में बड़ी तबाही देखने को मिल सकती है.
नहर के आसपास के गांवों में लोगों का कहना है कि पिछली बार 2010 में उन्हें बाढ़ का सामना पड़ा था जब उनके खेत और घर पूरी तरह बाढ़ की चपेट में आ गए थे. लेकिन उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ा था क्योंकि धीरे-धीरे नहर के सहारे बाढ़ का सारा पानी आगे निकल गया था.
अब इसके लिए अगर वोट बैंक कि सियासत को जिम्मेदार ठहराया जाए तो जाहिर है कि आने वाले दिनों में इसी सियायत से डूबते पंजाब को बचाना मुश्किल हो जाएगा. बाढ़ में फसल और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ तो इसके लिए नहर को जिम्मेदार न कह कर राज्य की सियासत को कटघरे में खड़ा करने की जरूरत होगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.