एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर जारी बहस फिलहाल नतीजे आने पर खत्म हो ही जाएगी. क्योंकि, एनडीए का दावा है कि उनके पास द्रौपदी मुर्मू को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या में वोट हैं. लेकिन, राष्ट्रपति चुनाव के लिए चल रही वोटिंग के बीच कई सियासी दलों की ओर से द्रौपदी मुर्मू को एक 'रबर स्टांप राष्ट्रपति' बताने की बहस छेड़ दी गई है. आइए जानते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के 'रबर स्टांप राष्ट्रपति' बनने की बहस कितनी खोखली है!
- तेजस्वी यादव कहते हैं कि हमने कभी द्रौपदी मुर्मू को कोई बयान देते नहीं सुना. (उनका इशारा उनकी निष्क्रियता को लेकर था) लेकिन, मुख्यमंत्री बनने से पहले बयान देते तो राबड़ी देवी को भी नहीं सुना गया था. उन्हें तो लालू यादव के जेल जाने पर नियुक्त किया गया था. इस तरह तो राबड़ी बनीं थी परफेक्ट 'रबर स्टांप सीएम'. द्रौपदी मुर्मू तो चुनाव लड़ने के बाद राष्ट्रपति बनेंगी.
- समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कहते हैं कि हमें ऐसे राष्ट्रपति की जरूरत है, जो सरकार को समय-समय पर टोक सके. हालांकि, राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जिस तरह परिभाषित किया है, उसमें अखिलेश यादव की मनोकामना पूरी होती नहीं दिखती. संविधान सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि- 'भारतीय संघ के राष्ट्रपति सामान्यत: अपने मंत्रियों की सलाह द्वारा बाध्य होंगे. वह उनकी सलाह के विपरीत कुछ नहीं कर सकते न ही उनकी सलाह के बिना कुछ कर सकते हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति किसी भी सचिव को किसी भी समय बर्खास्त कर सकते हैं. भारतीय संघ के राष्ट्रपति के पास ऐसा करने की शक्ति नही होगी, जब तक कि उनके मंत्रियों के पास संसद में बहुमत है.'
एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर जारी बहस फिलहाल नतीजे आने पर खत्म हो ही जाएगी. क्योंकि, एनडीए का दावा है कि उनके पास द्रौपदी मुर्मू को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या में वोट हैं. लेकिन, राष्ट्रपति चुनाव के लिए चल रही वोटिंग के बीच कई सियासी दलों की ओर से द्रौपदी मुर्मू को एक 'रबर स्टांप राष्ट्रपति' बताने की बहस छेड़ दी गई है. आइए जानते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के 'रबर स्टांप राष्ट्रपति' बनने की बहस कितनी खोखली है!
- तेजस्वी यादव कहते हैं कि हमने कभी द्रौपदी मुर्मू को कोई बयान देते नहीं सुना. (उनका इशारा उनकी निष्क्रियता को लेकर था) लेकिन, मुख्यमंत्री बनने से पहले बयान देते तो राबड़ी देवी को भी नहीं सुना गया था. उन्हें तो लालू यादव के जेल जाने पर नियुक्त किया गया था. इस तरह तो राबड़ी बनीं थी परफेक्ट 'रबर स्टांप सीएम'. द्रौपदी मुर्मू तो चुनाव लड़ने के बाद राष्ट्रपति बनेंगी.
- समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कहते हैं कि हमें ऐसे राष्ट्रपति की जरूरत है, जो सरकार को समय-समय पर टोक सके. हालांकि, राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जिस तरह परिभाषित किया है, उसमें अखिलेश यादव की मनोकामना पूरी होती नहीं दिखती. संविधान सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि- 'भारतीय संघ के राष्ट्रपति सामान्यत: अपने मंत्रियों की सलाह द्वारा बाध्य होंगे. वह उनकी सलाह के विपरीत कुछ नहीं कर सकते न ही उनकी सलाह के बिना कुछ कर सकते हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति किसी भी सचिव को किसी भी समय बर्खास्त कर सकते हैं. भारतीय संघ के राष्ट्रपति के पास ऐसा करने की शक्ति नही होगी, जब तक कि उनके मंत्रियों के पास संसद में बहुमत है.'
- कुछ विपक्ष के नेता कह रहे हैं कि जिस तरह संविधान का अनादर हो रहा है, उसे यशवंत सिन्हा ही राष्ट्रपति के रूप में रोक सकते हैं. ऐसे में राष्ट्रपति के न्यायिक अधिकारों को जानना जरूरी हो जाता है- 'राष्ट्रपति का प्राथमिक कर्तव्य अनुच्छेद 60 के अनुसार भारत के संविधान और कानून का संरक्षण, रक्षा और बचाव करना है. राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर भारत के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है. राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश को संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई मत से बर्खास्त कर सकता है.'
- राष्ट्रपति के रूप में विपक्ष एक ऐसा व्यक्ति चाहता है, जो विपक्ष के सुर में सुर मिलाकर सरकार की खिंचाई करे. हालांकि, ऐसा ही काम जब पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ कर रहे हैं. तो, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित विपक्ष उन्हें बीजेपी का एजेंट कहने से नहीं चूक रहा है.
मुर्मू के खिलाफ कौन बोल रहा है कड़वा और किसकी है चुप्पी?
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सबसे रोचक बात यही है कि द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ खुलकर अपनी बात रखने वालों में अधिकांश वो क्षेत्रीय दल हैं. जिनका आदिवासी समुदाय के मतदाताओं के वोटों से कोई लेना-देना नहीं है. बिहार में आरजेडी हो या उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी. दिल्ली और पंजाब की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी हो या मुस्लिम राजनीति करने वाली एआईएमआईएम. इन सभी राजनीतिक दलों के लिए आदिवासी मतदाता कोई खास अहमियत नहीं रखते हैं. क्योंकि, इन प्रदेशों में आदिवासी मतदाताओं की संख्या ना के बराबर है. जबकि, कांग्रेस ने भले ही द्रौपदी मुर्मू के सामने यशवंत सिन्हा के तौर पर अपना साझा उम्मीदवार खड़ा किया हो. लेकिन, वह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, उड़ीसा जैसे राज्यों के आदिवासी मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए मुर्मू पर व्यक्तिगत हमले करने से बच रही है.
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