जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा तो उनकी तुलना 'नायक' फिल्म के अनिल कपूर से की गई, जो समाज से सारी गंदगी साफ देंगे. शुरुआती दौर में उनका काम था भी वैसा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, केजरीवाल सरकार पर उंगलियां उठनी शुरू हो गईं. केजरीवाल सरकार आए दिन स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर बनाने के दावे करती है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मिलने वाला इलाज इन दावों की पोल खोल रहा है. ताजा मामला दिल्ली के जहांगीरपुरी का है, जहां एक सरकारी अस्पताल में डिलीवरी के बाद महिलाओं को जमीन पर सोना पड़ रहा है. लगता है कि केजरीवाल सरकार अपनी पीठ थपथपाने में इस कदर खो गई है कि लोगों के साथ हो रही अमानवीयता को देख ही नहीं पा रही.
जमीन पर सोने को मजबूर महिलाएं
यह मामला जहांगीरपुरी के सरकारी अस्पताल 'बाबू जग जीवन राम मेमोरियल' का है. बच्चे का जन्म होने के बाद कई महिलाओं ने जमीन पर सोने को मजबूर होने की शिकायत की है. अस्पताल में पर्याप्त बेड नहीं हैं. इतना ही नहीं, इस बात की भी शिकायत मिली है कि जिन बच्चों को जन्म के तुरंत बाद किसी वजह से आईसीयू में रखना पड़ा है, उनकी माओं को भी जमीन पर सोना पड़ रहा है.
महिला आयोग हुआ सख्त
यूं तो महिला आयोग ने इस अनियमितता की शिकायत मिलते ही अस्पताल को नोटिस जारी कर दिया है, लेकिन ऐसी स्थिति पैदा हो जाना केजरीवाल सरकार के दावों पर करारा तमाचा है. आखिर शिकायत के बाद ही एक्शन क्यों लिया जाता है? इन सरकारी अस्पतालों में होने वाली अनियमितताओं पर अस्पताल प्रशासन समय रहते नजर क्यों नहीं रखता? सरकार इन अस्पतालों की निगरानी में कोताही क्यों बरतती है? अब दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने अस्पताल को नोटिस...
जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा तो उनकी तुलना 'नायक' फिल्म के अनिल कपूर से की गई, जो समाज से सारी गंदगी साफ देंगे. शुरुआती दौर में उनका काम था भी वैसा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, केजरीवाल सरकार पर उंगलियां उठनी शुरू हो गईं. केजरीवाल सरकार आए दिन स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर बनाने के दावे करती है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मिलने वाला इलाज इन दावों की पोल खोल रहा है. ताजा मामला दिल्ली के जहांगीरपुरी का है, जहां एक सरकारी अस्पताल में डिलीवरी के बाद महिलाओं को जमीन पर सोना पड़ रहा है. लगता है कि केजरीवाल सरकार अपनी पीठ थपथपाने में इस कदर खो गई है कि लोगों के साथ हो रही अमानवीयता को देख ही नहीं पा रही.
जमीन पर सोने को मजबूर महिलाएं
यह मामला जहांगीरपुरी के सरकारी अस्पताल 'बाबू जग जीवन राम मेमोरियल' का है. बच्चे का जन्म होने के बाद कई महिलाओं ने जमीन पर सोने को मजबूर होने की शिकायत की है. अस्पताल में पर्याप्त बेड नहीं हैं. इतना ही नहीं, इस बात की भी शिकायत मिली है कि जिन बच्चों को जन्म के तुरंत बाद किसी वजह से आईसीयू में रखना पड़ा है, उनकी माओं को भी जमीन पर सोना पड़ रहा है.
महिला आयोग हुआ सख्त
यूं तो महिला आयोग ने इस अनियमितता की शिकायत मिलते ही अस्पताल को नोटिस जारी कर दिया है, लेकिन ऐसी स्थिति पैदा हो जाना केजरीवाल सरकार के दावों पर करारा तमाचा है. आखिर शिकायत के बाद ही एक्शन क्यों लिया जाता है? इन सरकारी अस्पतालों में होने वाली अनियमितताओं पर अस्पताल प्रशासन समय रहते नजर क्यों नहीं रखता? सरकार इन अस्पतालों की निगरानी में कोताही क्यों बरतती है? अब दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने अस्पताल को नोटिस जारी कर के 18 सितंबर तक जवाब मांगा है. स्वाति के अनुसार उन्हें इस बात की भी शिकायत मिली है कि अस्पताल की लिफ्ट भी खराब है, जिससे काफी दिक्कतें हो रही हैं. दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर इस अस्पताल का गुणगान करते हुए लिखा गया है कि ये 100 बेड वाला मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल है. लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां कितनी धांधली हो रही है, उस ओर सरकार का ध्यान ही नहीं जा रहा.
पहले भी मिली हैं शिकायतें
ऐसा नहीं है कि पहली बार इस अस्पताल में हो रही अनियमितताएं उजागर हुई हैं. कुछ समय पहले ही अस्पताल के एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर अंकित ओम ने सुविधाएं न होने की वजह से ही इस्तीफा तक दे दिया था, लेकिन शायद तब तक किसी की कान पर जूं नहीं रेंगी थी. अंकित ने अस्पताल की अनियमितताओं के बारे में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को पत्र लिखकर इसकी सूचना भी दी थी. पता नहीं वो चिट्ठी पढ़ी भी गई होगी या फिर कचरे के डिब्बे में पड़ी होगी.
अंकित के अनुसार अस्पताल के ओपीडी में मरीज को देखने वाले डॉक्टर के बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं थी. पीने का साफ पानी नहीं था, कैंटीन नहीं थी जहां खाना खा सकें. और तो और, प्रिस्क्रिप्शन लिखने के लिए कई बार उन्हें घर से कागज तक ले जाने पड़े. उन्होंने सवाल उठाया था कि प्रशासन सेकेंडरी केयर हॉस्पिटल चला रहा है, लेकिन यहां प्राइमरी हेल्थ केयर जैसी सुविधाएं भी नहीं हैं. अस्पताल में स्टेशनरी से लेकर लाइफ सेविंग इक्विपमेंट तक नहीं हैं. अंकित ने दावा किया था कि इन्हीं सब की वह से पिछले कुछ समय में 10-12 डॉक्टर अस्पताल छोड़कर जा चुके हैं. अस्पताल की मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर प्रतिभा नंदा ने माना की कुछ कमियां हैं, क्योंकि खरीदारी बंद थी, सरकार के आदेश के बाद अब फाइल बनाकर भेजी गई है और जल्द ही इनसे छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन सवाल वहीं का वहीं है कि अस्पताल में अनियमितताएं हैं.
केजरीवाल सरकार पर कभी चंदे को लेकर सवाल उठे, तो कभी अपनों ने ही गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी से किनारा कर लिया. बावजूद इन सबके केजरीवाल सरकार संभलती नहीं दिख रही है. सरकारी सेवाओं में सख्ती देखने को नहीं मिल रही है. ऐसा लग रहा है कि केजरीवाल सरकार मोहल्ला क्लीनिक को ही अपनी सफलता मान रही है, जबकि उसमें भी कई तरह की अनियमितताएं सामने आ चुकी हैं. मोहल्ला क्लीनिक केजरीवाल सरकार का बेशक एक अहम कदम है, लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि सरकारी अस्पतालों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया जाए. अरविंद केजरीवाल को ये समझना होगा कि लोग नई सुविधाएं तो चाहते हैं, लेकिन पुरानी सुविधाओं को बेहतर करना उससे भी जरूरी है.
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