फिल्मी अदालतों में वकील एक दूसरे को काबिल दोस्त कहा करते हैं - और योर ऑनर वाला ओहदा तो सबसे ऊपर होता ही है. ज्यूडिशियरी में सभी विद्वान भी होते ही हैं. सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद तो जस्टिस मार्कंडेय काटजू ज्यादातर जगह 90 फीसदी आबादी को नाकाबिल ही मानते रहे हैं.
कोई रेप के मामलों में 'स्किन टू स्किन' को ही अपराध मानता है, तो कोई मोर के आंसू में प्रेम से लेकर वासना तक व्याख्या कर डालता है. रह रह कर उच्च न्यायालयों से बड़ी ही दिलचस्प खबरें आती हैं - और इलाहाबाद हाई कोर्ट से यूपी में चुनाव टालने की सलाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से अपील कर डालने का मामला भी उसी कैटेगरी का लगता है.
बेशक कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने संपूर्ण लॉकडाउन लागू किया था, लेकिन पहली लहर में ही धीरे धीरे सारा दारोमदार राज्यों पर छोड़ दिया गया. कोई चाहे तो लॉकडाउन लगाये, न चाहे तो वो जाने. जाहिर है दूसरी लहर के लिए भी वही दिशानिर्देश मान लिये गये. जो हाल हुआ सबने देखा ही. अब तो ओमिक्रॉन (Omicron) पर भी वही स्टैंड दिखायी दे रहा है.
चुनाव टाल देने की सलाह पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के बीच सरकार की तरफ से भी केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान आ ही गया था, 'जब चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता लागू करता है, तो उसे ये तय करना होता है कि चुनाव कब होंगे.'
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने भी बोल ही दिया है, 'अगले हफ्ते, हम उत्तर प्रदेश जाएंगे और वहां की स्थिति की समीक्षा करेंगे... फिर उचित निर्णय लेंगे.' खबर है कि चुनाव आयोग (Election Commission) की टीम टीम 28 और 29 दिसंबर के बीच उत्तर प्रदेश के दौरे पर होगी - और स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य के सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को लखनऊ बुलाया गया है.
पंचगव्य को लाइलाज बीमारियों के लिए रामबाण बताने वाले जस्टिस शेखर कुमार यादव ने प्रधानमंत्री से अपील को दमदार बनाने के लिए 'जान है तो जहान है' की दलील पेश की है. वो जानते थे...
फिल्मी अदालतों में वकील एक दूसरे को काबिल दोस्त कहा करते हैं - और योर ऑनर वाला ओहदा तो सबसे ऊपर होता ही है. ज्यूडिशियरी में सभी विद्वान भी होते ही हैं. सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद तो जस्टिस मार्कंडेय काटजू ज्यादातर जगह 90 फीसदी आबादी को नाकाबिल ही मानते रहे हैं.
कोई रेप के मामलों में 'स्किन टू स्किन' को ही अपराध मानता है, तो कोई मोर के आंसू में प्रेम से लेकर वासना तक व्याख्या कर डालता है. रह रह कर उच्च न्यायालयों से बड़ी ही दिलचस्प खबरें आती हैं - और इलाहाबाद हाई कोर्ट से यूपी में चुनाव टालने की सलाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से अपील कर डालने का मामला भी उसी कैटेगरी का लगता है.
बेशक कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने संपूर्ण लॉकडाउन लागू किया था, लेकिन पहली लहर में ही धीरे धीरे सारा दारोमदार राज्यों पर छोड़ दिया गया. कोई चाहे तो लॉकडाउन लगाये, न चाहे तो वो जाने. जाहिर है दूसरी लहर के लिए भी वही दिशानिर्देश मान लिये गये. जो हाल हुआ सबने देखा ही. अब तो ओमिक्रॉन (Omicron) पर भी वही स्टैंड दिखायी दे रहा है.
चुनाव टाल देने की सलाह पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के बीच सरकार की तरफ से भी केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान आ ही गया था, 'जब चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता लागू करता है, तो उसे ये तय करना होता है कि चुनाव कब होंगे.'
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने भी बोल ही दिया है, 'अगले हफ्ते, हम उत्तर प्रदेश जाएंगे और वहां की स्थिति की समीक्षा करेंगे... फिर उचित निर्णय लेंगे.' खबर है कि चुनाव आयोग (Election Commission) की टीम टीम 28 और 29 दिसंबर के बीच उत्तर प्रदेश के दौरे पर होगी - और स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य के सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को लखनऊ बुलाया गया है.
पंचगव्य को लाइलाज बीमारियों के लिए रामबाण बताने वाले जस्टिस शेखर कुमार यादव ने प्रधानमंत्री से अपील को दमदार बनाने के लिए 'जान है तो जहान है' की दलील पेश की है. वो जानते थे कि अपनी ही कही हुई बात तो मोदी भूलने से रहे, लेकिन वो खुद ये भूल गये कि राष्ट्र के नाम संबोधन ये कहने के बाद प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों की बैठक में एडिट कर दिया था - जान भी, जहान भी. जुमला ही तो है, जान है तो जहान है, गुजरते वक्त और बदलती जरूरत के हिसाब से चीजें पीछे छूट ही जाती हैं.
कोरोना वायरस और कोर्ट से निकली बातें
उत्तर प्रदेश में 2022 की शुरुआत में पांच राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव संभावित है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 23 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग से अपील करते हुए कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव टालने पर भी विचार करें, क्योंकि - जान है तो जहान है.' ध्यान रहे, जस्टिस यादव एक जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे और उसका चुनाव प्रक्रिया या चुनाव आयोग से कोई भी वास्ता न था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश: अप्रैल, 2021 में ही हाई कोर्ट ने यूपी के पांच शहरों लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज और गोरखपुर में संपूर्ण लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था. एक तारीख बता कर मियाद भी तय कर दी थी.
योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया. योगी सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि कोरोना पर काबू पाने के लिए कई तरह के उपाय किये गये हैं. जो निर्देश मिले हैं उन पर आपत्ति तो नहीं है, लेकिन किसी ज्यूडिशियल ऑर्डर के जरिये पांच शहरों में लॉकडाउन लगा देना सही नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, हालांकि, ये भी कहा कि सरकार कोरोना संकट से जुड़े उपायों की जानकारी हाई कोर्ट को भी दे.
कलकत्ता हाई कोर्ट की निगरानी: पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान कलकत्ता हाई कोर्ट भी कड़ी निगरानी कर रहा था. दरअसल, कोविड प्रोटोकॉल से जुड़ी कई याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की गयी थीं और उन पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग पर भी टिप्पणी की थी.
चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने चुनाव के दौरान कोविड प्रोटोकॉल को लेकर याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि कोविड सुरक्षा पर सर्कुलर जारी करना और मीटिंग करना काफी नहीं है. फिर अदालत ने कोविड प्रोटोकॉल को सख्ती से लागू करने के आदेश दिये थे.
मद्रास हाई कोर्ट तो हत्या का मुकदमा चलाने के पक्ष में दिखा: पश्चिम बंगाल के साथ ही पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे - और तमिलनाडु भी उनमें शामिल था. मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी थी, 'कोरोना फैलाने के लिए चुनाव आयोग के अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाये तो कम होगा.'
सिर्फ चुनाव टालने से क्या होगा: ये ठीक है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने सरोजिनी नगर मार्केट की भीड़ पर संज्ञान लेते हुए आदेश जारी किया है. दिल्ली सरकार ने भी वीकेंड पर ऑड-ईवन तरीके से दुकाने खोलने का आदेश दे दिया है, हर तरफ तो एक जैसा ही आलम है.
ये तो रोजाना की कहानी है. शराब की दुकानों पर भीड़ को लेकर काफी चर्चा रही - और 'हेल्मेट नहीं तो पेट्रोल नहीं' की तर्ज पर महाराष्ट्र में 'मास्क नहीं तो भाजी नहीं' जैसा स्लोगन सुनायी दे रहा है. जितनी भी तारीफ की जाये कम है.
बहुत अच्छी बात है कि सरोजिनी नगर मार्केट की भीड़ ने अदालत का ध्यान खींचा है, लेकिन बाकी जगह का क्या - हर तरह एक जैसा ही नजारा नजर आता है. अगर कहीं सख्ती है तब तो ठीक है, वरना मास्क को भी काफी संख्या में लोग वैसे ही ले रहे हैं जैसी उनकी सोच हेल्मेट या सीट बेल्ट को लेकर रही है.
कुंभ स्थगित करने की अपील और मोदी की बंगाल रैली
आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वो ट्वीट तो याद होगा ही, 'आचार्य महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी से आज फोन पर बात की. सभी संतों के स्वास्थ्य का हाल जाना. सभी संतगण प्रशासन को हर प्रकार का सहयोग कर रहे हैं. मैंने इसके लिए संत जगत का आभार व्यक्त किया. मैंने प्रार्थना की है कि दो शाही स्नान हो चुके हैं और अब कुंभ को कोरोना के संकट के चलते प्रतीकात्मक ही रखा जाये - इससे इस संकट से लड़ाई को एक ताकत मिलेगी.'
सुबह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ की भीड़ पर चिंता जतायी और आगे से प्रतीकात्मक रखने की सलाह दी, लेकिन उसी दिन दोपहर में जब वो पश्चिम बंगाल चुनावी रैली के लिए पहुंचे तो राजनीति हो गयी. कोरोना वायरस को कौन पूछता है, लगा तो ऐसा ही.
आसनसोल की रैली में उमड़ी भीड़ देख कर प्रधानमंत्री मोदी बेहद खुश थे और खुशी का इजहार भी किये, 'मैं दो बार आया था... पहले एक चौथाई लोग भी न थे सभा में... पर आज ऐसी सभा पहली बार देखी... बताइए, ये मेरी शिकायत मीठी है या कड़वी है? आज आपने ऐसी ताकत दिखाई कि लोग ही लोग दिखते हैं - क्या कमाल कर दिया आप लोगों ने!'
ओमिक्रॉन के खतरे के बीच यूपी चुनाव टालने को लेकर बीजेपी के भीतर से ही दो मजबूत आवाज सामने आयी है. एक तो हैं मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र और दूसरे सुब्रह्मण्यन स्वामी. आप चाहें तो कह सकते हैं कि स्वामी बीजेपी के तो रहे नहीं - क्योंकि स्वामी को सिर्फ कार्यकारिणी से ही निकाला नहीं गया है, ममता से मिलने के बाद तो वो कहीं भी नहीं हैं, ऐसा लगता है.
नरोत्तम मिश्र का कहना है, 'चुनाव किसी की जिंदगी से बड़ा नहीं है... लोगों की जान हमारे लिए पहली प्राथमिकता है और पंचायत चुनाव का जो पूर्व का अनुभव है... जो कोरोना काल में हुए थे... काफी नुकसान हुआ था... इसलिए मेरी व्यक्तिगत राय ये है कि कोरोना की दहशत और आहट को देखते हुए पंचायत चुनाव को टाला जाना चाहिए.'
कोई भी राज्य सरकार गंभीर तो नहीं लग रही
ओमिक्रॉन को राज्य सरकारें कितनी गंभीरता से ले रही हैं, नाइट कर्फ्यू बेहतरीन नमूना है. मध्य प्रदेश और यूपी के बाद हरियाणा और बिहार होते हुए सभी राज्यों में नाइट कर्फ्यू पर विचार किया जाने लगा है.
यूपी में तो रात के 11 बजे से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ्यू लगा दिया गया है - हालांकि, ये नहीं समझ में आ रहा है कि सरकार ये कैसे समझ में आया कि रात के उसी पीरियड में कोरोना फैलने का सबसे ज्यादा खतरा है.
ये सब देखने के बाद मन तो नहीं मान रहा है, लेकिन सरकार तो सरकार है. कैसे मान लें कि सरकार, सत्ताधारी पार्टी कहना ज्यादा ठीक रहेगा, भी चुनाव टालने की बात से सहमत होगी - और चुनाव आयोग भी जनहित में वैसा ही कोई फैसला लेगा.
अगर कोरोना के पीक पर होने के बावजूद पश्चिम बंगाल चुनाव नहीं टला तो भला कैसे समझा जाये कि यूपी में चुनाव टलने वाला है. अभी के आंकड़ों के लिहाज से सोचें तो अगले साल चुनाव के संभावित समय भी बंगाल जैसी हालत होने की तरफ इशारा नहीं कर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल चुनाव के आखिरी दौर में चुनाव आयोग ने रैलियों पर पाबंदी लगा दी थी - लेकिन कब? तभी जब बड़े नेताओं ने धीरे धीरे अपनी रैलियां रद्द करना शुरू कर दिया था. सबसे पहले सीपीएम ने बड़ी रैलियां न करने का फैसला किया था. फिर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने. राहुल गांधी ने एक रैली की और उसके बाद की रैलियां कोरोना के नाम पर रद्द कर दी थी.
प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की भी रैलियां रद्द हो गयीं. बाद में रैलियां हुईं लेकिन वर्चुअल फॉर्म में. फिर भी चुनाव नहीं टाला गया. उत्तर प्रदेश में मतदानकर्मी मरते रहे, लेकिन चुनाव नहीं टाला गया - फिर किसी को क्यों लगता है कि यूपी चुनाव टल जाएगा.
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